गुरुवार, 25 जुलाई 2013

शोहरत और मुसीबत


सलमान खान आज करियर के सबसे सुनहरे दौर से गुज़र रहे हैं। मिट्टी को भी छू कर सोना बना देने वाले वो सलमान खान जिसने सौ करोड़ से ज्यादा की कमाई करने वाली फिल्मों की झड़ी-सी लगा दी है, मगर मुकद्दर के इस सिकंदर की तकदीर कभी एक जैसी नहीं रही। शोहरत और मुसीबत दोनों सलमान के साथ जुड़वां की तरह चिपके रहे। ऐसी ही एक मुसीबत है, जो पिछले 11 साल से सलमान का पीछा कर रही है। इन ग्यारह सालों में गवाह, सबूत, सुनवाई ने कई बार रुख पलटा। कभी सलमान को राहत मिलती नज़र आई, तो कभी मुसबीत और बढ़ती दिखी। इस दौरान सलमान और मुंबई पुलिस पर ये इल्जाम भी लगे कि वो केस और गवाह दोनों को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं और इन्हीं सबके बीच 24 को मुंबई सेशन कोर्ट ने सलमान की मौजूदगी में फैसले से पहले वो फैसला सुनाया कि सलमान की वो रात एक बार फिर जाग उठी।
22 सितंबर 2002 की रात, जूहू का एक पांच सितारा होटल
सलमान का कद तब भी उस 70 एमएम की स्क्रीन से कहीं ज्यादा बड़ा था, जिसके बड़े पर्दे के वो बड़े सितारे थे पर बड़ा सितारा होने के साथ-साथ बॉलीवुड के बड़े बिगड़ैल का भी खिताब तब तक वो हासिल कर चुके थे। 'हम दिल दे चुके सनम' की सुपरहिट कामयाबी और मोहब्बत और नफरत के बीच ऐश्वर्या राय के नाम तड़प-तड़प के इस दिल से आह निकलती रही। अलाप के दरम्यान 22 सितंबर की रात सलमान जूहू के एक फाइव स्टार होटल में पार्टी की जान बने हुए थे। देर रात तक पार्टी उनका शगल था। रात तीन बजे के बाद सलमान पार्टी से बाहर निकलते है। नशे में पूरी तरह चूर। घर जाने के लिए उनके पास उस रात सफेद रंग की टोयटा लैंड क्रूजर गाड़ी थी। गाड़ी चलाने के लिए साथ में बॉडीगार्ड कम ड्राइवर भी, मगर नशे में चूर होने के बाद भी सलमान खुद ड्राइविंग सीट पर जा बैठे। बॉडीगर्ड मना करता रहा पर शायद तब भी सलमान एक बार जो कमिटमेंट कर लेते थे, तो फिर खुद की भी नहीं सुनते थे।
अमेरिकन एक्सप्रेस बेकरी, हिल रोड, बांद्रा
नशे में चूर सलमान की गाड़ी रात के अंधेरे में ठीक तीन बज कर चालीस मिनट पर बांद्रा के हिल रोड पर पहुंचती है। गाड़ी की रफ्तार बेहद तेज थी और ड्राइवर नशे में। हिल रोड पर अमेरिकन एक्सप्रेस बेकरी से कुछ पहले ही अचानक ड्राइवर गाड़ी का संतुलन खो बैठता है और पल भर में गाड़ी बाईं तरफ से सड़क छोड़कर फुटपाथ पर दौड़ने लगती है। बदनसीबी से उस वक्त उसी फुटपाथ पर अमेरिकन एक्सप्रेस बेकरी में काम करने वाले पांच कर्मचारी सो रहे थे। तेज रफ्तार लैंड क्रूजर पांचों को रौदते हुए आगे निकलती है और फिर दुकान के शटर से टकरा कर गाड़ी रुक जाती है। हादसे में एक मज़दूर करीब-करीब मौके पर ही दम तोड़ देता है, जबकि चार मजदूर बुरी तरह से जख्मी हो जाते हैं। चारों में से ज्यादातर के पैर को गाड़ी ने रौंद डाला था।
हादसे के बाद सलमान खान अचानक घबरा जाते हैं। वो ड्राइविंगं सीट से नीचे उतरते हैं, तब तक गाड़ी के फुटपाथ से टकराने और घायलों की चीख-पुकार सुनकर आसपास सो रहे बाकी लोग भी जाग जात हैं और मौके पर पहुंचते हैं। लोग गाड़ी के नीचे फंसे लोगों को बाहर निकलाते हैं और उन्हें अस्पताल ले जाया जाता है। सलमान गाड़ी मौके पर ही छोड़कर तब तक गायब हो चो चुके थे पर 70 एमएम की स्क्रीन से भी जिसका कद बडा हो, उसकी एक झलक उसे पहचानने के लिए काफी होती है। भागने से पहले सलमान को सब पहचान चुके थे। सुबह होते-होते पूरी मुंबई में खबर फैल चुकी थी। सलमान खान के दामन पर एक और दाग लग चुका था, लेकिन हादसे के बाद से खुद सलमान गायब थे और गाड़ी का नंबर और चश्मदीद सलमान के खिलाफ चुगली खा चुके थे, लिहाज़ा सुबह-सुबह पुलिस सलमान के घर पहुंचती है। पर सलमान घर पर नहीं थे।
गैर इरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज
सलमान खान कानूनी खेल के लिए कुछ वक्त चाहते थे। इसीलिए वो गायब थे पर उन्हें पता था कि ज्यादा देर भागने से मुश्किलें बढ़ सकती हैं। जमानत मिलने में दिक्कत आएगी, लिहाजा हादसे के करीब आठ घंटे बाद वो खुद सामने आते हैं और पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर लेती है। इसके बाद उन्हें जेजे अस्पातल ले जाया जाता है, जहां जांच के बाद ये साबित हो जाता है कि उन्होंने अल्कोहल लिया था। सलमान के खिलाफ पुलिस लापरवाही और खतरनाक ढंग से गाड़ी चलाने का मामला तो दर्ज कर लेती है, लेकिन गिरफ्तारी के कुछ देर बाद ही उन्हें महज 950 रुपए के जुर्माने के साथ जमानत पर रिहा कर देती है। सलमान की इतनी आसानी रिहाई का कुछ सामाजिक संगठन विरेध करते हैं और पांच अक्तूबर 2002 को अदालत पहुंच जाते हैं। वो अदालत में सलमान के खिलाफ एक जनहित याचिका दाखिल कर सलमान पर गैर इरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज करने की मांग करते हैं। अदालत न सिर्फ याचिका मंजूर कर लेती है बल्कि सात अक्तूबर 2002 को अदालती आदेश पर गैर इरादन हत्या के जुर्म में सलमान को गिरफ्तार कर लिया जाता है। सलमान जेल चले जाते हैं। पूरे 18 दिन जेल में रहते हैं। इस दौरान चार बार जमानत की अर्जी देते हैं, मगर चारों बार जमानत अर्जी खारिज हो जाती है, फिर 18 दिन बाद 24 अक्तूबर 2002 को सलमान को जमानत मिलती है और रिहा हो जाते हैं।
बॉडीगार्ड ने दिया झटका
मामला कोर्ट में चलता रहता है। इस दौरान केस में कई मोड़ आते हैं। सबसे पहले सलमान की तरफ से कहा जाता है कि उस रात वो गाड़ी चला ही नहीं रहे थे, बल्कि गाड़ी कोई और चला रहा था, फिर हादसे के चार साल बाद एक रोज अचानक केस का एक अहम गवाह अब्दुल्ला रऊफ शेख भी अपनी गवाही से पलट जाता है। अब्दुल्ला मामला का चश्मदीद था और हादसे में घायल हुआ था। शुरू में उसने पुलिस को कहा था कि उसने हादसे के बाद सलमान को गाड़ी की ड्राइविंग सीट से नीचे उतरता देखा था, मगर चार साल बाद 2006 में वो अदालत को बताता है कि उसने सलमान को मौके पर देखा ही नहीं था, लेकिन इस गवाही से सलमान को राहत मिलती उससे पहले ही खुद सलमान के पूर्व बॉडीगार्ड रवींद्र पाटिल ने सलमान को झटका दे दिया। रवींद्र पाटिल हादसे वाली रात सलमान के साथ उसी गाड़ी में मौजूद था। उसने अदालत को बताया कि उस रात सलमान नशे में चूर थे और उसके मना करने के बाद भी वही गाड़ी चला रहे थे, जबकि हादसे के शिकार बाकी कुछ गवाह भी गवाही पर कायम थे।
गुनाह साबित होने पर दस साल की जेल
अलग-अलग गवाहों और बयानों में उलझते-उलझते केस को 11 साल बीत गए और अब आखिरकार अदालत ने लापरवाही से गाड़ी चलाने की बजाए गैर इरादतन हत्या के तहत सलमान के खिलाफ मुकदमा चलाने का फैसला सुना दिया है। सलमान पर आईपीसी की धारा 304(2) के तहत गैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया गया, वहीं धारा 279 के तहत नशे में ड्राइविंग और लापरवाही से गाड़ी चलाने का आरोप तय हुआ। जबकि धारा 337 और 338 के तहत गंभीर चोट पहुंचाने का आरोप लगा। इसके अलावा धारा 427 के तहत भी आरोप लगाए गए। यानी आगे की डगर अब मुश्किल हो गई है। गुनाह साबित होने पर सलमान दस साल तक के लिए जेल जा सकते हैं। हालांकि, सलमान खान को इतनी राहत जरूर मिली कि अब उन्हें हर सुनवाई पर कोर्ट का चक्कर नहीं लगाना पड़ेगा, लेकिन अदालत ने ये भी साफ कर दिया है कि आगे जब भी जरूरत होगी, सलमान को बगैर किसी हील-हवाले के अदालत में आना होगा।

सोमवार, 22 जुलाई 2013

 तीन गोली, एक मौत!



गुड़गांव के चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट की पत्नी की हत्या का रहस्य गहराता जा रहा है। कौन है गीतांजलि का कातिल? जज साहब या फिर कोई और? पुलिस तलाश रही है सुराग। वहीं, गीतांजलि के घर वालों ने जज और उनके परिजनों पर ही कत्ल का इल्जाम लगाया है और वजह बताई है बेटे की चाहत! क्या है गीतांजलि मर्डर मिस्ट्री का सच?


गुड़गांव के सीजेएम रवनीत गर्ग की पत्नी गीतांजलि की मौत की गुत्थी और उलझती जा रही है। मूल रु प से अंबाला की रहने वाली गीतांजलि ने बीकॉम कर रखा था और बेहद खुशमिजाज दिल की थी। करीब छह साल पहले 2007 में जज रवनीत गर्ग के साथ उसकी शादी हुई थी। उसी गीतांजलि की 17 जुलाई, 2013 को गुड़गांव पुलिस लाइंस के पास एक पार्क में रक्तरंजित लाश मिली, तो शहर में सनसनी फैल गई। पुलिस के तमाम आला अधिकारी मौके पर आ पहुंचे। शव के पास ही सीजेएम गर्ग का लाइसेंसी रिवॉल्वर पड़ा था। प्रथम दृष्टि में मामला आत्महत्या का लग रहा था। खुद जज साहब का भी यही नजरिया था, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आते ही सभी हैरान रह गए। गीतांजलि को एक नहीं,  तीन गोलियां लगी थीं और सिर पर भी किसी डंडे से वार किया गया था। सवाल उठता है, आत्महत्या करने वाला खुद को  तीन- तीन गोलियां कैसे मार सकता है? उसके सिर पर डंडा किसने मारा? जितने लोग, उतनी बात! जज साहब का भी बयान बदल गया- गीतांजलि की हत्या दो लोग कर सकते हैं, लेकिन वे दोनों कौन हैं? जज साहब के शक का आधार क्या है? इन तमाम बातों का खुलासा उन्होंने नहीं किया। रही बात पुलिस की, तो वह अब भी जज साहब को बुलाकर पूछताछ करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। अपराधी को सिखचों के पीछे पहुंचाने के लिए गीतांजलि के पिता और उनके अन्य नाते-रिश्तेदारों को ही आगे आना पड़ा।
20 जुलाई को गीतांजलि के भाई प्रदीप अग्रवाल, जीजा राजीव बंसल, अमित जिंदल और मामा राजकुमार अग्रवाल थाना सिविल लाइंस पहुंचे। शहर के तमाम लोग भी उनके साथ थे। सभी ने एकसाथ जज के खिलाफ नारे लगाते हुए हंगामा करना शुरू कर दिया- सीजेएम रवनीत बीवी का कातिल है! उसे गिरफ्तार करो! थाना प्रभारी इंस्पेक्टर नरेश कुमार के हाथ-पैर फूल गए। उन्होंने तत्काल मामले की सूचना पुलिस कमिश्नर आलोक मित्तल को दी। मित्तल ने गीतांजलि के भाई प्रदीप अग्रवाल से बात की। उसने बताया कि गीतांजलि की दो बेटियां हैं। एक पांच साल की और दूसरी दो साल की। रवनीत को बेटा चाहिए था। वह पत्नी पर लगातार तीसरे बच्चे के लिए दबाव डाल रहा था। जब नहीं मानी, तो उसकी हत्या कर दी गई। प्रदीप गीतांजलि की मौत के बाद उसकी बेटियों से मिलने उसके घर भी गया था, लेकिन रवनीत के घरवालों ने बच्चियों से मिलने नहीं दिया। मुलाकात हो जाती तो गीतांजलि की हत्या किसने और क्यों की, इसका शायद खुलासा हो जाता।
कमिश्नर आलोक मित्तल ने प्रदीप अग्रवाल की तहरीर के आधार पर सीजेएम रवनीत गर्ग और उसके माता-पिता केखिलाफ यह मामला 501/13 दर्ज करवा दिया। तफ्तीश सब इंस्पेक्टर राम अवतार को सौंप दी, लेकिन आरोपियों को गिरफ्तार करने को कौन कहे, पुलिस उनसे पूछताछ तक नहीं कर रही थी। पीड़ित परिवार समझ गया कि पुलिस दबाव में है। प्रदीप अग्रवाल पुलिस कमिश्नर आलोक मित्तल से दोबारा मिले। मित्तल ने मामले की जांच के लिए एसीपी अशोक बख्शी के नेतृत्व में एक एसआईटी टीम का गठन कर दिया। टीम में एसीपी पंखुड़ी कुमार, इंस्पेक्टर नरेश कुमार, सब इंस्पेक्टर जयपाल और सरोज बाला शामिल हैं। थाना सिविल लाइन पुलिस टीम का पूरा सहयोग कर रही है। मौके से मिले रिवाल्वर व कारतूस को सील कर पुलिस ने बैलेस्टिक एक्सपर्ट के सपुर्द कर दिया और गीतांजलि के हाथ से लिए गए गन पाउडर के सेंपल को जांच के लिए करनाल स्थित मधुबन लैब भेज दिया।
चश्मदीदों के मुताबिक, 17 जुलाई की शाम करीब चार बजे गीतांजलि को पड़ोसियों ने आखिरी बार देखा था। वह दोनों बेटियों को घर में छोड़कर बाहर निकली थी। सीजेएम साहब तब कोर्ट में थे। शाम करीब पांच बजे के बाद पार्क में टहलने आए एक चश्मदीद ने झाड़ी के करीब गीतांजलि को लहूलुहान पड़ी देखकर फौरन पुलिस को खबर दी। पुलिस लाइंस के अंदर ही कत्ल की खबर सुनकर खुद पुलिस वाले हैरान रह गए। चौंकाने वाली बात यह भी है कि कुरु क्षेत्र विश्वद्यिालय की एमबीए टॉपर गीतांजलि का गुड़गांव की जिस पुलिस लाइंस में कत्ल हुआ, वह शहर की सबसे ज्यादा महफूज जगह है। पुलिस लाइंस के अंदर एक तरफ परेड ग्राउंड है और दूसरी तरफ पुलिस और सरकारी अफसरों के मकान। गुड़गांव पुलिस कमिश्नर आलोक मित्तल भी यहीं रहते हैं पर कमाल है,  तीन-तीन गोलियां चलने के बाद भी किसी को फायर की आवाज सुनाई नहीं दी! लिहाजा पुलिस इस संभावना से भी इंकार नहीं कर रही कि कत्ल कहीं और हुआ हो और लाश बाद में लाकर यहां फेंक दी गई!
गीतांजलि के घर वालों का कहना है कि सीजेएम और उनके घरवाले कुछ दिनों से गीतांजलि को परेशान कर रहे थे। मौत से कुछ दिन पहले अपनी बहन से गीतांजलि ने तनाव में रहने की बात कही थी, लेकिन इस मामले में जज की ओर से अभी कोई बयान नहीं आया है। पुलिस बराबर मामले की निष्पक्ष जांच करने का भरोसा देती रही, लेकिन परजिनों को भरोसा नहीं है। उन्होंने मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा से मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग की है। इसके बाद इस मामले की जांच कर रही एसआईटी टीम 21 जुलाई को एक बार फिर मौके पर गई और फॉरेंसिक जांच के लिए जरूरी वस्तुएं जुटाने में लगी रही। साथ ही देर रात तक कमिश्नर ऑफिस में इस मामले को लेकर पुलिस अधिकारियों की बैठक चलती रही। हाई प्रोफाइल मामला होने के कारण पुलिस फूंक-फूंककर कदम रख रही है।
गीतांजलि के कजिन रमन गुप्ता के मुताबिक, गीतांजलि की दोनों बेटियां गुड्डू और पूनम मौत के बारे में कुछ न कुछ राज की बात जानती हैं। उनको अपने पिता और मां के रिश्ते के बारे में अनसुनी बातों का पता है। इसी कारण उन्हें दोनों बेटियों से मिलने नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया है कि गीतांजलि की हत्या में उसकी ससुरालवालों की मिलीभगत है, तभी तो गीतांजलि के अंतिम संस्कार के मौके पर ससुराल पक्ष की ओर से कुछ ही लोग आए थे। उनके मुताबिक सीजेएम रवनीत गर्ग और गीतांजलि की छह साल पहले हुई शादी के बाद घर में छोटे-मोटे झगड़े हुए थे। गीतांजलि के शरीर पर कई जगहों पर चोट के निशान भी पाए गए हैं। गीतांजलि के पिता ओम प्रकाश और रवनीत के पिता केके गर्ग 20 जुलाई की सुबह मनीमाजरा श्मशान घाट में फूल चुनने आए थे। ओम प्रकाश ने गर्ग से दोनों पोतियों से मिलने की इच्छा जताई। गर्ग ने कहा कि हरिद्वार से लौट आऊं, फिर बात करेंगे। ओम प्रकाश ने कहा कि दोनों बेटियों को कुछ न कुछ पता है, तभी उनसे मिलने नहीं दिया जा रहा है।
ओम प्रकाश का कहना है कि गीतांजलि के शव के पास .32 बोर का रिवाल्वर पड़ा था, जो रवनीत गर्ग का लाइसेंसी रिवॉल्वर है। पुलिस इसे पहले खुदकुशी का केस मान रही थी। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आने के बाद मामला रहस्मय हो गया। पुलिस की थ्योरी पर सवाल खड़े हो गए। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि गीतांजलि के सीने, जांघ और गले के पास ठोढ़ी में गोली के जख्म मिले हैं। सीने और ठोढ़ी पर लगी गोली ने ही गीतांजलि की जान ले ली। उसके सिर पर पीछे की तरफ चोट के निशान भी हैं। डॉक्टरों के मुताबिक हो सकता है कि उस पर पीछे से वार किया गया हो। कुल मिलाकर गीतांजलि के कत्ल के बाद से ही गीतांजलि के घरवाले सीजेएम और उनके परिवार पर तमाम इल्जाम लगा रहे हैं, मगर सीजेएम के परिजनों ने सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। यह अलग बात है कि गीतांजलि मर्डर मिस्ट्री कई अनसुलझे सवालों में लिपटी हुई है। मामले की गुत्थी सुलझाने के लिए पुलिस कई कोणों से जांच कर रही है।

पुलिस कमिश्नर (गुड़गांव) आलोक मित्तल के मुताबिक, 21 जुलाई को पुलिस की एसआईटी टीम ने सीजेएम रवनीत गर्ग से गुड़गांव स्थित सिविल लाइन के उनके सरकारी आवास कोठी नंबर 10 में करीब चार घंटे तक उनसे पूछताछ की। उस समय गीतांजलि के परिजन भी मौजूद थे और गर्ग के कई रिश्तेदार भी।
सवाले थे- कत्ल के वक्त यानी शाम पांच से सात बजे के बीच जज साहब कहां और किसके साथ थे? इस दौरान उन्होंने फोन पर किससे-किससे बातें कीं? वह अपना रिवाल्वर कहां रखते थे? क्या गीतांजलि रोज रिवाल्वर लेकर टहलने जाती थी? बेटियों के होने से क्या वे नाखुश थे? क्या उन्होंने कभी गीतांजलि से बेटे की इच्छा जाहिर की थी? क्या इस बात को लेकर उन दोनों (पति-पत्नी) के बीच अक्सर अनबन बनी रहती थी? वे दो लोग कौन हैं, जिन पर जज साहब ने कत्ल का शक जाहिर किया है? उनकी गीतांजलि से क्या दुश्मनी हो सकती है? क्या गीतांजिल हर रोज अपना मोबाइल लेकर नहीं जाती थी? कत्ल के दिन उसका मोबाइल कहां था? रिवाल्वर हमेशा लोडेड रखते थे या फिर कारतूस घर में अलग रखते थे? क्या गीतांजलि ने कभी किसी से दुश्मनी का जिक्र  किया था? अदालत का कोई ऐसा फैसला, जिसके चलते रंजिशन किसी ने उनकी पत्नी की हत्या कर दी?
कुल मिलाकर अपनी कविताओं के जरिए नारी के हक और वजूद का सवाल उठाने वाली गीतांजलि की मौत सवालों के कफन में लिपटी है। उसकी हत्या पूरे परिवार के लिए जिंदगी भर का नासूर बन चुकी है। पुलिस गीतांजलि और रवनीत गर्ग दोनों के फोन कॉल्स डिटेल की जांच कर रही है। मुमिकन है कि फोन कॉल में ही छिपा हो इस वारदात के कातिल का राज। जबकि, गीतांजलि के परिवारवाले मान रहे हैं कि गीतांजलि की मौत के पीछे जज रवनीत का हाथ है, लेकिन जज का परिवार सिरे से इन आरोपों को खारिज कर रहा है। अब कत्ल का ये मामला थाने की दहलीज से निकलकर कोर्ट की चौखट पर जाने वाला है। इंसाफ की देवी तय करेंगी कि आधी आबादी को ताकतवर बनाने के दौर में इस गीतांजलि का कत्ल किसने किया और क्यों?
-जितेन्द्र बच्चन

बुधवार, 10 जुलाई 2013

फंदे में फंसा
करोड़पति कंपाउंडर












एक अदना-सा कंपाउंडर और करोड़ों की मिल्कियत! अपना अस्पताल! अजमेर से पाली और उदयपुर से जयपुर तक फैला है इसके जमीन का जाल! दर्जनों नर्सिंग कॉलेजों में है हिस्सेदारी। पूरे राज्य में चल रहा था करप्शन का नेटवर्क। कौन है यह कंपाउंडर? कैसे बना 200 करोड़ का मालिक? और कौन-कौन शामिल हैं उसके गिरोह में? 


                                                                   
एंटी करप्शन ब्यूरो ने सवाई मान सिंह अस्पताल जयपुर के एक कंपाउंडर महेश चंद्र शर्मा के घर छापा क्या मारा, जैसे कुबेर का खजाना खुल गया। अफसरों की आंखें फटी की फटी रह गर्इं। नोट गिनते-गिनते हाथ थक गए और प्रॉपर्टी इतनी कि कोई धन्ना सेठ झक मारे। अपना अस्पताल, कई शहरों में रिसार्ट, दर्जनों नर्सिंग कॉलेजों में हिस्सेदारी और राजस्थान में करोड़ों का फार्महाउस। देश के स्वास्थ्य मंत्रालय ने शर्मा को सलाहकार बना रखा था। इंडियन नर्सिंग काउंसिल (भारतीय नर्सिंग परिषद) का सदस्य भी था वह। इसी ओहदे और रुतबे की आंड़ में यह आरोपी नर्सिंग कॉलेजों से लाखों रुपये की उगाही करता था। दो महीने में 55 नर्सिंग कॉलेजों की मान्यता को लेकर नोटिस दे चुका था। सीट बढ़वाने और उनकी गड़बड़ियां दबा देने के नाम पर 15 से 25 लाख रु पये तक लेता था। जो न देते, उनके यहां निरीक्षण के दौरान कमी निकालकर मान्यता रद करने की धमकी देता। 29 जून की रात भी अग्रवाल फार्म स्थित आरएजी अस्पताल में शर्मा एक नर्सिंग कॉलेज का आईएनसी की वेबसाइट पर नाम जुड़वाने और कॉलेज में दो कोर्स बढ़ाने के नाम पर पांच लाख रुपये की रिश्वत ले रहा था, तभी भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की टीम ने उसे रंगे हाथों दबोच लिया। उसके साथ उसके निजी सहयोगी राजेंद्र सैनी को भी गिरफ्तार किया गया है। तलाशी में ब्यूरो को महेश शर्मा और उसके परिवार के नाम से 200 करोड़ से अधिक की संपत्ति के दस्तावेज मिले हैं। ऐसे में सवाल उठता है, कौन है महेश चंद्र शर्मा? वह कंपाउंडर से दो सौ करोड़ का मालिक कैसे बन गया? क्या उसके गुनाह में नेता और मंत्री भी शामिल हैं? किन-किन अधिकारियों से इसकी साठ-गांठ है?
महेश चंद्र शर्मा (52) जयपुर के विद्युतनगर का रहने वाला है। यहां उसका 800 स्क्वेयर यार्ड में बंगला है। खुद शर्मा सवाई मान सिंह अस्पताल में सेकंड ग्रेड कंपाउंडर था। 1984-85 में उसे यह नौकरी मिली थी, लेकिन नौकरी कम, असर-रसूखदारों वालों से संपर्क बनाने में ज्यादा मशगूल रहता। एक झटके में लाखों-करोड़ों बटोर लेने का सपना था। 2003-2004 में आखिर शर्मा का फरेबी हुनर काम कर गया। एक नर्सिंग कॉलेज में असिस्टेंट लेक्चरर बन गया। तनख्वाह करीब 50 हजार हो गई। इसके बाद शर्मा नर्सिंग कॉलेजों के निरीक्षण आदि कार्यों से जुड़ गया। इसी दौरान उसकी मुलाकात इंडियन नर्सिंग काउंसिल के पदाधिकारियों से हुई। उन पर ऐसा जादू चलाया कि 2007 में इंडियन नर्सिंग काउंसिल ने उसे राजस्थान का आब्जर्वर बना दिया। इसके बाद 2008 में अच्छे काम के लिए शर्मा को राष्ट्रपति पुरस्कार से नवाजा गया। हौंसले और बुलंद हो गए। 2011 तक आब्जर्वर पद पर बना रहा। फरवरी 2012 में महेश शर्मा ने वीआरएस के लिए आवेदन किया। नहीं मिला, तो उसने नौकरी पर आना ही बंद कर दिया। अब शर्मा राजस्थान के सभी नर्सिंग कॉलेजों को आईएनसी से एनओसी दिलाने का ठेका लेने लगा। अन्य काम भी वही करवाता। बदले में लाखों रुपये लेता। देखते ही देखते शर्मा की दलाली का धंधा चल निकला। दौलत का अंबार लगाता रहा। बाद में कानूनी शिकंजा कसने लगा, तो 2011 में शर्मा स्टेट आब्जर्वर के पद से हट गया, लेकिन उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। अलबत्ता शर्मा को स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपना सलाहकार जरूर बना दिया।
दरअसल, कॉलेज संचालक संस्था का गठन कर चिकित्सा विभाग ग्रुप-3 कार्यालय में विभिन्न कोर्स के लिए आवेदन करते थे। संस्था की फाइल राजस्थान नर्सिंग काउंसिल (आरएनसी) को जांच-पड़ताल के लिए भेजी जाती थी। महेश शर्मा संबंधित संस्था से संपर्क कर उन्हें एनओसी दिलाने का ठेका ले लेता। शर्मा ही आरएनसी के अधिकारियों की मिलीभगत से संस्थाओं के यहां निरीक्षण करने जाता और सारी रिपोर्ट संस्था के पक्ष में लगा देता। इन संस्थाओं में कई नेताओं और उच्च अधिकारियों के नर्सिंग कॉलेज भी शामिल हैं। शर्मा सारे नियम-कानून ताक पर रखकर संस्था की फाइल का सत्यापन कर देता और निरीक्षक फाइल को आरएनसी को सौंप देते। इसके बाद आरएनसी के अधिकारी संस्था की फाइल ग्रुप-3 दफ्तर भेज देते। वहां से कॉलेजों को कोर्स चलाने के लिए एनओसी जारी कर दी जाती। इसके बाद संस्था को आईएनसी से भी विभिन्न कोर्स के लिए एनओसी लेनी पड़ती थी। इसके लिए काउंसिल ने शर्मा को स्टेट आब्जर्वर बना रखा था। शर्मा की रिपोर्ट के आधार पर एनओसी जारी कर दी जाती थी, लेकिन जिस संस्था को कुछ दिन तक एनओसी नहीं मिलती थी, वह महेश शर्मा से संपर्क करती थी। शर्मा उनसे रिश्वत की रकम लेकर संबंधित संस्था को एनओसी देने के लिए आईएनसी को रिपोर्ट भेज देता। तत्पश्चात आईएनसी चेयरमैन उस संस्था को भी एनओसी जारी कर देते।
महेश शर्मा का यह गोरखधंधा कई साल से चल रहा था। बड़े अफसरों और सत्ता में बैठे नेताओं-मंत्रियों तक से उसकी साठगांठ थी। इसीलिए वह अभी तक बचता रहा। एसीबी के अधिकारियों की मानें, तो शर्मा की गिरफ्तारी के समय भी कुछ नेताओं के फोन आए थे। इनमें से कईयों के नर्सिंग कॉलेज चल रहे हैं। उनकी मान्यता से लेकर एनओसी रिन्यू कराने तक का सारा काम महेश शर्मा ही देखता रहा है। लेकिन एक न एक दिन तो इस मामले का पर्दाफाश होना ही था। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) की महानिरीक्षक स्मिता श्रीवास्तव के अनुसार, वीटी रोड निवासी डॉ. आरपी सैनी का जयपुर के अग्रवाल फार्म स्थित ज्ञानाराम जमनालाल नर्सिंग कॉलेज है। सैनी अपने कॉलेज का नाम आईएनसी की वेबसाइट पर जुड़वाना चाहते थे और दो कोर्स भी शुरू करवाने का इरादा था। इसके लिए महेश शर्मा उनसे 5 लाख रुपये मांग रहा था। डॉ. सैनी ने एसीबी से संपर्क किया। उनकी शिकायत थी कि 2008 से अब तक शर्मा उनसे एक करोड़ रुपये ले चुका है। फरवरी में वेबसाइट पर नाम जुड़वाया था, लेकिन मई में हटवा दिया। अब कॉलेज का नाम फिर से जुड़वाने के लिए पांच लाख रुपये की मांग कर रहा है। स्मिता श्रीवास्तव को यकीन नहीं आ रहा था। उन्होंने मामले की तहकीकात करने के लिए एक टीम बना दी।
योजना के अनुसार, डॉ. सैनी ने महेश चंद्र के मोबाइल पर फोन कर कहा, ‘हमारे पास पांच लाख रुपये की व्यवस्था हो गई है। आप शनिवार की शाम किसी भी समय आकर ले सकते हैं।’ शर्मा के होंठों पर हल्की-सी मुस्कान तैर गई- तुम्हें तो देना ही था, बेटा! नहीं दोगे तो जाओगे कहां? और 29 जून की रात वह अग्रवाल फार्म स्थित आरएजी अस्पताल पहुंच गया, जहां पांच लाख रुपये लेते समय एसीबी टीम ने उसे रंगे हाथ दबोच लिया। लेकिन अभी इस मामले के कुछ अन्य आरोपियों और तमाम बरामदगी करनी बाकी थी, इसलिए 30 जून की सुबह महेश शर्मा को एसीबी ने अदालत में पेश कर पांच दिन की रिमांड पर ले लिया। उसी रोज महानिरीक्षक स्मिता श्रीवास्तव के आदेश पर इस मामले के तहत राज्य के 10 नर्सिंग कॉलेजों में भी छापे मारे गए। उदयपुर के कांग्रेस नेता पंकज शर्मा के नर्सिंग कॉलेज को ब्यूरो ने सीज कर दिया है।
महेश शर्मा ने तीन-चार महीने पहले अग्रवाल फार्म शिप्रापथ स्थित आरएजी अस्पताल को 22 करोड़ रुपये में खरीदा था। इसके अलावा जयपुर, अजमेर, पाली, उदयपुर सहित अन्य जगहों पर 25 नर्सिंग कॉलेजो में शर्मा की हिस्सेदारी है और छह नर्सिंग कॉलेज उसके खुद के हैं। इनमें से कई कॉलेजों में शर्मा की पत्नी भी हिस्सेदार है। 2 जुलाई को शर्मा के तीन बैंक लॉकरों को एसीबी ने खंगाला, तो करीब 40 लाख रुपये की ज्वेलरी मिली। इनमें से एसबीबीजे बैंक की सी स्कीम स्थित शाखा के लॉकर से टीम को करीब 15 लाख रुपये की ज्वेलरी मिली है। बाकी दो लॉकर आईसीआईसीआई बैंक की शाखाओं के हैं। एसीबी अधिकारियों के मुताबिक, शर्मा के कुल 12 बैंक खातों की जानकारी अब तक सामने आ चुकी है। सभी की जांच की जा रही है। वहीं, जो दस्तावेज बरामद हुए हैं, उनसे करोड़ों की संपत्ति का पता चला है। इनमें कई कॉलोनियों में प्लॉट, फ्लैट और पेट्रोल पंप शामिल हैं। डीआईजी पुरोहित के अनुसार, प्रदेश के जिन नर्सिंग कॉलेजों की रिपोर्ट निगेटिव थी, उन्हें भी काउंसिल ने एनओसी जारी कर दी। कोटा के दो और दौसा के एक कॉलेज का तीन बार निरीक्षण किया गया। हर बार टीम ने यहां की रिपोर्ट निगेटिव ही बताई। इसके बावजूद कॉलेजों को एनओसी जारी हुई है। जयपुर स्थित एक कॉलेज को बिना प्रोफेसर की नियुक्ति किए ही एमएससी नर्सिंग की मान्यता प्रदान कर दी गई। जोधपुर में दो कमरे में पूरा कॉलेज चल रहा था, तब भी उसे काउंसिल ने एनओसी दे रखी है। इसके अलावा शर्मा से एक डायरी और कुछ कागजात बरामद हुए हैं, जिनमें कई नेताओं, मंत्रियों और अधिकारियों के नाम शामिल हैं।
इस गिरफ्तारी से इंडियन नर्सिंग काउंसिल के अंदर करप्शन का बड़ा रैकेट भी उजागर हुआ है। एसीबी के अधिकारी अगर दबाव में नहीं आए, तो कई सफेदपोश बेनकाब हो सकते हैं। अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक अजीत सिंह का कहना है कि महेश के भारतीय नर्सिंग परिषद के अध्यक्ष टी दिलीप कुमार से नजदीकी रिश्ते होने का पता चला है। मामले की जांच डीआइजी जीएन पुरोहित कर रहे हैं। दरअसल, महेश भारतीय नर्सिंग परिषद का अध्यक्ष बनना चाहता था। इसके लिए वह लंबे समय से प्रयासरत रहा। पिछले दिनों शिमला में हुई परिषद की बैठक में शर्मा ने एक करोड़ रुपये खर्च किए, तब भी नहीं बना। दिलीप कुमार अध्यक्ष बन गए। शर्मा अब उनकी दलाली कर रहा था। ऐसे में दिलीप भी टीम के हत्थे चढ़ सकते हैं।

कहां-कहां कर रखे हैं निवेश
मानसरोवर में आरएजी हॉस्पिटल के अलावा महेश चंद शर्मा ने अपने पैसों को कई जगह निवेश कर रखा है। टोंक रोड पर एक नामी मोटर्स में साझेदारी है। कॉलोनाइजर व बिल्डर्स के साथ करोड़ों रु पये निवेश कर रखे हैं। जयपुर में इस्कॉन रोड स्थित गणेशनगर व पटेलनगर में कई प्लाट हैं और आगरा रोड पर प्रॉपर्टी कारोबारी राजेन्द्र सैनी के साझेदारी में पेट्रोल पंप व एक टाउनशिप भी है। कई बीघा जमीन भी ले रखी है। साथ ही प्रदेश के करीब 10 कॉलेजों में महेश की 50 फीसदी से अधिक की साझेदारी है या उसके खुद के हैं। इनमें से सूर्यांश स्कूल ऑफ नर्सिंग जयपुर, साकेत कॉलेज ऑफ नर्सिंग, पद्मश्री स्कूल ऑफ नर्सिंग, पूजा स्कूल ऑफ नर्सिंग, स्टार कॉलेज ऑफ नर्सिंग, आदि कॉलेज ऑफ नर्सिंग, मेवाड़ कॉलेज ऑफ नर्सिंग, रामी देवी कॉलेज ऑफ नर्सिंग, इरशाद स्कूल ऑफ नर्सिंग, पिंकसिटी स्कूल एंड कॉलेज आफ नर्सिंग शामिल हैं। इसके अलावा प्रदेश की करीब 25 कॉलेज ऐसे हैं, जिनमें दस से लेकर 30 फीसदी तक शर्मा की साझेदारी है।

बुधवार, 3 जुलाई 2013

आत्महत्या के मामले में जबलपुर अव्वल



एक भयावह सच! एक अनचाही और अनपेक्षति मौत! हंसते-खेलते जीवन का त्रासद अंत। चौंकाने वाले आंकड़े और आंकड़ों से उठती चीख! जबलपुर में साल भर में 572 लोगों ने खत्म कर ली जिंदगी। 63 फीसदी का इजाफा! क्यों बढ़ रही है यहां खुद को खत्म करने की खौफनाक प्रवृत्ति?


जितेन्द्र बच्चन
-ओमती थाना के चौथा पुल स्थित माता गुजरी महाविद्यालय के छात्रावास में बीएससी द्वितीय वर्ष की छात्रा जेसिका केल्स ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली। इसी थाने के होटल अरिहंत में ठहरी युवती मनीषा दास (31) ने आत्महत्या कर लिया।
-मझौली थाना क्षेत्र में एक महिला ने दांत दर्द से निजात पाने के लिए आत्मदाह कर लिया।
-गढ़ा थाना क्षेत्र के बदनपुर निवासी महारानी लक्ष्मी कन्याशाला की 12वीं की छात्रा गायत्री कोल (17) ने खुद पर कैरोसिन डालकर आग लगा ली।
-साइंस कॉलेज के चौकीदार ने फांसी लगाकर जान दे दी।
-केंद्रीय कारागार जबलपुर में एक कैदी ने चादर को फंदा बनाकर आत्महत्या कर ली।

ये घटनाएं रोंगटे खड़ी करने वाली हैं। फांसी, जहर, आग और भी न जाने क्या-क्या नए-पुराने तरीके जबलपुर में मौत को गले लगाने के लिए आजमाएं जा रहे हैं। खुदकुशी की खबरों की जिले में बाढ़-सी आ गई है। कोई दिन ऐसा नहीं गुजरता जब कहीं न कहीं से आत्महत्या की खबर न मिलती हो। शहर ही नहीं, गांव और कस्बों में भी लोग अपनी समस्याओं से निजात पाने के लिए खुदकुशी का रास्ता अख्तियार कर रहे हैं। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो की ताजा रिपोर्ट बेहद चौंकाने वाली है। देश के 53 प्रमुख शहरों में आत्महत्या के मामले में जबलपुर सबसे आगे है। वर्ष 2012 में यहां 572 लोगों ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। जबकि 2011 में 351 लोगों ने आत्महत्या की थी। यानी 63 फीसदी का इजाफा। कारण आर्थिक तंगी, बीमारी, कर्ज का बढ़ता बोझ, एकल परिवार और हताशा है। वजह चाहे जो भी हो, लेकिन ये घटनाएं सोचने को मजबूर करती हैं कि कहीं हमारा सामाजिक ताना-बाना बिखर तो नहीं गया? क्या इनके लिए उम्मीद की छोटी-सी लौ भी नहीं बची थी कि इतने लोगों ने जिंदगी से इस तरह मुंह मोड़ लिया?

दरअसल, जीवन के बदले तौर-तरीकों ने भी बच्चों और युवाओं में सहनशीलता कम कर दी है। अभिभावकों ने कहीं जाने से रोका या कभी पैसे देने से इंकार कर दिया या फिर उनकी किसी मांग को पूरा करने में असमर्थता जताई, तो अक्सर ऐसे बच्चे गुस्से में आत्महत्या जैसे भयानक कदम उठा लेते हैं। इस मामले में प्रेमी भी पीछे नहीं रहते। प्रेमी या प्रेमिका ने ठुकरा दिया या धोखा दिया, तो इसका समाधान अक्सर वे जीवन से मुंह मोड़ने में ही पाते हैं। सोचने की बात तो यह है कि आत्महत्या एक इंसान की नहीं होती, बल्कि उसके साथ जुड़े परिवार की भी होती है जो जीते जी मर जाते हैं। मौत को गले लगाने से कोई समस्या नहीं सुलझती, बल्कि अचानक कुदरत का नियम तोड़ने से हो सकता है कि आप और आपका परिवार पहले से अधिक अंजानी और अजीब समस्याओं के भवरजाल में उलझ जाए। जरूरत है सामाजिक और आर्थिक समस्याओं से जूझते महिलाओं और बच्चों को एक सही दिशा की। क्योंकि कानून बनाना ही काफी नहीं, संवेदनशीलता का होना भी जरूरी है। 
विलुप्त हो रही सहनशक्ति
भारतीय मानस पहले इतना कमजोर कभी नहीं था, जितना अब दिखाई पड़ रहा है। कम सुविधा व सीमति संसाधन में भी संतोष और सुख से रहने का गुण इस देश की संस्कृति में रचा-बसा है। इसका सबसे बड़ा आधार हमारी आध्यात्मिकता रही है। आम भारतीय की सोच ईश्वर में विश्वास कर हर परिस्थिति में हिम्मत और धैर्य रखने की है। जैसे-जैसे लक्जरी ने जरूरतों का रूप धारण करना आरंभ किया है। आर्थिक उदारीकरण और टेक्नोलॉजी ने चारों दिशाओं में पंख पसारे हैं, वैसे-वैसे तेजी से एकसाथ सब कुछ हासिल करने की लालसा भी तीव्रतर हुई है। साधन और सुविधा पर सबका समान हक है, मगर उस हक को पाने में क्यों कुछ लोगों को सबकुछ दांव पर लगा देना पड़ता है और क्यों कुछ लोगों के लिए वह मात्र इशारों पर हाजिर है? जीवन स्तर की यह असमानता ही सोच और व्यक्तित्व को कुंठित बना रही है। जबकि सोच की दिशा यह होनी चाहिए कि मेहनत और लगन से सबकुछ हासिल करना संभव है, बशर्ते धैर्य बना रहे। लेकिन विडंबना यह है कि समय के साथ सहनशिक्त और समझदारी विलुप्त हो रही है। 
बेमानी लगते हैं नाते-रिश्ते
बदलते दौर में टीवी-संस्कृति ने परस्पर संवाद को कमतर किया है। परिणामस्वरूप माता-पिता के पास बच्चों से बात करने का समय नहीं बचा है। यह स्थिति दोनों तरफ है। आज का किशोर और युवा भी व्यस्तता से त्रस्त है। कंप्यूटर-टीवी ने खेल संस्कृति को डसा है। आउटडोर गेम्स के नाम पर बस क्रि केट बचा है। टीम भवना विकिसत करने वाले, शरीर में स्फूर्ति प्रदान करने वाले और खुशी-उत्साह बढ़ाने वाले खेल अब विलुप्त हो रहे हैं। यही वजह है कि न बाहरी रिश्तों में सुकून है न घर के रिश्तों में शांति। दोस्ती और संबंधों का सुगठित ताना-बाना अब उलझता नजर आ रहा है। कल तक जो संबल और सहारा हुआ करते थे, वे आज बोझ और बेमानी लगने लगे हैं।
अपने आपमें सिमटते युवा
देश की युवा शक्ति आज के हांफते-भागते दौर में अस्त-व्यस्त और त्रस्त है या फिर अपनी ही दुनिया में मस्त है। आत्मकेंद्रित युवा अपने सिवा किसी को देख ही नहीं रहा है। जब उसे पता ही नहीं है कि दुनिया में उससे अधिक दुखी और लाचार भी हैं, तो वह अपने दुख-तकलीफों को ही बहुत बड़ा मान लेता है। घर आने पर कोई उससे यह पूछने वाला नहीं है कि उसके भीतर क्या चल रहा है। हर कोई टीवी की तरह   अपनी दिनचर्या निर्धारित करने में लगा है। किसे फुरसत है अपने ही आसपास टूटते-बिखरते अपने ही घर के युवाओं को जानने-समझने की। उनकी भावनात्मक जरूरतों और वैचारिक दिशाओं की जांच-पड़ताल करने की? ऐसे में एक दिन जब वह आत्मघाती कदम उठा लेता है, तो पता चलता है कि ऊपर से शांत और समझदार दिखने वाला युवा भीतर कितना आंधी-तूफान लिए जी रहा था। वास्तव में माता-पिता को समय के साथ बदलना होगा। कब तक सारी की सारी अपेक्षाएं संतान से ही की जाती रहेंगी। ढेर सारे सामाजिक दबाव, सारी जिम्मेदारियां उसी की क्यों? सारे समझौते वही क्यों करें? दबाव की इस स्थिति को मां-बाप, निकट के रिश्तेदार और मित्र ही अगर चाहें, तो बड़ी कुशलता से निपटा सकते हैं।
जिंदगी से बड़ी कोई तकलीफ नहीं
समाधान कहीं और से नहीं हमारे ही भीतर से आएगा। खुद को खत्म कर देने की बात जब आती है, तो दूसरों को दोष देने में थोड़ा संकोच होता है। वास्तव में हम स्वयं ही हमारे लिए जिम्मेदार होते हैं। कोई भी दु:ख या तकलीफ जिंदगी से बड़ी नहीं हो सकती। हर व्यक्ति के जीवन में ऐसा दौर आता है जब सबकुछ समाप्त-सा लगने लगता है, लेकिन इसका यही तो सार नहीं कि खुद ही खत्म हो जाएं। हर आत्महत्या करने वाले को एक बार, सिर्फ एक बार यह सोचना चाहिए कि क्या उसकी जिंदगी सिर्फ उसी की है? इस जिंदगी पर कितने लोगों का कितना-कितना अधिकार है? क्या वह जानता है कि उसकी मौत के बाद उसका परिवार कितनी-कितनी बार मरेगा? जिस पर इतने सारे लोगों का हक है, उसे खत्म करने का हमें कोई हक नहीं है। वैसे भी रोशनी की एक महीन लकीर जब अंधेरे को चीर सकती है। एक तिनका डूबते का सहारा बन सकता है और एक आशा भरी मुस्कान निराशा के दलदल से बाहर निकाल सकती है, तो फिर भला मौत को वक्त से पहले क्यों बुलाया जाए? जिंदगी परीक्षा लेती है तो उसे लेने दीजिए, हौसलों से आप हर बाजी जीतने का दम रखते हैं, यह विश्वास हर मन में होना चाहिए।
10 हजार 861 किसानों ने लगाया मौत को गले
भाजपा के आठ साल के शासन में 10 हजार 861 से अधिक किसानों ने की खुदकुशी। देश के किसानों की आत्महत्या के मामले में मध्य प्रदेश चौथे नंबर पर पहुंच गया है। किसी भी सरकार के लिए इससे अधिक शर्मनाक कुछ और नहीं हो सकता है कि उसके नागरिक राज्य की नीतियों के कारण आत्महत्या को मजबूर हों। मध्य प्रदेश की सरकार ‘थोथा चना बाजे घना’ की तर्ज पर राज कर रही है। राज्य अब दूसरा विदर्भ बनने के कगार पर है। मुख्य वजह किसानों की आर्थिक तंगी, कर्ज का बढ़ता बोझ और परिवार है। रोजगार के सीमित साधन,बढ़ती महंगाई,घटती आय लोगों का सुख-चैन छीन रहे हैं। ऐसे में बढ़ती महत्वकांक्षाएं, पारिवारिक व सामाजिक दायित्वों के निर्वहन पर भारी साबित हो रही है। ये तमाम हालात व्यक्ति को तनाव व अवासादग्रस्त बनाते हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में हर रोज 18 लोग आत्मघाती कदम उठा कर मौत को गले लगा रहे हैं। बीते साढेÞ चार माह में 2541 लोगों ने आत्महत्याएं की हैं, जिनमें 205 किसान व 95 खेतिहर मजदूर हैं। राज्य विधानसभा के मौजूदा पावस सत्र में कांग्रेस विधायक राम निवास रावत के सवाल के जवाब में गृहमंत्री उमाशंकर गुप्ता ने समाज की इस हकीकत का बयान करते हुए कहा कि एक मार्च 2012 से 15 जुलाई तक राज्य में 2541 लोगों ने आत्महत्याएं की हैं। इस तरह 135 दिनों में हर रोज औसतन 18 लोगों ने मौत को गले लगाया है। गृहमंत्री के जवाब के मुताबिक, इस अवधि में सागर जिले में सबसे ज्यादा 172 लोगों ने मौत को गले लगाया। दूसरे स्थान पर इंदौर है, जहां 158 लोगों ने जान दी। सतना में 153, भापाल में 130 और जबलपुर में 113 आत्महत्या के प्रकरण सामने आए हैं।
खतरनाक रूप से बढ़ रही इस नकारात्मकता ने अचानक सभी को चिंता में डाल दिया है। आखिर क्यों बढ़ रही है खुद को खत्म करने की यह खौफनाक प्रवृत्ति? क्यों होती जा रही है स्थिति विकराल? किसानों के मामले में समस्याएं बेहद स्पष्ट लेकिन ढेर सारी हैं। यूं तो परेशानी और पीड़ा की वजह गरीबी अपने आप में एक अहम वजह है, लेकिन आए दिन किसानों को फसल चौपट होने से लेकर कर्ज न चुका पाने जैसी भीषण दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। कभी योजनाओं के नाम पर सरकारी छल-कपट के शिकार होते हैं किसान, तो कभी अनाज के खरीद-बिबिक्री में हुए घोटालों के कारण व्यथित होते हैं। ऐसे में उन्हें एक ही रास्ता आसान लगता है- मौत का।
मध्य प्रदेश के हर किसान पर औसतन 14 हजार 218 रु पये का कर्ज है। वहीं प्रदेश में कर्ज में डूबे किसान परिवारों की संख्या 32,11,000 है। म.प्र. के कर्जदार किसानों में 23 फीसदी किसान ऐसे हैं, जिनके पास 2 से 4 हेक्टेयर भूमि है और 4 हेक्टेयर भूमि वाले कृषकों पर 23,456 रु पये कर्ज चढ़ा हुआ है। कृषि मामलों के जानकारों का कहना है कि प्रदेश के 50 फीसदी से अधिक किसानों पर संस्थागत कर्ज चढ़ा हुआ है। किसानों के कर्ज का यह प्रतिशत सरकारी आंकड़ों के अनुसार है, जबकि किसान नाते-रिश्तेदारों, व्यवसायिक साहूकारों, व्यापारियों और नौकरीपेशा से भी कर्ज लेते हैं। इस आधार पर राज्य के 80 से 90 फीसदी किसान कर्ज के बोझ तले दबे हैं। कृषि विशेषज्ञ एमएस स्वामीनाथन का कहना है कि समर्थन मूल्य मूल उत्पादन की औसत लागत से 50 फीसदी अधिक होना चाहिए। प्रदेश में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश के किसानों से 50 हजार रुपये कर्ज माफी का वादा किया था, लेकिन प्रदेश सरकार ने उसे भुला दिया। यदि समय रहते खेती-किसान दोनों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो आने वाले समय में किसानों की आत्महत्याओं की घटनाएं और बढेंÞगी और मध्य प्रदेश भी विदर्भ की तरह मुंह ताकता रह जाएगा।

खुदकुशी पर सियासत नहीं होनी चाहिए 
आत्महत्या किसी की भी हो, तकलीफदेह होती है। यह एक प्रदेश की समस्या नहीं है। जापान, कोरिया सहित देश के अन्य प्रांतों में भी इस तरह की घटनाएं होती हैं। कुछ राज्यों में तो इसके आंकडेÞ यहां से ज्यादा हैं। इस विषय को राजनीतिक रूप देने की कोशिश की जा रही है, जो ठीक नहीं है। आत्महत्या के कारण मनोवैज्ञानिक होते हैं। उन्हें दूर करने के प्रयत्न किए जाएंगे।
-शिवराज सिंह चौहान, मुख्यमंत्री

मुख्य कारण पारिवारिक कलह
जबलपुर में इधर हुई अधिकतर आत्महत्याओं की खास वजह पारिवारिक कलह रही है। दरअसल, संयुक्त परिवार बिखर रहे हैं। पति-पत्नी के बीच विवाद होने पर उनमें बीच-बचाव करने वाला कोई नहीं होता। कलह बढ़ते ही लोग खुदकुशी करने तक के लिए तैयार हो जाते हैं। दूसरा कारण एकल परिवार है, जिसके चलते लोग खुदकुशी करने को मजबूर हो जाते हैं।
-हरिनारायणचारी मिश्र, पुलिस अधीक्षक, जबलपुर