मंगलवार, 29 नवंबर 2016

खूनी सडक़ें, खौफनाक हादसे


जितेन्द्र बच्चन, नई दिल्ली
सडक़ हादसों की हकीकत। देश में बढ़ती दुर्घटनाएं। एक घंटे में 16 मौत। खूनी सडक़ें, खौफनाक हादसे। जिंदगी पर भारी रफ्तार। बेलगाम होता ट्रैफिक, बेमौत मरती जनता। सरकारी इंतजामों की खुलती पोल। हादसों को दावत देतीं सडक़ें और सडक़ों की सेहत पर शर्मसार सरकार। युवाओं को निगल रही तेज रफ्तार, तो कहीं-कहीं नाबालिग खेल रहे हैं मौत का खेल। आखिर कौन है इसका जिम्मेदार? क्यों लोगों की जान से खेल रहा है परिवहन मंत्रालय? फेल होती सडक़ों पर क्या कहती है सरकार?
नेशनल क्राइम रिकॉड्र्स ब्यूरो का दिल दहला देने वाला आंकड़ा। एक दसक में सडक़ दुर्घटनाओं में 42.50 फीसद का इजाफा। रोड पर होने वाली मौतों के मामले में दिल्ली सबसे आगे। राज्यों में उत्तर प्रदेश बना प्राण घातक। केंद्र सरकार के परिवहन विभाग की जारी रिपोर्ट जानकर आपका कलेजा मुंह को आ लगेगा। एकदम भयानक तस्वीर। देश की सडक़ें महज एक साल में डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों के लिए काल बन गईं। घायल होने वालों की संख्या तो पांच लाख से भी ज्यादा है। न जाने कितने घर तबाह हो गए। परिवार में कोई नहीं बचा चिराग-बत्ती करने वाला। इसके बावजूद न तो ट्रैफिक पुलिस की लापरवाही खत्म हुई और न ही सडक़ों के निर्माण करने में मिलावाट। तमाम निमय-कानून के बावजूद पुलिस और सडक़ निर्माण करने वाले इंजीनियर से लेकर अधिकारी तक भ्रष्टïाचार में लिप्त हैं।
सरकारें बदल जाती हैं, लेकिन लोगों की जान से खेलने वाले अधिकारियों का खेल जारी है। स्थिति सुधरने के बजाय और बिगड़ती जा रही है। पिछले साल की अपेक्षा सडक़ दुर्घटना में इस साल 4.6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इससे भी ज्यादा चिंताजनक यह है कि वर्ष 2015 में सडक़ हादसे में मरने वालों में 54 फीसदी लोगों की उम्र 34 साल से भी कम थी। वहीं 2015 में सबसे ज्यादा सडक़ हादसे तो मुंबई में हुए, लेकिन सबसे ज्यादा लोगों ने दिल्ली की सडक़ों पर जान गवाईं। राजधानी की चौड़ी व चमकदार दिखने वाली सडक़ें 1622 लोगों की जिंदगी निगल गईं।
मौत का आंकड़ा पहुंच सकता है सात लाख:
17 नवंबर 2016 को हुई बातचीत में सडक़ परिवहन, राजमार्ग राज्यमंत्री पी राधाकृष्णन ने बताया कि देश में 2013 से 2015 के बीच 14 लाख 77 हजार 299 सडक़ दुर्घटनाएं घटीं। जबकि सडक़ हादसों में लोगों के हताहत होने के आधार पर चिह्नित 789 ऐसे स्थानों में सर्वाधिक 104 उत्तर प्रदेश में हैं। तमिलनाडु में 102 और कर्नाटक में 86 हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने सडक़ दुर्घटना में लोगों के हताहत होने के मामलों को कम करने के लिए सुरक्षा ऑडिट जैसे कई कदम उठाए हैं। वहीं मानवाधिकार विभाग लखनऊ की श्रद्धा सक्सेना का कहना है कि पिछले दस साल की अवधि में सडक़ हादसों में होने वाली मौतों में साढ़े 42 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वह आगे कहती हैं, देश में जितने लोग बीमारियों और प्राकृतिक आपदाओं से नहीं मरते, उससे कहीं ज्यादा सडक़ दुर्घटनाओं में मर जाते हैं। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में नाबालिग बाइकर्स का आतंक है। पिछले तीन साल में यूपी में ये बाइकर्स 14,157 और मध्य प्रदेश में 8, 420 दुर्घटनाओं को अंजाम दे चुके हैं। नोएडा के यातायात विशेषज्ञ  केपी श्रीवास्तव का कहना है, ‘यदि सडक़ पर गति नियंत्रित नहीं की गई तो 2020 तक भारत में सात लाख प्रति वर्ष से भी ज्यादा मौतें सडक़ हादसों में होंगी।’
तेज र तार का नतीजा :
आखिर इतने अधिक सडक़ हादसों की वजह क्या है और कौन-सी जगहें सडक़ हादसों के हिसाब से सबसे ज्यादा खतरनाक हैं? इस सवाल के जवाब में केंद्रीय मंत्रालय के परिवहन अनुसंधान विभाग के एक वरिष्ठï अधिकारी एसके भल्ला का कहना है, तमाम राज्य सरकारों, पुलिस और अन्य एजेंसियों से मिले ब्योरे की समीक्षा के बाद पता चला है कि 100 में से 77 सडक़ हादसों में गाड़ी चलाने वाले की ही गलती होती है और उसमें भी सबसे ज्यादा हादसे ओवर स्पीडिंग से हुईं। वहीं केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का कहना है, गाड़ी चलाने वालों पर गलती मढ़ देना सबसे आसान है। जबकि बहुत सी जगहें ऐसी हैं, जहां एक ही जगह पर लगातार हादसे होते रहते हैं और सडक़ की डिजाइन में खामी इसकी बड़ी वजह है। परिवहन मंत्रालय ने देश भर में फैले 726 ब्लैक स्पॉट्स की पहचान की है, जहां बार-बार हादसे होते हैं। मंत्रालय ने अब राज्य सरकारों से बात करके इन जगहों पर रोड का डिजाइन दुरुस्त करने का काम शुरू कर दिया है।
कानून में छेद, बड़ी लापरवाही :
परिवहन व राजमार्ग मंत्रायल के आंकड़ों के मुताबिक, 80 फीसद से अधिक हादसे चालक की गलती से होते हैं। वहीं हाई-वे पर रात में गाडिय़ों की गूंजती आवाज को सुनिए तो डर लगता है। 90, 100, 120 और 140 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से यहां गाडिय़ां चलती हैं। शायद यही कारण है कि 21 नवंबर को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव देश के सबसे लंबे आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे का लोकार्पण करते हुए यह अपील करना नहीं भूले कि 100 किमी प्रति घंटे की स्पीड लिमिट क्रॉस न करें। दूसरा कारण है कानून में छेद। हमारे यहां जो कानून हैं, उनमें उदारता कहीं ज्यादा है। लिहाजा हादसे को अंजाम देने वाले चालक को कठोर सजा देने की बजाय, कानून उसे बचाने में ज्यादा सहायक साबित होते हैं। ज्यादातर मामलों में पुलिस लापरवाही से हुई मौत मानकर जिन धाराओं में प्रकरण कायम करती है, उनमें तत्काल जमानत मिल जाती है और सजा का प्रावधान भी दो साल का है।
सडक़ों पर टै्रफिक का बढ़ता बोझ :
दिल्ली पुलिस आयुक्त के अनुसार, फर्जी ड्राइविंग लाइसेंस भी सडक़ हादसे की एक बड़ी वजह है। वहीं पूर्व डीजीपी (उत्तर प्रदेश) प्रकाश सिंह देश में बढ़ती दुर्घटनाओं का एक बड़ा कारण कुछ सडक़ों पर जरूरत से ज्यादा ट्रैफिक का बढ़ता बोझ को मानते हैं। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन भारत में मौत का छठा सबसे बड़ा कारण सडक़ हादसे को मानता है। शायद यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी रेडियो संदेश ‘मन की बात’ में इस पर चिंता जताते हुए लोगों की जान बचाने के लिए कदम उठाने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि सरकार सडक़ परिवहन और सुरक्षा कानून बनाएगी और दुर्घटना के शिकार को बिना पैसा चुकाए तुरंत चिकित्सा की सुविधा उपलब्ध कराएगी। प्रधानमंत्री की चिंता वाजिब है, ताकि किसी का सफर आखिरी न हो।
‘मन की बात’:
बढ़ते सडक़ हादसों को रोकने के लिए सरकार सडक़ परिवहन और सुरक्षा कानून बनाएगी और दुर्घटना के शिकार को बिना पैसा चुकाए तुरंत चिकित्सा की सुविधा उपलब्ध कराएगी।
-नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
 हादसों को कम करने में नाकाम रहा
हमारा मंत्रालय सडक़ हादसों को कम करने में नाकाम रहा है। इस दिशा में जो भी कदम उन्होंने उठाए हैं, उसका फिलहाल कोई असर नहीं हुआ है। हमें अफसोस है कि सडक़ हादसे में देश के जितने लोगों की जान जा रही है, उतने लोग किसी युद्ध और आतंकी घटना में भी नहीं मरते।
-नितिन गडकरी, केंद्रीय परिवहन मंत्री
कम हो सकता है मौत का आंकड़ा
बच्चों को सडक़ सुरक्षा संबंधी शिक्षा देने से कम हो सकता है मौत का आंकड़ा। बच्चों का व्यवहार उनके परिवार और दोस्तों के बीच ‘प्रहरी’ का काम कर सकता है।
-आलोक कुमार वर्मा, पुलिस आयुक्त, दिल्ली
 कानून का डर नहीं
सडक़ पर गाडी चलाने वाले अक्सर खुद को राजा समझते हैं। उन्हें कानून का डर नहीं होता। उनके इस रवैये से सडक़ पर चलने वाले लोग खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं। दूसरों की जिंदगी को लेकर लापरवाह ये लोग कभी नशे में होते हैं, तो कभी महज रोमांच के लिए सडक़ पर गाड़ी गलत तरीके से चलाते हैं। ऐसे लोगों में कानून का डर होना चाहिए। उन्हें ऐसा नहीं लगना चाहिए कि वो हल्की सजा या जुर्माना देकर बच जाएंगे। हर जिंदगी अमूल्य है।
- सर्वोच्च न्यायालय
सडक़ हादसे का बड़ा कारण:
तेज गति, नशे में वाहन चलाना, फुटपाथों पर कब्जे होने से संकीर्ण होते सडक़ मार्ग, लापरवाही, खराब मौसम, रेड लाइट क्रॉस करना, किशोर चालक, सडक़ों में दिए गए सिगनल को नजरअंदाज करना आदि।

शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

1साल, 520 बलात्कार : पुलिस की खुलती पोल


हरियाणा में हर साल होती हैं 520 महिलाएं दुष्कर्म का शिकार। राजधानी दिल्ली को भी इसमें जोड़ लें तो दोनों राज्यों को मिलाकर यह आंकड़ा 3380 पहुंच जाता है। जबकि 151 युवतियों के साथ रेप की कोशिश की गई और यौन शोषण में करीब 60 फीसद की बढ़ोतरी हुई है।

जितेन्द्र बच्चन, नई दिल्ली
14 साल की लड़की के साथ हैवानियत! दहल उठा फरीदाबाद! सदमे में हैं शहर की महिलाएं! कांप उठा मां का कलेजा। हिल गए लोग, लेकिन दुष्कर्मियों के न हाथ कांपे और न ही दिल पसीजा। बहते रहे आंसू, सिसकती रही मासूम। तब भी जालिमों को तरस नहीं आया, दबोच लिया भूखे भेड़िए की तरह। रौंद डाली सारी इंसानियत। तोड़ते रहे कहर। ढाते रहे सितम। लहूलुहान हो गई मानवता! बेहोश हो गई बच्ची! भूखी-प्यासी सारी रात वह जंगल में पड़ी रही। उफ! कितना दर्द बर्दाश्त किया होगा उसने। वह भी महज 14 साल की उम्र में। सुबह बड़ी मुश्किल से मां का सामना हुआ तो खून से लथपथ थी बच्ची। जिस्म का अंग-अंग जख्मी था उसका। पर हाय-री पुलिस, इस पर भी उसका रवैया हैरान करने वाला रहा। इस बात का एहसास होते ही कि मामला मीडिया में जा सकता है और फिर होगी पुलिस की छीछालेदर, बच्ची को शहर के एक कोने में बने छोटे से अस्पताल में ले जाकर दाखिल करा दिया, ताकि पता न चले किसी को। एक पुलिसकर्मी ने लड़की के पिता को दो हजार रुपये देने की कोशिश की। उसका कहना था, खर्चा-पानी दे रहा हूं। किसी से कुछ बताओगे तो मुफ्त में बदनाम हो जाओगे। चुप रहने में ही बेहतरी है।
हरियाणा पुलिस का बेरहम चेहरा! पिता की आंखें भर आईं। आत्मा चित्कार उठी- ‘क्या तुम्हारी बच्ची के साथ कोई दुष्कर्म करता, तब भी तुम मामला रफा-दफा करने की कोशिश करते? कितनी शूरमा है पुलिस! हैवानों के आगे घुटने टेक देती है, लेकिन पीड़ित से सौदा करने में कभी नहीं चूकती! इतना भी नहीं सोचा कि अगर पुलिस ही इंसाफ  के दरवाजे पर ताला लगाकर बैठ जाएगी तो कैसे बचेगी लोकतंत्र की इज्जत? बेदिल ही नहीं, कभी-कभी बेदर्द भी होती है पुलिस।’
हरियाणा की हकीकत! बढ़ता अपराध, घटती साख! पुलिस की खुलती पोल। खट्टर सरकार के लिए चुनौती बनता जा रहा है सबकुछ। उसकी तमाम कोशिशों के बावजूद हरियाणा में महिलाओं और बच्चियों के साथ दुष्कर्म की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही, लेकिन मुख्यमंत्री का दावा है कि राज्य की स्थिति देश के कई अन्य हिस्सों की तुलना में बेहतर है। जबकि बेटियों की सुरक्षा के लिहाज से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) सबसे असुरक्षित क्षेत्र बन चुका है। एनसीआर में बड़ा हिस्सा दिल्ली और हरियाणा का है। दोनों ही राज्यों में बीते तीन वर्षों में बलात्कार और गैंगरेप की घटनाओं में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। बीते साल हरियाणा और दिल्ली में 3380 लड़कियां और महिलाएं रेप का शिकार हुईं। करीब 150 महिलाओं के साथ बलात्कार की कोशिश की गई। दिल्ली में तो रेप के मामले 60 फीसद बढ़ चुके हैं। यहां बलात्कार की घटनाएं औसतन 400 रेप प्रति वर्ष की दर से बढ़ती जा रही हैं।
एनसीआरबी (नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो) के अनुसार, सामूहिक बलात्कार के मामलों में हरियाणा देश में पहले नंबर पर है। पौने दो करोड़ की आबादी वाले इस छोटे से राज्य में बीते साल गैंग रेप के 204 मामले सामने आए हैं। आंकड़ों की बात प्रतिशत में करें तो यहां 10 लाख महिलाओं की आबादी पर 16 गैंगरेप की शिकार हुई हैं। इसके बाद देश की राजधानी दिल्ली का नंबर है, लेकिन एक अन्य सर्वे रिपोर्ट की मानें तो छोटा-सा राज्य होने के बावजूद हरियाणा गैंगरेप के कुल केसों के मामले में भी चौथे नंबर पर है। शायद यही कारण है कि हरियाणा एवं पंजाब हाईकोर्ट भी गैंगरेप को लेकर हरियाणा सरकार को लगातार कटघरे में खड़ा करती रही है। इतना ही नहीं पीएम नरेंद्र मोदी ने हरियाणा से ही ‘बेटी बचाओ’ अभियान का आह्वान किया था।
एनसीआरबी का कहना है, दिल्ली के उत्तर में छह राज्यों में हरियाणा ही ऐसा राज्य है, जहां की बहू-बेटियां सबसे ज्यादा जुल्म का शिकार हुईं। यहां 5 सितंबर 2016 तक बलात्कार के 1070 केस दर्ज किए गए, जबकि इससे बड़े राज्य पंजाब में रेप के 886 केस दर्ज हुए। उत्तराखंड में 283, हिमाचल प्रदेश में 250, और जम्मू कश्मीर में 296 रेप के केस दर्ज हुए हैं। हरियाणा के विपक्षी नेताओं का भी कहना है कि खट्टर सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद प्रदेश में बलात्कार की घटनाओं में कमी नहीं आई है। पुलिस की निष्क्रियता जगजाहिर है। खुद डीजीपी डॉ. केपी सिंह की ओर से जारी एक आंकड़ा बताता है कि प्रदेश में हर रोज एक महिला बलात्कार की शिकार होती है। यद्यपि हरियाणा पुलिस का कहना है कि पहले से राज्य में होने वाले अपराध में कमी आई है। बीते एक साल (30 जून 2015 से 30 जून 2016 तक) में बलात्कार के महज 520 मामले दर्ज हुए हैं। जबकि अपहरण के 801 और छेड़छाड़ के 863 मामले सामने आए हैं।
रोहतक में खुलेआम घूम रहा आरोपी
लेकिन यह सरकार आंकड़ा है। अन्य सूत्रों की बात करें तो और चौंकाने वाली बातें सामने आती हैं, जो पुलिस को कटघरे में खड़ा करती हैं। रोहतक जिले की बात करते हैं। महिलाओं के प्रति बढ़ रहे अपराध पर अंकुश लगाने की बात करने वाली रोहतक पुलिस एक मंदबुद्धि बेटी को एक साल बाद भी इंसाफ  नहीं दिला पाई है। जिस युवक ने दुष्कर्म किया, वह अब भी खुलेआम घूम रहा है। वहीं दुष्कर्म के बाद लड़की गर्भवती हो गई, जिसका जिला प्रशासन की अनुमति के बाद गर्भपात कराया गया था। अब मंदबुद्धि लड़की की बहन न्याय के लिए कभी एसपी के पास तो कभी आईजी के दफ्तर का चक्कर काट रही है। लेकिन आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए कोई तैयार नहीं है। कुछ लोग कहते हैं, मामले की जांच कर रही डीएसपी पुष्पा खत्री किसी को इंसाफ  दिलाना तो दूर, वह पीड़िता का फोन तक नहीं उठातीं।
दिसंबर 2015 का वाकया है। पीड़ित लड़की की बहन एएनएम स्टूडेंट है। उसका कहना है, उसकी बहन अचानक एक रोज बीमार हो गई। उसे पीजीआई में भर्ती कराया गया, तब पता चला कि वह गर्भवती है। बहन के पैरों तले से जमीन सरक गई। गांव का ही मंजीत उसकी बहन के साथ पिछले नौ महीने से बलात्कार कर रहा था। दरिन्दे ने धमकी दी थी कि यदि किसी से कुछ बताया तो वह उसके पूरे परिवार को खत्म कर देगा। मंदबुद्धि लड़की भय से कांप उठी। पीजीआई न जाती तो अभी न जाने कब तक उसका शारीरिक शोषण होता रहता। फिलहाल, थाना महम पुलिस ने 8 नवंबर 2015 को पीड़िता की बहन के बयान पर 376 और एससीएसटी एक्ट के तहत मामला तो दर्ज कर लिया, लेकिन एक साल बाद भी आरोपी मंजीत गिरफ्तार नहीं हुआ। परिजनों का कहना है, पुलिस क्या कार्रवाई कर रही है, कुछ नहीं बताती। आरोप है कि पुलिस आरोपी पक्ष से मिली हुई है। वहीं एसपी राकेश आर्य का कहना है, यह मामला मेरी जानकारी में नहीं है। यदि आरोपी अभी तक गिरफ्तार नहीं हुआ है तो यह गंभीर मामला है। आरोपी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। डीएसपी से बात करके इस केस की स्टेट्स रिपोर्ट मंगाई जाएगी। इसके बाद जो भी कानूनी कार्यवाही होगी, अवश्य की जाएगी।

अपहरण के बाद सामूहिक दुष्कर्म
फरीदाबाद की स्थिति और खराब है। 6 नवंबर 2016 को फतेहपुर बिल्लौच गांव में आधा दर्जन बदमाशों ने एक मकान पर धाबा बोल दिया। परिवार को बंधक बनाकर बदमाशों ने पहले लूटपाट की, फिर घर की 14 वर्षीया एक लड़की और उसकी भाभी का अपहरण कर ले गए। बदमाशों ने जंगल में ले जाकर दोनों के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया और फरार हो गए। किसी ने मामले की सूचना थाना सदर बल्लभगढ़ पुलिस को दी तो थाना प्रभारी राजदीप मोर क्राइम ब्रांच की टीम के साथ मौके पर पहुंचे। अब पुलिस का कहना है, पीड़ित महिला ने बताया है कि बदमाशों में शामिल एक युवक नरहावली निवासी एक रिश्तेदार सुशील के छोटे भाई जैसी सूरत का था। सुशील के छोटे भाई और उसके पांच साथियों के खिलाफ  मामला दर्ज कर आरोपियों की तलाश शुरू कर दी है। यह तलाश कब तब जारी रहेगी, कुछ नहीं पता। दुखद स्थिति यह है कि फरीदाबाद में लगातार बलात्कार की घटनाएं बढ़ रही हैं।
लोगों का दहल गया दिल
देश की राजधानी दिल्ली से करीब 60 किलोमीटर दूर हरियाणा के रोहतक में दिल दहला देने वाली घटना में गैंगरेप के पांच आरोपियों ने तीन साल बाद फिर उसी दलित छात्रा (21) को अगवा कर उसके साथ गैंगरेप किया और मरने के लिए सुखपुरा चौक इलाके की झाड़ियों में फेंककर भाग गए। पीड़ित युवती के परिजनों के अनुसार, सभी आरोपी युवक जमानत पर जेल से बाहर हैं। ये सभी वर्ष 2013 में किए गैंगरेप मामले को लेकर छात्रा पर 50 लाख रुपये लेकर समझौता करने का दबाव डाल रहे थे। वह नहीं मानी तो धमकी दी। उसके बाद फिर से रौंद डाला। पीड़ित का कहना है, पांचों आरोपी कार से आए थे। वह जैसे कॉलेज से बाहर निकली, तीन युवक कार में बैठे थे और दो बाहर खड़े थे। उन्होंने उसे कार में खींच लिया। जबरन कोई नशीली दवा पिला दी और उसकी बेहोशी की हालत में उसके साथ बलात्कार किया। बाद में झाड़ियों के पास फेंककर चले गए।
बलात्कार की बढ़ती ये घटनाएं हरियाणा पुलिस की पोल खोलती हैं। राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष कमलेश पांचाल भी मानती हैं कि हरियाणा में महिलाओं के खिलाफ  वारदात बढ़ रही है। वह व्यवस्था पर सवाल उठाती हैं, ‘महिला आयोग सफेद हाथी नहीं है। बहुत कुछ कर सकता है। प्रदेश के 11 जिलों में मॉनिटरिंग की गई है हमने। कार्यस्थलों उद्योगों में महिला सुरक्षा के इंतजाम नहीं हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि कैसे इन घटनाओं पर अंकुश लगेगा?’ शायद सच कहती हैं। कौन है इन घटनाओं का जिम्मेदार? आखिर कब हरियाणा की महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस करेंगी?

सरकारी अस्पताल भी सुरक्षित नहीं 
यमुनानगर जिले में एक सरकारी अस्पताल के अंदर मानसिक रूप से विक्षिप्त एक लड़की से एक कर्मचारी ने कथित तौर पर बलात्कार किया। घटना 7 जुलाई 2016 की है। पुलिस ने अस्पताल के सीसीटीवी फुटेज के आधार पर आरोपी को गिरफ्तार कर लिया। यमुनानगर के डीसएपी (मुख्यालय) आदर्शदीप सिंह ने बताया कि रेप की शिकार युवती मानसिक रूप से विक्षिप्त है। वहीं महिला थाना यमुनानगर की एसएचओ कुलबीर कौर ने बताया कि लड़की का चिकित्सकीय परीक्षण कराया गया है, जिसमें उसके यौन उत्पीड़न की पुष्टि हुई है। आरोपी विजय कुमार (22) को गिरफ्तार कर लिया गया है।

इस वर्ष नवंबर 2016 राज्य में हुए रेप के बहुचर्चित मामले
2 नवंबर: फतेहाबाद थाना टोहाना अंतर्गत तीन लोगों ने चलती कार में एक दलित महिला के साथ सामूहिक बलात्कार किया। नरवाना-टाहाना मार्ग से रात करीब आठ बजे महिला को गाड़ी में बिठाया था।
23 अक्टूबर: फरीदाबाद जिले में एक महिला को बंधक बनाकर दो लोगों ने दुष्कर्म किया। पति से किसी बात पर महिला की लड़ाई हो गई थी। उसके बाद वह मायके जा रही थी। आरोपी उसे राजस्थान ले गए, जहां से वह बड़ी मुश्किल से छूटी।
31 जुलाई : गुड़गांव जिले के थाना सदर अंतर्गत सोहना में एक तांत्रिक ने 19 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार किया। आरोपी पंचायत समिति का पूर्व अध्यक्ष भी है।
21 जुलाई: करनाल में तीन युवकों ने शादीशुदा एक महिला के साथ एक होटल में सामूहिक बलात्कार किया। डीसीपी जितेन्द्र गहलावत के अनुसार, तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है।
18 जुलाई: गैंगरेप के पांच आरोपियों ने तीन साल बाद फिर से 21 वर्षीय छात्रा को अगवा कर उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया। इस मामले की जांच अब एसआईटी कर रही है।
17 जुलाई: फरीदाबाद के त्रिखा कालोनी में पड़ोस में रहने वाले दो युवकों ने सात साल की एक बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार किया। थाना प्रभारी योगेंद्र सिंह के अनुसार,  इस मामले के दोनों आरोपी बबलू (32) और बिरजू (28) को गिरफ्तार कर लिया गया है।
7 जुलाई : यमुनानगर के एक सरकारी अस्पताल के अंदर मानसिक रूप से विक्षिप्त एक लड़की से एक कर्मचारी ने बलात्कार किया। पुलिस ने अस्पताल के सीसीटीवी फुटेज के आधार पर आरोपी को गिरफ्तार कर लिया।
7 फरवरी : गुड़गांव में 9 साल की छात्रा से दुष्कर्म। बच्ची की मां की शिकायत पर इस मामले में एक निजी स्कूल के प्रिंसिपल को गिरफ्तार किया गया है।
19 जनवरी : कुरुक्षेत्र की विवाहित महिला को शादी का झांसा देकर बंधक बनाकर किया दुष्कर्म। महिला थाना पुलिस ने मामला दर्ज कर शुरू की जांच।
9 जनवरी : रोहतक में गोहाना-दिल्ली मार्ग पर एक नाबालिग लड़के ने ट्यूशन के लिए जा रही 15 वर्षीय एक लड़की को अगवा कर कार के अंदर बलात्कार किया।

अपराध के आंकड़े में कमी आई 
पिछले 10 साल की बात करें तो अपराध के आंकड़े में कमी आई है। सरकार की पहल पर हर जिले में महिला पुलिस थाना खुलने से महिलाओं के प्रति अपराध का ग्राफ  नीचे आया है। आगे भी हम क्राइम कंट्रोल करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।
-डॉ. केपी सिंह, डीजीपी, हरियाणा

महिला थाने ही काफी नहीं 

मैंने 11 जिलों में मॉनिटरिंग की है। महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए महिला थाने ही काफी नहीं हैं। दूसरे प्रयास भी जरूरी हैं। आयोग सदस्यों को कुछ मदद मिले तो वे भी आगे आकर काम कर पाएंगी।
- कमलेश पांचाल, अध्यक्ष, राज्य महिला आयोग, हरियाणा
सरकार पूरी तरह कटिबद्ध
अपराध पर लगाम लगाने के लिए सरकार पूरी तरह कटिबद्ध है। अगर कहीं पुलिस की कमी नजर आती है तो उसे भी दुरुस्त किया जाएगा।
मनोहर लाल खट्टर, मुख्यमंत्री, हरियाणा
गंभीर मामला 
मामला मेरी जानकारी में नहीं है। यदि आरोपी अभी तक गिरफ्तार नहीं हुआ है तो यह गंभीर मामला है। दोषी जो भी होगा, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
-राकेश आर्य, एसपी, यमुनानगर
किसी भी राज्य की पुलिस सरकार का चेहरा होती है
जन्म लेने के बाद से ही बेटी को अपने अस्तित्व के लिए लडऩा पड़ता है। बड़ी होकर घर से निकलती है तो यहां भी बड़ी जद्दोजहद के साथ अपना रास्ता बनाना पड़ता है। ऐसे में महिलाओं को बलात्कार, घरेलू हिंसा, ट्रैफिकिंग और उत्पीड़न जैसी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। देश की आधी आबादी के हितों को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने देश में महिला सुरक्षा को अपनी प्राथमिकता में रखा और औज प्रदेश के सभी 21 जिलों में महिला पुलिस थाने काम कर रहे हैं। महिलाएं शारीरिक, मानसिक और योन उत्पीड़न चुपचाप सहन करने की बजाए अपनी रिपोर्ट दर्ज करवाने में संकोच महसूस न करें।
-कविता जैन, महिला एवं बाल विकास मंत्री, हरियाणा

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2016

शिप्रा, सस्पेंश और साजिश


जितेन्द्र बच्चन
नोएडा। फैशन डिजाइनर शिप्रा मलिक ने खुद के अपहरण की रची साजिश, लेकिन कैसे? यह सस्पेंश अभी बरकरार है। सात सेकेंड की पीसीआर कॉल जरूर साजिश का हिस्सा बन गई। पिता और भाई के साजिश में शामिल होने का गहराया शक। कर्ज और प्रापर्टी के विवाद से पेरशान थी शिप्रा। बैंक की सेक्टर-18 शाखा से मिला सबसे बड़ा सुराग। 29 फरवरी की दोपहर 1.30 बजे लॉकर आप्ररेट करने गई थी शिप्रा। फिर 2.56 पर दिल्ली पुलिस कंट्रोल रूम को की थी 7 सेकेंड की आखिरी कॉल। इसके बाद नहीं हुआ किसी से कोई संपर्क।
नोएडा के बीच शहर से दिन-दहाड़े गायब हुई 29 साल की शिप्रा मलिक की घटना से दिल्ली-एनसीआर में सनसनी फैल गई। शिप्रा के पति चेतन मलिक की तहरीर पर नोएडा पुलिस ने मामले की गुमशुदगी दर्ज कर जांच-पड़ताल शुरू कर दी। शिप्रा की कार लावारिस हालत में मिली थी, इसलिए हर कोई यही समझने लगा कि उसका किसी ने अपहरण कर लिया है। हाई प्रोफाइल मामला होने के कारण मामला मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तक जा पहुंचा। आईजी सुजीत पांडेय ने नोएडा आकर डेरा डाल दिया। गुरुवार को नोएडा पहुंची डीआईजी लक्ष्मी सिंह ने केस की शुरुआती जांच में लापरवाही बरतने पर जांच बैठा दी है। जांच गाजियाबाद के एसपी क्राइम श्रवण कुमार कर रहे हैं।
29 साल की शिप्रा दिल्ली की पर्ल एकेडेमी से 2005 में फैशन डिजाइनिंग का कोर्स पूरा कर के नोएडा में बूटीक चलाती थी। वह सोमवार को अपने घर से चांदनी चौक के लिए निकली थी। रास्ते में वह अपने पति से मिली। इसके बाद शिप्रा चांदनी चौक नहीं पहुंची और न ही घर लौटी। शिप्रा की गाड़ी नोएडा में ही लावारिस पड़ी मिली। चाबी कार के अंदर थी। पति चेतन ने कॉल किया तो शिप्रा का फोन ऑफ  था। पुलिस की समझ में नहीं आ रहा था कि शिप्रा को जमीन निगल गई या आसमान।
मंगलवार यानी पहली मार्च 2016 की शाम सेक्टर- 29 विजया एंक्लेव के पास शिप्रा की स्विफ्ट कार जहां मिली थी, पुलिस ने वहां घटना का नाट्य रूपांतरण किया। तब भी कोई सुराग नहीं हाथ लगा। आईजी सुजीत पांडेय ने एसटीएफ, क्राइम ब्रांच समेत कुल आठ टीमें गठित कर दीं। इसके अलावा मामले की गुत्थी सुलझाने के लिए साउथ दिल्ली पुलिस, नोएडा पुलिस और यूपी एसटीएफ  के डीसीपी, एसपी, एडिशनल एसपी और डीएसपी लेवल के 18 अधिकारी तथा 90 पुलिसकर्मी अलग से दिन-रात एक करने लगे। एसपी सिटी दिनेश यादव और उनके मातहतों ने चेतन मलिक, शिप्रा के पिता सतीश कटारिया, शिप्रा के निवास सेक्टर-37 के सभी गेटों पर तैनात सुरक्षाकर्मियों सहित 50 से ज्यादा लोगों से पूछताछ की। ब्रह्मपुत्र मार्केट, सेक्टर-29 स्थित विजया एंक्लेव और सेक्टर-37 के सभी गेटों पर लगे सीसीटीवी खंगाले गए। कई स्थानों पर शिप्रा के पोस्टर लगाए गए। उसके फोटो दिखाकर लोगों से पूछा गया।
मंगलवार की रात ही पता चला कि फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने के बाद शिप्रा ने ब्रह्मपुत्र मार्केट में जो शोरूम बनाया था, उसे लाजपत नगर दिल्ली निवासी राहुल तनेजा और उसके भाई गुलशन तनेजा से किराए पर लिया गया था। कुछ दिन बाद शिप्रा का दोनों भाईयों से विवाद हो गया था। उसके बाद शिप्रा ने थाना सेक्टर-20 में दोनों भाईयों के खिलाफ डकैती का मामला दर्ज कराया था और दोनों भाइयों ने शॉप खाली करवा ली थी। एसपी सिटी यादव सोचने लगे, कहीं उसी का नतीजा तो नहीं है शिप्रा का अपहरण? और उन्होंने रात में ही गुमशुदगी के इस मामले को (परिजनों की तहरीर पर) अपहरण के केस में तरमीम करवा दिया। राहुल और गुलशन को पुलिस ने हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू कर दी।एसएसपी किरन एस ने मंगलवार रात करीब तीन बजे आला अधिकारियों केसाथ एक बैठक की। एएसपी डॉ. गौरव ग्रोवर और डीएसपी डॉ. अनूप कुमार को दिल्ली पुलिस कंट्रोल रूम को की गई कॉल रिकार्डिंग निकलवाने की जिम्मेदारी दी गई। उससे अहम सुराग मिलने की उमीद बढ़ गई। चांदनी चौक की जिस दुकान से शिप्रा बुटीक के लिए कपड़े लाती थी, वहां लगे कैमरों की फुटेज भी खंगाली गई। बुधवार की सुबह आईजी सुजीत पांडेय ने डीएनडी फ्लाई ओवर पहुंचकर सीसीटीवी कैमरों की जांच की।
3 मार्च को सेक्टर-18 स्थित आईएनजी वैश्य बैंक की शाखा से पुलिस को सीसीटीवी की एक ऐसी फुटेज मिली, जिससे अधिकारियों की आंखों में चमक आ गई। उससे यह पता चला कि अगवा होने से पहले शिप्रा ने बैंक आकर लॉकर ऑपरेट किया था। इसके बाद पुलिस ने फेसबुक, ट्वीटर और ह्वाट्सेप को खंगालना शुरू किया। परिवार के सभी मोबाइलों पर पहले से निगरानी रख रही थी, लेकिन तीन दिन बाद भी अभी तक फिरौती के लिए किसी ने कहीं से कोई कंटेक्ट नहीं किया था। ऐसे सवाल उठने लगा कि आखिर शिप्रा को अगवा करने का मकसद क्या है?
लेकिन गुरुवार की रात करीब डेढ़ बजे चेतन मलिक के मोबाइल पर आए एक फोन ने सभी को चौंका दिया। आईजी सुजीत पांंडेय, डीआईडी लक्ष्मी सिंह, एसएसपी किरन एस और एसपी सिटी दिनेश यादव तुरंत हरकत में आ गए। दरअसल वह फोन हरियाणा स्थित गुडग़ांव के सुल्तानपुर गांव के सरपंच के मोबाइल नंबर से किया गया था और खुद शिप्रा ने किया था। वह बहुत घबराई हुई थी। कॉल से सुराग मिलते ही एसएसपी किरन एस एक टीम के साथ गुडग़ांव जा पहुंचे और वहां से शिप्रा को बरामद कर लिया।
शिप्रा का कहना था, सोमवार को चार-पांच बदमाशों ने नोएडा से उसे अगवा करके अपनी कार में डाल लिया था। डीएनडी होते हुए अपहरणकर्ता लाजपत नगर पहुंचे तो वहां उसे मौका मिल गया और उसने दिल्ली पुलिस को 100 नंबर पर फोन कर दिया, लेकिन हैलो कहते ही बदमाशों ने उसका मोबाइल छीन लिया और उसके हाथ-पैर बांध दिए। ऊपर से एक बोरा डाल दिया। राजस्थान में कहां रखा, मुझे नहीं पता। बाद में वीरवार की रात बदमाश मुझे स्कॉर्पियो से फार्रुखनगर के सुल्तानपुर इलाके में फेककर चले गए। उसने पास के ग्रामीणों से मदद मांगी। ग्रामीणों ने सरपंच की सहायता से पुलिस से संपर्क किया। पहले गुडग़ांव पुलिस से कॉन्टेक्ट किया गया। उसके बाद चेतन को बताया।
शिप्रा ने अपहरण की कहानी तो बता दी, लेकिन उसके शरीर पर कहीं कोई चोट या खरोंच के निशान नहीं मिले। यह भला कैसे हो सकता था? बस यहीं पुलिस को शिप्रा की बयान में शक होने लगा। डीआईजी लक्ष्मी सिंह ने खुद पूछताछ शुरू की। अंत में थोड़ी सख्ती करते ही शिप्रा टूट गई। उसने कहा कि वह कर्ज को लेकर बहुत परेशान है। परिवारिक कलह के चलते वह घर से चली गई थी। अपहरण का नाटक इसलिए किया कि किसी को उसका कुछ पता न चला। वह बहुत डिप्रेशन में आ चुकी है।
एसपी सिटी दिनेश यादव के अनुसार, शुक्रवार की भोर यानी 4 मार्च की सुबह पुलिस ने शिप्रा का मेडिकल कराया गया। इसके बाद दोबारा उससे पूछताछ की गई। तत्पश्चात मेरठ रेंज की डीआईजी लक्ष्मी सिंह ने इस मामले का खुलासा करते हुए बताया कि पारिवारिक विवाद के चलते शिप्रा अपनी मर्जी से घर छोड़कर गई थी। टीवी पर अपने परेशान बच्चे और परिवार को दुखी देखकर वह वापस आ गई। अभी तक अपहरण की कोई बात सामने नहीं आई है।
शक का गहराता संकट:
हकीकत जो भी हो, लकिन शिप्रा के एक बेहद नजदीकी पर उसकी किडनैपिंग में भूमिका होने का संदेह है। पूछताछ के दौरान उसने पुलिस के सामने कई बार अपने बयान बदले हैं। पुलिस को शक है कि कहीं न कहीं इस केस में उसका हाथ जरूर है। खासतौर पर तब, जब अगवा होने से पहले शिप्रा ने बैंक लॉकर ऑपरेट किया हो। डीआईजी लक्ष्मी सिंह ने भी कहा है कि इस शख्स ने लगातार अपने बयान बदले हैं और उसकी भूमिका संदिग्ध है। उससे भी पूछताछ की जा रही है।
अभी तक नहीं मिले इन सवालों के जवाब:
-शिप्रा बैंक में फोन पर बात करते हुए दाखिल हुईं। उनकी भाई से बात हो रही थी। क्या भाई को उनके लॉकर खोलने की जानकारी थी?
-डीएनडी पर शिप्रा के मोबाइल पर इंटरनेट का इस्तेमाल हुआ और उनकी गाड़ी वहां से नहीं गुजरी, फिर उनकी स्विफ्ट कार सेक्टर-29 में किसने खड़ी की?
-शिप्रा के मोबाइल फोन का डीएनडी से लेकर लाजपतनगर तक इस्तेमाल किया गया है। इस दौरान करीब 15 मिनट तक इंटरनेट का यूज किया गया। आखिर वह किसके संपर्क में थी?

गहराता जा रहा है रहस्य
पुलिस सूत्रों के मुताबिक, शिप्रा जयपुर के पास एक आश्रम में रुकी थी। वह अपनी दुकान के विवाद और लोन को लेकर परेशान चल रही थी। साजिश में उसके भाई के शामिल होने का शक भी जताया जा रहा है। सात सेकेंड की पीसीआर कॉल भी इसी साजिश का हिस्सा थी, ताकि किसी को शक न हो।
बाक्स:
शिप्रा ने टीवी शो क्राइम पेट्रोल देखकर यह साजिश रची थी। मेडिकल जांच के दौरान उसे किसी प्रकार की कोई चोट नहीं आई है, लेकिन पुलिस शिप्रा के बयान की जांच कर रही है।
-लक्ष्मी सिंह, डीआईजी, मेरठ रेंज

सूबे में शानदार जीत हासिल करेगी सपा



आमने-सामने
59 वर्षीय मदन चौहान का पैतृक गांव मदारपुर जिला मेरठ है। गढ़मुक्तेश्वर उनका कार्यक्षेत्र रहा। इधर करीब 25 साल से नोएडा की राजनीति में भी सक्रिय हैं। उनकी जनसेवा देखकर और वेस्ट यूपी में बढ़ती मदन चौहान की लोकप्रियता को सपा सुप्रीमो भी नजरअंदाज नहीं कर पाए। पार्टी हाईकमान ने 31 अक्टूबर को मनोरंजन कर राज्य मंत्री के रूप में शपथ दिलवाकर इनका कद और बढ़ा दिया। सपा को इससे दो फायदे होंगे, पहला यह कि पार्टी की ठाकुर वोट बैंक पर पकड़ मजबूत होगी और दूसरा युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जानते हैं कि मिशन-2017 को सफल बनाने के लिए वेस्ट यूपी में मदन चौहान से बेहतर और कोई दूसरा प्रतिनिधि नहीं हो सकता है।


मेरठ कॉलेज से ग्रेजुएशन करने वाले गढ़ के विधायक मदन चौहान करीब 25 साल पहले नोएडा आए थे। अब यहां के सेक्टर-26 के निवासी हैं। प्रॉपर्टी और ट्रांसपोर्ट के कारोबार से भी जुड़े रहे। सामाजिक कार्यों में सक्रियता 
बढ़ती गई, फिर कांग्रेस से जुड़ गए। 1996 में वह पहली बार गढ़ विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े, लेकिन 2002 में समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया। विधानसभा क्षेत्र गढ़ ही रहा और चुनाव में शानदार विजय हासिल की। इसके बाद मदन चौहान ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। जनसेवा के साथ लगातार वर्ष 2002, 2007 और 2012 में जीत की हैट्रिक लगाई। अब सरकार में मनोरंजन कर राज्य मंत्री हैं। सामने मिशन-2017 की चुनौती है तो पीछे पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों ने उनसे बहुत-सी उम्मीदें लगा रखी हैं। क्या जनता और सपा सुप्रीमो की कसौटी पर वे खरा उतर पाएंगे? क्या क्षेत्र के विकास को रफ्तार मिलेगी? कार्यकर्ताओं में बढ़ती गुटबाजी को विराम मिलेगा आदि जैसे कई मुद्दों पर मनोरंजन कर राज्य मंत्री मदन चौहान से जितेन्द्र बच्चन ने बातचीत की। प्रस्तुत हैं उसके मुख्य अंश:

-वेस्ट यूपी में सपा की नजर ठाकुर वोट बैंक पर है। क्या यही वजह है कि सीएम अखिलेश यादव ने आपको मंत्रिमंडल में शामिल किया है?
मुख्यमंत्री जी का अपना अधिकार है। वे कब क्या निर्णय लेते हैं, वही जानें। हम तो महज इतना जानते हैं कि समाजवादी पार्टी कभी धर्म और जाति की राजनीति में यकीन नहीं करती। समाज का कोई भी वर्ग हो, कोई भी जाति हो, सभी का उत्थान होना चाहिए। प्रदेश के हर कोने का विकास होना चाहिए। गरीबी, अशिक्षा और जहालत खत्म करना पार्टी और सरकार दोनों का मुख्य मिशन है ...और करीब साढ़े चार दशक बाद गंगानगरी को मंत्री पद मिला है तो इसमें गलत क्या है। सियासत का चश्मा उतारकर देखिए तो इसमें वेस्ट यूपी का ही लाभ है। स्वतंत्र प्रभार देने के लिए क्षेत्र के लोगों ने सीएम का आभार भी जताया है।

-अपनी राजनीतिक समझ और सूझबूझ से पार्टी में पकड़ बरकरार रखने में तो आप कामयाब रहे, लेकिन मंत्री बनने के बाद आपके समर्थकों और क्षेत्र के लोगों की अपेक्षा पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई है। ऐसे में पार्टी हाईकमान की कसौटी पर खरा उतरना एक चुनौती नहीं है?
जनता की अपेक्षा और पार्टी हाईकमान की कसौटी पर खरा उतरना वाकई एक चुनौती है, लेकिन जनता का सहयोग करना और क्षमता के अनुसार उनके लिए लड़ाई लडऩा ही हमारा प्रथम कर्तव्य है। आखिर जनहित के लिए हमें मंत्री पद नवाजा गया है। नि:संदेह हम पार्टी और जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की पूरी कोशिश करेंगे। क्योंकि मैं पार्टी का सच्चा सिपाही हूं और जनता से जुड़कर काम करने में यकीन रखता हूं।

-ब्रजघाट का विकास होगा?
हमने पहले भी कहा था और अब भी कह रहा हूं कि ब्रजघाट का हरिद्वार की तर्ज पर विकास करना हमारी प्राथमिकता में शामिल है। इसके अलावा स्वच्छता अभियान को गति दिलाना, उच्च शिक्षा के संसाधन मुहैया कराना, बेहतर चिकित्सा सेवा और युवाओं को रोजगार के साधन उपलब्ध कराने का भी हम पूरा प्रयास कर रहे हैं। एक बात और हम कहना चाहते हैं- हर काम समय के मुताबिक ही होता है। पार्टी के लिए पूरी कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी से काम करना हमारा पहला दायित्व है। पार्टी हाईकमान की ओर से जो भी जिम्मेदारी सौंपी जाएगी, हम उसे बखूबी निभाने का प्रयत्न करेंगे।

-वेस्ट यूपी में कद्दावर नेता की जरूरत और ठाकुर समुदाय के प्रतिनिधित्व को देखते हुए मदन चौहान को मंत्रिमंडल में जगह तो मिल गई, लेकिन प्रदेश में हुए दंगे और बढ़ती दबंगई की घटनाओं से लगता नहीं कि मिशन-2017 में सपा को फिर सफलता मिलेगी?
दंगे कौन कराता है, सभी जानते हैं। बेनकाब हो चुकी हैं पार्टियां और उनके सांसद-विधायक। अब उत्तर प्रदेश में पूरी तरह अमन-चैन है। सपा के शासनकाल में प्रदेश दिन दूनी, रात चौगुनी तरक्की कर रहा है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के नेतृत्व में मंत्रिमंडल उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने की दिशा में अग्रसर है। प्रदेश में फिरकापरस्त ताकतों को मुंह की खानी पड़ी है। सरकार, समाज के सभी वर्गों के लिए कार्य कर रही है। प्रदेश की अवाम जनहित कार्यों से इत्तेफाक जताते हुए सपा के पक्ष में अपनी राय जता रही है। मिशन-2017 के चुनावों में सपा को भारी सफलता मिलेगी। सूबे में शानदार जीत हासिल करेगी समाजवादी पार्टी और प्रदेश को देश के सभी सूबों से विकासशील राज्य का दर्जा प्राप्त होगा।

-पार्टी कार्यकर्ताओं में असंतोष है? सपाईयों के बीच चल रही आपसी गुटबाजी के चलते सरकार की सुविधाओं का पूरा लाभ वहां तक नहीं पहुंच पा रहा है, जिन्हें जरूरत है?
कोई गुटबाजी नहीं है। सपा ही एकमात्र ऐसी पार्टी है, जिसमें सभी कार्यकर्ताओं को बराबरी का दर्जा मिलता है। नेताजी (मुलायम सिंह यादव) और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पार्टी के साथ-साथ प्रदेश को भी एकता के सूत्र में पिरोए हुए हैं। उनकी कुशल कार्यशैली के बूते उत्तर प्रदेश में अमन-चैन का माहौल है तथा दबे-कुचले, पिछड़ों को सरकारी योजनाओं का भरपूर लाभ पहुंच रहा है। जिनकी जमीनी पकड़ नहीं है और वे धर्म-जाति की राजनीति करने में यकीन रखते हैं, वही हमारे कार्यकर्ताओं को भी तोडऩे की कोशिश करते हैं। असंतोष की बात फैलाते हैं। हमारे सभी कार्यकर्ता हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं। पूरी एकता के साथ हम लोग पार्टी और सरकार की नीतियों को जन-जन तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं।

-क्या मंत्री बनवाने में सपा के पूर्व महासचिव अमर सिंह का आशीर्वाद प्राप्त है?
अमर सिंह जी से हमारा नाम जोडऩा गलत है। पिछले चार साल में न तो हम अमर सिंह से मिले हैं और न ही हमारी इस बीच कभी फोन पर कोई बात हुई है। हमें पार्टी से टिकट हमेशा सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और सांसद प्रोफेसर राम गोपाल यादव की मेहरबानी से मिला है। अमर सिंह से हमारी उतनी ही दूरी है जितना पार्टी की है।

-मनोरंजन कर की वसूली में लापरवाही बरती जाती है। अधिकारियों के बीच भ्रष्टाचार व्याप्त है?
हमारे बीच भ्रष्टाचार की कोई जगह नहीं है। हमने सख्त आदेश कर रखा है कि प्रदेश में मनोरंजन कर की वसूली में सक्रियता लाई जाए। तीन दिन पहले भी अधिकारियों के साथ बैठक कर वसूली में सक्रियता लाने के साथ 
निष्ठापूर्वक काम करने का निर्देश दिया है। हम इस तरह का प्लान तैयार कर रहे हैं कि लोगों को सस्ता मनोरंजन भी मुहैय्या हो और सरकार को अच्छा राजस्व भी मिले।

20 हजार का लग सकता है अर्थदंड
उत्तर प्रदेश में अब नए साल का जश्न मनाना आसान नहीं होगा। घर में जश्न मना रहे हैं तो कोई बात नहीं, लेकिन यदि आप नववर्ष की पूर्व संध्या पर होटलों, क्लबों, वाटर पार्कों, रिर्सोटस, मनोरंजन पार्कों, रेजीडेंट कॉलोनियों या अन्य स्थानों पर मनोरंजन के कार्यक्रम आयोजित करना चाहते हैं तो आप पर मनोरंजन विभाग की नजर रहेगी। इसके लिए उत्तर प्रदेश के मनोरंजन कर राज्य मंत्री मदन चौहान ने विभाग के समस्त अधिकारियों तथा जिलाधिकारियों को इस संबन्ध में निर्देश दे दिए हैं। उन्होंने आयोजकों को ऐसे मनोरंजक 
कार्यक्रमों को आयोजित करने के लिए पूर्व अनुमति प्राप्त करने के निर्देश दिए हैं। बिना अनुमति के आयोजित कार्यक्रमों के आयोजकों के विरुद्ध विधिक कार्रवाई की जाएगी। करीब 20 हजार रुपये का अर्थदंड भी वसूला जा सकता है।

मजबूती के पीछे बड़ा संघर्ष
वर्तमान में मेरठ, मुजफ्फरनगर, बागपत, सहारनपुर, हापुड़, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर और गाजियाबाद आदि की 42 विधानसभा सीटों में से छह ही पार्टी के विधायक हैं और मदन चौहान पहली बार सबसे मजबूत स्थिति में पहुंचे हैं। इसके पीछे उनका संघर्ष भी रहा है। गढ़ विधानसभा सीट किसान नेता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के जनाधार वाली सीट थी। बाद में राम मंदिर लहर चली तो बीजेपी की टॉप टेन सीटों में शामिल हो गई, लेकिन सपा प्रत्याशी के तौर पर मदन चौहान ने 2002 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के राम नरेश रावत को पराजित कर राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया। उस दौरान उन्हें 43,808 वोट मिले थे, जबकि भाजपा को महज 36,364 मत हासिल हुए। इसके बाद पिछले चुनावों में बसपा प्रत्याशी हाजी शब्बन को हराकर चौहान ने शानदार जीत दर्ज कराई। 

मुख्यमंत्री ने निभाया वादा
मदन चौहान गढ़ सीट पर तीसरी बार जीते तो 25 फरवरी 2012 को एक जनसभा में राज्य के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा था कि वे अब इस क्षेत्र को जल्द ही लाल बत्ती से नवाजेंगे। मदन चौहान कहते हैं, देर से ही सही पर सीएम ने अपना वादा पूरा किया।