शनिवार, 20 नवंबर 2021

झुकी सरकार, जीत गए किसान



जितेन्द्र बच्चन
प्रकाश पर्व पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश से माफी मांगते हुए कृषि से जुड़े तीन नए कानून को वापस लेने का ऐलान कर के एक स्वस्थ्य राजनीति का परिचय दिया है। इसके लिए उनका स्वागत होना चाहिए लेकिन यह फैसला पूरी तरह राजनीतिक लाभ लेने से प्रेरित है और बहुत देर से लिया गया है। अगर पीएम मोदी ने और पहले विवेक दिखाया होता तो कम से कम सैकड़ों किसानों की जान बच जाती। हजारों अन्नदाता की खुशियां काफूर न होती। सैकड़ों किसानों के वीबी-बच्चे अनाथ न होते। लखमीपुर की लोमहर्षक घटना न घटती। पत्रकार की हत्या न होती और देश को तमाम स्थानों पर चल रहे धरना-प्रदर्शन व रेल रोको जैसे आंदोलनों से अरबों रुपये का नुकसान न सहना पड़ता। करीब 14 महीने से चल रहे किसान आंदोलन के कारण देश को जो आर्थिक क्षति पहुंची है, उसकी शायद भरपाई हो जाएगी लेकिन जिनकी जान चली गई, जिन्हें कत्ल कर दिया गया और जो निर्दोष होते हुए भी अकाल ही काल के गाल में समा गए, क्या उन्हें जिन्दा किया जा सकता है? नहीं, कभी नहीं। इसकी कोई भरपाई नहीं की जा सकती।
मोदी सरकार हो या योगी सरकार, सरकारें आती-जाती रहेंगी। लेकिन यह किसान आंदोलन इतिहास रचते हुए यह सीख और सबक जरूर दे जाएगा कि अन्नदाता से ऊपर कोई नहीं है। आपको याद होगा, इन चौदह महीनों के घटनाक्रम में किसान आंदोलन से जुड़े प्रदर्शनकारियों ने कई बार सडक़ पर उतरकर जाने-अन्जाने में कानून तोड़ा, संविधान की धज्जियां उड़ाईं, लाल किले तक की प्रचीर पर चढ़ गए, कानून हाथ में लिया और उसका खुलेआम उल्लंघन भी किया, तब भी सरकार में दम नहीं था कि वह सख्ती बरतने का जोखिम उठाती। सरकार और उसके नुमाइंदों ने किसान आंदोलनकारियों को देशद्रोही और आतंकी तक तो कह डाला, यह भी कहा कि ये किसान नहीं हो सकते, कई किसानों पर मुकदमे भी दर्ज किए, लेकिन अब जब उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब सहित देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने का समय आया और नरेन्द्र मोदी, अमित शाह की जोड़ी ने इसके लिए दौरे करने शुरू किए तो दूर दृष्टि का ज्ञान हुआ। शाह और मोदी दोनों को लगा कि अगर किसान आंदोलन इसी तरह चलता रहा तो चुनावी नतीजे उनके मनमाफिक नहीं आ सकते। सीधी-सी बात, अन्नदाता को नाराज कर सत्ता नहीं हासिल की जा सकती और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवम्बर, 2021 की सुबह-सुबह माफी की चासनी में लपेटकर तीनों नए कृषि कानून को वापस लेने का ऐलान कर दिया।
आखिर क्यों झुकी सरकार? दरअसल, पश्चिमी यूपी में मजबूत किसान आंदोलन से जाट वोट छिटकने का खतरा था। हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में हुए उप चुनावों में मिली करारी शिकस्त से झटका लगा। इसके अलावा अपने भी कुछ लोग खासकर मणिपुर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक और सांसद वरुण गांधी ने तो सीधा मोर्चा खोल दिया। अंतत: किसानों की जीत हुई। जय किसान!
लेकिन पीएम मोदी के अपने फैसले पर सियासत का पूरा मुलम्मा चढ़ा है। मोदी सरकार यह मानने को तैयार नहीं है कि यह उसकी हार है। नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के मंत्री कह रहे हैं कि वे कुछ किसानों को नए कानून को लेकर समझा नहीं पाए, इसलिए वापस ले रहे हैं। और पछतावा भी है कि इस ‘वापसी’ से देश के छोटे किसानों को नुकसान होगा। एक तीर से दो निशाने— बड़े किसान मोदी की यह एक सौगात समझें कि भाजपा बैकफुट पर आ गई और छोटे किसान अब भी उम्मीद बांधे रहे। इसे कहते हैं चित भी मेरी और पट भी मेरी।
मोदी जी वाकपटु हैं, इसमें दो राय नहीं! मोदी जी दूरदर्शी हैं, इसमें भी कोई संदेह नहीं। लेकिन भाजपा सत्ता में कैसे बनी रहे, यह चिंता उन्होंने गुरु पर्व की सुबह राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में तीनों विवादास्पद कृषि कानून को वापस लेने का ऐलान कर जगजाहिर कर दिया। पीएम मोदी के इस फैसले से पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में निश्चित ही पार्टी को लाभ मिलेगा, कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ वह सियासी फायदा उठाने में कामयाब हो सकते हैं, किसान आंदोलन खत्म होने का रास्ता भी खुल गया है, लेकिन इस पर विचार करने की अब जरूरत बढ़ गई है कि देश में खेती-किसानी और छोटे किसानों की हालत में सुधार हो और उसके लिए संस्थागत बदलावों के लिए वातावरण तैयार किया जाए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

शुक्रवार, 8 जनवरी 2021

मुरादनगर: भ्रष्ट सिस्टम, मौत का मंजर


- जितेन्द्र बच्चन

भ्रष्ट सिस्टम ने श्मशान को भी नहीं छोड़ा और पलक झपकते 25 जिंदगियों को लील गया। वाकया नए साल के तीसरे दिन 03 जनवरी की सुबह करीब साढ़े 11 बजे का है। दिल्ली-एनसीआर में शामिल गाजियाबाद के मुरादनगर श्मशान घाट में एक गलियारे का लेंटर गिरने से 25 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई और 15 से अधिक लोग घायल हैं। घायलों में अब भी कई लोग अस्पताल में जिंदगी के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। हादसा तब हुआ, जब मुरादनगर के बंबा रोड संगम विहार निवासी 70 वर्षीय जयराम का रविवार की सुबह निधन हो गया और उनकी अंतिम यात्रा में 50 से ज्यादा लोग शामिल होकर श्मशान घाट पहुंचे। बारिश होने के कारण अधिकतर लोग प्रवेश द्वार पर बने 70 फुट लंबे गलियारे में खड़े थे। दाह-संस्कार पूरा होने के बाद वहीं पर दो मिनट का मौन रखा गया। इसी दौरान गलियारे का लेंटर जमींदोज हो गया।


दिल दहलाने वाला मंजर था। एकदम से चीख-पुकार मच गई। मलबे के नीचे दबे लोगों को देख आसपास के लोग दहल उठे। कलेजा मुंह को आ लगा। स्थानीय लोगों ने मलबे में दबे लोगों को बचाने की कोशिश में जी-जान लगा दी। सरकारी अमला जब तक पहुंचा, वे 12 लोगों को मलबे से बाहर निकाल चुके थे। इसके बाद जिलाधिकारी डॉ अजय शंकर पांडेय और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कलानिधि नैथानी ने आकर राहत व बचाव अभियान की कमान संभाली, लेकिन एनडीआरएफ को देर से सूचना दी गई। नतीजतन वह टीम दोपहर करीब एक बजे पहुंची। अगर समय से यह टीम बुला ली जाती तो शायद कुछ और लोग जिंदा होते, लेकिन प्रशासन हादसे को इतना बड़ा नहीं समझ रहा था। उससे कहीं न कहीं यहां थोड़ी चूक हुई है।

इस हादसे का सबसे बड़ा कारण है घटिया सामग्री का प्रयोग। मिलावट, भ्रष्ट सिस्टम! बेईमान अधिकारी, घूसखोर अफसर और किसी भी इमारत को दीमक की तरह खोखला करते ठेकेदार! भ्रष्टाचार का ही नतीजा है कि 55 लाख रुपये की लागत से तैयार निर्माण 15 दिन बाद ही बालू के रेत की तरह ढह गया। अभी इसका लोकार्पण भी नहीं हुआ था। मुश्किल से दो महीने पहले जिला योजना के तहत बंबा श्मशान घाट का निर्माण कराया गया था। इसके लिए करीब 55 लाख रुपये का टेंडर पास हुआ था, जिसमें दो कमरे और शवों के अंतिम संस्कार के लिए शेड तैयार किए गए। उसी में मुख्य द्वार का 70 फुट लंबा गलियारा भी शमिल था। हादसे से पंद्रह रोज पहले ही इसे जनता के लिए खोला गया था। निर्माण में घटिया सामग्री इस्तेमाल की गई, जिसकी वजह से गलियारे का लेंटर जमींदोज हो गया। मलबे में महज सरिया और रेत ही दिखाई दे रहा था। अब स्थानीय सभासद दावा कर रहे हैं कि उन्होंने घटिया निर्माण की ईओ से शिकायत की थी, लेकिन उन्होंने सुनवाई नहीं की। अगर जिम्मेदार अधिकारियों ने ड्यूटी ईमानदारी से निभाई होती तो आज जान गंवाने वाले जिंदा होते।

सरकार अब जागी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मृतकों के परिजनों को दो-दो लाख और घायलों को 50-50 हजार रुपये की आर्थिक मदद देने की घोषणा करने के साथ ही मंडलायुक्त और एडीजी मेरठ जोन से घटना की रिपोर्ट तलब की है। लेकिन पीडि़त परिवारों को शक है कि उन्हें न्याय मिलेगा।वे हाईवे पर शव रखकर धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। उधर जयराम के पुत्र दीपक की तहरीर के आधार पर थाना कोतवाली मोदीनगर पुलिस ने नगर पालिका की ईओ निहारिका सिंह, जेई चंद्रपाल, सुपरवाइजर आशीष, ठेकेदार अजय त्यागी और अन्य के खिलाफ गैर इरादतन हत्या, भ्रष्टाचार, काम में लापरवाही सहित अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज कर लिया। सोमवार की सुबह होते-होते इनमें से तीन आरोपितों निहारिका सिंह, चंद्रपाल और आशीष को गिरफ्तार भी कर लिया गया। उसी रोज देर रात ठेकेदार अजय त्यागी और उसके साझीदार संजय को भी पुलिस ने दबोच लिया। देर-सवेर हो सकता है कि दोषियों को थोड़ी-बहुत सजा भी मिले, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इतने मात्र से भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा? क्या इस कार्रवाई के बाद आगे कोई ऐसी घटना नहीं होगी?

जनाब, अगर कुछ करना ही है तो भ्रष्टाचार की जड़ पर प्रहार करिए। घूसखोर अधिकारियों को हटाइए। सिस्टम में बैठे उन अफसरों को निकाल बाहर करिए जो बिना नजराने के कोई काम नहीं करते। ऐसे लोगों की पहचान करिए जो समाज को दीमक की तरह खोखला कर रहे हैं। उन सामाजिक संस्थाओं को आगे बढऩे का मौका दीजिए जो समय रहते लोगों को भ्रष्टाचार के प्रति आगाह करती हैं। और यह तभी संभव होगा जब सरकार के साथ-साथ हमारा समाज भी जागेगा।