बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

एक रात चार कत्ल

जुर्म की कोई उम्र नहीं होती। कानून के हाथ अपराधी की गर्दन तक एक न एक दिन पहुंच ही जाते हैं। जयभन ने खजाना हथियाने के लिए पहले उस परिवार की बहू को अपने प्रेमजाल में फंसाया, उसके बाद एक-एक कर चार लोगों को मौत के घाट उतार दिया। देह-दौलत से जुड़ी लोमहर्षक दास्तां!
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बेहद हसीन थी सुनीता। जो ही देखता, पहली नजर में उसका दीवाना हो जाता, लेकिन जयभन पर वह खुद ही फिदा हुई थी। आंखों के रास्ते दिल में उतर गई। जय•ाान ने हल्का-सा इशारा क्या किया, सुनीता उफनाई नदी की तरह सागर में समा गई। हुस्न को मजबूत जिस्म का सहारा मिल गया, लेकिन जयभान को सुनीता की देह से ज्यादा उसकी दौलत की ख्वाहिश थी। हर वक्त वह इसी उधेड़बुन में लगा रहता कि इस परिवार के पास इतनी दौलत कहां से आई? सुनीता के सास-ससुर खेती-बारी में लगे रहते। सुनीता का पति राजू होटल चलाता था। दिन-रात उसे अपने काम-धंधे से फुर्सत न मिलती, इसके बावजूद इतनी कमाई नहीं थी कि बीवी ऐश करे। वह पति सुख के लिए दिन-रात सुलगती रहती। उन्हीं दिनों एक रोज जयभान से नजर मिली और फिर दोनों के बीच अवैध संबंधों का सिलसिला चल पड़ा।
13 वर्षीय बेटी को भी नहीं छोड़ा
27 दिसंबर, 2012 की सुबह थाना सरई के प्रभारी निरीक्षक मलखान सिंह प्रांगण में बैठे धूप ले रहे थे, तभी भारसेड़ी गांव के राजू साहू ने आकर बताया कि उसके माता-पिता, पत्नी सुनीता और 13 वर्षीय बेटी पूजा की हत्या कर दी गई। एक ही परिवार के चार लोगों के कत्ल की खबर सुनते ही मलखान सिंह के होश उड़ गए। उन्होंने फौरन इस लोमहर्षक घटना की जानकारी पुलिस अधीक्षक (सिंगरौली) इरशाद अली, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक संजीव सिन्हा और एसडीओपी पीएल कुर्वे को दी। जो ही सुनता, दांतों तले अंगुली दबा लेता। पूरे सिंगरौली जिले में हड़कंप मच गया। पुलिस अधिकारियों की सायरन बजाती गाड़ियां राजू के घर पहुंचने लगीं। दरवाजे पर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा।
शक यकीन में बदला
अजीब भयानक वाकया था। मौके पर खून ही खून बिखरा था। सवाल पर सवाल उठने लगे- कौन है हत्यारा? क्यों किया चार-चार लोगों का कत्ल? प्रभारी निरीक्षक मलखान सिंह ने मौके पर मौजूद कुछ लोगों से पूछताछ की, तो पता चला कि जयभान सिंह का राजू के घर आना-जाना है। वह राजू के पड़ोसी राम आश्रय यादव का रिश्तेदार था और लामी गांव (सिंगरौली, मध्य प्रदेश) का रहने वाला था। सुनीता उसे बहुत चाहती थी। खुद राजू ने भी जयभान सिंह पर शक जाहिर किया था, लेकिन सवाल उठता था कि जयभान सुनीता को चाहता था, तो वह उसकी हत्या क्यों करेगा?
टीआई मलखान सिंह चारों शवों को पोस्टमार्टम के लिए भजवाकर जयभान के गांव लामी जा पहुंचे। वह घर में नहीं था। उसकी औरत ने भी नहीं बताया कि वह कहां है, तब तो मलखान का माथा ठनका। उनका शक यकीन में बदलने लगा। उन्होंने मुखबिरों को सचेत कर दिया। पुलिस की मेहनत रंग लाई, 5 फरवरी, 2013 की शाम एक मुखबिर ने सूचना दी कि जयभान इस समय घर में मौजूद है। टीआई मलखान सिंह आधी रात के वक्त मयफोर्स आरोपी के घर जा धमके। जयभान ने घर से भागने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने उसे दौड़ाकर दबोच लिया। पूछताछ में आरोपी ने अपना गुनाह कबूल कर लिया। पता चला कि इस सामूहिक नरसंहार का कारण छत्रधारी साहू को कुछ दिन पहले उसके खेत में मिले दफीना को लूटना था। घटना में जयभान के दो और साथी शामिल हैं।
फलित नहीं हुआ लूट का माल
दफीना यानी खजाना! गांव वालों के मुताबिक, पूरा इलाका डकैतों से •ारा पड़ा था। पुलिस से बचने के लिए वे अक्सर लूट का माल किसी पहचान के सहारे खेतों में दबा देते थे। बाद में कई बार डकैतों के मारे जाने, पकड़े जाने या फिर उनके जेल से छूटकर वापस आने तक वह धन किसी दूसरे के हाथ लग जाता है या खेत की पहचान का चिह्न ही उस समय तक नष्ट हो जाता। सारा धन जमीन में ही गड़ा रह जाता। ऐसा ही एक दफीना छत्रधारी साहू के हाथ लग गया, लेकिन गांव वालों की मान्यता है कि इस प्रकार की दौलत हर किसी को नहीं फलती। छत्रधारी साहू के परिवार के लिए भ खजाना काल बन गया। घर में अकूत दौलत आते ही सुनीता की चाल-ढाल बदल गई। वह पहले से अब कहीं ज्यादा सजने-संवरने लगी थी। उन्हीं दिनों सुनीता का संपर्क जयभान सिंह से हुआ। दोनों जल्द ही एक-दूसरे से प्रेम करने लगे। पति राजू पास के गांव में होटल चलाता है। सास-ससुर खेती-किसानी में लगे रहते। एक बेटी थी पूजा, सुनीता उसे सहेलियों के साथ खेलने भज देती। इसके बाद जयभान के साथ खुलकर वासना का खेल खेलती। सुनीता को क्या पता था कि उसके जिस्म की आग एक दिन पूरे घर को जलाकर राख कर देगी। जयभान को जल्द ही छत्रधारी साहू को मिले खजाने का पता चल गया। खुद सुनीता ने उसकी बाहों में मचलते हुए बताया था, ‘जानते हो, मेरे ससुर को अपने खेत में सोने का घड़ा मिला है।’ जयभान की आंखों में चमक आ गई। अब उसकी दसों अंगुलियां घी में थी। पहलू गर्म करने के लिए प्रेमिका और खर्च करने के लिए लाखों की दौलत।
साजिश में दो और लोग शामिल
जयभान अब किसी भी कीमत पर उस दफीना को हासिल करना चाहता था। इसके लिए सबसे पहले उसने सुनीता को उसके ससुर के खिलाफ •ाड़काते हुए उसे अपने भ•ारोसे में लिया, ‘छत्रधारी बहुत कंजूस है। वह तुम्हें उस खजाने में से एक पाई नहीं देगा। मेरा कहा मानो, तो छोड़ो उस खजाने को। तुम मेरे साथ निकल चलो। मैं तुम्हें अपनी रानी बनाकर रखूंगा।’ सुनीता तो पहले से उस पर मरती थी। उसने फौरन जयभान सिंह का प्रस्ताव मान लिया। अब महज जयभान को यह पता करना था कि सोने का घड़ा छत्रधारी ने कहां छिपा रखा है? सुनीता से पूछा तो उसने नहीं बताया। इस पर जयभान का पारा आसमान पर चढ़ गया। उसने खजाना लूटने की साजिश रचनी शुरू कर दी। योजना को अंजाम देने के लिए जयभान ने गांव के ही दो बदमाशों बब्बू सिंह और सत्य नारायण तिवारी से संपर्क किया। वे दोनों भी तैयार हो गए।
प्रेमिका के सीने में उतारा खंजर
घटना की रात तीनों आरोपी भरखेड़ी रेलवे स्टेशन के पास मिले, फिर छत्रधारी साहू के घर पहुंच गए। अंदर प्रवेश करते ही आंगन में सबसे पहले छत्रधारी से सामना हुआ। जयभान ने उससे खजाने के बारे में पूछा, तो उसने नहीं बताया। गुस्से में बदमाशों ने उसे मारना-पीटना शुरू कर दिया, तभी छत्रधारी की पत्नी आ गई। बचाव में उसने शोर मचाना शुरू कर दिया। आरोपियों ने पकड़े जाने के •ाय से छत्रधारी और उसकी पत्नी की चाकुओं से गोद कर हत्या कर दी। इस बीच सुनीता अपने कमरे से निकल आई। उसने हिम्मत दिखाते हुए तीनों बदमाशों का विरोध शुरू कर दिया। उसे यह नहीं पता था कि जिसे वह चाहती है, वही आज उसकी छाती में खंजर उतार देगा। बब्बू और सत्य नारायण ने लपककर सुनीता को दबोच लिया। तब भी उसने खजाने के बारे में नहीं बताया, तो बदमाशों ने उसकी हत्या कर दी। इसके बाद तीनों आरोपी खुद ही पूरे घर में सोने का घड़ा खोजने लगे। इस बीच अपने कमरे से निकलकर पूजा आ गई। उसने जयभान को पहचान लिया। वह उन तीनों का राज फाश कर सकती थी, इसलिए तीनों ने मिलकर पूजा को भी मौत के घाट उतार दिया। इसके बावजूद बदमाशों को दफीना हाथ नहीं लगा। घर में जो धन-दौलत थी, उसी को समेट कर वे भाग निकले। पुलिस ने इस मामले के दोनों अन्य आरोपियों को भ•ाी गिरफ्तार कर तीनों को जेल भ•ोज दिया है।
मुठभ•ोड़ में सरगना की मौत
गांव के लोगों का कहना है कि छत्रधारी साहू को अपने खेत में जो घड़ा मिला था, उसमें सोने-चांदी के लाखों रुपये के आभ•ाूषण थे। डाकू सरगना ने उसे पहचान बनाकर खेत में मिट्टी के नीचे गाड़ दिया था। बाद में दस्यु सरदार की एक दूसरे मामले के दौरान पुलिस मुठभ•ोड़ में मौत हो गई। खजाने के बारे में सरगना ने अपने साथियों को भी कुछ नहीं बताया था। चारों हत्याओं के बाद पुलिस ने छत्रधारी साहू के घर की बहुत छानबीन की, लेकिन उस खजाने का कुछ पता नहीं चला। आरोपियों को भी वह खजाना हाथ नहीं लगा।

- जितेंद्र बच्चन

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