रविवार, 22 जुलाई 2018

मुन्ना बजरंगी हत्याकांड: किसकी साजिश, कौन सूत्रधार?



-जितेन्द्र बच्चन
सोमवार की सुबह करीब 6.10 बजे उत्तर प्रदेश की बागपत जेल में पूर्वांचल के कुख्यात माफिया डॉन मुन्ना बजरंगी की गोली मारकर हत्या कर दी गई। लखनऊ से लेकर दिल्ली-मुंबई तक जिस बजरंगी का आतंक था, 40 से ज्यादा हत्याएं कर चुका था, लूट, अपहरण और रंगदारी जैसी कई संगीन वारदात को अंजाम दे चुका था, सरकार ने सात लाख का इनाम घोषित कर रखा था, उसी को गोलियों से भून दिया गया। वह भी जेल के अंदर। इतनी बड़ी साजिश! पुलिस के साथ-साथ सियासी हल्के में भी हड़कंप मच गया- किसने रची साजिश, कौन है सूत्रधार? क्या किसी सफेदपोश के इशारे पर इस वारदात को अंजाम दिया गया या फिर वर्दीवाले बिक गए? आखिर इस कत्ल का मकसद क्या है और कौन है कातिल?
51 वर्षीय प्रेम प्रकाश सिंह उर्फ मुन्ना बजरंगी उत्तर प्रदेश के जनपद जौनपुर के पूरेदयाल गांव का रहने वाला था। पिता का नाम पारस नाथ सिंह है। वह मुन्ना को पढ़ा-लिखाकर बड़ा आदमी बनाना चाहते थे, लेकिन बेटे को फिल्मों की तरह गैंगस्टर बनने का शौक हो गया। पिता के अरमानों को कुचलते हुए 5वीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी और किशोर उम्र में ही जुर्म की राह पर चल पड़ा। महज 17 साल की उम्र में उसके खिलाफ जौनपुर के थाना सुरेरी में मारपीट और अवैध असलहा रखने का मामला दर्ज हुआ।
1980 आते-आते मुन्ना अपराध की दुनिया में एक अलग पहचान बनाने लगा। इसी दौरान जौनपुर के स्थानीय दबंग माफिया गजराज सिंह ने उसे संरक्षण दे दिया। मुन्ना के हौंसले और बुलंद हो गए। वर्ष 1984 में मुन्ना ने लूट के लिए एक व्यापारी की हत्या कर दी। इसके बाद गजराज के इशारे पर जौनपुर के भाजपा नेता रामचंद्र सिंह का भी मर्डर कर दिया। फिर तो पूर्वांचल में मुन्ना बजरंगी की तूती बोलने लगी।
1990 में मुन्ना पूर्वांचल के बाहुबली माफिया मुख्तार अंसारी की गैंग में शामिल हो गया। वह मऊ से अपनी गैंग संचालित कर रहे थे पर वर्चस्व पूरे पूर्वांचल पर था। करीब छह साल बाद मुख्तार ने अपराध की दुनिया से राजनीति में कदम रखा। वह 1996 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर मऊ से विधायक निर्वाचित हुए। मुख्तार की ताकत बढ़ गई। उनके निर्देश पर मुन्ना सरकारी ठेकों को भी अब प्रभावित करने लगा था।
उधर उन्हीं दिनों भाजपा विधायक कृष्णानंद राय भी तेजी से आगे बढ़ने लगे। पूर्वांचल में सरकारी ठेकों और वसूली के कारोबार पर उनका कब्जा होने लगा। दरअसल, कृष्णानंद पर मुख्तार अंसारी के दुश्मन ब्रिजेश सिंह का हाथ था। कृष्णानंद का गैंग तजी से फलने-फूलने लगा। दोनों गैंग के मुखिया अपनी-अपनी ताकत बढ़ाने के लिए अंडरवर्ल्ड के साथ भी जुड़ गए। बाद में कृष्णानंद मुख्तार की आंख की किरकिरी बन गए। उसने चुनौती बन रहे कृष्णानंद का काम तमाम करने का मन बना लिया। यह जिम्मेदारी मुन्ना बजरंगी को दी गई। मुन्ना ने मुख्तार के निर्देश पर 29 नवंबर, 2005 को दिनदहाड़े कृष्णानंद राय को गोलियों से भून दिया।
मुन्ना और उसके साथियों ने लखनऊ हाईवे पर गाजीपुर से बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की दो गाड़ियों पर एके- 47 से 400 गोलियां बरसाई थीं। वारदात में राय के अलावा उनके साथ चल रहे छह अन्य लोग भी मारे गए थे। इन सभी के शरीर से पोस्टपार्टम के दौरान 60 से 100 तक गोलियां बरामद हुईं थीं। इस घटना के बाद मुन्ना बजरंगी के नाम से हर कोई खौफ खाने लगा। कानून की नजर में वह मोस्ट वॉन्टेड बन गया। हत्या, अपहरण और वसूली के कई मामले उस पर अब तक दर्ज हो चुके थे। सरकार ने मुन्ना बजरंगी पर सात लाख रुपये का इनाम घोषित कर दिया। सीबीआई, उत्तर प्रदेश पुलिस और एसटीएफ उसे तलाशने लगी।
मुन्ना लगातार लोकेशन बदलता रहा। पुलिस का दबाव भी लगातार बढ़ता गया। यूपी, बिहार और दिल्ली में रहना मुश्किल हो गया तो मुन्ना भागकर मुंबई पहुंच गया। वहां एक लंबा अरसा उसने गुजारा। अंडरवर्ल्ड के लोगों से रिश्ते गहरे हो गए। उन्हीं दिनों लोकसभा चुनाव होने लगा तो उसने गाजीपुर लोकसभा सीट पर एक महिला को डमी उम्मीदवार बनाने की कोशिश की। इस बात को लेकर मुन्ना के मुख्तार अंसारी से संबंध खराब हो गए। उधर राय की हत्या के चलते भाजपा भी मुन्ना को दरकिनार कर चुकी थी। ऐसे में उसने कांग्रेस का दामन थाम लिया।

लेकिन अपराधी कितना भी चालक क्यों न हो, कानून से ज्यादा गुनाह की उम्र नहीं होती। दिल्ली पुलिस ने 29 अक्टूबर, 2009 को दिल्ली के विवादास्पद एनकाउंटर स्पेशलिस्ट राजबीर सिंह की हत्या में हाथ होने के शक में मुंबई के मलाड इलाके से मुन्ना को गिरफ्तार कर लिया। तब से उसे अलग-अलग जेलों में रखा जा रहा था। इसके बावजूद वह जेल से लोगों को धमकाने, वसूली करने जैसे मामलों को अंजाम देता रहा। खुद मुन्ना का दावा था कि वह 20 साल में 40 हत्याएं कर चुका है।
रविवार, 08 जुलाई को मुन्ना बजरंगी को झांसी जेल से बागपत जेल में शिफ्ट किया गया था। बसपा के पूर्व विधायक लोकश दीक्षित और उनके भाई नारायण दीक्षित से 22 सितंबर, 2017 को फोन पर रंगदारी मांगने और धमकी देने के मामले में मुन्ना को सोमवार को कोर्ट में पेशी थी। उसी सुबह बागपत जेल में गोली मारकर उसकी हत्या कर दी गई। सिर और सीने पर कुल 10 गोलियां मारी गई थीं। मुन्ना बजरंगी की पत्नी सीमा सिंह की तहरीर पर थाना खेखड़ा पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर तफ्तीश शुरू कर दी है। मुन्ना बजरंगी के वकील विकास श्रीवास्वत का कहना है कि माफिया सुनील राठी ने उसकी हत्या की है। पुलिस ने कत्ल में इस्तेमाल पिस्टल जेल की गटर से बरामद कर लिया है। साथ ही आरोपी सुनील राठी से कड़ी पूछताछ जारी थी।
पुलिस तीन एंगल से गैंगस्टर सुनील राठी से पूछताछ कर रही है।
उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अपराध जगत में सुनील राठी कुख्यात है। हाल ही में राठी को रुड़की जेल से बागपत शिफ्ट किया गया था। राठी का भाई पूर्वांचल की जेल में बंद है, जहां उसके साथ हाल ही में कुछ कैदियों ने जेल में दबदबे को लेकर मारपीट की थी। राठी को शक था कि उसके भाई के साथ मारपीट करने वाले मुन्ना बजरंगी के गुर्गे थे। दूसरा, सुनील राठी का उत्तराखंड में बड़ा वर्चव था। वहां की जेल में रहते हुए राठी कारोबारियों से अवैध वसूली कर रहा था। मुन्ना की नजर भी उत्तराखंड पर थी। तीसरा कारण किसी ने मुन्ना बजरंगी की हत्या की सुपारी दी थी।
लेकिन 09 जुलाई को बागपत जिला अस्पताल में मुन्ना बजरंगी की पत्नी सीमा सिंह ने यह कहकर सनसनी फैला दी कि इस हत्याकांड की साजिश में केंद्रीय रेलमंत्री मनोज सिन्हा, पूर्व सांसद धनंजय सिंह और कृष्णानंद राय की पत्नी व भाजपा विधायक अलका राय शामिल हैं। इन्हीं लोगों ने शासन-प्रशासन से मिलकर मुन्ना बजरंगी की हत्या करवाई है। ये लोग नहीं चाहते थे कि वह राजनीति में आगे जाएं। सीमा ने यह भी कहा कि इससे पहले भी उसके पति पर कई बार हमले हो चुके हैं। इसकी शिकायत हमने मुख्यमंत्री से भी की थी और सुरक्षा की गुहार लगाई थी, लेकिन हमारी बात को गंभीरता से नहीं लिया गया।
फिलहाल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर मामले की न्यायिक जांच के आदेश दिए गए हैं। एडीजी जेल ने त्वरित कार्रवाई करते हुए बागपत के जेलर उदय प्रताप सिंह, डिप्टी जेलर शिवाजी यादव, हेड वार्डन अरजिंदर सिंह और बैरक के प्रभारी माधव कुमार को निलंबित कर दिया है। कारागार की व्यवस्था सुचारू रूप से संचालित रहे, इसके लिए जिला कारागार गौतमबुद्धनगर के जेलर सुरेश कुमार सिंह को तैनात किया गया है। सीमा सिंह ने मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है। वहीं इस सवाल का जवाब अब भी नहीं मिला है कि जेल में पिस्टल कैसे पहुंचा? और जेल में जिस सेल के पास मुन्ना बजरंगी को गोली मारी गई, वहां के सीसीटीवी खराब क्यों थे?
सवाल और भी हैं। जैसे हत्या के वक्त बैरक के पास लगा सीसीटीवी काम नहीं कर रहा था। क्या ऐसा जान-बूझकर किया गया था या यह सिर्फ जेल प्रशासन की लापरवाही है? जिस तरह से हाई सिक्योरिटी बैरक में हत्यारे ने गोली मारकर फोटो खींची, इससे साफ है कि वो पूरे इत्मिनान में था कि काम होने तक उसे कोई पकड़ने नहीं आएगा। कहीं जेल प्रशासन या सिस्टम का आदमी हत्यारे से मिला हुआ था? इसके अलावा एक और सवाल बड़ा है, कहीं सरकारी मशीनरी ने ही मुन्ना बजरंगी को सोची-समझी साजिश के तहत ठिकाने तो नहीं लगा दिया?
अब नियमित होगा जेलों का निरीक्षण
जेलों में बिगड़ी व्यवस्था को सुधारने के लिए अब कड़ी नजर रखी जायेगी। वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा जेलों का निरीक्षण भी अब नियमित होगा। लापरवाही पर विधिक कार्रवाई की जायेगी। शासन भी इस मामले को लेकर गंभीर है और जेलों के अंदर की व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए एक प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक सुलखान सिंह की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय एक कमेटी का गठन किया गया है।
- चन्द्र प्रकाश, अपर पुलिस महानिदेशक, जेल

यूपी की जेलों में पहले भी हो चुका है खूनखराबा
15 मार्च, 2005 : वाराणसी के केंद्रीय कारागार में मुन्ना बजरंगी के शार्प शूटर अनुराग उर्फ अन्नू त्रिपाठी की गोली मारकर हत्या। अन्नू त्रिपाठी बंशीलाल यादव की हत्या के आरोप में वाराणसी की जेल में बंद था।
16 मार्च, 2012 : कानपुर देहात के माती जेल में  सजायाफ्ता बंदी रामशरण सिंह भदौरिया की संदिग्ध हालत में बैरक के अंदर ही हुई मौत। इस मामले में बंदियों का आरोप था कि वसूली को लेकर जेल के सुरक्षा कर्मियों ने देर रात रामशरण की पिटाई की थी, जिससे उसकी मौत हो गयी।
18 अप्रैल, 2012 : मेरठ के कारागार में जेल अधिकारियों द्वारा जेल के अंदर तलाशी के दौरान कैदियों ने बवाल कर दिया। स्थिति को संभालने के लिए गोली चलानी पड़ी, जिसमें एक बंदी मेहरादीन पुत्र बाबू खां और कैदी सोमवीर ने दम तोड़ दिया।
14 फरवरी, 2014 : गाजीपुर जेल में निरीक्षण के दौरान जिला प्रशासन के अधिकारियों व कैदियों के बीच कहासुनी खूनी संघर्ष में तब्दील हो गई। आक्रोशित कैदियों को काबू में करने के लिए बल  प्रयोग में एक बंदी विश्वनाथ प्रजापति की मौत हो गयी।
17 जनवरी, 2015 : मथुरा की जेल में बंदियों के दो गुट आपस में भिड़ गए। इस दौरान एक बंदी द्वारा रिवाल्वर से दूसरे बंदी पिन्टू उर्फ अक्षय सोलंकी पुत्र सत्येन्द्र सोलंकी की हत्या कर दी थी।
26 मार्च, 2017 : फर्रूखाबाद के फतेहगढ़ जिला जेल में  थी को सही समय पर इलाज न मुहैया कराये जाने पर कैदियों ने हंगामा शुरु कर दिया। जेलकर्मियों पर पथराव कर जेल के भंडार गृह में आग लगा दी थी। बवाल में प्रभारी जिलाधिकारी, मुख्य विकास अधिकारी और जेल अधीक्षक समेत कई अधिकारियों को चोटें आयी थीं।
21 मई, 2017 : कन्नौज जनपद के अनोगी जेल में जेलरों द्वारा एक कैदी की पिटाई से नाराज कैदियों ने देर रात बवाल कर दिया। शांत कराने के लिए पहुंचे जेल अधीक्षक यूपी मिश्रा को घेरकर कैदियों ने हाथापाई शुरू कर दी। जेलर को बचाने पहुंचे डिप्टी जेलर सुरेन्द्र मोहन तो कैदियों ने उनको जमकर पीटा था।
19 दिसम्बर, 2017 : जौनपुर की जिला जेल में कैदियों के दो गुटों के बीच बवाल हो गया था। इस खूनी संघर्ष में कुख्यात अपराधी प्रमोद राठी सहित छह बदमाश घायल हुए थे।