बुधवार, 19 जून 2013

मिली खाक में मोहब्बत


महविश ने मोहब्बत क्या की, जमाना दुश्मन बन गया। शौहर को गोलियों से भून डाला। ससुर को पेड़ से लटका कर मार डाला। जेठ जिंदा जल गया। सितम पर सितम होता रहा उस पर। कोई सामने नहीं आया। न परिवार, न समाज और न ही सरकार! आखिर प्यार करने की सजा कब तक भूगतेगी महविश? समाज के ठेकेदार उसे कब तक देते रहेंगे मोहब्बत की सजा? पहले कटघरे में परिवार और खाप पंचायत थी। अब पुलिस है!



जितेन्द्र बच्चन
उत्तर प्रदेश पुलिस का एक और कारनामा! बुलंदशहर कोतवाली के इंस्पेक्टर पर लगा महविश और उसके परिवार को आत्मदाह करने के लिए उकसाने का आरोप! वाकया 12 जून 2013 का है। शौहर के कातिलों को सजा दिलाने के लिए संघर्ष कर रही महविश और उसके परिवार के सात सदस्यों ने पुलिस की मौजूदगी में मिट्टी का तेल छिड़ककर आत्मदाह करने की कोशिश की। महविश का जेठ यूसुफ 98 फीसदी जल गया। बाकी के सदस्य बचा लिए गए, लेकिन यूसुफ को डॉक्टर नहीं बचा पाए। दिल्ली के एलएनजेपी अस्पताल में 14 जून को उसकी मौत हो गई। महविश और उसके परिवार का आरोप है कि थाना कोतवाली (देहात) बुलंदशहर के इंस्पेक्टर आरबी यादव ने परिजनों को धमकाते हुए महविश पर ही पति की हत्या का आरोप लगाया। यह इल्जाम महविश और उसके परिजन सह नहीं पाए। न्याय पाने की उम्मीद टूट गई, तो सामूहिक रूप से मौत को गले लगाना ही अच्छा समझा। इस पर इंस्पेक्टर को तरस नहीं आया। उसने यूसुफ को माचिस देते हुए कहा, ‘लो, लगा लो आग। तुम लोगों के मरने से ही पुलिस और सरकार को राहत मिलेगी।’

बड़ी दर्दनाक दास्तां है महविश की। करीब 11 साल की उम्र में पड़ोस के लड़के अब्दुल हकीम से दिल लगा बैठी। नादान थी, अल्हड़ बाला। उसे क्या पता था कि उसकी मोहब्बत का एक रोज यह जमाना दुश्मन बन जाएगा। छठीं में पढ़ती थी महविश और हकीम 8वीं क्लाश में था। प्यार का ढाई अक्षर कब उनके दिल में अंकुरित हो गया, पता ही नहीं चला। मन ही मन चाहने लगे दोनों एक-दूसरे को। कोई ऐसा लम्हा नहीं था जब महविश ने हकीम को महसूस न किया हो। एक रोज दिल की बात होंठों पर आ गई। महविश ने अपनी चाहत का इजहार कर दिया। हकीम ने भी धीरे से उसके अधरों को छूकर कबूल कर लिया। दोनों का इश्क परवान चढ़ने लगा, लेकिन महविश के वालिदानों को यह रिश्ता किसी कीमत पर मंजूर नहीं था। अम्मी ने तालीम बंद करवाकर बेटी को घर में कैद कर दिया। तब महविश आठवीं में थी। उसके इश्क पर पहरा बिठा दिया गया और प्यार पर तमाम बंदिशें लगाई जाने लगीं।

हकीम उन दिनों बुलंदशहर के एक इंटर कॉलेज में दाखिला ले चुका था। दोनों का मिलना-जुलना बंद हो गया। करीब पांच साल गुजर गए, लेकिन उनके दिलों की धड़कन एक-दूसरे के लिए जारी थी। अम्मी को भनक लगी, तो उनकी सलाह पर महविश की खाला के लड़के के साथ वालिदानों ने उसका रिश्ता पक्का कर दिया। महविश को तब पता चला, जब गली-मोहल्ले में भी शादी के कार्ड बंटने लगे। उसकी पेशानी पर बल पड़ गए। भवे तन गई, यह तो जोर-जर्बदस्ती है! हकीम से मिलने के लिए छटपटाने लगी महविश। शादी से चंद दिनों पहले 28 अक्टूबर 2010 की रात दो बजे बड़ी मुश्किल से उससे मिलने का मौका मिला। हकीम ने महविश को देखते ही अपनी बाहों में समेट लिया, ‘मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता महविश। मैं अपनी जान दे दूंगा या फिर तुम्हें कत्ल कर दूंगा।’ महविश का आंखें भर आर्इं, ‘नहीं हकीम, मोहब्बत में खून-कत्ल कायर करते हैं। चलो, यहां से कहीं दूर चलते हैं। हम अपना एक नया आशियाना बसाएंगे।’

और 29 अक्टूबर की रात साढ़े आठ बजे महविश और हकीम घर-गांव छोड़कर भाग गए। दोनों अलीगढ़ पहुंचे। वहां हकीम का एक दोस्त रहता था। उसकी मदद से 7 नवंबर, 2010 को दोनों ने अलीगढ़ में कोर्ट मैरिज कर ली। इसके बाद 15-20 रोज वहीं रहे, फिर रोजी-रोजगार की तलाश में मेरठ चले गए। वहां तालपुरी के एक मोहल्ले में 11 नवंबर को काजी ने महविश और हकीम का निकाह करवा दिया। अब सामाजिक तौर पर भी उन्हें पति-पत्नी की तरह जिंदगी गुजारने की इजाजत मिल गई थी। जिंदगी हसीन हो उठी, लेकिन नौकरी-चाकरी न मिलने के कारण परेशानी अभी कम न हुई थी। मेरठ में थोड़े दिन मेहनत-मजदूरी करने के बाद फरवरी 2011 में दोनों दिल्ली चले गए। वहां सीलमपुर इलाके में किराए पर एक छोटा-सा कमरा लेकर रहने लगे। पास में जो जमा-पूंजी थी, वह पहले ही खर्च हो चुकी थी। दो जून की रोटी के जुगाड़ में हकीम ने अपनी मोटरसाइकिल भी बेच दी। उसके बाद 100 रुपये रोजाना पर आॅटो चलाना शुरू किया।

उधर अड़ौली गांव में महविश की हकीकत का पता परिजनों को चला, तो पैरों तले से जमीन सरक गई। दोनों के घरवाले एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए। 31 अक्टूबर को महविश की बारात आनी थी। नाते-रिश्तेदारों से घर भरने लगा। जाति-विरादरी के लोगों का भी आना-जाना बढ़ गया। अंत में शादी की भीड़ ने पंचायत का रुख अख्तियार कर लिया। महविश के घरवालों ने हकीम के परिवार पर कहर बरपाना शुरू कर दिया। हकीम और उसके परिजनों के खिलाफ महविश के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी। पुलिस हकीम को कुत्ते की तरह खोजने लगी। परेशान होकर महविश ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की शरण ली। उच्च न्यायालय ने बुलंदशहर पुलिस को महविश, उसके पति और परिवार को सुरक्षा देने का आदेश दिया, लेकिन पुलिस ने हाईकोर्ट के आदेश की भी परवाह नहीं की और इन दोनों को थाना कोतवाली से भगा दिया। इससे महविश के परिजनों के हौसले बुलंद हो गए। अड़ौली गांव के दो दर्जन लोगों ने पंचायत कर हकीम के पिता मोहम्मद लतीफ को पेड़ से उलटा लटका दिया और उन्हें खूब मारा-पीटा। उनकी मौत हो गई। इसके बाद खाप पंचायत ने फरमान जारी कर दिया कि हकीम को जो भी गोली से मारेगा, उसे 50 हजार रुपये का नकद इनाम दिया जाएगा। तब भी पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। यहां तक कि पेड़ से लटकाने व मार-पीट के कारण हुई लतीफ की मौत को साधरण मौत बताकर इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

21 जुलाई, 2011 को महविश ने एक बेटी को जन्म दिया। उसका नाम मनतशा है। इसी दौरान हकीम के एक दोस्त ने उसे पहाड़गंज के एक एनजीओ ‘लव कमांडो’ के चेयरमैन संजय सचदेव से मिलवाया। महविश ने उन्हें सारी कहानी बताकर मदद की फरियाद की। सचदेव ने बुलंदशहर के तत्कालीन एसएसपी राजेश कुमार राठौर से बात की। राठौर ने थाना कोतवाली (देहात) पुलिस को हाईकोर्ट के आदेश का पालन करने का सख्त आदेश दिया। साथ ही खाप पंचायत के फरमान से लड़ने के लिए उस समय चल रहे अभीनेता आमिर खान के शो ‘सत्यमेव जयते’ के पांचवें एपिसोड में महविश की कहानी बताकर उसकी सुरक्षा की मांग की गई।

14 जुलाई, 2012 को महविश बुलंदशहर के पुलिस अधीक्षक (देहात) विजय गौतम से मिली और शौहर तथा परिवार की सुरक्षा के लिए गुहार लगाई। महविश इसी दौरान दोबारा मां बनने वाली थी। पुलिस ने उसके साथ सहानुभूति दिखाई। हकीम को भी यकीन हो गया कि अब परिस्थितियां बदलेंगी। वह 18 जुलाई को महविश को लेकर घर (भाटगढ़ी) लौट आया। उस समय तक हकीम कंप्यूटर हार्डवेयर इंजीनियरिंग का कोर्स कर दिल्ली की एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने लगा था, इसलिए महविश को घर छोड़कर वह फिर दिल्ली चला गया। बाद में नवंबर 2012 में आया।

22 नवंबर की शाम चार बजे महविश के सिर में दर्द हो रहा था। हकीम उसे घर के पास ही एक डॉक्टर के यहां ले गया। वहां से दवा लेकर दोनों जैसे ही बाहर निकले, आधा दर्जन लोगों ने हकीम को घेरकर उस पर फायरिंग करनी शुरू कर दी। उसकी मौके पर ही मौत हो गई। महविश कुछ नहीं कर सकी। जिसे इतना चाहा, उसे अपने ही परिवार को लोग भून डालेंगे, उसने सपने में भी नहीं सोचा था। पुलिस ने भी कोई सुनवाई नहीं की। अपनी और हकीम की सुरक्षा के लिए वह कुल 48 अर्जियां दे चुकी थी, लेकिन कुछ नहीं हुआ। अंत में हकीम की हत्या कर दी गई। महविश की तहरीर पर थाना कोतवाली (देहात) के तत्कालीन कोतवाल राकेश कुमार ने हत्या के इस मामले को पांच आरोपियों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज करवाकर घटना की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक गुलाब सिंह को दी। उनके निर्देश पर दो टीमें बनाई गर्इं और पुलिस ने तीन आरोपियों गुल्लू, आसिफ और सरवर को गिरफ्तार कर लिया।

आॅनर किलिंग के इस मामले की गूंज पूरे देश में सुनाई पड़ी। नेताओं और महिला संगठनों की महविश की ससुराल में आने-जाने का दौर शुरू हो गया। दो अभिनेताओं ने आर्थिक मदद देने की घोषणा की। कुछ बड़े नेता जो झोझा समाज से ताल्लुक रखते हैं, वे भी सहानुभूति जताने लगे। मुख्यमंत्री की ओर से पांच लाख रुपये की मदद दी गई। साथ ही कुछ अन्य मदद की घोषणा महविश के बच्चों के भविष्य को देखते हुए की गई। यह अलग बात है कि वक्त के साथ वे सारी घोषणाएं भी ठंडे बस्ते में चली गर्इं। सरकार ने महविश को आवास, गैस एजेंसी, सरकारी पट्टे की जमीन और उसके परिवार की सुरक्षा के लिए हथियार के लाइसेंस देने की घोषणा भी की थी, लेकिन कुछ नहीं हुआ। पुलिस जरूर जांच करने के नाम पर परेशान करती रहती है। ताजा घटनाक्रम भी उसी का एक हिस्सा है।

9 जून, 2013 को महविश के शौहर अब्दुल हकीम के कथित हत्यारोपी गुल्लू की मां ने अपनी आठ साल की बेटी की पिटाई को लेकर थाना कोतवाली देहात में महविश, उसके जेठ यूसुफ समेत 6 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कराया था। यूसुफ को पता चला, तो उसने 12 मई को एसपी (सिटी) से मुलाकात कर थाना कोतवाली (देहात) के इंस्पेक्टर आरबी यादव की उनसे शिकायत की, ‘कोतवाल यादव आरोपियों के साथ मिलकर जबरन एक साजिश रच रहे हैं...।’ एसपी ने इंस्पेक्टर यादव को बुलाकर इस मामले में झाड़ लगाई। महविश के मुताबिक, एसपी की फटकार से इंस्पेक्टर यादव का पारा आसमान छूने लगा। वह पुलिस बल के साथ महविश के घर जा धमके। वहां उन्होंने काफी गाली-गलौज की। साथ आए पुलिसकर्मियों का गुस्सा उनसे भी ज्यादा नजर आ रहा था। धमकाते हुए कहा,‘पुलिस से उलझने की कोशिश मत करो, वरना दो-चार ऐसे मामले लाद (फर्जी मामले में फंसा) दूंगा कि जमानत के लिए तरस जाओगे। पूरा परिवार जेल में सड़ता नजर आएगा।’ महविश पुलिसवालों का फरेब सुनकर सन्न रह गई। यूसुफ ने हाथ जोड़कर कहा, ‘देखिए साहब, हमें धमकाने की कोशिश मत करिए। आप लोग भी कानून से ऊपर नहीं हैं। हमें न्याय नहीं मिलेगा तो हम आत्महत्या कर लेंगे, लेकिन सितम पर सितम अब नहीं सहेंगे।’

इंस्पेक्टर यादव तिलमिला उठे। बताया जाता है, उन्होंने जीप से माचिस निकाली और यूसुफ के ऊपर फेंकते हुए कहा, ‘जान देना इतना आसान नहीं है। ये लो माचिस, लगा लो आग! है हिम्मत... मर जाओगे तो जान छूटेगी।’ और वे चले गए, लेकिन महविश और उसके परिवार को खुदकुशी के लिए उकसा गया। थोड़ी देर बाद ही महविश और उसके परिवार के सात अन्य लोगों ने अपने ऊपर मिट्टी का तेल डाल लिया। यूसुफ के हाथ में माचिस थी, उसने खुद को आग के हवाले कर दिया। वह धू-धूकर जलने लगा। पूरे गांव में हड़कंप मच गया। महविश और उसकी बेटियों को बड़ी मुश्किल से बचाया गया, लेकिन यूसुफ 98 फीसदी जल चुका है। वह दिल्ली के एलएनजेपी अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रहा है। पहले हकीम और अब यूसुफ की इस हालत पर महविश और उसका पूरा परिवार दहशत में है। महविश ने कोतवाल आरबी यादव को बर्खास्तग करने और एक स्थानीय नेता अमजद अली गुड्डू के खिलाफ इस मामले में कार्रवाई रकने की मांग की है।
वहीं, भटगढ़ी में एक बार फिर से अधिकारियों और नेताओं के आने-जाने का दौर शुरू हो गया है। ठीक वैसा ही नजारा बनता जा रहा है, जैसा साढ़े छह महीना पहले हाकिम की हत्या के बाद बना था। इधर जैसे-जैसे मामला तूल पकड़ रहा है, मीडिया की मौजूदगी भी बढ़ती जा रही है। 14 जून, 2013 को पुलिस अधीक्षक (नगर) अजय साहनी और एएसपी वैभव कृष्ण भटगढ़ी पहुंचे और पीड़ित परिवार से मिले। पुलिस अधिकारियों ने महविश से मुलाकात कर उसे भरोसा दिलाया कि पुलिस उनके साथ कुछ भी गलत नहीं होने देगी।

जारी है जिंदगी की जद्दोजहद
मेरे शौहर हकीम की हत्या का कारण हम दोनों की विरादरी रही है। मैं बुलंदशहर की झोझा विरादरी से ताल्लुक रखती हूं मेरे पति की विरादरी अल्वी (फकीर) है। मुस्लिम समाज में अल्वी विरादरी को झोझा विरादरी से कमतर आंका जाता है। चूंकि मैं झोझा विरादरी से ताल्लुक रखती थी और अल्वी विरादरी के लड़के के साथ भागकर निकाह कर लिया था, इसलिए मेरे पति को मौत के घाट उतार दिया गया। मेरा प्यार जरूर छीन लिया गया, लेकिन उसी प्यार के सहारे मैं अपनी दोनों बेटियों मनतशा और जोया के साथ जिंदगी जीने की जद्दोजहद कर रही हूं। गांव भटगढ़ी में कोई स्कूल नहीं है। बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर मैं अपना खर्च चलाती हूं और बच्चों को शिक्षित भी कर रही हूं। यदि मुझे न्याय नहीं मिला, तो मैं प्रदेश सरकार द्वारा प्रदान की गई आर्थिक मदद लौटाने पर विचार कर सकती हूं।
-महविश (अब्दुल हकीम की बेवा)

एसएसपी से मांगी रिपोर्ट
मुझे घटना की जानकारी मिल गई है। एसएसपी से तत्काल रिपोर्ट मांगी गई है। देहात कोतवाली प्र•ाारी के आचरण की जांच की जाएगी और दोषी पाए जाने पर निश्चित रूप से कार्रवाई की जाएगी।
-भवेश कुमार सिंह, आईजी, मेरठ जोन

परिजनों पर दर्ज होगा मामला?
घटनाक्रम के अुनसार इंस्पेक्टर आरबी यादव हत्यारोपी की शिकायत के एक मामले की जांच-पड़ताल करने महविश के घर गए, तो महविश और उसके जेठ यूसुफ ने इंस्पेक्टर से उल्टे अभद्रता की और इसके बाद परिवार के लोगों ने आत्मदाह करने की कोशिश की। इस पूरे प्रकरण की जांच चल रही है। जो भी दोषी होगा, उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इसके लिए चाहे आत्महत्या के लिए प्रेरित करने का मुकदमा दर्ज करना पड़े या फिर अंटेप्ट-टू-सुसाइड की रिपोर्ट लिखनी पड़े।
-गुलाब सिंह, एसएसपी, बुलंदशहर

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें