गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013


जेबतराशों का जाल

करोड़ों का काला कारोबार! मुल्क के कई महानगरों में फैला है जेबतराशों का जाल! कुछ राज्यों में खूबसूरत लड़कियों का भी होता है इस्तेमाल! जितना बड़ा शहर, उतना बड़ा गिरोह! विदेशी पर्यटक भी होते हैं निशाने पर! कौन है इसका जिम्मेदार?

नई दिल्ली। मुल्क का हर बड़ा शहर उनके निशाने पर है! रेलवे स्टेशन हो या बस अड्डा। अस्पताल हो या कोर्ट-कचहरी। मंदिर हो या भीड़भ1ड़ वाली सड़क अथवा कोई बाजार, हर जगह इनका फैला है जाल! आप चूक सकते हैं, इनकी नजर नहीं चूकती। पलक झपकते आपकी जेब पर हाथ साफ कर देते हैं। जितना बड़ा शहर, उतना बड़ा गिरोह। दिल्ली में जेबतराशों के तकरीबन 50 गिरोह सक्रिय हैं, जिनके गुर्गे पूरे एनसीआर में फैले हुए हैं। पश्चिम बंगाल में 40, बिहार में 22, झारखंड में 20, उत्तर प्रदेश में 25, मध्य प्रदेश में 17, मुंबई में 10, चंडीगढ़ में 11, पंजाब में 14, चेन्नई में 9 और हरियाणा में 7 जेबतराश गिरोह काम कर रहे हैं। इन पाकेटमार गिरोहों का भले ही अलग-अलग राज्य और शहर-नगर में जाल बिछा हो, लेकिन इनके काम करने का तरीका और कूटभ•ााषा करीब-करीब एक-सी होती है। जेबतराशों की दुनिया में सौ के नोट को ‘गांधी’, पांच सौ के नोट को ‘नोटबुक’ और एक हजार के नोट को ‘किताब’ बोलते हैं। गिरोह को ‘कंपनी’ और सरगना को ‘गुरु’ कहते हैं। शिकार को ‘मुद्दा’ और मुहिम को ‘फूल’ बोलते हैं। गिरोह की सदस्य संख्या सात से कम नहीं होती। पुलिस की तरह इनके ‘गुरुओं’ (सरगना) का भी इलाका (हलका) होता है और जेबकतरों को ‘बीट’ बंटी होती है। ‘कंपनी’ अक्सर उसी नाम से जानी जाती है, जो गिरोह का सरगना होता है। जेबकतरे को ‘मशीन’ कहते हैं और उसके सहयोगी को ‘ठेकबाज’। मिशन कामयाब होते ही ‘मशीन’ नकदी या पर्स ‘ठेकबाज’ के हवाले कर देता है। इस काम को ‘मैनेजर’ कहा जाता है। महिला शिकार को ‘केटी’ कहते हैं। ‘मुद्दा’ या ‘केटी’ को अपने आसपास खड़े ‘मशीन’ या ‘ठेकबाज’ पर शक हो जाता है, तो गिरोह के लोग आपस में एक-दूसरे को होशियार करने के लिए ‘मुद्दा-विला’ कहकर अलग हो जाते हैं।
‘मशीन’ और ‘ठेकबाज’ में बंटती है रकम
मिशन को अंजाम देने से पहले गिरोह के सदस्य एक निश्चित स्थान पर एकत्रित होते हैं, जिसे ‘फूल’ कहते हैं। जेबकतरा जब बस में चढ़ता है, तो उसे ‘डंडा लेना’ और ट्रेन में सवार होने को ‘छड़ी लेना’ बोलते हैं। बस या ट्रेन से उतरना है, तो ‘कलटी करना’ शब्द का प्रयोग होता है। पुलिस को जेबतराशों का गिरोह अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम से आपस में संबोधित करता है। दिल्ली में पुलिस को गिरोह के सदस्य ‘बिल्ला’, उत्तर प्रदेश में ‘ठुल्ला’, बिहार में ‘मामा’, पश्चिम बंगाल में ‘दल्ला’, चेन्नई में ‘बुकी’ कहते हैं। पुलिस का अगर कोई बड़ा अफसर है, तो उसे ‘बोगी’ कहते हैं। शिकार को घेरकर खड़े होने को ‘जूट में चलना’ कहा जाता है। हर महीने की पांच से 10 तारीख के बीच के समय को ‘सीजन’ बोला जाता है। दिन भ•ार की कमाई का हिसाब-किताब रखने वाले को ‘मैनेजर’ और कमाई का जो हिस्सा मिलता है, उसे ‘पूड़ी’ कहते हैं। जेबतराशी की रकम का आधा ‘मशीन’ और आधे को ‘ठेकबाजों’ में बांट दिया जाता है।
एनसीआर में धन्नी गिरोह का आतंक
दिल्ली के जेबतराशों में धनराज उर्फ धन्नी का गिरोह ‘डी कंपनी’ के नाम से कुख्यात रहा है। धन्नी ने सात शादियां की थीं। मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, लखनऊ, पटना, हैदराबाद और भ•ोपाल की जिस लड़की से धन्नी ने शादी की, उसी महानगर में ‘डी कंपनी’ का अड्डा खोल दिया। कंपनी में करीब 11 सौ लोग काम करते थे। वर्ष 2002 में गाजियाबाद पुलिस की एक मुठभ•ोड़ में धन्नी मारा गया, लेकिन उसकी औरतें धन्नी के शागिर्दों के साथ मिलकर आज भी ‘डी कंपनी’ का संचालन करती हैं। खासकर इस गिरोह का एनसीआर में आतंक है।
सारा काम तर्जनी का
जेबतराश के दाएं हाथ की तरजनी अंगुली का नाखून आधा इंच लंबा होता है। ‘मशीन’ नाखून में एक छोटा ब्लेड छिपाकर रखता है। ‘मुद्दा’ की जेब पर हाथ साफ करते समय नाखून से धारदार ब्लेड निकालकर जेब पर चला देता है। जेबतराशी को तालीम देने वाले को ‘मास्टर’ कहते हैं। दिल्ली के मंगोलपुरी की एक स्लम बस्ती में बाबर, सीमापुरी में हाजी, सीलमपुर में बाबू, वेलकम इलाके में अजीज और नंदनगरी में लाला गूजर (70) पाकेटमारों की पाठशाला चलाता है। लाला का नाम एनसीआर के जेबकतरों में कुख्यात है। उसका ‘मशीन’ नंबर एक माना जाता है। हर सरगना लाला की ‘मशीनों’ को मुंहमांगा पैसा देने को तैयार रहता है, लेकिन ‘ठेकबाज’ को ‘कंपनी’ में भर्ती होने के लिए जेबतराशी की दो वारदात में कामयाब होना जरूरी होता है।
बागी को मिलती है क्रूर सजा
जेबतराशी का धंधा भले ही गैरकानूनी है, लेकिन गिरोह का जो सदस्य कंपनी का उसूल नहीं मानता, उसे कंपनी का सरगना कू्रर से क्रूर सजा देता है। कई बार बागी को सिगरेट से दागने की भी खबरें मिली हैं। मिशन पर जाने से पहले ‘शकुन’ विचार होता है। जेबतराशी के बड़े गिरोह का ‘मशीन’ जिस बस में चढ़ता है, उसका सरगना उस बस के पीछे-पीछे कार से चलता है। एक-दो लोग और उसके साथ होते हैं। अगर जेबकतरा पकड़ा गया, तो सरगना ‘शरीफ आदमी’ बनकर बस के अंदर से ‘मशीन’ को पुलिस को सौंपने के नाम पर अपने साथ ले जाता (बचा लेता) है।
हिंसा का सहारा
जेबतराशी में शिकार को खरोंच नहीं आती और उसकी जेब साफ हो जाती है। पकड़े जाने पर भी कोई जेबकतरा हिंसा का सहारा नहीं लेता, लेकिन जेबतराशी के जुर्म के इस पेशे में अब काफी बदलाव आ चुका है। कुछ जेबतराश जान-माल बचाने के लिए शिकार का खून करने से भी नहीं चूकते। दिल्ली में ऐसी कई वारदात हो चुकी हैं। कुछ आरोपियों को पुलिस गिरफ्तार कर जेल भ•ोज चुकी है।
सदस्यों को मिलती है तरक्की और सेवानिवृत्ति
पाकेटमार की जमानत ‘कंपनी’ अपने खर्च पर कराती है। जो ‘मशीन’ पुराने हो जाते हैं, स्वास्थ्य और शरीर साथ नहीं देता, उनका भी गिरोह का सरगना पूरा ख्याल रखता है। सदस्यों को तरक्की और सेवानिवृत्ति भी मिलती है। ‘ठेकबाज’ प्रमोशन पाकर ‘मशीन’ बन जाता है। इस अवसर पर पुरानी ‘मशीन’ नई ‘मशीन’ को पगड़ी बांधता है और इस खुशी में जश्न मनाया जाता है।
जेबतराशी में बच्चों का इस्तेमाल
मुल्क में कई ऐसे गिरोह सक्रिय हैं, जो देश भर से गायब हुए मासूम बच्चों को जुर्म की दुनिया में काफी समय से धकेल रहे हैं। इनमें से कुछ लड़के-लड़कियों को जरायम का पाठ पढ़ाकर बाकायदा जेबतराश बनाया जाता है। पिछले दिनों थाना प्रसाद नगर (दिल्ली) पुलिस ने ऐसे ही एक गिरोह के सात सदस्यों को पकड़ा था, जिनमें रैगरपुरा का विनोद बुची, टैंक रोड का दीपक, देवनगर का मनीष और शिखा, मुल्तानी ढांडा का कालू और राजकुमारी तथा पंजाबी बस्ती की राधा शामिल थे। आरोपी देवनगर करोलबाग के खंडहरों में खेलने वाले गरीब बच्चों को अगवा कर उन्हें बुरी तरह मार-पीटकर उनसे राजधानी के अलावा देहरादून, मसूरी और वैष्णो देवी की यात्रा में जेबतराशी कराते थे। 20 जून को गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) पुलिस द्वारा पकड़ी गई किरण ने भी खुलासा किया था कि गुनाह के ऐसे स्कूल महानगरों की झुग्गी-झोपाड़ियों, स्लम बस्तियों, खंडहरों और शहर से दूर-दराज के जंगलों में चलते हैं। आरोपी किरण के मुताबिक, गाजियाबाद में भी रेल ट्रैक के आसपास बच्चों को जेबतराशी की तालीम दी जाती है। इस संबंध में गाजियाबाद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रशांत कुमार ने मामले की जांच कराने के लिए कहा है।
जेबकतरों का कारपोरेट कारोबार
जेबतराशों के कुछ ऐसे भी गिरोह हैं, जो सिर्फ दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई यानि देश के महानगरों में शिकार तलाशते हैं। करोड़ों के इस काले कारोबार में कमउम्र और खूबसूरत लड़कियों का भी इस्तेमाल होने लगा है। कुछ ऐसी युवतियां मोटे कमीशन पर काम करती हैं। सारा धंधा मोबाइल और इंटरनेट के जरिए अंजाम दिया जाता है। कारपोरेट बिजनेस! अंतर्राज्जीय गिरोहों का गठजोड़! देश के कई पर्यटन स्थल पर इन गिरोहों के मुखबिर नियुक्त होते हैं और पर्यटक होते हैं निशाने पर। एक्सप्रेस ट्रेनों या एयरपोर्ट पर यात्री बनते हैं शिकार। गिरोह का मुखबिर शिकार की पहचान कर जेबकतरे को मोबाइल पर कूटभ•ााषा में बता देता है। किन्हीं कारणों से ‘मशीन’ मिशन को अंजाम नहीं दे पाता, तो प्रथम गिरोह अगले गिरोह के हाथों ‘मुद्दा’ बेच देता है। कामयाबी की रकम फर्जी बैंक खातों के जरिए अदा की जाती है। पुलिस को भनक तक नहीं लगती और जेबतराशों का सरगना मालामाल!
पुलिस की साठगांठ
सूत्र बताते हैं कि अधिकांश थानेदारों को अपने इलाके के जेबतराशों की पूरी जानकारी होती है। कुछ थानेदार तो जेबतराशों से मुखबिर का भी काम लेते हैं। जेबतराशी की वारदात कब और कहां अंजाम दी जानी है, पुलिस को पहले से गिरोह सरगना सूचित कर देता है। पुलिस ‘मशीन’ को बचा लेती है। रकम का बंटवारा पुलिस और सरगना के बीच बराबर का होता है। कभी संयोग से कोई शिकार पुलिस के घर का हुआ, तो स्थानीय थानेदार के दबाव में रकम वापस करनी पड़ती है। अगले रोज खबर छपती है- दुनिया में अभी ईमानदारी बची है!
कायदा-कानून
दिल्ली के क्रिमिनल लॉयर कमल चौधरी के मुताबिक जेबतराशी का जुर्म भ•ाारतीय दंड विधान की धारा 379 के तहत दंडनीय अपराध है। जुर्म साबित होने पर कम से कम तीन साल की सजा या पांच हजार रुपये का जुर्माना अथवा दोनों हो सकता है।
राजधानी में बढ़ अपराध
आईपीएस नीरज कुमार ने 30 जून को दिल्ली पुलिस आयुक्त का चार्ज संभ•ाालने के बाद कहा था कि आतंकवाद रोकना उनकी पहली प्राथमिकता है। कानून-व्यवस्था को बेहतर बनाना और आम लोगों से पुलिस के अच्छे संबंध बने, इस पर खासा जोर रहेगा। स्ट्रीट क्राइम पर लगाम कसी जाएगी, लेकिन पुलिस इनमें से किसी भी मामले में कमी नहीं ला पाई। यहां अपराध का ग्राफ और बढ़ा है। झपटमारी की घटनाओं में दोगुना बढ़ोतरी हुई है। बाइकर्स का आतंक बढ़ा है। बलात्कार के मामलों में भी कमी नहीं आई है। लूट, सेंधमारी और वाहन चोरी की वारदात को अंजाम देने में भी बदमाशों के हौसले बुलंद हुए हैं।
1 जनवरी से 30 जून के बीच बलात्कार की 327, लूट की 267, हत्या का प्रयास 201, फिरौती के लिए किडनैप 14, सेंधमारी 824, वाहन चोरी 6918, हाउस थेफ्ट 797, रंगदारी 56, हर्ट 856, हत्या 262, डकैती 16 और दंगे की 32 घटनाएं हुर्इं, जबकि 1 जुलाई से 3 सितंबर के बीच स्नौचिंग की 368, बलात्कार की 127, लूट की 125, हत्या का प्रयास 84, फिरौती के लिए किडनैप 2, सेंधमारी 323, वाहन चोरी 2690,   हाउस थेफ्ट 315, रंगदारी 28, हर्ट 344, हत्या 86, डकैती की 4 और दंगों की 12 वारदात हो चुकी हैं।

-जितेन्द्र बच्चन

बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

पुलिस प्रताड़ना

पुलिस का एक और खौफनाक चेहरा! एक महिला शिक्षक को बना दिया नक्सली! पहले माओवादियों ने कहर बरपा। अब पुलिस ने उसे अपने शिकंजे में ले लिया है। टार्चर करने का तरीका सुनकर दिल दहल जाता है। क्यों कर रही है पुलिस अत्याचार? क्या है महिला और उसके पति की हकीकत?
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35 साल की सोढ़ी कल तक मुल्क के नौनिहालों को अंधेरे से उजाले की राह दिखाती थी, लेकिन आज उसका अपना खुद का वजूद दांव पर लग चुका है। जिंदा लाश बनकर रह गई है। उस पर किए गए पुलिस के अत्याचार को सुनकर दिल दहल जाता है। कोई सोच भी नहीं सकता कि पुलिस इतनी क्रूर होती है। बेइंतहा मारा-पीटा, फिर गुप्तांग में पत्थर डालने जैसा दुस्साहस भी पुलिस ने कर दिखाया। ठीक से खड़ी नहीं हो पाती सोढ़ी। इलाज के लिए सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा, तब कहीं जाकर उसे दिल्ली के एम्स में दाखिल किया गया। सोढ़ी के माता-पिता को माओवादियों ने गोली मारकर जख्मी कर दिया था। उनका जगदलपुर के हास्पिटल में इलाज हुआ। उजड़ गया घर, बिखर गए सपने। पति माओवादी होने के आरोप में जेल में है। पांच से 12 साल के तीन बच्चे रिश्तेदारों और होस्टल के सहारे जी रहे हैं। भ•तीजा लिंगाराम नक्सलियों के लिए चौथ वसूली करने के इल्जाम में सीखचों के पीछे कैद है।
सोढ़ी मूलत : छत्तीसगढ़ के जिला दंतेवाड़ा स्थित पालनार थाना अंतर्गत बडेÞ बेडमा की रहने वाली है। पिता का नाम मुंडरा है, जो दंतेवाड़ा के पूर्व विधायक नंदाराम के भ•ााई हैं। सोढ़ी की लोगों की मदद करना शुरू से आदत रही है। उसकी गिनती बेबाक और तेज-तर्रार महिलाओं में होती है। गीदम के एक गैर आदिवासी युवक अनिल पुटानी के साथ सोढ़ी की शादी हुई। दो बेटियां और एक बेटा है। बड़ी बेटी छत्तीसगढ़ से बाहर दूसरे राज्य में पढ़ती है और बाकी के दोनों बच्चे नाना-नानी के पास रहते हैं। भतीजा लिंगाराम कोडोपी सोढ़ी के साथ ही रहता था। खुद सोढ़ी मेडिकल की पढ़ाई छोड़कर दंतेवाड़ा के समेली के सरकारी स्कूल में पढ़ा रही थी। घर-गृहस्थी बड़े आराम से चल रही थी। करीब पांच साल पहले सोढ़ी को जबेली के बालिका आश्रम में बतौर अधीक्षिका नियुक्त कर दिया गया। वह बडेÞ बेडमा से समेली में आकर रहने लगी, तभी जैसे एक तूफान आया और सबकुछ एक झटके में तबाह कर गया। माओवादियों ने 15 जून, 2011 को सोढ़ी के घर पर धावा बोल दिया। जमकर लूटपाट की। पिता मुंडरा को गोली मार दी। जाते-जाते घर के बाहर खड़े ट्रैक्टर को आग के हवाले कर दिया। आतताईयों के फरार होने के बाद मामले की सूचना पुलिस को दी गई। आनन-फानन में मुंडरा को महारानी अस्पताल ले जाया गया, जहां उसका लंबा इलाज चला।
सोढ़ी ने घटना के विरोध में अपनी आवाज बुलंद की, तो नक्सली और खफा हो गए। पुलिस ने भी सोढ़ी की मदद नहीं की, बल्कि उसी को नक्सलियों की मददगार कहने-बताने लगी। इधर कुआं उधर खाई, कहां जाए सोढ़ी? पुलिस का अत्याचार लगातार बढ़ता गया। नकुलनार के कांग्रेसी नेता अवधेश सिंह गौतम के घर हुए माओवादी हमले के मामले में पुलिस ने सोढ़ी के पति अनिल को गिरफ्तार कर लिया। उसने लाख अपनी बेगुनाही की सफाई दी, लेकिन पुलिस एक नहीं मानी। करीब एक साल से अनिल दंतेवाड़ा जेल में बंद है। इसके बाद 9 सितंबर को दंतेवाडा पुलिस ने एक घटनाक्रम में ‘एस्सार’ कंपनी के किरंदुल इकाई के महाप्रबंधक डीवीसीएस वर्मा और ठेकेदार बीके लाला को नक्सली समर्थक लिंगाराम कोडोपी को 15 लाख रु पये देते हुए दबोचा लिया। दोनों इस समय जगदलपुर जेल में कैद हैं। पुलिस का कहना है कि इस मामले में सोढ़ी भी आरोपी है। माओवादियों को आर्थिक मदद पहुंचाने (अवैध वसूली) का काम करती थी वह। उस रोज लिंगाराम के साथ सोढ़ी भी मौजूद थी, लेकिन पुलिस के आते ही भ•ाग निकली। एस्सार कांड से नाम जुड़ते ही सोढ़ी को छात्रावास की अधीक्षिक पद से निलिंबत कर दिया गया। पुलिस उसे तेजी से तलाशने लगी।
पुलिस अधीक्षक (दंतेवाड़ा) अंकित गर्ग के अनुसार,आरोपी लिंगाराम कोडोपी सोढ़ी के रिश्ते में भतीजा है। खुद कोडोपी ने दिल्ली से पत्रकारिता कर रखी है और स्वामी अिग्नवेश सहित दिल्ली के कई बुद्धिजीवियों से उसके मधुर संबंध हैं। पुलिस ने इलेक्ट्रानिक सर्विलेंस की मदद से सोढ़ी पर नजर रखना शुरू कर दिया। पता चला, सोढ़ी जयपुर स्थित बरकतनगर में पीयूसीएल की महासचिव कविता श्रीवास्तव के घर छिपी है। दो अक्टूबर की सुबह छत्तीसगढ़ और राजस्थान पुलिस ने मिलकर कविता के घर छापा मारा, लेकिन सोढ़ी नहीं मिली। हां, राजस्थान की सुरक्षा एजेंसियों और इंटेलीजेंस में जरूर हड़कंप मच गया। दंतेवाड़ा पुलिस ने सोढ़ी का पता लगाने के लिए जय जोहार सेवा संस्थान के सचिव नरेंद्र दुबे से भी पूछताछ की। बाद में 4 अक्टूबर को दक्षिण दिल्ली के कटवारिया सराय इलाके के बस स्टैंड से दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने सोढ़ी को गिरफ्तार कर लिया।
दिल्ली पुलिस के तत्कालीन डीसीपी (क्र ाइम ब्रांच) अशोक चांद के अनुसार, 5 अक्टूबर को सोढ़ी को साकेत कोर्ट में पेश किया गया। अदालत में सोढ़ी ने बताया कि वह और उसका पति इलाके के सर्वोदय कार्यकर्ता हिमांशु कुमार के संपर्क में थे और उनके मजदूरी बढ़ाने के लिए किए गए आंदोलन में शामिल होने की बात पुलिस डायरी में भी दर्ज है। छत्तीसगढ़ पुलिस का यह इल्जाम कि वे दोनों पति-पत्नी नक्सलियों की आर्थिक मदद के लिए एस्सार कंपनी से चौथ वसूली करते थे, गलत है। लेकिन अदालत ने सोढ़ी को एक दिन की ज्यूडिशियल कस्टडी में तिहाड़ जेल भज दिया। बाद में छत्तीसगढ़ पुलिस ट्रांजिट रिमांड पर सोढ़ी को छत्तीसगढ़ ले गई। कहते हैं यहां उस पर आरोप स्वीकारने के लिए यातनाओं का दौर चलाया गया। उसके पैर जंजीर से जकड़ दिए गए। सोढ़ी के सिर में गंभीर चोट आई है। बेहोशी की हालत में पुलिस उसे अस्पताल ले गई, जहां जंजीर बांधे जाने के विरोध में सोढ़ी ने अनशन शुरू कर दिया।
दो दिन बाद पुलिस ने सोढ़ी को प्रथम श्रेणी दंडाधिकारी योगिता वासनिक की अदालत में पेश किया। वहां से उसे 17 अक्टूबर तक न्यायिक हिरासत में जगदलपुर सेंट्रल जेल भ•ोज दिया गया। इस बीच पुलिस की ज्यादती के चलते सोढ़ी की तबियत और खराब हो गई। इलाज के लिए उसे जगदलपुर के महारानी अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहां भी स्थिति में सुधार नहीं हुआ, तो रायपुर के भीमराव अंबेडकर अस्पताल में ले जाया गया। वहां सोढ़ी ने पुलिस ज्यादती के विरोध में भ•ाूख हड़ताल शुरु कर दी। उसका कहना है कि थाना किरंदुल में पदस्थ आरक्षक मंकार का इस घटना से पहले उससे संपर्क था। माओवादी को इस बात को लेकर शक हो गया कि मैं पुलिस के लिए काम करती हूं और उन्होंने हमें तबाह करना शुरू कर दिया। इसके बाद पुलिस झूठे आरोप लगाकर हमें परेशान करने लगी।
अस्पताल में सोढ़ी के पैरों की बेड़ियां खोल दीं गर्इं, लेकिन दूसरी तरह के पुलिसिया कहर कम नहीं हुए। वह बस्तर जेल में बंद है, लेकिन तबियत में सुधार न होने के कारण उसे इस समय अदालत की दखल पर एम्स में भ•ार्ती कराया गया है। मामले की जांच अब सीआइडी के आइजी पीएन तिवारी की अगुआई में गठित एसआइटी को सौंपी दी गई है। इस चार सदस्यीय टीम में पहले से इस मामले की जांच कर रहे किरंदुल के एसडीओ (पुलिस)अंशुमान सिंह भी शामिल हैं। सोनी और उसका परिवार नक्सलवादी हैं या नहीं, यह पुलिस जांच और न्यायालय के फैसले से ही तय होगा, मगर सोढ़ी की हालत को देखते हुए हमारी व्यवस्था पर जो सवाल उठता है, उनका क्या होगा?
पुलिस की खुली पोल
दंतेवाड़ा पुलिस का कहना है कि एस्सार से पैसा लेकर बीके लाला, लिंगाराम कोडोपी और सोढ़ी सोरी नक्सलियों को देने वाले थे। इस बात की भनक मिलते ही पुलिस ने पालनार गांव के साप्ताहिक बाजार से बीके लाला और लिंगाराम कोडोपी को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन मौके पर मौजूद सोढ़ी फरार हो गई। उसे बाद में दिल्ली अपराध शाखा की पुलिस ने पकड़ा। सोढ़ी लोगों की हमदर्दी बटोरने के लिए मीडिया और अदालत को गुमराह कर रही है, लेकिन जब इस घटना की जांच हुई, तो रहस्योद्घाटन हुआ कि दंतेवाड़ा पुलिस ने आरोपी बीके लाला और लिंगाराम कोड़ोपी को उनके घर से उठाया था और उन्हें नाटकीय तरीके से पालनार बाजार में पकड़े जाने की बात कही थी।
लिंगाराम को इससे पहले भी अक्टूबर 2009 में 40 दिनों तक एसपीओ बनने का दबाव देकर थाने में रखा गया था, जिसे उच्च न्यायालय के दखल के बाद छोड़ा गया। बाद में दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई करने के दौरान भी अप्रैल 2010 में उस पर नक्सल हमले में शामिल होने का आरोप लगाया गया था, वहीं नक्सलियों ने जून 2011 में सोढ़ी के पिता के पैर में गोली मार दी थी। इससे यह सवाल खड़ा होना लाजमी है कि जिस परिवार पर नक्सली हमले कर रहे हैं, उसी की बेटी को पुलिस कैसे नक्सली समर्थक बता सकती है?
दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग
मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने एक बयान जारी कर कहा है कि सोढ़ी और लिंगाराम कोडोपी को राजनीतिक कारणों से फंसाया गया है। इन दोनों के खिलाफ लगाए गए सभी आरोप बेबुनियाद हैं। सोढ़ी के भतीजे कोडोपी ने सीआरपीएफ द्वारा तीन आदिवासियों की हत्या के मामले को उजागर किया था। उसी खुन्नस में लिंगाराम को गिरफ्तार कर लिया गया। इस गिरफ्तारी का सोढ़ी ने विरोध किया, तो पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया। एमनेस्टी ने मांग की है कि सोढ़ी और लिंगाराम कोडोपी के खिलाफ राजनीति से प्रेरित तमाम मामले वापस लिए जाएं और उन्हें बिना शर्त तत्काल रिहा किया जाय। साथ ही पुलिस प्रताड़ना और लापरवाही पूर्वक इलाज के मुद्दे पर एक त्वरित, निष्पक्ष, स्वतंत्र और प्रभवशाली जांच सुनिश्चित की जाए। मामले में जो भी पुलिसकर्मी दोषी पाए जाते हैं, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
बस्तर में कैद है आरोपी
बस्तर (छत्तीसगढ़) के पुलिस अधिक्षक मयंक श्रीवास्तव के अनुसार, सोनी सोढ़ी पर नक्सलियों को आर्थिक मदद पहुंचाने का आरोप है। उसने एस्सार कंपनी से वसूली की थी। यह मामला दंतेवाड़ा पुलिस ने दर्ज किया है, जो न्यायालय में विचारााधीन है। आरोपी सोढ़ी इस समय सेंट्रल जेल बस्तर में बंद है।

-जितेन्द्र बच्चन

एक रात चार कत्ल

जुर्म की कोई उम्र नहीं होती। कानून के हाथ अपराधी की गर्दन तक एक न एक दिन पहुंच ही जाते हैं। जयभन ने खजाना हथियाने के लिए पहले उस परिवार की बहू को अपने प्रेमजाल में फंसाया, उसके बाद एक-एक कर चार लोगों को मौत के घाट उतार दिया। देह-दौलत से जुड़ी लोमहर्षक दास्तां!
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बेहद हसीन थी सुनीता। जो ही देखता, पहली नजर में उसका दीवाना हो जाता, लेकिन जयभन पर वह खुद ही फिदा हुई थी। आंखों के रास्ते दिल में उतर गई। जय•ाान ने हल्का-सा इशारा क्या किया, सुनीता उफनाई नदी की तरह सागर में समा गई। हुस्न को मजबूत जिस्म का सहारा मिल गया, लेकिन जयभान को सुनीता की देह से ज्यादा उसकी दौलत की ख्वाहिश थी। हर वक्त वह इसी उधेड़बुन में लगा रहता कि इस परिवार के पास इतनी दौलत कहां से आई? सुनीता के सास-ससुर खेती-बारी में लगे रहते। सुनीता का पति राजू होटल चलाता था। दिन-रात उसे अपने काम-धंधे से फुर्सत न मिलती, इसके बावजूद इतनी कमाई नहीं थी कि बीवी ऐश करे। वह पति सुख के लिए दिन-रात सुलगती रहती। उन्हीं दिनों एक रोज जयभान से नजर मिली और फिर दोनों के बीच अवैध संबंधों का सिलसिला चल पड़ा।
13 वर्षीय बेटी को भी नहीं छोड़ा
27 दिसंबर, 2012 की सुबह थाना सरई के प्रभारी निरीक्षक मलखान सिंह प्रांगण में बैठे धूप ले रहे थे, तभी भारसेड़ी गांव के राजू साहू ने आकर बताया कि उसके माता-पिता, पत्नी सुनीता और 13 वर्षीय बेटी पूजा की हत्या कर दी गई। एक ही परिवार के चार लोगों के कत्ल की खबर सुनते ही मलखान सिंह के होश उड़ गए। उन्होंने फौरन इस लोमहर्षक घटना की जानकारी पुलिस अधीक्षक (सिंगरौली) इरशाद अली, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक संजीव सिन्हा और एसडीओपी पीएल कुर्वे को दी। जो ही सुनता, दांतों तले अंगुली दबा लेता। पूरे सिंगरौली जिले में हड़कंप मच गया। पुलिस अधिकारियों की सायरन बजाती गाड़ियां राजू के घर पहुंचने लगीं। दरवाजे पर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा।
शक यकीन में बदला
अजीब भयानक वाकया था। मौके पर खून ही खून बिखरा था। सवाल पर सवाल उठने लगे- कौन है हत्यारा? क्यों किया चार-चार लोगों का कत्ल? प्रभारी निरीक्षक मलखान सिंह ने मौके पर मौजूद कुछ लोगों से पूछताछ की, तो पता चला कि जयभान सिंह का राजू के घर आना-जाना है। वह राजू के पड़ोसी राम आश्रय यादव का रिश्तेदार था और लामी गांव (सिंगरौली, मध्य प्रदेश) का रहने वाला था। सुनीता उसे बहुत चाहती थी। खुद राजू ने भी जयभान सिंह पर शक जाहिर किया था, लेकिन सवाल उठता था कि जयभान सुनीता को चाहता था, तो वह उसकी हत्या क्यों करेगा?
टीआई मलखान सिंह चारों शवों को पोस्टमार्टम के लिए भजवाकर जयभान के गांव लामी जा पहुंचे। वह घर में नहीं था। उसकी औरत ने भी नहीं बताया कि वह कहां है, तब तो मलखान का माथा ठनका। उनका शक यकीन में बदलने लगा। उन्होंने मुखबिरों को सचेत कर दिया। पुलिस की मेहनत रंग लाई, 5 फरवरी, 2013 की शाम एक मुखबिर ने सूचना दी कि जयभान इस समय घर में मौजूद है। टीआई मलखान सिंह आधी रात के वक्त मयफोर्स आरोपी के घर जा धमके। जयभान ने घर से भागने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने उसे दौड़ाकर दबोच लिया। पूछताछ में आरोपी ने अपना गुनाह कबूल कर लिया। पता चला कि इस सामूहिक नरसंहार का कारण छत्रधारी साहू को कुछ दिन पहले उसके खेत में मिले दफीना को लूटना था। घटना में जयभान के दो और साथी शामिल हैं।
फलित नहीं हुआ लूट का माल
दफीना यानी खजाना! गांव वालों के मुताबिक, पूरा इलाका डकैतों से •ारा पड़ा था। पुलिस से बचने के लिए वे अक्सर लूट का माल किसी पहचान के सहारे खेतों में दबा देते थे। बाद में कई बार डकैतों के मारे जाने, पकड़े जाने या फिर उनके जेल से छूटकर वापस आने तक वह धन किसी दूसरे के हाथ लग जाता है या खेत की पहचान का चिह्न ही उस समय तक नष्ट हो जाता। सारा धन जमीन में ही गड़ा रह जाता। ऐसा ही एक दफीना छत्रधारी साहू के हाथ लग गया, लेकिन गांव वालों की मान्यता है कि इस प्रकार की दौलत हर किसी को नहीं फलती। छत्रधारी साहू के परिवार के लिए भ खजाना काल बन गया। घर में अकूत दौलत आते ही सुनीता की चाल-ढाल बदल गई। वह पहले से अब कहीं ज्यादा सजने-संवरने लगी थी। उन्हीं दिनों सुनीता का संपर्क जयभान सिंह से हुआ। दोनों जल्द ही एक-दूसरे से प्रेम करने लगे। पति राजू पास के गांव में होटल चलाता है। सास-ससुर खेती-किसानी में लगे रहते। एक बेटी थी पूजा, सुनीता उसे सहेलियों के साथ खेलने भज देती। इसके बाद जयभान के साथ खुलकर वासना का खेल खेलती। सुनीता को क्या पता था कि उसके जिस्म की आग एक दिन पूरे घर को जलाकर राख कर देगी। जयभान को जल्द ही छत्रधारी साहू को मिले खजाने का पता चल गया। खुद सुनीता ने उसकी बाहों में मचलते हुए बताया था, ‘जानते हो, मेरे ससुर को अपने खेत में सोने का घड़ा मिला है।’ जयभान की आंखों में चमक आ गई। अब उसकी दसों अंगुलियां घी में थी। पहलू गर्म करने के लिए प्रेमिका और खर्च करने के लिए लाखों की दौलत।
साजिश में दो और लोग शामिल
जयभान अब किसी भी कीमत पर उस दफीना को हासिल करना चाहता था। इसके लिए सबसे पहले उसने सुनीता को उसके ससुर के खिलाफ •ाड़काते हुए उसे अपने भ•ारोसे में लिया, ‘छत्रधारी बहुत कंजूस है। वह तुम्हें उस खजाने में से एक पाई नहीं देगा। मेरा कहा मानो, तो छोड़ो उस खजाने को। तुम मेरे साथ निकल चलो। मैं तुम्हें अपनी रानी बनाकर रखूंगा।’ सुनीता तो पहले से उस पर मरती थी। उसने फौरन जयभान सिंह का प्रस्ताव मान लिया। अब महज जयभान को यह पता करना था कि सोने का घड़ा छत्रधारी ने कहां छिपा रखा है? सुनीता से पूछा तो उसने नहीं बताया। इस पर जयभान का पारा आसमान पर चढ़ गया। उसने खजाना लूटने की साजिश रचनी शुरू कर दी। योजना को अंजाम देने के लिए जयभान ने गांव के ही दो बदमाशों बब्बू सिंह और सत्य नारायण तिवारी से संपर्क किया। वे दोनों भी तैयार हो गए।
प्रेमिका के सीने में उतारा खंजर
घटना की रात तीनों आरोपी भरखेड़ी रेलवे स्टेशन के पास मिले, फिर छत्रधारी साहू के घर पहुंच गए। अंदर प्रवेश करते ही आंगन में सबसे पहले छत्रधारी से सामना हुआ। जयभान ने उससे खजाने के बारे में पूछा, तो उसने नहीं बताया। गुस्से में बदमाशों ने उसे मारना-पीटना शुरू कर दिया, तभी छत्रधारी की पत्नी आ गई। बचाव में उसने शोर मचाना शुरू कर दिया। आरोपियों ने पकड़े जाने के •ाय से छत्रधारी और उसकी पत्नी की चाकुओं से गोद कर हत्या कर दी। इस बीच सुनीता अपने कमरे से निकल आई। उसने हिम्मत दिखाते हुए तीनों बदमाशों का विरोध शुरू कर दिया। उसे यह नहीं पता था कि जिसे वह चाहती है, वही आज उसकी छाती में खंजर उतार देगा। बब्बू और सत्य नारायण ने लपककर सुनीता को दबोच लिया। तब भी उसने खजाने के बारे में नहीं बताया, तो बदमाशों ने उसकी हत्या कर दी। इसके बाद तीनों आरोपी खुद ही पूरे घर में सोने का घड़ा खोजने लगे। इस बीच अपने कमरे से निकलकर पूजा आ गई। उसने जयभान को पहचान लिया। वह उन तीनों का राज फाश कर सकती थी, इसलिए तीनों ने मिलकर पूजा को भी मौत के घाट उतार दिया। इसके बावजूद बदमाशों को दफीना हाथ नहीं लगा। घर में जो धन-दौलत थी, उसी को समेट कर वे भाग निकले। पुलिस ने इस मामले के दोनों अन्य आरोपियों को भ•ाी गिरफ्तार कर तीनों को जेल भ•ोज दिया है।
मुठभ•ोड़ में सरगना की मौत
गांव के लोगों का कहना है कि छत्रधारी साहू को अपने खेत में जो घड़ा मिला था, उसमें सोने-चांदी के लाखों रुपये के आभ•ाूषण थे। डाकू सरगना ने उसे पहचान बनाकर खेत में मिट्टी के नीचे गाड़ दिया था। बाद में दस्यु सरदार की एक दूसरे मामले के दौरान पुलिस मुठभ•ोड़ में मौत हो गई। खजाने के बारे में सरगना ने अपने साथियों को भी कुछ नहीं बताया था। चारों हत्याओं के बाद पुलिस ने छत्रधारी साहू के घर की बहुत छानबीन की, लेकिन उस खजाने का कुछ पता नहीं चला। आरोपियों को भी वह खजाना हाथ नहीं लगा।

- जितेंद्र बच्चन