मंगलवार, 29 नवंबर 2016

खूनी सडक़ें, खौफनाक हादसे


जितेन्द्र बच्चन, नई दिल्ली
सडक़ हादसों की हकीकत। देश में बढ़ती दुर्घटनाएं। एक घंटे में 16 मौत। खूनी सडक़ें, खौफनाक हादसे। जिंदगी पर भारी रफ्तार। बेलगाम होता ट्रैफिक, बेमौत मरती जनता। सरकारी इंतजामों की खुलती पोल। हादसों को दावत देतीं सडक़ें और सडक़ों की सेहत पर शर्मसार सरकार। युवाओं को निगल रही तेज रफ्तार, तो कहीं-कहीं नाबालिग खेल रहे हैं मौत का खेल। आखिर कौन है इसका जिम्मेदार? क्यों लोगों की जान से खेल रहा है परिवहन मंत्रालय? फेल होती सडक़ों पर क्या कहती है सरकार?
नेशनल क्राइम रिकॉड्र्स ब्यूरो का दिल दहला देने वाला आंकड़ा। एक दसक में सडक़ दुर्घटनाओं में 42.50 फीसद का इजाफा। रोड पर होने वाली मौतों के मामले में दिल्ली सबसे आगे। राज्यों में उत्तर प्रदेश बना प्राण घातक। केंद्र सरकार के परिवहन विभाग की जारी रिपोर्ट जानकर आपका कलेजा मुंह को आ लगेगा। एकदम भयानक तस्वीर। देश की सडक़ें महज एक साल में डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों के लिए काल बन गईं। घायल होने वालों की संख्या तो पांच लाख से भी ज्यादा है। न जाने कितने घर तबाह हो गए। परिवार में कोई नहीं बचा चिराग-बत्ती करने वाला। इसके बावजूद न तो ट्रैफिक पुलिस की लापरवाही खत्म हुई और न ही सडक़ों के निर्माण करने में मिलावाट। तमाम निमय-कानून के बावजूद पुलिस और सडक़ निर्माण करने वाले इंजीनियर से लेकर अधिकारी तक भ्रष्टïाचार में लिप्त हैं।
सरकारें बदल जाती हैं, लेकिन लोगों की जान से खेलने वाले अधिकारियों का खेल जारी है। स्थिति सुधरने के बजाय और बिगड़ती जा रही है। पिछले साल की अपेक्षा सडक़ दुर्घटना में इस साल 4.6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इससे भी ज्यादा चिंताजनक यह है कि वर्ष 2015 में सडक़ हादसे में मरने वालों में 54 फीसदी लोगों की उम्र 34 साल से भी कम थी। वहीं 2015 में सबसे ज्यादा सडक़ हादसे तो मुंबई में हुए, लेकिन सबसे ज्यादा लोगों ने दिल्ली की सडक़ों पर जान गवाईं। राजधानी की चौड़ी व चमकदार दिखने वाली सडक़ें 1622 लोगों की जिंदगी निगल गईं।
मौत का आंकड़ा पहुंच सकता है सात लाख:
17 नवंबर 2016 को हुई बातचीत में सडक़ परिवहन, राजमार्ग राज्यमंत्री पी राधाकृष्णन ने बताया कि देश में 2013 से 2015 के बीच 14 लाख 77 हजार 299 सडक़ दुर्घटनाएं घटीं। जबकि सडक़ हादसों में लोगों के हताहत होने के आधार पर चिह्नित 789 ऐसे स्थानों में सर्वाधिक 104 उत्तर प्रदेश में हैं। तमिलनाडु में 102 और कर्नाटक में 86 हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने सडक़ दुर्घटना में लोगों के हताहत होने के मामलों को कम करने के लिए सुरक्षा ऑडिट जैसे कई कदम उठाए हैं। वहीं मानवाधिकार विभाग लखनऊ की श्रद्धा सक्सेना का कहना है कि पिछले दस साल की अवधि में सडक़ हादसों में होने वाली मौतों में साढ़े 42 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वह आगे कहती हैं, देश में जितने लोग बीमारियों और प्राकृतिक आपदाओं से नहीं मरते, उससे कहीं ज्यादा सडक़ दुर्घटनाओं में मर जाते हैं। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में नाबालिग बाइकर्स का आतंक है। पिछले तीन साल में यूपी में ये बाइकर्स 14,157 और मध्य प्रदेश में 8, 420 दुर्घटनाओं को अंजाम दे चुके हैं। नोएडा के यातायात विशेषज्ञ  केपी श्रीवास्तव का कहना है, ‘यदि सडक़ पर गति नियंत्रित नहीं की गई तो 2020 तक भारत में सात लाख प्रति वर्ष से भी ज्यादा मौतें सडक़ हादसों में होंगी।’
तेज र तार का नतीजा :
आखिर इतने अधिक सडक़ हादसों की वजह क्या है और कौन-सी जगहें सडक़ हादसों के हिसाब से सबसे ज्यादा खतरनाक हैं? इस सवाल के जवाब में केंद्रीय मंत्रालय के परिवहन अनुसंधान विभाग के एक वरिष्ठï अधिकारी एसके भल्ला का कहना है, तमाम राज्य सरकारों, पुलिस और अन्य एजेंसियों से मिले ब्योरे की समीक्षा के बाद पता चला है कि 100 में से 77 सडक़ हादसों में गाड़ी चलाने वाले की ही गलती होती है और उसमें भी सबसे ज्यादा हादसे ओवर स्पीडिंग से हुईं। वहीं केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का कहना है, गाड़ी चलाने वालों पर गलती मढ़ देना सबसे आसान है। जबकि बहुत सी जगहें ऐसी हैं, जहां एक ही जगह पर लगातार हादसे होते रहते हैं और सडक़ की डिजाइन में खामी इसकी बड़ी वजह है। परिवहन मंत्रालय ने देश भर में फैले 726 ब्लैक स्पॉट्स की पहचान की है, जहां बार-बार हादसे होते हैं। मंत्रालय ने अब राज्य सरकारों से बात करके इन जगहों पर रोड का डिजाइन दुरुस्त करने का काम शुरू कर दिया है।
कानून में छेद, बड़ी लापरवाही :
परिवहन व राजमार्ग मंत्रायल के आंकड़ों के मुताबिक, 80 फीसद से अधिक हादसे चालक की गलती से होते हैं। वहीं हाई-वे पर रात में गाडिय़ों की गूंजती आवाज को सुनिए तो डर लगता है। 90, 100, 120 और 140 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से यहां गाडिय़ां चलती हैं। शायद यही कारण है कि 21 नवंबर को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव देश के सबसे लंबे आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे का लोकार्पण करते हुए यह अपील करना नहीं भूले कि 100 किमी प्रति घंटे की स्पीड लिमिट क्रॉस न करें। दूसरा कारण है कानून में छेद। हमारे यहां जो कानून हैं, उनमें उदारता कहीं ज्यादा है। लिहाजा हादसे को अंजाम देने वाले चालक को कठोर सजा देने की बजाय, कानून उसे बचाने में ज्यादा सहायक साबित होते हैं। ज्यादातर मामलों में पुलिस लापरवाही से हुई मौत मानकर जिन धाराओं में प्रकरण कायम करती है, उनमें तत्काल जमानत मिल जाती है और सजा का प्रावधान भी दो साल का है।
सडक़ों पर टै्रफिक का बढ़ता बोझ :
दिल्ली पुलिस आयुक्त के अनुसार, फर्जी ड्राइविंग लाइसेंस भी सडक़ हादसे की एक बड़ी वजह है। वहीं पूर्व डीजीपी (उत्तर प्रदेश) प्रकाश सिंह देश में बढ़ती दुर्घटनाओं का एक बड़ा कारण कुछ सडक़ों पर जरूरत से ज्यादा ट्रैफिक का बढ़ता बोझ को मानते हैं। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन भारत में मौत का छठा सबसे बड़ा कारण सडक़ हादसे को मानता है। शायद यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी रेडियो संदेश ‘मन की बात’ में इस पर चिंता जताते हुए लोगों की जान बचाने के लिए कदम उठाने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि सरकार सडक़ परिवहन और सुरक्षा कानून बनाएगी और दुर्घटना के शिकार को बिना पैसा चुकाए तुरंत चिकित्सा की सुविधा उपलब्ध कराएगी। प्रधानमंत्री की चिंता वाजिब है, ताकि किसी का सफर आखिरी न हो।
‘मन की बात’:
बढ़ते सडक़ हादसों को रोकने के लिए सरकार सडक़ परिवहन और सुरक्षा कानून बनाएगी और दुर्घटना के शिकार को बिना पैसा चुकाए तुरंत चिकित्सा की सुविधा उपलब्ध कराएगी।
-नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
 हादसों को कम करने में नाकाम रहा
हमारा मंत्रालय सडक़ हादसों को कम करने में नाकाम रहा है। इस दिशा में जो भी कदम उन्होंने उठाए हैं, उसका फिलहाल कोई असर नहीं हुआ है। हमें अफसोस है कि सडक़ हादसे में देश के जितने लोगों की जान जा रही है, उतने लोग किसी युद्ध और आतंकी घटना में भी नहीं मरते।
-नितिन गडकरी, केंद्रीय परिवहन मंत्री
कम हो सकता है मौत का आंकड़ा
बच्चों को सडक़ सुरक्षा संबंधी शिक्षा देने से कम हो सकता है मौत का आंकड़ा। बच्चों का व्यवहार उनके परिवार और दोस्तों के बीच ‘प्रहरी’ का काम कर सकता है।
-आलोक कुमार वर्मा, पुलिस आयुक्त, दिल्ली
 कानून का डर नहीं
सडक़ पर गाडी चलाने वाले अक्सर खुद को राजा समझते हैं। उन्हें कानून का डर नहीं होता। उनके इस रवैये से सडक़ पर चलने वाले लोग खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं। दूसरों की जिंदगी को लेकर लापरवाह ये लोग कभी नशे में होते हैं, तो कभी महज रोमांच के लिए सडक़ पर गाड़ी गलत तरीके से चलाते हैं। ऐसे लोगों में कानून का डर होना चाहिए। उन्हें ऐसा नहीं लगना चाहिए कि वो हल्की सजा या जुर्माना देकर बच जाएंगे। हर जिंदगी अमूल्य है।
- सर्वोच्च न्यायालय
सडक़ हादसे का बड़ा कारण:
तेज गति, नशे में वाहन चलाना, फुटपाथों पर कब्जे होने से संकीर्ण होते सडक़ मार्ग, लापरवाही, खराब मौसम, रेड लाइट क्रॉस करना, किशोर चालक, सडक़ों में दिए गए सिगनल को नजरअंदाज करना आदि।

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