बुधवार, 22 मई 2013

                           किले में सेंध!

सोनिया-राहुल के गढ़ में वरुण गांधी की दस्तक।भाजपा में वरु ण का कद बढ़ा। पार्टी ने तय की उनके लिए बड़ी भूमिका। खासकर युवाओं को पार्टी से जोड़ने की है कोशिश। खास फोकस है उत्तर प्रदेश, क्योंकि दिल्ली की सत्ता का रास्ता यहीं से होकर गुजरता है।


जितेंद्र बच्चन
लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहा है, सीटों की संख्या के लिहाज से देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में नए-नए राजनीतिक समीकरण उभरने लगे हैं। भाजपा की रणनीति बड़े चेहरों को मैदान में उतारने की है। उसी कड़ी में वरुण गांधी अगला लोकसभा चुनाव सुलतानपुर से लड़ने की तैयारी में हैं। इसके संकेत पहले से भी मिलते रहे हैं, लेकिन 16 मई को वरुण ने सुलतानपुर के खुर्शीद क्लब मैदान में स्वाभिमान रैली कर के अपने चुनाव अभियान की औपचारिक शुरुआत कर दी। भाजपा ‘अपने गांधी’ के लिए बड़ी भूमिका तय कर चुकी है। खासतौर पर वरुण के जरिए युवाओं को पार्टी से जोड़ने की कोशिश की जा रही है, तभी तो रैली में पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी ने वरुण को युवा हृदय सम्राट बताया। उत्तर प्रदेश पर पार्टी का खास फोकस रहा, क्योंकि दिल्ली की सत्ता का रास्ता यहीं से होकर गुजरता है।
वरुण की उम्मीदवारी से राजनीतिक हलचल तेज :
परिवार के दूसरे खेमे के राहुल गांधी के अमेठी से सटी सुलतानपुर सीट से वरुण की उम्मीदवारी ने राजनीतिक हलचल तेज कर दी है। यह तय माना जा रहा है कि सुलतानपुर, अमेठी, रायबरेली में गांधी परिवार की त्रिमूर्ति (वरु ण-राहुल-सोनिया) की मौजूदगी की राजनीतिक गूंज दूर तक सुनी जाएगी। 16 मई को शहर के खुर्शीद क्लब में हुई भाजपा की स्वाभिमान रैली में भारी भीड़ जुटी। आसपास के कई जिलों के लोग वरु ण को देखने-सुनने पहुंचे। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी सहित प्रदेश के तमाम पदाधिकारी, नेता और अनेक विधायक वरुण का हौसला बढ़ाने और अपना चेहरा दिखाने की होड़ में लगे रहे। वरु ण ने अपने भाषण में अमेठी, रायबरेली या फिर सोनिया गांधी का जिक्र करने से परहेज किया। हालांकि भाषण की शुरुआत उसी अंदाज में की जैसे परिवार के अन्य सदस्य ‘अमेठी या रायबरेली को अपना बताने के लिए’ करते रहे हैं। वरुण ने कहा, ‘अपने घर आया हूं। यहां के लोगों ने हमेशा मेरे पिता का हाथ थामे रखा।’ इस उल्लेख के साथ वरु ण काफी भावुक हो गए। उन्होंने कहा, ‘मेरा परिवार कुछ महीनों से काफी दु:खी है। 19 मार्च को मेरे बेटी पैदा हुई थी। परिवार में बेहद खुशी थी, लेकिन 19 अप्रैल को वह गुजर गई। जो माता-पिता हैं वे इस दर्द को समझ सकते हैं। लोगों को लगता है कि जो मंच पर बैठते हैं। मुकुट पहनते हैं। वे बहुत सुखी और ऐशोआराम से हैं पर उनके भी दु:ख हैं।’ ये सब बताते हुए भावुक वरु ण कुछ पल को ठहर गए। सामने जोश में उमड़ती भीड़ के बीच भी सन्नाटा पसर गया, लेकिन जब उन्होंने कहा कि यहां के हजारों बच्चे भी तो मेरे बच्चे हैं, तो अगले ही क्षण उनके लिए तालियां बजाते हुए लोगों ने नारे बुलंद करने शुरू कर दिए।
भाजपा में वरु ण को पहली बार तरजीह :
भौगोलिक व जातिगत समीकरणों के आधार पर देखें, तो तीनों लोकसभा सीटों सुलतानपुर, अमेठी और रायबरेली में काफी समानता है। 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में इन तीनों जगहों पर कांग्रेस का पत्ता लगभग साफ हो चुका है। इसके बावजूद राहुल गांधी अपनी पार्टी की उम्मीदों के केंद्र हैं और भाजपा वरु ण को पहली बार तरजीह दे रही है। पार्टी में उनका कद बढ़ा है। वहीं, विरोधी खेमों में रहते हुए भी गांधी परिवार के सदस्य अब तक चुनाव प्रचार में एक-दूसरे के क्षेत्रों में जाने से परहेज करते रहे हैं। सवाल उठ रहा है कि क्या आने वाले लोकसभा चुनाव में यह परंपरा टूटेगी? दरअसल, वरुण का सुलतानपुर से चुनाव लड़ने का फैसला अचानक नहीं है। वे पिछले साढेÞ तीन साल से इसकी तैयारी कर रहे हैं। 20 दिसंबर, 2009 को उन्होंने सुलतानपुर में एक बड़ी सभा कर पहली बार इसका संकेत दिया था। इस सभा की सफलता के लिए उनके प्रतिनिधियों ने यहां महीनों मशक्कत की थी। तब वरु ण ने सभा को संबोधित करते हुए कहा था, ‘हम बचपन से सुलतानपुर-अमेठी के विषय में सुनते-जानते रहे हैं। मेरे पिता संजय गांधी को यहां के लोगों ने बहुत प्यार दिया। 2004 के लोकसभा चुनाव में पहली बार मैं यहां आया था, तब जल्दी-जल्दी आने का वादा किया था, लेकिन नहीं आया तो इसकी वजह थी कि मैं अपने को पूरी तरह तैयार करना चाहता था। अब तैयार हूं।’
राजनीतिक कर्मभूमि :
वरुण गांधी पिछली बार पीलीभीत से सांसद चुने गए थे और अच्छे बहुमत से जीते थे, लेकिन चुने जाने के चंद महीनों के भीतर ही उन्होंने सुलतानपुर में दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी। शायद इस क्षेत्र को वे अपनी राजनीतिक कर्मभूमि बनाना चाहते हैं। इसीलिए दिल्ली में रहते हुए भी वह सुलतानपुर के लोगों से संपर्क बढ़ाते रहे हैं। मेल-मुलाकात में सुलतानपुर के लोगों को प्राथमिकता दी है। पिछले कुछ महीनों में इस काम में और तेजी आई है। अपने प्रतिनिधियों और सर्वेक्षण एजंसियों के जरिए उन्होंने सुलतानपुर में संभावनाएं टटोलीं। अब  उनके स्टाफ के करीब डेढ़ दर्जन लोगों ने यहां डेरा डाल रखा है और पूरी तरह से चुनाव प्रचार में लग गए हैं। सुलतानपुर जिला मुख्यालय पर वरुण गांधी के नाम के पोस्टर और होर्डिंग लगा दिए गए हैं। स्टाफ वालों ने स्थानीय इकाई के नेताओं के साथ बराबर संपर्क बना रखा है। 16 मई की रैली में भी स्थानीय नेताओं की अच्छी खासी जमात मौजूद रही। इनमें एमएलसी डॉ. महेंद्र सिंह, विधायक उपेंद्र   तिवारी, विधायक सावित्री फूले, सीमा द्विवेदी, रामनाथ कोरी, रामपति त्रिपाठी, देवेंद्र सिंह चौहान, लक्ष्मण आचार्य, मोती सिंह, ओम प्रकाश पांडेय, डॉ. आरए वर्मा, नगर पालिका अध्यक्ष प्रवीण कुमार वर्मा, अर्जुन सिंह, विजय बहादुर पाठक, मनीष शुक्ला, जगजीत सिंह छंगू, अखिलेश जायसवाल, लोकसभा प्रत्याशी अमेठी प्रदीप सिंह, थौरी धीरज पांडेय, दिलीप पांडेय, श्रीप्रकाश सिंह, वीरेंद्र बहादुर सिंह, संजय सिंह सोमवंशी, जिला मीडिया प्रभारी विनय सिंह आदि शामिल रहे।   
विरासत के पीछे संघर्ष की पृष्ठभूमि :
सुलतानपुर के एक ओर अयोध्या है, तो दूसरी ओर अमेठी। वरुण ने 2009 के चुनाव में हिंदुत्व के मुद्दे को उभारने की कोशिश की थी। अयोध्या से इसकी संगत बैठती है। जबकि इसी जिले की अमेठी गांधी परिवार की उस विरासत का प्रतीक है, जहां से परिवार के रिश्तों की बुनियाद वरु ण के पिता दिवंगत संजय गांधी ने डाली थी। इस विरासत के पीछे वरु ण से पहले की पीढ़ी के संघर्ष की पृष्ठभूमि भी है। संजय गांधी ने 1977 में अमेठी से पहला चुनाव लड़ा था। उस चुनाव में वे हार गए थे। 1980 में वे अमेठी से ही जीते, लेकिन जल्दी ही एक हवाई दुर्घटना में उनकी मौत हो गई। इसके बाद संजय गांधी की पत्नी अमेठी में पति की सियासी विरासत को आगे बढ़ाने की इच्छुक थीं, लेकिन सास इंदिरा गांधी ने विधवा बहू मेनका गांधी के दावे को दरिकनार कर विमानन कंपनी की नौकरी छोड़कर राजनीति में आए अपने बडेÞ बेटे राजीव गांधी को अमेठी में उपचुनाव लड़ाया। वे 1981 का यह उपचुनाव आसानी से जीत भी गए। विद्रोह पर उतारू मेनका ने अपनी सास का घर छोड़ने के बाद अमेठी का रु ख कर लिया। 1984 के चुनाव में उन्होंने यहां आकर अपने जेठ राजीव गांधी को असफल चुनौती दी थी। पराजय की पीड़ा इतनी गहरी थी कि मेनका फिर कभी सुलतानपुर-अमेठी नहीं आर्इं।
आक्रमण की धार तेज : ढाई दशक बाद मेनका के बेटे वरु ण ने 2009 में भी सुलतानपुर के उसी खुर्शीद क्लब में सभा की, जहां उनकी मां मेनका ने अपने परिवार को चुनौती देते हुए पहली सभा की थी। अपने परिवार से नाराज मेनका के स्वर और आरोप बेहद तीखे हुआ करते थे, लेकिन वरु ण ने पिछली बार जब यहां सभा की थी, तो वे संतुलित और संयमति थे। इसके बावजूद राहुल-सोनिया का नाम लिए बिना उन पर कटाक्ष करने से नहीं चूके, ‘वीआईपी इलाकों में वैसे विकास कार्य नहीं हुए हैं जैसे होने चाहिए थे। प्रतिनिधि जनता के सेवक हैं और उनसे काम का हिसाब लिया जाना चाहिए।’ वरु ण अब सुलतानपुर से लडेंÞगे, तो आक्र मण की धार और तेज हो सकती है। वे अपनी मां द्वारा बीच में छोड़ी लड़ाई का अगला चरण शुरू कर रहे हैं। पड़ाव भले सुलतानपुर है, लेकिन निशाने पर अमेठी-रायबरेली है। पिछले लोकसभा चुनाव 2012 में सुलतानपुर से कांग्रेसी उम्मीदवार की हैसियत से अमेठी के युवराज संजय सिंह जीते थे। आजकल पार्टी से नाराज बताए जा रहे हैं। उनका मानना है कि कांग्रेसियों ने जान-बूझकर अमिता सिंह को हराया है। कांग्रेस व संजय सिंह के बीच पनपी इस खटास का फायदा भाजपा वरुण को सुलतानपुर लोकसभा क्षेत्र से उतार कर उठाना चाहती है।
अंधा कानून या वरुण की दबंगई? 
चार साल पहले 2009 के चुनाव में भाजपा नेता वरुण गांधी के एक भाषण ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया था। उन पर सात और आठ मार्च 2009 को पीलीभीत जिले के डालचंद और बरखेड़ा में भड़काऊ भाषण देने का केस दर्ज हुआ। कई दिनों तक वे सलाखों के पीछे भी रहे। अब चार साल बाद 33 साल के वरु ण गांधी बेदाग हैं। लेकिन कोर्ट में जो गवाह पलट गए थे, उन्हीं गवाहों ने एक स्टिंग आॅपरेशन में यू-टर्न लेते हुए खुलासा किया है कि कैसे केस का गला घोंटा गया और वरु ण सबूत के अभाव में बेदाग बरी हो गए।
कोर्ट में बेशक इस आरोप का कोई गवाह नहीं मिला कि वरु ण गांधी ने वाकई 2009 में डालचंद और बरखेड़ा में नफरत फैलाने वाला भाषण दिया, लेकिन स्टिंग आॅपरेशन में साफ हो चुका है कि न सिर्फ वरु ण ने जहर उगलने वाला भाषण दिया था, बल्किमुकदमे से बेदाग बचने के लिए पूरी न्याय प्रक्रि या को तोड़-मरोड़ डाला। वरु ण ने न्याय प्रक्रि या को इस हद तक प्रभावित किया कि इन दोनों केस   के अलावा दूसरे कुछ मामलों के सभी 88 गवाह मुकर गए। गवाहों के मुताबिक बयान बदलवाने में एसपी अमति वर्मा की अहम भूमिका रही। स्टिंग आॅपरेशन से यह भी जाहिर हुआ है कि खुद को बेदाग बचाने के लिए वरु ण ने यूपी विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी के उम्मीदवार को हरवा दिया, ताकि समाजवादी पार्टी का नेता चुनाव जीत सके और केस से बचने में उनकी मदद कर सके। यह अंधा कानून है या फिर वरुण की दबंगई, जो साम-दाम-दंड-भेद तमाम हथकंडे अपनाकर केस से बेदाग बरी हो गया?
चरम पर है गुटबाजी



भाजपा ने 2014 का चुनाव जीतने के लिए एक खाका तैयार करना शुरू कर दिया है। पूरे प्रदेश को पूर्वांचल, मध्य भाग, पश्चिम और बुंदेलखंड सहित कई हिस्सों में बांटा गया है। हर हिस्से से पार्टी अपने कम-से-कम एक ऐसे चेहरे को लोकसभा चुनाव लड़ाना चाहती है, जिसके नाम पर उस सीट पर तो वोट मिले ही, आस-पास की सीटों पर भी वे दूसरे भाजपा प्रत्याशियों को जिताने में मदद कर सकें। लेकिन 2014 के चुनाव के लिए भाजपा जहां एक ओर उत्तर प्रदेश में अपनी पूरी ताकत लगा रही है, वहीं आपसी गुटबाजी पार्टी की पूरी कवायद पर पानी फेरने को तैयार बैठी है। राजनाथ सिंह की अगुवाई में घोषित कार्यकारिणी को एक धड़ा चाटुकारों की फौज, कमजोर व परिवारवाद को बढ़ावा देने वाली करार दे रहा है। कार्यकारिणी में राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह, लाल जी टंडन के पुत्र गोपाल टंडन, पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह और प्रेमलता कटियार की बेटी नीलिमा कटियार को पद मिलने से भी बहुत लोग नाराज हैं। प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही के समय कार्यकारिणी में जो लोग शामिल थे, उनमें से अधिकांश को इस कार्यकारिणी में जगह नहीं मिली है। हालांकि प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी कहते हैं, ‘पार्टी में कोई गुटबाजी नहीं है, जो थोड़ी-बहुत नाराजगी है, चुनाव से पहले वह ठीक हो जाएगी।’

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