सोमवार, 27 मई 2013

गाजियाबाद का दिल दहला देने वाला सामूहिक हत्याकांड

किसकी साजिश कौन सूत्रधार?

22 साल के युवक ने एक ही परिवार के सात लोगों को मार डाला! हो सकता है कि यह घटना उसी ने की हो, लेकिन पुलिस, एसटीएफ और उनके तमाम विशेषज्ञों ने मिलकर इस मामले के खुलासे की जो कहानी बताई, वह किसी के गले नहीं उतर रही है। आखिर किसने रची साजिश? कौन है असली सूत्रधार और किसे बचा रही है पुलिस?

एक ही परिवार के सात लोगों की हत्या से पूरे प्रदेश में सनसनी फैल गई। बेरहम कातिल ने माता-पिता के साथ बेटे-बहू और पोते-पोतियों को भी नहीं छोड़ा। घर के भीतर जो भी मिला, बड़ी बेरहमी से उसे मौत के घाट उतार दिया। घटना 21 मई, 2013 की है। गाजियाबाद के सतीश चंद्र गोयल थाना कोतवाली स्थित नई बस्ती के रहने वाले थे। परिवार में पत्नी मंजू (62), पुत्र सचिन (40), बहू रेखा (38) और उसके तीन बच्चों- मेघा (13), नेहा (10) और अमन (7) को लेकर कुल सात लोग थे। सतीश को किडनी की समस्या थी। डॉक्टर की सलाह पर कंपाउंडर रोज उन्हें इंसुलिन का इंजेक्शन लगाने आता था, लेकिन 22 मई की सुबह करीब 8 बजे वह आया, तो उसके होश उड़ गए। दरवाजा खुला हुआ था और घर के अंदर खून ही खून ही फैला था। ऊपर-नीचे पूरे परिवार की रक्तरंजित लाशें पड़ी थीं। कंपाउंडर ने पड़ोसियों को बताया, फिर मामले की सूचना पुलिस को दी गई। शहर में कोहराम मच गया। एक ही परिवार के सात लोगों की हत्या से पुलिस महकमे के भी हाथ-पैर फूल आए। थाना कोतवाली पुलिस और एसएसपी नितिन तिवारी मौके पर आ पहुंचे। पुलिस के स्पेशल आॅपरेशन ग्रुप और क्र ाइम टीम ने जांच-पड़ताल शुरू कर दी। दो शव घर की प्रथम मंजिल और बाकी पांच शव दूसरी मंजिल पर पड़े थे।
सतीश गोयल बताशेवाला उर्फ गैंडा (65) तीन भाई थे। उनका आढ़त का पुश्तैनी काम था। तीनों भाई साझे में रहते थे। बाद में सतीश दोनों भाइयों से अलग हो गए। अनाज मंडी गाजियाबाद में खल-चूरी का थोक व्यवसाय शुरू कर दिया, फिर करीब 15 साल पहले उन्होंने प्रॉपर्टी के काम में हाथ आजमाया, तो देखते ही देखते शहर के बड़े बिल्डरों में उनकी गिनती होने लगी। उन्होंने नई बस्ती, घंटाघर और पुराने शहर में तमाम प्रॉपर्टियों की खरीद-फरोख्त की। कुछ विवादित प्रॉपर्टी को लेकर उनका लोगों से विवाद भी हुआ, लेकिन सतीश ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। लाखों से करोड़ों में खेलने का क्रम जारी रहा। इधर कुछ दिनों से सतीश का स्वास्थ्य साथ नहीं दे रहा था। किडनी का आॅपरेशन कराना था। उसके लिए एक करोड़ रुपये घर में रखे थे। इसके अलावा ज्वेलरी भी अच्छी-खासी थी। ऊपर-नीचे घर का सारा सामान बिखरा हुआ था। पुलिस ने अनुमान लगाया कि हो सकता है कि लूटपाट की इरादे से इस घटना को अंजाम दिया गया है।

सतीश गोयल के मकान के आगे की सड़क महज 10 फुट चौड़ी है। नजदीक ही चोपड़ा मेडिकल स्टोर है। एक-दूसरे के मकानों की छतें आपस में सटी हुई हैं। कहीं भी आवाज हो और सामने वाले को पता न चले, इसकी कोई गुंजाइश नहीं है। लेकिन पुलिस पूछताछ में किसी पड़ोसी ने कोई खास जानकारी नहीं दी। सभी का यही कहना था कि आमतौर पर सतीश गोयल और सचिन रात साढ़े 10 बजे तक दुकान से घर लौट आते थे, लेकिन उस रात सतीश और सचिन दोनों पौने नौ बजे ही आ गए थे। 22 मई को पड़ोसी के यहां शादी थी। उसके यहां डीजे बज रहा था। ऐसे में गोयल परिवार के लोग चीखे-चिल्लाए भी होंगे, तो उनकी आवाज सुनाई नहीं पड़ी। नौकरों के बारे में पूछने पर पता चला कि सतीश गोयल ने अपने पुराने कार चालक राहुल को नौकरी से निकाल दिया है। इस बीच पुलिस टीम को मौके पर जांच में जूते के कुछ निशान मिले, जो आठ नंबर के थे। वह छुरा भी मिल गया, जिससे कत्ल किया गया था। जूते के नंबर और खंजर पर मिले फिंगर प्रिंट्स के आधार पर पुलिस का पूरा शक राहुल पर आकर टिक गया।

12वीं पास राहुल वर्मा (22) थाना कोतवाली (नगर) गाजियाबाद के मोहल्ला बजरिया का रहने वाला है। दो छोटे भाई हैं, लेकिन घरवालों से मनमुटाव के कारण इन दिनों राहुल इंदिरापुरम में अपने कजन के साथ रह रहा था। राहुल के दादा उत्तर प्रदेश पुलिस में दारोगा रहे। पुलिस ने राहुल की खोजबीन में कई जगह दबिश दी, लेकिन उसका सुराग नहीं मिला। इस बीच भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह गाजियाबाद आए। पीड़ित परिवार से मिले। इससे राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई। एसएसपी नितिन तिवारी और उनके मताहतों को आईजी ने सख्त निर्देश दिए। 23 मई को मुखबिर से पता चला कि राहुल ने अभी 10-12 दिन पहले ही एक महंगा मोबाइल फोन खरीद कर अपनी गर्लफ्रेंड को गिफ्ट किया है। पुलिस ने उस युवती को एक घंटे बाद हिरासत में ले लिया, तभी राहुल का युवती के मोबाइल पर फोन आ गया। लोकेशन मिलते ही स्पेशल आॅपरेशन ग्रुप और क्राइम टीम ने राहुल को गिरफ्तार कर लिया।

पुलिस के अनुसार, राहुल इंटर पास करने के बाद दिल्ली के ग्रेटर कैलाश में एनिमेशन का कोर्स कर रहा था। इस बीच उसे नशे की लत पड़ गई। वह आवारागर्दी करने लगा। नहीं सुधरा, तो माता-पिता ने बेटे को घर से निकाल दिया। राहुल भटक गया। उसकी एक युवती से दोस्ती हो गई, फिर दोनों एक-दूसरे से प्यार करने लगे। राहुल के खर्चे बढ़ गए। प्रेमिका के शौक और खर्चे पूरे करने की उधेड़बुन में एक रोज राहुल की मुलाकात सतीश गोयल के ड्राइवर मोनू से हुई। मोनू की सिफारिश पर सतीश ने राहुल को भी अपने यहां पांच हजार की मासिक तनख्वाह पर कार चालक रख लिया। उन्हें क्या पता था कि वह आस्तीन का सांप निकलेगा। घटना से करीब 12 दिन पहले राहुल ने सतीश गोयल के घर से साढ़े चार लाख रुपये चुरा लिए। उसमें से एक लाख रुपये राहुल ने अपने दोस्त जुगनू जैकब को दे दिए। बाकी जो बचा, उसमें प्रेमिका को मोबाइल गिफ्ट किया और कई दिन दोस्त-यारों के साथ शराब-शबाब की मौज-मस्ती में डूबा रहा। उसकी हरकतों से तंग आकर गोयल को इस बात का पता चलते देर नहीं लगी कि रुपये की चोरी राहुल ने ही की है। उन्होंने उसे नौकरी से निकाल दिया। राहुल अब पूरी तरह से सड़क पर आ चुका था। बेरोजगार होते ही गर्लफ्रेंड भी कन्नी काटने लगी। इस सब का जिम्मेदार राहुल सतीश गोयल को मानने लगा।

उनके प्रति उसकी नफरत बढ़ने लगी। वह जानता था कि गोयल करोड़पति है। कब कितना पैसा कहां से आ-जा रहा है, यह भी पता था। राहुल ने लूट की साजिश रचनी शुरू कर दी। दो-तीन दोस्तों से भी इस सिलसिले में बात की। प्रशांत नामक मित्र को अपनी साजिश में शामिल होने को भी कहा। राहुल के अनुसार, उसका इरादा किसी को कत्ल करना नहीं था। सोचा था, घर में घुसेगा और किसी एक बच्चे को चाकू की नोक पर लेकर मोटी रकम हासिल कर लेगा। पुलिस के अनुसार, 20 मई को उसने मालीवाड़ा से 100 रु पये का छुरा और एक रस्सी खरीदा, फिर 21 मई की रात करीब साढ़े सात बजे गोयल के घर के पीछे बनी सीढ़ियों से एक दूसरे मकान की छत पर जा पहुंचा। वहां से दो-तीन छतों से होता हुआ सतीश गोयल की छत पर आ गया। यहां कुछ बच्चे खेल रहे थे। राहुल ने उन्हीं के पास बैठकर दो सिगरेट पी। बच्चे खेलकर चले गए, तो राहुल मुंह पर गमछा बांधकर करीब 10 फीट ऊंची छत से रस्सी के सहारे नीचे प्रथम तल पर कूद पड़ा। उसके पैर में फैक्चर हो गया। मुंह से गमछा भी खुल गया। इस बीच पुलिस के अनुसार, धड़ाम की आवाज सुनकर मेघा ने राहुल को देख लिया। पहचाने जाने के डर से वह घबरा गया। उसने मेघा के पेट में छुरा घोंप दिया, फिर उसका गला रेतकर कत्ल कर डाला। बच्ची की आवाज सुनकर उसकी मां रेखा आई, तो राहुल ने उसे भी लपककर छुरे से गोद डाला। दो लोगों की हत्या करने के बाद राहुल को लगा कि पैर में चोट लगने के कारण वह वापस छत के रास्ते नहीं लौट सकता, इसलिए उसे मेन गेट से ही निकलना होगा।

ऐसे में उसका पकड़ा जाना तय है। राहुल के इरादे और खूंखार हो गए। वह नीचे आया और सतीश के बेटे सचिन को सामने देखते ही उसके पेट में छुरा घोंप दिया। वह जमीन पर गिर पड़ा, राहुल ने उसका गला रेत दिया। सतीश और उनकी पत्नी मंजू ने यह मंजर देखा, तो सदमे से बेहोश हो गए। सचिन ने बेहोशी की हालत में ही सतीश और मंजू का भी गला रेत दिया। अब मासूम अमन और नेहा बचे थे। खून-खराबा देख दोनों रोने लगे। राहुल ने उन दोनों की भी बड़ी बेरहमी से गला रेतकर हत्या कर दी। पास के मकान में डीजे बज रहा था, जिसमें पूरे परिवार की चीख-पुकार दबकर रह गई।
पुलिस के मुताबिक, हत्याओं के बाद राहुल ने अलमारी खोली और उसमें रखी जूलरी और 10 हजार रुपये चुरा लिए। जिस लॉकर में एक करोड़ की नकदी रखी थी, उसे तोड़ नहीं पाया। परेशान होकर राहुल मेन गेट से निकल गया, लेकिन पुलिस, एसटीएफ और उनके तमाम विशेषज्ञों ने मिलकर इस मामले का यह जो खुलासा किया है, वह किसी के गले नहीं उतर रही है। एसएसपी ने आरोपी के पास से खून से सने कपड़े व लूटे गए जेवर और नकदी बरामद करने का भी दावा किया है, लेकिन पुलिस की इस कहानी में कई पेंच हैं, जिससे कई सवाल खड़े होते हैं। 21-22 साल का एक दुबला-पतला लड़का सात लोगों की हत्या भला कैसे कर सकता है? वह भी जख्मी-टूटे पैर के बाद तो कतई नहीं? जरूर इस घटना के पीछे कोई बड़ी साजिश है। कौन है असली सूत्रधार? किसे बचा रही है पुलिस?

सीबीआई जांच की मांग
सतीश गोयल की पुत्री शैली और दामाद सचिन का कहना है कि इस हत्याकांड में राहुल के अलावा भी कुछ लोग शामिल हैं, लेकिन पुलिस की कार्रवाई से लग रहा है कि वह किसी को बचाने का प्रयास कर रही है। उन्होंने बताया कि पुलिस ने उन्हें राहुल की कमीज और गमछा दिखाया। उस पर खून के थोड़े से निशान हैं और दोनों कपड़े सही-सलामत हैं। ऐसा कैसे हो सकता है? उसने सात लोगों को कत्ल कर डाला और उसकी कमीज के बटन तक नहीं टूटे और न जेब फटी? यहां तक कि खून से भी कमीज पूरी तरह नहीं रंगी? शैली ने एक और सवाल उठाया है। उनका कहना है कि पुलिस कत्ल का जो समय बता रही है, वह भी गलत है। रात्रि 8.39 बजे मेरी अपने भाई सचिन से दो मिनट मोबाइल फोन पर बात हुई है। वहीं, भाजपा (गाजियाबाद) के उपाध्यक्ष अजय शर्मा ने मामले की सीबीआई से जांच कराने की मांग की है।

विरोध के चलते मुख्यमंत्री नहीं आए

26 मई को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का गाजियाबाद आने का प्रोग्राम था। यहां और गौतमबुद्धनगर के करीब आठ हजार छात्र-छात्राओं को लैपटॉप वितरित करना था। इसके अलावा जीडीए के करीब चार हजार करोड़ की लागत के विकास कार्यों का लोकार्पण व शिलान्यास भी करना है, लेकिन गोयल परिवार हत्याकांड को लेकर व्यापारियों और राजनीतिक दलों के तीखे विरोध के चलते मुख्यमंत्री का कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया। जिलाधिकारी (गाजियाबाद) एसवीएस रंगा राव के अनुसार अब मुख्यमंत्री शायद 3 जून को गाजियाबाद आएंगे।
थाना प्रभारी निलंबित
कोतवाली थाना प्रभारी लालू सिंह मौर्य को निलंबित कर दिया गया है। सतीश गोयल ने पुलिस से कुछ दिन पहले सुरक्षा मांगी थी, लेकिन इंस्पेक्टर मौर्य ने उन्हें सुरक्षा उपलब्ध नहीं कराई थी। मामले की जांच-पड़ताल की जा रही है।    
-भावेश कुमार, आईजी (मेरठ जोन)

दो दिन की रिमांड में उगले कई राज
पुलिस ने आरोपी राहुल वर्मा को दो दिन (24-25 मई) की रिमांड पर लेकर पूछताछ की, तो कई और सनसनीखेज जानकारियां दी हैं। उसके बयान के आधार पर इस मामले में तीन और लोगों जुगनू जैकब, मोनू और प्रशांत का नाम सामने आया है। जुगनू शातिर अपराधी है। वह 2008 में मुरादनगर में हुई करीब 20 लाख की लूट में जेल भी जा चुका है। पुलिस ने उसे 24 मई 2013 को कोटगांव फाटक के पास से गिरफ्तार कर लिया। वह गाजियाबाद के मोहल्ला आर्यनगर का निवासी है। राहुल का दोस्त है। राहुल ने जब सतीश गोयल के घर से साढ़े चार लाख रुपये चुराए थे, तो उसमें से एक लाख रुपये उसने जुगनू को दे दिए थे। पुलिस जुगनू के साथ-साथ मोनू से भी पूछताछ कर रही है। 25 मई को प्रशांत भी पकड़ में आ गया। राहुल की साजिश का इन तीनों को पता था, लेकिन प्रशांत का कहना है कि वह राहुल की साजिश में शामिल नहीं है।
-नितिन तिवारी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक
-जितेंद्र बच्चन

बुधवार, 22 मई 2013

                           किले में सेंध!

सोनिया-राहुल के गढ़ में वरुण गांधी की दस्तक।भाजपा में वरु ण का कद बढ़ा। पार्टी ने तय की उनके लिए बड़ी भूमिका। खासकर युवाओं को पार्टी से जोड़ने की है कोशिश। खास फोकस है उत्तर प्रदेश, क्योंकि दिल्ली की सत्ता का रास्ता यहीं से होकर गुजरता है।


जितेंद्र बच्चन
लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहा है, सीटों की संख्या के लिहाज से देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में नए-नए राजनीतिक समीकरण उभरने लगे हैं। भाजपा की रणनीति बड़े चेहरों को मैदान में उतारने की है। उसी कड़ी में वरुण गांधी अगला लोकसभा चुनाव सुलतानपुर से लड़ने की तैयारी में हैं। इसके संकेत पहले से भी मिलते रहे हैं, लेकिन 16 मई को वरुण ने सुलतानपुर के खुर्शीद क्लब मैदान में स्वाभिमान रैली कर के अपने चुनाव अभियान की औपचारिक शुरुआत कर दी। भाजपा ‘अपने गांधी’ के लिए बड़ी भूमिका तय कर चुकी है। खासतौर पर वरुण के जरिए युवाओं को पार्टी से जोड़ने की कोशिश की जा रही है, तभी तो रैली में पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी ने वरुण को युवा हृदय सम्राट बताया। उत्तर प्रदेश पर पार्टी का खास फोकस रहा, क्योंकि दिल्ली की सत्ता का रास्ता यहीं से होकर गुजरता है।
वरुण की उम्मीदवारी से राजनीतिक हलचल तेज :
परिवार के दूसरे खेमे के राहुल गांधी के अमेठी से सटी सुलतानपुर सीट से वरुण की उम्मीदवारी ने राजनीतिक हलचल तेज कर दी है। यह तय माना जा रहा है कि सुलतानपुर, अमेठी, रायबरेली में गांधी परिवार की त्रिमूर्ति (वरु ण-राहुल-सोनिया) की मौजूदगी की राजनीतिक गूंज दूर तक सुनी जाएगी। 16 मई को शहर के खुर्शीद क्लब में हुई भाजपा की स्वाभिमान रैली में भारी भीड़ जुटी। आसपास के कई जिलों के लोग वरु ण को देखने-सुनने पहुंचे। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी सहित प्रदेश के तमाम पदाधिकारी, नेता और अनेक विधायक वरुण का हौसला बढ़ाने और अपना चेहरा दिखाने की होड़ में लगे रहे। वरु ण ने अपने भाषण में अमेठी, रायबरेली या फिर सोनिया गांधी का जिक्र करने से परहेज किया। हालांकि भाषण की शुरुआत उसी अंदाज में की जैसे परिवार के अन्य सदस्य ‘अमेठी या रायबरेली को अपना बताने के लिए’ करते रहे हैं। वरुण ने कहा, ‘अपने घर आया हूं। यहां के लोगों ने हमेशा मेरे पिता का हाथ थामे रखा।’ इस उल्लेख के साथ वरु ण काफी भावुक हो गए। उन्होंने कहा, ‘मेरा परिवार कुछ महीनों से काफी दु:खी है। 19 मार्च को मेरे बेटी पैदा हुई थी। परिवार में बेहद खुशी थी, लेकिन 19 अप्रैल को वह गुजर गई। जो माता-पिता हैं वे इस दर्द को समझ सकते हैं। लोगों को लगता है कि जो मंच पर बैठते हैं। मुकुट पहनते हैं। वे बहुत सुखी और ऐशोआराम से हैं पर उनके भी दु:ख हैं।’ ये सब बताते हुए भावुक वरु ण कुछ पल को ठहर गए। सामने जोश में उमड़ती भीड़ के बीच भी सन्नाटा पसर गया, लेकिन जब उन्होंने कहा कि यहां के हजारों बच्चे भी तो मेरे बच्चे हैं, तो अगले ही क्षण उनके लिए तालियां बजाते हुए लोगों ने नारे बुलंद करने शुरू कर दिए।
भाजपा में वरु ण को पहली बार तरजीह :
भौगोलिक व जातिगत समीकरणों के आधार पर देखें, तो तीनों लोकसभा सीटों सुलतानपुर, अमेठी और रायबरेली में काफी समानता है। 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में इन तीनों जगहों पर कांग्रेस का पत्ता लगभग साफ हो चुका है। इसके बावजूद राहुल गांधी अपनी पार्टी की उम्मीदों के केंद्र हैं और भाजपा वरु ण को पहली बार तरजीह दे रही है। पार्टी में उनका कद बढ़ा है। वहीं, विरोधी खेमों में रहते हुए भी गांधी परिवार के सदस्य अब तक चुनाव प्रचार में एक-दूसरे के क्षेत्रों में जाने से परहेज करते रहे हैं। सवाल उठ रहा है कि क्या आने वाले लोकसभा चुनाव में यह परंपरा टूटेगी? दरअसल, वरुण का सुलतानपुर से चुनाव लड़ने का फैसला अचानक नहीं है। वे पिछले साढेÞ तीन साल से इसकी तैयारी कर रहे हैं। 20 दिसंबर, 2009 को उन्होंने सुलतानपुर में एक बड़ी सभा कर पहली बार इसका संकेत दिया था। इस सभा की सफलता के लिए उनके प्रतिनिधियों ने यहां महीनों मशक्कत की थी। तब वरु ण ने सभा को संबोधित करते हुए कहा था, ‘हम बचपन से सुलतानपुर-अमेठी के विषय में सुनते-जानते रहे हैं। मेरे पिता संजय गांधी को यहां के लोगों ने बहुत प्यार दिया। 2004 के लोकसभा चुनाव में पहली बार मैं यहां आया था, तब जल्दी-जल्दी आने का वादा किया था, लेकिन नहीं आया तो इसकी वजह थी कि मैं अपने को पूरी तरह तैयार करना चाहता था। अब तैयार हूं।’
राजनीतिक कर्मभूमि :
वरुण गांधी पिछली बार पीलीभीत से सांसद चुने गए थे और अच्छे बहुमत से जीते थे, लेकिन चुने जाने के चंद महीनों के भीतर ही उन्होंने सुलतानपुर में दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी। शायद इस क्षेत्र को वे अपनी राजनीतिक कर्मभूमि बनाना चाहते हैं। इसीलिए दिल्ली में रहते हुए भी वह सुलतानपुर के लोगों से संपर्क बढ़ाते रहे हैं। मेल-मुलाकात में सुलतानपुर के लोगों को प्राथमिकता दी है। पिछले कुछ महीनों में इस काम में और तेजी आई है। अपने प्रतिनिधियों और सर्वेक्षण एजंसियों के जरिए उन्होंने सुलतानपुर में संभावनाएं टटोलीं। अब  उनके स्टाफ के करीब डेढ़ दर्जन लोगों ने यहां डेरा डाल रखा है और पूरी तरह से चुनाव प्रचार में लग गए हैं। सुलतानपुर जिला मुख्यालय पर वरुण गांधी के नाम के पोस्टर और होर्डिंग लगा दिए गए हैं। स्टाफ वालों ने स्थानीय इकाई के नेताओं के साथ बराबर संपर्क बना रखा है। 16 मई की रैली में भी स्थानीय नेताओं की अच्छी खासी जमात मौजूद रही। इनमें एमएलसी डॉ. महेंद्र सिंह, विधायक उपेंद्र   तिवारी, विधायक सावित्री फूले, सीमा द्विवेदी, रामनाथ कोरी, रामपति त्रिपाठी, देवेंद्र सिंह चौहान, लक्ष्मण आचार्य, मोती सिंह, ओम प्रकाश पांडेय, डॉ. आरए वर्मा, नगर पालिका अध्यक्ष प्रवीण कुमार वर्मा, अर्जुन सिंह, विजय बहादुर पाठक, मनीष शुक्ला, जगजीत सिंह छंगू, अखिलेश जायसवाल, लोकसभा प्रत्याशी अमेठी प्रदीप सिंह, थौरी धीरज पांडेय, दिलीप पांडेय, श्रीप्रकाश सिंह, वीरेंद्र बहादुर सिंह, संजय सिंह सोमवंशी, जिला मीडिया प्रभारी विनय सिंह आदि शामिल रहे।   
विरासत के पीछे संघर्ष की पृष्ठभूमि :
सुलतानपुर के एक ओर अयोध्या है, तो दूसरी ओर अमेठी। वरुण ने 2009 के चुनाव में हिंदुत्व के मुद्दे को उभारने की कोशिश की थी। अयोध्या से इसकी संगत बैठती है। जबकि इसी जिले की अमेठी गांधी परिवार की उस विरासत का प्रतीक है, जहां से परिवार के रिश्तों की बुनियाद वरु ण के पिता दिवंगत संजय गांधी ने डाली थी। इस विरासत के पीछे वरु ण से पहले की पीढ़ी के संघर्ष की पृष्ठभूमि भी है। संजय गांधी ने 1977 में अमेठी से पहला चुनाव लड़ा था। उस चुनाव में वे हार गए थे। 1980 में वे अमेठी से ही जीते, लेकिन जल्दी ही एक हवाई दुर्घटना में उनकी मौत हो गई। इसके बाद संजय गांधी की पत्नी अमेठी में पति की सियासी विरासत को आगे बढ़ाने की इच्छुक थीं, लेकिन सास इंदिरा गांधी ने विधवा बहू मेनका गांधी के दावे को दरिकनार कर विमानन कंपनी की नौकरी छोड़कर राजनीति में आए अपने बडेÞ बेटे राजीव गांधी को अमेठी में उपचुनाव लड़ाया। वे 1981 का यह उपचुनाव आसानी से जीत भी गए। विद्रोह पर उतारू मेनका ने अपनी सास का घर छोड़ने के बाद अमेठी का रु ख कर लिया। 1984 के चुनाव में उन्होंने यहां आकर अपने जेठ राजीव गांधी को असफल चुनौती दी थी। पराजय की पीड़ा इतनी गहरी थी कि मेनका फिर कभी सुलतानपुर-अमेठी नहीं आर्इं।
आक्रमण की धार तेज : ढाई दशक बाद मेनका के बेटे वरु ण ने 2009 में भी सुलतानपुर के उसी खुर्शीद क्लब में सभा की, जहां उनकी मां मेनका ने अपने परिवार को चुनौती देते हुए पहली सभा की थी। अपने परिवार से नाराज मेनका के स्वर और आरोप बेहद तीखे हुआ करते थे, लेकिन वरु ण ने पिछली बार जब यहां सभा की थी, तो वे संतुलित और संयमति थे। इसके बावजूद राहुल-सोनिया का नाम लिए बिना उन पर कटाक्ष करने से नहीं चूके, ‘वीआईपी इलाकों में वैसे विकास कार्य नहीं हुए हैं जैसे होने चाहिए थे। प्रतिनिधि जनता के सेवक हैं और उनसे काम का हिसाब लिया जाना चाहिए।’ वरु ण अब सुलतानपुर से लडेंÞगे, तो आक्र मण की धार और तेज हो सकती है। वे अपनी मां द्वारा बीच में छोड़ी लड़ाई का अगला चरण शुरू कर रहे हैं। पड़ाव भले सुलतानपुर है, लेकिन निशाने पर अमेठी-रायबरेली है। पिछले लोकसभा चुनाव 2012 में सुलतानपुर से कांग्रेसी उम्मीदवार की हैसियत से अमेठी के युवराज संजय सिंह जीते थे। आजकल पार्टी से नाराज बताए जा रहे हैं। उनका मानना है कि कांग्रेसियों ने जान-बूझकर अमिता सिंह को हराया है। कांग्रेस व संजय सिंह के बीच पनपी इस खटास का फायदा भाजपा वरुण को सुलतानपुर लोकसभा क्षेत्र से उतार कर उठाना चाहती है।
अंधा कानून या वरुण की दबंगई? 
चार साल पहले 2009 के चुनाव में भाजपा नेता वरुण गांधी के एक भाषण ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया था। उन पर सात और आठ मार्च 2009 को पीलीभीत जिले के डालचंद और बरखेड़ा में भड़काऊ भाषण देने का केस दर्ज हुआ। कई दिनों तक वे सलाखों के पीछे भी रहे। अब चार साल बाद 33 साल के वरु ण गांधी बेदाग हैं। लेकिन कोर्ट में जो गवाह पलट गए थे, उन्हीं गवाहों ने एक स्टिंग आॅपरेशन में यू-टर्न लेते हुए खुलासा किया है कि कैसे केस का गला घोंटा गया और वरु ण सबूत के अभाव में बेदाग बरी हो गए।
कोर्ट में बेशक इस आरोप का कोई गवाह नहीं मिला कि वरु ण गांधी ने वाकई 2009 में डालचंद और बरखेड़ा में नफरत फैलाने वाला भाषण दिया, लेकिन स्टिंग आॅपरेशन में साफ हो चुका है कि न सिर्फ वरु ण ने जहर उगलने वाला भाषण दिया था, बल्किमुकदमे से बेदाग बचने के लिए पूरी न्याय प्रक्रि या को तोड़-मरोड़ डाला। वरु ण ने न्याय प्रक्रि या को इस हद तक प्रभावित किया कि इन दोनों केस   के अलावा दूसरे कुछ मामलों के सभी 88 गवाह मुकर गए। गवाहों के मुताबिक बयान बदलवाने में एसपी अमति वर्मा की अहम भूमिका रही। स्टिंग आॅपरेशन से यह भी जाहिर हुआ है कि खुद को बेदाग बचाने के लिए वरु ण ने यूपी विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी के उम्मीदवार को हरवा दिया, ताकि समाजवादी पार्टी का नेता चुनाव जीत सके और केस से बचने में उनकी मदद कर सके। यह अंधा कानून है या फिर वरुण की दबंगई, जो साम-दाम-दंड-भेद तमाम हथकंडे अपनाकर केस से बेदाग बरी हो गया?
चरम पर है गुटबाजी



भाजपा ने 2014 का चुनाव जीतने के लिए एक खाका तैयार करना शुरू कर दिया है। पूरे प्रदेश को पूर्वांचल, मध्य भाग, पश्चिम और बुंदेलखंड सहित कई हिस्सों में बांटा गया है। हर हिस्से से पार्टी अपने कम-से-कम एक ऐसे चेहरे को लोकसभा चुनाव लड़ाना चाहती है, जिसके नाम पर उस सीट पर तो वोट मिले ही, आस-पास की सीटों पर भी वे दूसरे भाजपा प्रत्याशियों को जिताने में मदद कर सकें। लेकिन 2014 के चुनाव के लिए भाजपा जहां एक ओर उत्तर प्रदेश में अपनी पूरी ताकत लगा रही है, वहीं आपसी गुटबाजी पार्टी की पूरी कवायद पर पानी फेरने को तैयार बैठी है। राजनाथ सिंह की अगुवाई में घोषित कार्यकारिणी को एक धड़ा चाटुकारों की फौज, कमजोर व परिवारवाद को बढ़ावा देने वाली करार दे रहा है। कार्यकारिणी में राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह, लाल जी टंडन के पुत्र गोपाल टंडन, पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह और प्रेमलता कटियार की बेटी नीलिमा कटियार को पद मिलने से भी बहुत लोग नाराज हैं। प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही के समय कार्यकारिणी में जो लोग शामिल थे, उनमें से अधिकांश को इस कार्यकारिणी में जगह नहीं मिली है। हालांकि प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी कहते हैं, ‘पार्टी में कोई गुटबाजी नहीं है, जो थोड़ी-बहुत नाराजगी है, चुनाव से पहले वह ठीक हो जाएगी।’

                                क़ैदी का खत


सलाम! हम भी इंसान हैं और देशभक्त शहरी भी जो नापाक साजिशों के तहत दहशतगर्दी के आरोप में ज़बरदस्ती फंसाए गए बेकसूर हैं. आज हम लोग बेइन्तहां जुल्म से परेशान होकर आपस में आत्महत्या और उसकी जायज गुंजाइश के बारे में एक दूसरे से पूछने लगे हैं. हमारे खिलाफ़ होने वाली अमानवीयता (जो जेल अधिकारियों की आपराधिक मानसिकता के कारण है) ने हमें इस क़दर मायूस कर दिया है कि आत्महत्या ही आखिरी विकल्प लगने लगा है.
हममें से सभी को अपने-अपने घरों, बाजारों, खेतों से, राह चलते हुए गैर-कानूनी कैद कर अगवा करके, गैर कानूनी हिरासत में रखकर भयानक हिंसा के ज़रिए कहानियां गढ़कर लखनऊ, बाराबंकी, उन्नाव या फिर अन्य दूसरी जगहों से कई-कई दिन बाद गैरकानूनी सामानों के साथ गिरफ्तारियां दिखाकर लंबी-लंबी पुलिस हिरासत में लेकर सुबूत गढ़ने के बाद सलाखों के पीछे ढ़केल दिया गया. सुरक्षा के नाम पर हाई-सेक्योरिटी के नाम पर बने कमरों में ठूंसकर बेपनाह उत्पीड़न पहले भी किया गया और आज भी इरादतन साम्प्रदायिक तौर पर जारी है.
सीलन भरी अंधेरी, बेरोशनदान वाली आठ गुणे बारह की छोटी सी सेल में लगातार बंद रखा जाता, एक मिनट के लिए भी न खोला जाता. तेरह जून 2008 दिन शुक्रवार को जुल्म का नंगा नाच करते हुए हमें चमड़े के हंटरों और लाठियों से हमारे जिस्मों को फाड़ा और तोड़ा गया. पवित्र कुरान को अपवित्र किया गया, उसके पन्ने फाड़कर शौचालय में फेंका गया.
हमारे सारे कपड़े, चादर, किताबें जप्त कर ली गईं, बल्कि शुरु के ही दिनों में कपड़ों पर पाबन्दी लगा दी गई कि सिर्फ दो जोड़े कपड़े, एक लुंगी, एक तौलिया यहां तक की अण्डरवियर भी दो से ज्यादा रखने की इजाज़त न दी जाती थी. तंग होकर हमने लंबी भूख हड़ताल, खाने-पीने का मुकम्मल बाईकाट विरोध के बतौर किया. तब 27 जनवरी 2009 से आधा घंटा के लिए पत्थर की ऊंची दीवारों वाले इतने छोटे से बरामदे में खोला जाने लगा जिसमें से 12 बजे के बाद से ही धूप गायब हो जाती और हरियाली का तो नामों निशान तक नज़र नहीं आता.
दिसम्बर 2011 से बहुत दरख्वास्त करने पर एक घंटे के लिए खोला जाने लगा. पता होना चाहिए कि जेल के रजिस्टर में हमें बाकी कैदियों की तरह मैनुवल के लिहाज से खुला ही दिखाया जाता है, जबकि हम यहां लगातार बंद रखे जाते हैं. लगातार बंद रहने की वजह से यहां लोग बीमार रहने लगे हैं. जबकि कई तो डिप्रेशन के शिकार हो चुके हैं, याददाश्त प्रभावित हो चुकी है. और कईयों की आंखे कमजोर होने लगी हैं.
कई साल से ऊपर हो गए होंगे जेल मुआयना पर आने वाले मजिस्ट्रेट को हाई-सेक्योरिटी तशरीफ लाए हुए. बड़े अफसरान और ऑथोरिटीज को हाई सेक्योरिटी नहीं लाया जाता कि हम शिकायत न कर दें. हमारी दरख्वास्तें ऑथोरिटीज को नहीं फॉरवर्ड की जाती कि कहीं हमें इंसानी हुकूक देने को न कह दिया जाय. सुप्रीम कोर्ट की बकायदा हिदायत है कि किसी भी अण्टर ट्रायल को कैद कर तनहाई में न रखा जाय. सजायाफ्ता को भी सिर्फ तीन माह तनहाई में रखे जाने की गुंजाइश है. हमारे साथ गैरकानूनी, गैरइंसानी और आपराधिक बर्ताव क्यों रखा जाता है, जबकि हम साजिशन फंसाए गए बेकसूर नागरिक हैं.
साथियों ऐसे में अधिकारियों की तंग नजरी, बड़े ऑथोरिटीज तक पहुंच न हो पाने, मुक़दमों का जल्द फैसला न हो पाने और ज़रुरत की दवाओं के न मिल पाने की वजह ने बहुतों को बहुत मायूस कर दिया है. जिसकी वजह से कुंठा व बेचैनी से मजबूर होकर आत्महत्या के जायज़ होने या गुंजाइश होने का मसला अक्सर होने वाली बातचीत में मुझसे पूछा जाता है. साजिशों में फंसाए गए इन लोगों को कैसे समझाया जा सकता है. जबकि ये परेशान कैदी जब थोड़ी देर खुले में ताजा हवा या धूप खाने और बीमारियों के सही इलाज की दरख्वासत करते हैं कि सर ऐसे तो हम मर जाएंगे तो हंसी उड़ाते हुए कहा जाता है कि मर जाओ हमें क्या फर्क पड़ता है, सुसाइड कर लो. हम जवाब दे लेंगे और जहां चाहे शिकायत कर लो हमें फर्क नहीं पड़ता.
यहां के लोगों और खुद अपनी बेबसी देखकर, प्रशासन का रवैया देखकर दिल हिल जाता है. रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि हम हिन्दोस्तान की जेल में हैं या अंग्रेजों की. हम किसी सेकूलर स्टेट में हैं या कम्यूनल स्टेट में. हम आपसे मदद के प्रार्थी हैं. हुकूमती सतह पर या बड़ी अदालतों और ऑथोरिटीज के ज़रिए इन्सानी हुकूक़ के खिलाफ़ हो रहे कार्यवाइयों पर लगाम लगाया जा सकता है. मेहरबानी करके नफ़रत की इस भट्टी में सिसकती, बिलखती इंसानियत को बचाने के खातिर देश की मज़बूती व तरक्की के खातिर हम बेबसों की तरफ ध्यान दीजिए. क्योंकि इंसाफ़ से मुल्क व हुकूमत को मज़बूती मिला करती है.
द्वारा-
मोहम्मद तारिक कासमी
कैदी हाई सेक्योरिटी,
सी ब्लाक जिला जेल
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
22 सितम्बर 2012
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