बुधवार, 19 जून 2013

मिली खाक में मोहब्बत


महविश ने मोहब्बत क्या की, जमाना दुश्मन बन गया। शौहर को गोलियों से भून डाला। ससुर को पेड़ से लटका कर मार डाला। जेठ जिंदा जल गया। सितम पर सितम होता रहा उस पर। कोई सामने नहीं आया। न परिवार, न समाज और न ही सरकार! आखिर प्यार करने की सजा कब तक भूगतेगी महविश? समाज के ठेकेदार उसे कब तक देते रहेंगे मोहब्बत की सजा? पहले कटघरे में परिवार और खाप पंचायत थी। अब पुलिस है!



जितेन्द्र बच्चन
उत्तर प्रदेश पुलिस का एक और कारनामा! बुलंदशहर कोतवाली के इंस्पेक्टर पर लगा महविश और उसके परिवार को आत्मदाह करने के लिए उकसाने का आरोप! वाकया 12 जून 2013 का है। शौहर के कातिलों को सजा दिलाने के लिए संघर्ष कर रही महविश और उसके परिवार के सात सदस्यों ने पुलिस की मौजूदगी में मिट्टी का तेल छिड़ककर आत्मदाह करने की कोशिश की। महविश का जेठ यूसुफ 98 फीसदी जल गया। बाकी के सदस्य बचा लिए गए, लेकिन यूसुफ को डॉक्टर नहीं बचा पाए। दिल्ली के एलएनजेपी अस्पताल में 14 जून को उसकी मौत हो गई। महविश और उसके परिवार का आरोप है कि थाना कोतवाली (देहात) बुलंदशहर के इंस्पेक्टर आरबी यादव ने परिजनों को धमकाते हुए महविश पर ही पति की हत्या का आरोप लगाया। यह इल्जाम महविश और उसके परिजन सह नहीं पाए। न्याय पाने की उम्मीद टूट गई, तो सामूहिक रूप से मौत को गले लगाना ही अच्छा समझा। इस पर इंस्पेक्टर को तरस नहीं आया। उसने यूसुफ को माचिस देते हुए कहा, ‘लो, लगा लो आग। तुम लोगों के मरने से ही पुलिस और सरकार को राहत मिलेगी।’

बड़ी दर्दनाक दास्तां है महविश की। करीब 11 साल की उम्र में पड़ोस के लड़के अब्दुल हकीम से दिल लगा बैठी। नादान थी, अल्हड़ बाला। उसे क्या पता था कि उसकी मोहब्बत का एक रोज यह जमाना दुश्मन बन जाएगा। छठीं में पढ़ती थी महविश और हकीम 8वीं क्लाश में था। प्यार का ढाई अक्षर कब उनके दिल में अंकुरित हो गया, पता ही नहीं चला। मन ही मन चाहने लगे दोनों एक-दूसरे को। कोई ऐसा लम्हा नहीं था जब महविश ने हकीम को महसूस न किया हो। एक रोज दिल की बात होंठों पर आ गई। महविश ने अपनी चाहत का इजहार कर दिया। हकीम ने भी धीरे से उसके अधरों को छूकर कबूल कर लिया। दोनों का इश्क परवान चढ़ने लगा, लेकिन महविश के वालिदानों को यह रिश्ता किसी कीमत पर मंजूर नहीं था। अम्मी ने तालीम बंद करवाकर बेटी को घर में कैद कर दिया। तब महविश आठवीं में थी। उसके इश्क पर पहरा बिठा दिया गया और प्यार पर तमाम बंदिशें लगाई जाने लगीं।

हकीम उन दिनों बुलंदशहर के एक इंटर कॉलेज में दाखिला ले चुका था। दोनों का मिलना-जुलना बंद हो गया। करीब पांच साल गुजर गए, लेकिन उनके दिलों की धड़कन एक-दूसरे के लिए जारी थी। अम्मी को भनक लगी, तो उनकी सलाह पर महविश की खाला के लड़के के साथ वालिदानों ने उसका रिश्ता पक्का कर दिया। महविश को तब पता चला, जब गली-मोहल्ले में भी शादी के कार्ड बंटने लगे। उसकी पेशानी पर बल पड़ गए। भवे तन गई, यह तो जोर-जर्बदस्ती है! हकीम से मिलने के लिए छटपटाने लगी महविश। शादी से चंद दिनों पहले 28 अक्टूबर 2010 की रात दो बजे बड़ी मुश्किल से उससे मिलने का मौका मिला। हकीम ने महविश को देखते ही अपनी बाहों में समेट लिया, ‘मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता महविश। मैं अपनी जान दे दूंगा या फिर तुम्हें कत्ल कर दूंगा।’ महविश का आंखें भर आर्इं, ‘नहीं हकीम, मोहब्बत में खून-कत्ल कायर करते हैं। चलो, यहां से कहीं दूर चलते हैं। हम अपना एक नया आशियाना बसाएंगे।’

और 29 अक्टूबर की रात साढ़े आठ बजे महविश और हकीम घर-गांव छोड़कर भाग गए। दोनों अलीगढ़ पहुंचे। वहां हकीम का एक दोस्त रहता था। उसकी मदद से 7 नवंबर, 2010 को दोनों ने अलीगढ़ में कोर्ट मैरिज कर ली। इसके बाद 15-20 रोज वहीं रहे, फिर रोजी-रोजगार की तलाश में मेरठ चले गए। वहां तालपुरी के एक मोहल्ले में 11 नवंबर को काजी ने महविश और हकीम का निकाह करवा दिया। अब सामाजिक तौर पर भी उन्हें पति-पत्नी की तरह जिंदगी गुजारने की इजाजत मिल गई थी। जिंदगी हसीन हो उठी, लेकिन नौकरी-चाकरी न मिलने के कारण परेशानी अभी कम न हुई थी। मेरठ में थोड़े दिन मेहनत-मजदूरी करने के बाद फरवरी 2011 में दोनों दिल्ली चले गए। वहां सीलमपुर इलाके में किराए पर एक छोटा-सा कमरा लेकर रहने लगे। पास में जो जमा-पूंजी थी, वह पहले ही खर्च हो चुकी थी। दो जून की रोटी के जुगाड़ में हकीम ने अपनी मोटरसाइकिल भी बेच दी। उसके बाद 100 रुपये रोजाना पर आॅटो चलाना शुरू किया।

उधर अड़ौली गांव में महविश की हकीकत का पता परिजनों को चला, तो पैरों तले से जमीन सरक गई। दोनों के घरवाले एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए। 31 अक्टूबर को महविश की बारात आनी थी। नाते-रिश्तेदारों से घर भरने लगा। जाति-विरादरी के लोगों का भी आना-जाना बढ़ गया। अंत में शादी की भीड़ ने पंचायत का रुख अख्तियार कर लिया। महविश के घरवालों ने हकीम के परिवार पर कहर बरपाना शुरू कर दिया। हकीम और उसके परिजनों के खिलाफ महविश के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी। पुलिस हकीम को कुत्ते की तरह खोजने लगी। परेशान होकर महविश ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की शरण ली। उच्च न्यायालय ने बुलंदशहर पुलिस को महविश, उसके पति और परिवार को सुरक्षा देने का आदेश दिया, लेकिन पुलिस ने हाईकोर्ट के आदेश की भी परवाह नहीं की और इन दोनों को थाना कोतवाली से भगा दिया। इससे महविश के परिजनों के हौसले बुलंद हो गए। अड़ौली गांव के दो दर्जन लोगों ने पंचायत कर हकीम के पिता मोहम्मद लतीफ को पेड़ से उलटा लटका दिया और उन्हें खूब मारा-पीटा। उनकी मौत हो गई। इसके बाद खाप पंचायत ने फरमान जारी कर दिया कि हकीम को जो भी गोली से मारेगा, उसे 50 हजार रुपये का नकद इनाम दिया जाएगा। तब भी पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। यहां तक कि पेड़ से लटकाने व मार-पीट के कारण हुई लतीफ की मौत को साधरण मौत बताकर इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

21 जुलाई, 2011 को महविश ने एक बेटी को जन्म दिया। उसका नाम मनतशा है। इसी दौरान हकीम के एक दोस्त ने उसे पहाड़गंज के एक एनजीओ ‘लव कमांडो’ के चेयरमैन संजय सचदेव से मिलवाया। महविश ने उन्हें सारी कहानी बताकर मदद की फरियाद की। सचदेव ने बुलंदशहर के तत्कालीन एसएसपी राजेश कुमार राठौर से बात की। राठौर ने थाना कोतवाली (देहात) पुलिस को हाईकोर्ट के आदेश का पालन करने का सख्त आदेश दिया। साथ ही खाप पंचायत के फरमान से लड़ने के लिए उस समय चल रहे अभीनेता आमिर खान के शो ‘सत्यमेव जयते’ के पांचवें एपिसोड में महविश की कहानी बताकर उसकी सुरक्षा की मांग की गई।

14 जुलाई, 2012 को महविश बुलंदशहर के पुलिस अधीक्षक (देहात) विजय गौतम से मिली और शौहर तथा परिवार की सुरक्षा के लिए गुहार लगाई। महविश इसी दौरान दोबारा मां बनने वाली थी। पुलिस ने उसके साथ सहानुभूति दिखाई। हकीम को भी यकीन हो गया कि अब परिस्थितियां बदलेंगी। वह 18 जुलाई को महविश को लेकर घर (भाटगढ़ी) लौट आया। उस समय तक हकीम कंप्यूटर हार्डवेयर इंजीनियरिंग का कोर्स कर दिल्ली की एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने लगा था, इसलिए महविश को घर छोड़कर वह फिर दिल्ली चला गया। बाद में नवंबर 2012 में आया।

22 नवंबर की शाम चार बजे महविश के सिर में दर्द हो रहा था। हकीम उसे घर के पास ही एक डॉक्टर के यहां ले गया। वहां से दवा लेकर दोनों जैसे ही बाहर निकले, आधा दर्जन लोगों ने हकीम को घेरकर उस पर फायरिंग करनी शुरू कर दी। उसकी मौके पर ही मौत हो गई। महविश कुछ नहीं कर सकी। जिसे इतना चाहा, उसे अपने ही परिवार को लोग भून डालेंगे, उसने सपने में भी नहीं सोचा था। पुलिस ने भी कोई सुनवाई नहीं की। अपनी और हकीम की सुरक्षा के लिए वह कुल 48 अर्जियां दे चुकी थी, लेकिन कुछ नहीं हुआ। अंत में हकीम की हत्या कर दी गई। महविश की तहरीर पर थाना कोतवाली (देहात) के तत्कालीन कोतवाल राकेश कुमार ने हत्या के इस मामले को पांच आरोपियों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज करवाकर घटना की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक गुलाब सिंह को दी। उनके निर्देश पर दो टीमें बनाई गर्इं और पुलिस ने तीन आरोपियों गुल्लू, आसिफ और सरवर को गिरफ्तार कर लिया।

आॅनर किलिंग के इस मामले की गूंज पूरे देश में सुनाई पड़ी। नेताओं और महिला संगठनों की महविश की ससुराल में आने-जाने का दौर शुरू हो गया। दो अभिनेताओं ने आर्थिक मदद देने की घोषणा की। कुछ बड़े नेता जो झोझा समाज से ताल्लुक रखते हैं, वे भी सहानुभूति जताने लगे। मुख्यमंत्री की ओर से पांच लाख रुपये की मदद दी गई। साथ ही कुछ अन्य मदद की घोषणा महविश के बच्चों के भविष्य को देखते हुए की गई। यह अलग बात है कि वक्त के साथ वे सारी घोषणाएं भी ठंडे बस्ते में चली गर्इं। सरकार ने महविश को आवास, गैस एजेंसी, सरकारी पट्टे की जमीन और उसके परिवार की सुरक्षा के लिए हथियार के लाइसेंस देने की घोषणा भी की थी, लेकिन कुछ नहीं हुआ। पुलिस जरूर जांच करने के नाम पर परेशान करती रहती है। ताजा घटनाक्रम भी उसी का एक हिस्सा है।

9 जून, 2013 को महविश के शौहर अब्दुल हकीम के कथित हत्यारोपी गुल्लू की मां ने अपनी आठ साल की बेटी की पिटाई को लेकर थाना कोतवाली देहात में महविश, उसके जेठ यूसुफ समेत 6 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कराया था। यूसुफ को पता चला, तो उसने 12 मई को एसपी (सिटी) से मुलाकात कर थाना कोतवाली (देहात) के इंस्पेक्टर आरबी यादव की उनसे शिकायत की, ‘कोतवाल यादव आरोपियों के साथ मिलकर जबरन एक साजिश रच रहे हैं...।’ एसपी ने इंस्पेक्टर यादव को बुलाकर इस मामले में झाड़ लगाई। महविश के मुताबिक, एसपी की फटकार से इंस्पेक्टर यादव का पारा आसमान छूने लगा। वह पुलिस बल के साथ महविश के घर जा धमके। वहां उन्होंने काफी गाली-गलौज की। साथ आए पुलिसकर्मियों का गुस्सा उनसे भी ज्यादा नजर आ रहा था। धमकाते हुए कहा,‘पुलिस से उलझने की कोशिश मत करो, वरना दो-चार ऐसे मामले लाद (फर्जी मामले में फंसा) दूंगा कि जमानत के लिए तरस जाओगे। पूरा परिवार जेल में सड़ता नजर आएगा।’ महविश पुलिसवालों का फरेब सुनकर सन्न रह गई। यूसुफ ने हाथ जोड़कर कहा, ‘देखिए साहब, हमें धमकाने की कोशिश मत करिए। आप लोग भी कानून से ऊपर नहीं हैं। हमें न्याय नहीं मिलेगा तो हम आत्महत्या कर लेंगे, लेकिन सितम पर सितम अब नहीं सहेंगे।’

इंस्पेक्टर यादव तिलमिला उठे। बताया जाता है, उन्होंने जीप से माचिस निकाली और यूसुफ के ऊपर फेंकते हुए कहा, ‘जान देना इतना आसान नहीं है। ये लो माचिस, लगा लो आग! है हिम्मत... मर जाओगे तो जान छूटेगी।’ और वे चले गए, लेकिन महविश और उसके परिवार को खुदकुशी के लिए उकसा गया। थोड़ी देर बाद ही महविश और उसके परिवार के सात अन्य लोगों ने अपने ऊपर मिट्टी का तेल डाल लिया। यूसुफ के हाथ में माचिस थी, उसने खुद को आग के हवाले कर दिया। वह धू-धूकर जलने लगा। पूरे गांव में हड़कंप मच गया। महविश और उसकी बेटियों को बड़ी मुश्किल से बचाया गया, लेकिन यूसुफ 98 फीसदी जल चुका है। वह दिल्ली के एलएनजेपी अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रहा है। पहले हकीम और अब यूसुफ की इस हालत पर महविश और उसका पूरा परिवार दहशत में है। महविश ने कोतवाल आरबी यादव को बर्खास्तग करने और एक स्थानीय नेता अमजद अली गुड्डू के खिलाफ इस मामले में कार्रवाई रकने की मांग की है।
वहीं, भटगढ़ी में एक बार फिर से अधिकारियों और नेताओं के आने-जाने का दौर शुरू हो गया है। ठीक वैसा ही नजारा बनता जा रहा है, जैसा साढ़े छह महीना पहले हाकिम की हत्या के बाद बना था। इधर जैसे-जैसे मामला तूल पकड़ रहा है, मीडिया की मौजूदगी भी बढ़ती जा रही है। 14 जून, 2013 को पुलिस अधीक्षक (नगर) अजय साहनी और एएसपी वैभव कृष्ण भटगढ़ी पहुंचे और पीड़ित परिवार से मिले। पुलिस अधिकारियों ने महविश से मुलाकात कर उसे भरोसा दिलाया कि पुलिस उनके साथ कुछ भी गलत नहीं होने देगी।

जारी है जिंदगी की जद्दोजहद
मेरे शौहर हकीम की हत्या का कारण हम दोनों की विरादरी रही है। मैं बुलंदशहर की झोझा विरादरी से ताल्लुक रखती हूं मेरे पति की विरादरी अल्वी (फकीर) है। मुस्लिम समाज में अल्वी विरादरी को झोझा विरादरी से कमतर आंका जाता है। चूंकि मैं झोझा विरादरी से ताल्लुक रखती थी और अल्वी विरादरी के लड़के के साथ भागकर निकाह कर लिया था, इसलिए मेरे पति को मौत के घाट उतार दिया गया। मेरा प्यार जरूर छीन लिया गया, लेकिन उसी प्यार के सहारे मैं अपनी दोनों बेटियों मनतशा और जोया के साथ जिंदगी जीने की जद्दोजहद कर रही हूं। गांव भटगढ़ी में कोई स्कूल नहीं है। बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर मैं अपना खर्च चलाती हूं और बच्चों को शिक्षित भी कर रही हूं। यदि मुझे न्याय नहीं मिला, तो मैं प्रदेश सरकार द्वारा प्रदान की गई आर्थिक मदद लौटाने पर विचार कर सकती हूं।
-महविश (अब्दुल हकीम की बेवा)

एसएसपी से मांगी रिपोर्ट
मुझे घटना की जानकारी मिल गई है। एसएसपी से तत्काल रिपोर्ट मांगी गई है। देहात कोतवाली प्र•ाारी के आचरण की जांच की जाएगी और दोषी पाए जाने पर निश्चित रूप से कार्रवाई की जाएगी।
-भवेश कुमार सिंह, आईजी, मेरठ जोन

परिजनों पर दर्ज होगा मामला?
घटनाक्रम के अुनसार इंस्पेक्टर आरबी यादव हत्यारोपी की शिकायत के एक मामले की जांच-पड़ताल करने महविश के घर गए, तो महविश और उसके जेठ यूसुफ ने इंस्पेक्टर से उल्टे अभद्रता की और इसके बाद परिवार के लोगों ने आत्मदाह करने की कोशिश की। इस पूरे प्रकरण की जांच चल रही है। जो भी दोषी होगा, उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इसके लिए चाहे आत्महत्या के लिए प्रेरित करने का मुकदमा दर्ज करना पड़े या फिर अंटेप्ट-टू-सुसाइड की रिपोर्ट लिखनी पड़े।
-गुलाब सिंह, एसएसपी, बुलंदशहर

गुरुवार, 6 जून 2013

भैया राजा को उम्रकैद


बुंदेलखंड का बाहुबली और इलाके में आतंक का पर्याय रहे रतनगढ़ी के भैया राजा पर 38 से ज्यादा संगीन आरोप हैं! उनमें से एक फैशन डिजाइनर वसुंधरा हत्याकांड में अदालत ने पवई के पूर्व विधायक को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। कौन है भैया राजा? क्या है उसके पापों की काली कहानी?


नब्बे के दशक में बुंदेलखंड में अशोक वीर विक्रम सिंह उर्फ भैया राजा की तूती बोलती थी। उन दिनों वह पवई विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ रहा था। चुनाव चिह्न हाथी था। भैया ने नारा दिया था- ‘मोहर लगेगी हाथी पर, नहीं तो गोली चलेगी छाती पर! लाश मिलेगी घाटी पर!’ बड़े-बड़े तुर्रम खां भैया राजा के नाम से कांपते थे। जिसने की हुक्मअदूली, उसे खिला दिया जिंदा मगरमच्छों को। चुनाव में जीत हुई। अकूत धन-संपदा के मालिक तो हैं ही, विधायक बनते ही इलाके में सरकार भी अपनी चलने लगी। पुलिस दारोगा की बात छोड़िए, केंद्र और राज्य के मंत्रियों में दम नहीं होता था कि भैया राजा के मुंह से निकली बात को पलट दें। कर्नल हो कैप्टन, हर कोई उसके खिलाफ जाने में सौ बार सोचता। रियासत नहीं रही तो क्या हुआ, राजाओं और नवाबों वाला रुतबा तो बरकरार ही था। उनकी हैसियत की समाजवादी पार्टी के मुखिया भी कायल रहे। 1993 में पवई (जिला पन्ना) से भैया राजा सपा के टिकट पर चुनाव लड़े और विजयी रहे। उनकी पत्नी आशा रानी सिंह छतरपुर जिले के बिजावर विधासभा सीट से भाजपा की विधायक हैं, लेकिन कानून और अदालत के आगे किसी की नहीं चलती। कहावत भी है, देर से ही सही पर अत्याचार का अंत जरूर होता है। 30 मई को छतरपुर जिला के नवम अपर सत्र न्यायाधीश संजीव कालगांवकर ने इस बाहुबली और पूर्व विधायक भैया राजा को वसुंधरा हत्याकांड में आजीवन कारावास की सजा सुनाई। छतरपुर जिले के गहरवार में बनी भैया राजा की रतनगढ़ी हवेली में अब सन्नाटा पसर चुका है और परिजन मायूस हैं।

भैया राजा पर फैशन डिजाइनर व अपनी ही नातिन वसुंधरा का यौन-शोषण और उसकी हत्या करने का आरोप था। पुलिस ने इस मामले में कुल 36 गवाह अदालत में पेश किए। अदालत ने अपने 124 पृष्ठों के फैसले में भैया राजा, भूपेंद्र सिंह उर्फ हल्के, राम किशन उर्फ छोटू लोधी, अभमन्यु उर्फ अब्बू और पंकज शुक्ला उर्फ मरतंड शुक्ला को हत्या का दोषी ठहराते हुए उम्रकैद के साथ पांच-पांच सौ रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई। जबकि इसी मामले की एक अन्य आरोपी रोहणी शुक्ला उर्फ रंपी को साक्ष्यों के अभाव में बरी कर दिया।
वसुंधरा उर्फ निशि बुंदेला (20) उन दिनों भोपाल में रहकर फैशन डिजायनिंग की पढ़ाई पूरी कर रही थी। भैया राजा के रिश्ते में वह उसकी भाजी लगती थी। उसी लिहाज से जब भी भैया राजा भोपाल जाते, वसुंधरा से जरूर मिलते। ऐसे में ही कहते हैं कि एक रोज उनकी नजर उस पर खराब हो गई। उसने वसुंधरा को तरह-तरह के उपहार आदि देकर उसे जल्द ही अपनी ओर आकर्षित कर लिया। कभी-कभी छुट्टियों में अब वसुंधरा भी भैया राजा की छतरपुर वाली हवेली में आने लगी थी। मौका देखकर एक रोज वह शैतान बन गया। उसने अपनी भाजी को ही खराब कर डाला। न उम्र की परवाह की और न ही मान-मर्यादा के बारे में सोचा। भाजी के साथ भैया राजा के अवैध संबंधों का सिलसिला चल पड़ा। जब भी मौका मिलता, वह दबोच लेते। बेचारी लाज-भयवश किसी से कुछ कह नहीं पा रही थी। इसका भी भैया राजा ने बहुत फायदा उठाया। होश तब उड़ गए, जब एक रोज पता चला कि वसुंधरा गर्भवती है।

भैया राजा ने वसुंधरा से अबॉर्शन कराने को कहा, तो वह तिलमिला उठी, ‘कभी नहीं! तुमने जो पाप किया है, उसे अब मैं पूरी दुनिया के सामने लाकर रहुंगी। तुम्हारी यह झूठी आन-बान और शान मैं मिट्टी में मिला दूंगी। मैं तुम्हें समाज के सामने नंगा कर दूंगी।’ वसुंधरा का गुस्सा देखकर भैया राजा के पैरों तले से जमीन सरक गई। वह समझ गया कि अगर अभी इसका इलाज नहीं किया गया, तो वह वाकई बदनाम हो जाएगा। उसने जबरन वसुंधरा का गर्भवती करवा दिया, फिर उसकी हत्या की साजिश रचनी शुरू कर दी। भैया राजा के इस खूनी खेल में भूपेंद्र उर्फ हल्के, पंकज शुक्ला, राम किशन उर्फ छोटू, रंपी उर्फ रोहिणी और अ•िामन्यु शामिल थे। भूपेंद्र, अशोक वीर विक्रम सिंह उर्फ भैया राजा का जीप चालक था। रोहिणी भैया राजा के दत्तक पुत्र राम अवतार की बेटी है और वसुंधरा की सहेली थी। पंकज शुक्ला रोहिणी का पति है और अभिमन्यु भाई।
वसुंधरा को भैया राजा के इस संगीन षड्यंत्र की भनक तक नहीं लगी। योजना के अनुसार 10 दिसंबर, 2009 को रोहिणी भोपाल गई। वसुंधरा को फोन कर शॉपिंग करने के बहाने 10 नंबर मार्केट में बुलाया। वहां कुछ देर दोनों सहेलियां बाजार में घूमती-फिरती रहीं, फिर उसे बहला-फुसलाकर रोहिणी छतरपुर ले आई। यहां से वसुंधरा को रतनगढ़ी कोठी में पहुंचा दिया गया। पर कटे पंक्षी को फड़फड़ाते देखकर भैया राजा के होंठों पर मुस्कान फैल गई। उसके एक इशारे पर ड्राइवर भूपेंद्र ने उन्हीं की पिस्टल से वसुंधरा को गोली मार दी। बेचारी तड़पकर ठंडी पड़ गई, फिर सभी ने मिलकर वसुंधरा की रक्तरंजित लाश जीप में डाली और ठिकाने लगाने के लिए रात के अंधेरे में निकल पड़े।

11 दिसंबर की सुबह थाना मिसरोद पुलिस को किसी ने फोन कर सूचना दी कि गुदरी घाट स्थित रतन सिंह रोड के किनारे झाड़ियों के पास एक युवती का शव पड़ा है। पुलिस ने उसे बरामद कर शिनाख्त करवाई, तो हड़कंप मच गया। वह लाश निशि उर्फ वसुंधरा की थी। पुलिस की सूचना पर वसुंधरा के पिता मृगेंन्द्र सिंह और मां भारती भी आ गए, लेकिन यह कत्ल किसने और कहां किया? कातिल कौन है? उसका मकसद क्या था आदि के संबंध में पुलिस को कोई सुराग नहीं लगा। सभी हैरान-परेशान थे। पोस्टमार्टम के बाद वसुंधरा के अंतिम संस्कार के समय भी उसकी मां भारती इसी उधेड़बुन में लगी रही कि कातिल का चेहरा कैसे बेनकाब हो। उन्हें रोती-विलखती देखकर रोहिणी के भाई अभिमन्यु से नहीं रहा गया। उसने उनके कान में बता दिया कि भूपेंद्र ने अपने आका के कहने पर वसुंधरा को गोली मारी थी। इतना सुबूत बहुत था। पुलिस ने गहन छानबीन के बाद 20 दिसंबर को भैया राजा और इस कत्ल की साजिश में शामिल अन्य आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद वसुंधरा हत्या कांड का राज फाश होते देर नहीं लगी।

भैया राजा और अन्य आरोपियों ने लाख कोशिश की, लेकिन जमानत नहीं हुई। भैया राजा ने हाई कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया, तब भी सीखचों से बाहर नहीं आ सका। दरअसल, भैया राजा के गुनाहों की फेहरिस्त बहुत लंबी है। उस पर तत्कालीन गृह मंत्री बूटा सिंह के भतीजे सिद्धार्थ राव की हत्या करने का भी आरोप है। इस घटना को नैनीताल में अकबर अहमद डम्पी के बंगले में अंजाम दिया गया था। भैया राजा इस मामले में कई साल उत्तर प्रदेश की जेल में बंद भी रहा। उसी दौरान एमपी की सुंदर लाल पटवा सरकार ने भैया राजा की झील को नेस्तनाबूद कर दिया था। बताया जाता है कि भैया राजा अपने दुश्मनों को अपनी झील में फेंक देता था। उसमें मगरमच्छ पाल रखे थे, जो मिनटों में जिंदा आदमी की हड्डियां तक चट कर जाते थे। इसी वजह से तत्कालीन सुंदर लाल पटवा सरकार को उसकी झील को नेस्तनाबूद करना पड़ा था। इसके बाद मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री उमा भारती बनीं, तो उनके आदेश पर भी भैया राजा की झील और बंगले पर पुलिस अधिकारियों ने बड़ी कार्रवाई की थी। अपराध के आरोपों के मामले में भैया राजा की पत्नी और भाजपा विधायक आशा रानी सिंह भी पीछे नहीं हैं। उन पर अपनी नौकरानी तिज्जी बाई को मई 2007 में आत्महत्या के लिए विवश करने का आरोप है, जिसके चलते वह महीनों जेल में भी बंद रही हैं। अब जमानत पर हैं।

लेकिन भैया राजा एक ऐसा शातिर रहा है, जिसे गिरफ्तार करने में बड़े-बड़े पुलिस अफसर भी कांप जाते थे। दर्जनों अपराधों का इल्जाम है उस पर, किंतु कोई टीआई अपने थाने में उसकी फोटो गुंडा लिस्ट में लगाने की हिम्मत नहीं कर सका था। इसी मामले की विवेचना में लगे टीआई भूपेंद्र सिंह का अब तबादला हो चुका है, तब भी वह अदालत में भैया राजा के खिलाफ कुछ खास नहीं बोले। 18 मार्च 2010 को इस मामले की चार्जशीट पुलिस ने अदालत में पेश की थी। घटना के करीब चार साल बाद अदालत ने मामले का अब फैसला सुनाते हुए कहा है कि भैया राजा ने छतरपुर जिला स्थित रतनगढ़ी में वसुंधरा की हत्या की साजिश रची थी। उसकी लाश ठिकाने लगाने के लिए एक बोलेरो जीप का इस्तेमाल किया गया था। जीप से न केवल वसुंधरा के कानों के टाप्स बरामद हुए बल्किउसकी सीट के नीचे से कई और भी सुबूत मिले हैं। इस मामले के सभी आरोपियों को दोषसिद्ध होने के बाद आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है।

रतनगढ़ी हवेली में पसरा सन्नाटा
30 मई को अदालत का फैसला आने के बाद भैया राजा की रतनगढ़ी वाली हवेली में सन्नाटा पसर गया। जबकि छतरपुर अदालत परिसर छावनी में तब्दील हो चुका था। सुरक्षा-व्यवस्था के मद्देनजर यहां तीन सीएसपी और पांच थाना प्र•ाारियों के अलावा सौ से ज्यादा पुलिसकर्मी तैनात किए गए थे। फैसला सुनने के बाद विधायक आशा रानी सिंह बहुत मयूस दिखीं। बेटी रश्मि, दीप्ति और कंचन ने उन्हें सहारा दे रखा था। मां और तीनों बेटियों की आंखें भर आई थीं। दोनों बेटे भी अदालत में मौजूद थे, लेकिन सभी के चेहरे उतरे हुए थे। उप संचालक अभियोजन राजेश रायकवार ने बताया कि अभियोजन पक्ष इस मामले में आरोपी रंपी उर्फ रोहिणी को सजा दिलाने के लिए भी हाई कोर्ट में अपील करेगा।

उसके पाप की सजा कम
वसुंधरा के पिता मृगेंद्र सिंह का कहना है कि भैया राजा की साजिश ये थी कि वसुंधरा की लाश कलियासोत में फेंक दी जाए, ताकि उसकी शिनाख्त न हो सके। लेकिन आरोपी रास्ता •ाूल गए और सुबह होने के फेर में वे गुडारी घाट के पास झाड़ियों में लाश फेंक गए। वहीं मां भारती ने बताया कि हत्या से ठीक पांच दिन पहले उन्हें पता चला था कि भैया राजा मेरी बेटी का देह-शोषण करता रहा है। एक बार इंदौर ले जाकर उसका गर्भवती भी करवाया था, फिर जब उसे डर लगने लगा कि वसुंधरा उसे बेनकाब कर देगी, तो बदनामी के डर से भैया राजा ने उसकी हत्या करवा दी। उसने जो पाप किया है, उसके लिए उम्रकैद की सजा बहुत कम है।
-जितेन्द्र बच्चन

शनिवार, 1 जून 2013

                             शातिर हसीना

साउथ की मशहूर अदाकारा ने जिस्म को बनाया तरक्की का जरिया। एक साल में देश को लगा चुकी है कई सौ करोड़ का चूना। उसकी मादक अदाओं पर लिव-इन पार्टनर भी झाड़ता था रोब। लाल बत्ती लगी गाड़ी में बैठकर खुद को बताता था आईएएस। आलीशान कारों का जखीरा और 81 महंगी घड़ियां बरामद। कौन है यह अय्याश अभिनेत्री? क्या है उसके फरेब का फन?


एक हसीना, तो दूसरा शैतान! एक हीरोइन, तो दूसरा ठगी का कप्तान! एक के पास दिलकश अंदाज, तो दूसरा सबसे बड़ा दगाबाज़! बस फिर क्या था मिल बैठे दो यार और बन गई जोड़ी 420! इनके चक्कर में जो भी आया, बर्बाद ही हुआ! बात हो रही है साउथ की हीरोइन लीना मारिया और उसके बॉयफ्रेंड बालाजी उर्फ चंद्रशेखर रेड्डी की। फाइव स्टार में रहना बालाजी का शौक था, तो करोड़ों की गाड़ियों में घूमना लीना का शौक! यही शौक दोनों को करीब ले आई, क्योंकि शौक बड़ी चीज है... और बड़ी चीजें दोनों बुरी चीजों से पूरी कर रहे थे। एक छलावा, तो दूसरी मायाजाल। एक फरेबी, तो दूसरी धोखेबाज। एक अपनी बातों से लूट लेता, तो दूसरी अपनी अदाओं से। दोनों ने दिमाग और हुस्न का ऐसा खतरनाक कॉकटेल तैयार किया कि लोग अपनी मर्जी से इनकी झोली में करोड़ों डालते चले गए। दोनों ने मिलकर आधे साउथ इंडिया के न मालूम कितने अमीरों को गरीबी के मुहाने पर पहुंचा दिया।

पुलिस के मुताबिक बेंगलुरु में बालाजी के खिलाफ जालसाजी और ठगी के कई मामले दर्ज हैं। वह सरकारी अधिकारी बनकर कई लोगों को अपने जाल में फंसाकर उन्हें लूट चुका है। बालाजी बड़े ही शातिराना तरीके से लोगों को अपना शिकार बनाता था। आईएएस या बड़ा सरकारी अफसर बनकर  लोगों से मिलता और फिर किसी सरकारी प्लान का सपना दिखाकर उसे एक बैंक अकाउंट नंबर देता। जब उसका शिकार उस बैंक अकाउंट में पैसे ट्रांसफर कर देता, तो वह अकाउंट से पैसे निकालकर वहां से रफ्फूचक्कर हो जाता। एक बार जेल भी जा चुका है, लेकिन तब भी बालाजी नहीं सुधरा। बस अपना ठिकाना बदल लेता। चेन्नई में बालाजी की मुलाकात दुबई से आई लीना मारिया पॉल से हुई। महंगी गाड़ियों में घूमना, महंगे कपड़े पहनना और फाइव स्टार रहन-सहन जल्दी ही मारिया को बालाजी के करीब ले आई। दोनों में प्यार हो गया। चेन्नई में मारिया को बालाजी की मदद से कई फिल्मों में हीरोइन का लीड रोल मिला और वह देखते ही देखते टॉलीवुड में मशहूर हो गई। साथ वक्त गुजारने के दौरान ही मारिया को पता चला कि बालाजी की सारी कमाई का जरिया धोखाधड़ी है। फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाला बालाजी खुद को आईएएस अफसर बताकर नए-नए प्रोजेक्ट पास कराने को लेकर आम बिजनेसमैन से पैसे लेता या फिर बैंक से लोन। पैसा हाथ आते ही वह गायब हो जाता। बाद में इस काम के लिए उसने मारिया को अपना पार्टनर बना लिया और उसकी मदद से चेन्नई की केनरा बैंक से 19 करोड़ 47 लाख की जालसाजी की और चेन्नई छोड़कर दोनों दिल्ली आ गए।

लीना मारिया पॉल (25) मूलत: कोच्चि केरल की रहने वाली है और बीडीएस से स्नातक है यानी दांतों का डॉक्टर बनने की पढ़ाई पूरी कर रखी है। लीना के पिता इंजीनियर हैं और पूरे परिवार के साथ दुबई में ही रहते हैं। लीना दुबई में ही पली-बढ़ी और 2011 में शिक्षा पूरी करने के बाद चेन्नई आ गई। यहां  हुस्न और जिस्म की बदौलत पहले मॉडलिंग शुरू की, फिर बालाजी ने उसे हीरोइन बनवा दिया। इसके बाद तो खूबसूरत जिस्म को जरिया बनाकर वह कामयाबी की बुलंदी छूने लगी। मलयालम और तमिल के कई बड़े बैनरों की फिल्मों में उसे अच्छा पैसा मिला। ‘थाउजैंड्स इन गोवा’, ‘कोबरा’ और ‘रेड चिलीज’ उसकी प्रमुख फिल्में हैं। मलयालम कॉमेडी फिल्म ‘हसबैंड्स इव गोवा’ भी हिट रही है। साउथ में उसके चाहने वालों की एक बड़ी तादाद है। वहां हिट होने के बाद लीना ने हिंदी फिल्मों में किस्मत आजमाना शुरू किया। बॉलीवुड स्टार जॉन अब्राहम की प्रोडक्शन कंपनी की एक हिंदी ़फिल्म ‘मद्रास कैफे’ में लीना को साइन कर लिया गया। यह फिल्म शीघ्र ही रिजीज होने वाली है, लेकिन इसके बाद लीना की किस्मत ने साथ नहीं दिया। अपने महंगे शौक पूरे करने के लिए उसने बालाजी के माध्यम से ‘समझौता’ करना शुरू कर दिया।

बेंगलुरु निवासी बालाजी रंगीनमिजाज और अपराधी प्रवृति का बताया जाता है। लोगों को ठगना उसका पेशा रहा है। लाखों की काली कमाई करने के लिए खुद को आईएएस अधिकारी बताता था। कई बार किसी बड़े अधिकारी को प्रभावित करने के लिए खुद को कभी तमिलनाडु के मुख्यमंत्री करुणानिधि का पोता बताता, तो कभी पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के पुत्र निखिल गौड़ा का नजदीकी दोस्त। लीना ने भी अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए बालाजी के साथ मिलकर ठगी करनी शुरू कर दी। वह बकरा तलाशता और लीना उसका शिकार कर लेती। ईश्वर ने हुश्न और जिस्म दिया ही है। उसकी एक अदा पर लाखों रुपये निछावर करने वालों की कमी नहीं है। कभी मुंबई, कभी चेन्नई, तो कभी दिल्ली में दोनों की रात रंगीन होने लगी। फिल्म अभिनेत्री से लीना ‘लेडी नटवार लाल’ बन गई।

सूत्रों के मुताबिक, बालाजी और लीना अब लाखों से करोड़ों कमाने के चक्कर में थे। योजना के तहत बालाजी ने चेन्नई के एक फाइव स्टार होटल में केनारा बैंक के एक बड़े अधिकारी से मुलाकात की। उसके साथ अदाकारा लीना भी थी। उसे देखकर अधिकारी के मुंह में पानी आ गया। बालाजी ने उससे खुद को आईएस अफसर बताया   था। लीना हीरोइन थी, उन दोनों से अधिकारी को प्रभावित होते देर नहीं लगी। उसी समय अगली मीटिंग कहां और कब होनी है, तय हो गई। बालाजी ने मौके का लाभ उठाते हुए जाली दस्तावेज के आधार पर एक फर्म खोलने का बड़ा प्रोजेक्ट पेश कर दिया और केनरा बैंक के उस अधिकारी से 30 करोड़ों रुपये लोन देने की गुजारिश की। इस मिशन में लीना ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। जहां, जब और जैसे जरूरत पड़ी, उसे बैंक के बड़े अधिकारियों के पास जाने में गुरेज नहीं रहा। नतीजतन केनरा बैंक ने अगले सप्ताह ही 19 करोड़ 47 लाख रुपये का लोन बालाजी के नाम पास कर दिया। इससे पहले लीना और बालाजी मिलकर कुछ अन्य लोगों को भी कई करोड़ का चूना लगा चुके हैं। ऐसे में अब चेन्नई में ज्यादा दिन रहना उनके लिए खतरे से खाली नहीं था। दोनों दिल्ली भाग आए। भूल गए कि कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं। जुर्म करने वाला कभी नहीं बचता। चेन्नई केनरा बैंक को इस बीच पता चला कि बालाजी कोई आईएएस अफसर नहीं बल्कि एक जालसाज है। लीना के साथ मिलकर उसने बैंक को ठगा है, तो अधिकारी सन्न रह गए। 12 मार्च 2013 को लीना और बालाजी उर्फ चंद्रशेखर रेड्डी के खिलाफ चेन्नई थाना कोतवाली में धारा 420 (धोखाधड़ी), 120 बी (आपराधिक साजिश) और 406 (विश्वासघात) के तहत मामला दर्ज करा दिया गया। पुलिस दो महीने तक बालाजी और लीना की तलाश करती रही। इस बीच इसी मामले में एक बैंक मैनेजर को गिरफ्तार कर उससे पूछताछ की गई, तो फरेब का रहस्य और गहराने लगा। मई, 2013 के प्रथम सप्ताह में पता चला कि लीना अपने बॉयफ्रेंड के साथ दिल्ली के एक फार्म हाउस में छिपकर रह रही है। चेन्नई पुलिस ने दिल्ली के पुलिस आयुक्त नीरज कुमार से संपर्क किया। उन्होंने डीसीपी (साउथ) भोला शंकर जायसवाल को मामले में कार्रवाई करने का आदेश दिया। मामला बड़ा और करोड़ों के घोटाले से जुड़ा था, इसलिए क्राइम ब्रांच के तेज-तर्रार अफसरों की एक टीम बनाई गई।

27 मई की शाम क्राइम ब्रांच की टीम को पता चला कि लीना साउथ दिल्ली के असोला स्थित खारी फार्महाउस में रहती है। बालाजी भी वहीं मौजूद है। पुलिस ने रात में ही फार्म हाउस पर छापा मारा, लेकिन लीना वहां नहीं थी। पता चला कि वह अपनी अगली पार्टी के लिए वसंत विहार के एक शॉपिंग मॉल में शॉपिंग करने गई है। इस बीच डीसीपी के मुताबिक, बालाजी पुलिस को देखते ही अपनी लैंड क्रूजर कार से फरार हो गया। उसकी गाड़ी पर महाराष्ट्र के रजिस्ट्रेशन नंबर की प्लेट लगी थी। फार्महाउस असोला गांव के महेंद्र सिंह का है। आरोपियों ने साढ़े चार लाख रुपये महीने के किराए पर लिया हुआ था। दोनों यहां करीब एक महीने से नौ लग्जरी गाड़ियों के बेड़े के साथ रह रहे थे। फार्म हाउस के अंदर खड़ी आधा दर्जन से ज्यादा लग्ज़री गाड़ियों को देखकर पुलिस की आंखें फटी की फटी रह गर्इं। आधा दर्जन बाउंसर भी वहां तैनात थे। चार निजी सुरक्षार्मियों को गिरफ्तार कर उनके पास से चार हथियार बरामद किए गए हैं, जिनका हरियाणा और जम्मू से लिया गया अखिल भारतीय लाइसेंस था, लेकिन दिल्ली लाइसेंसिंग शाखा से अनुमोदित नहीं था। फतेहपुर बेरी थाना पुलिस शस्त्र अधिनियम के तहत यह मामला दर्ज कर जांच कर रही है। इसके बाद पुलिस ने वसंत विहार के एक शॉपिंग मॉल से लीना को गिरफ्तार कर लिया।

डीसीपी जायसवाल के मुताबिक, बालाजी के खिलाफ चेन्नई में चीटिंग के दो मामले दर्ज हैं। केनरा बैंक से 19 करोड़ रुपये की चीटिंग की गई है। दूसरे केस में बालाजी ने खुद को आईएएस अफसर बताकर लीना की मदद से कुछ लोगों के साथ 76 लाख रु पये ठग लिए हैं। दोनों मामलों में चेन्नई पुलिस की सेंट्रल क्र ाइम ब्रांच उनकी तलाश कर रही थी, जबकि वे 12 मई से फार्म हाउस में छिपे हुए थे। चेन्नई पुलिस 29 मई को ट्रांजिट रिमांड पर लीना को चेन्नई ले गई। बालाजी की तलाश की जा रही है। दोनों आरोपियों के खिलाफ चेन्नई में एक सौ ठगी के मामले दर्ज हैं। यहां दिल्ली में लीना जिस फार्म हाउस में रह रही थी, वहां से 9 महंगी कारें लैंड क्रूजर, लैंड रोवर, बीएमडब्ल्यू, रॉल्स रॉयस, हमर, एस्टन मार्टिन, जीटीआर, आॅडी और 81 महंगी कलाई घड़ियां भी बरामद हुई हैं। ये महंगी कारें करोड़ों की हैं। पुलिस अब यह भी पता लगाने की कोशिश कर रही है कि आखिर इतनी महंगी गाड़ियों का मालिक कौन है? लीना के पास कहां से आई? कुछ गाड़ियों पर लाल बत्ती और राज्यसभा का स्टिकर भी लगा हुआ है। पुलिस इस बात की भी जांच कर रही है कि कहीं लाल बत्ती और स्टिकर का मिसयूज तो नहीं हो रहा था या फिर वह गाड़ी सचमुच किसी सांसद की है?

अय्याशी देखकर पुलिस भी हैरान
टॉप मॉडल और एक्ट्रेस लीना पॉल की हरकतों से पता चलता है कि उसका बस चलता, तो वह ताजमहल खरीद लेती। लीना और उसके लिव इन पार्टनर बालाजी उर्फ चंद्रशेखर रेड्डी की कहानी बंटी और बबली से एकदम मिलती-जुलती है। दोनों ने 20 करोड़ रु पये से भी ज्यादा की रकम बैंकों व अन्य लोगों से ठग लिए। इनकी अय्याशी देखकर पुलिस अधिकारी भी अचंभित रह गए। दरअसल, जब भी किसी को ठगना होता था तो खुद को आईएएस बताने वाला बालाजी लीना की सुंदरता और अपनी वाकपटुता का इस्तेमाल करता था। बालाजी लोगों से खुद को आईएएस अधिकारी बताता था और लालबत्ती लगी गाड़ी से चलता था। कई पुलिसकर्मी उसे सलाम करते थे। इतना ही नहीं, कई लोगों को वह खुद का परिचय मंत्री टीआर बालू और करुणाकर रेड्डी के पुत्र के रूप में   देता था। झूठ के बल पर वह बाकायदा हवाई प्रोजेक्ट तैयार करता था और लोगों से उस प्रोजेक्ट में पैसे लगवाता। लीना उसके हर मामले में साथ देती थी। बालाजी ने बंगलुरु  में अपने मकान मालिक से भी एक करोड़ रुपये ठगे हैं। इनके पास से जो महंगी विदेशी कारें बरामद हुई हैं, उनका प्रयोग भी ये लोगों को ठगने में ही करते थे।
-जितेन्द्र बच्चन