सोमवार, 22 अप्रैल 2013


हैवानियत

नन्हीं-सी जान और दो-दो शैतान! न दया आई, न ही दिल पसीजा। हैवानियत की सारी हदें पार कर गए दरिंदे। आंखों का पानी तो पहले ही मर चुका था, इंसानियत का भी कत्ल कर डाला! रही-सही कसर पुलिस ने बच्ची के बाप को दो हजार रुपये देने की पेशकश कर पूरी कर दी! लानत है ऐसी पुलिस पर, जो वर्दी को शर्मसार कर दे!


पांच साल की बच्ची के साथ हैवानियत! दहल उठी दिल्ली! सदमे में हैं देश के प्रधानमंत्री! कांप उठा मां का कलेजा। हिल गए लोग, लेकिन दुष्कर्मियों के न हाथ कांपे और न ही दिल पसीजा। बहते रहे आंसू, सिसकती रही मासूम। तब भी जालिमों को तरस नहीं आया, दबोच लिया भूखे भेड़िये की तरह। रौंद डाली सारी मासूमियत। तोड़ते रहे कहर। ढाते रहे सितम। लहूलुहान हो गई इंसानियत! बेहोश हो गई बच्ची! भूखी-प्यासी 40 घंटे बंद रखा कमरे में। हवा तक नहीं लगने दी बाहर की। उफ्! कितना दर्द बर्दाश्त किया होगा उसने। वह भी महज पांच साल की उम्र में। दो दिन बाद बड़ी मुश्किल से मां का सामना हुआ, तो खून से लथपथ थी मासूम। जिस्म का अंग-अंग जख्मी था उसका। पर, हाय री दिल्ली पुलिस, इस पर भी उसका रवैया हैरान करने वाला रहा। इस बात का एहसास होते ही कि मामला मीडिया में जा सकता है और फिर होगी हमारी छीछालेदर, बच्ची को दिल्ली के एक कोने में बने नगर निगम के अस्पताल में ले जाकर दाखिल करा दिया, ताकि पता न चले किसी को। एक पुलिसकर्मी ने लड़की के पिता को दो हजार रुपये देने की कोशिश की। उसका कहना था, ‘खर्चा-पानी दे रहा हूं। किसी से कुछ बताओगे, तो मुफ्त में बदनाम हो जाओगे। चुप रहने में ही बेहतरी है।’ पिता की आंखें भर आइं- ‘क्या तुम्हारी बच्ची के साथ कोई दुष्कर्म करता, तब भी तुम मामला रफा-दफा करने की कोशिश करते?’ कितनी शूरमा है दिल्ली पुलिस! हैवानों के आगे घुटने टेक देती है, लेकिन पीड़ित से सौदा करने में कभी नहीं चूकती! इतना भी नहीं सोचा कि अगर पुलिस ही इंसाफ के दरवाजे पर ताला लगाकर बैठ जाएगी, तो कैसे बचेगी लोकतंत्र की इज्जत? बेदिल ही नहीं, बेदर्द भी है दिल्ली पुलिस।
वाकया 15 अप्रैल 2013 का है। पूर्वी दिल्ली के गांधीनगर इलाके में मासूम गुड़िया का परिवार रहता है। पिता पेशे से बेलदार है और चाचा मेहनत-मजदूरी करता है। प्रथम तल पर किराए का कमरा ले रखा है। गरीबी में ही गुजर-बसर होता है। वारदात की शाम पांच साल की गुड़िया अपने दरवाजे पर खेल रही थी, तभी भूतल पर रहने वाला मनोज (22) आ गया। मासूम को देखते ही उसके दिमाग का शैतान नाचने लगा। वह बहला-फुसलाकर उसे अपने कमरे में ले आया। अगवा कर लिया बच्ची को। कमरे में उसका दोस्त प्रदीप भी था। दोनों ने गुड़िया के साथ दो दिन तक कई बार रेप किया। तब भी मन नहीं भरा, तो बच्ची के प्राइवेट पार्ट में दो मोमबत्तियां और सौ मिलीलीटर तेल की सीलबंद एक शीशी डाल दी। बेचारी दर्द से बिलबिला उठी, लेकिन हैवानों को उस पर तरस नहीं आया। बच्ची की छाती, होंठ और गालों पर दांत काटने के कई निशान हैं। गला दबाने और चाकू से गर्दन काटने की कोशिश भी की गई। बच्ची बेहोश हो गई। शैतानों ने सोचा, शायद बच्ची खत्म हो गई और दोनों आरोपी बाहर से दरवाजे पर ताला लगाकर फरार हो गए। गुड़िया के माता-पिता बेटी को खोज-खोजकर परेशान थे। पूरा दिन बीत गया। सारा गली-मोहल्ला छान मारा। समझ में नहीं आ रहा था कि नन्हीं-सी जान को धरती निगल गई या आसमान। रात करीब साढ़े आठ बजे बच्ची की मां थाना गांधीनगर पहुुंची। एसएचओ धर्मपाल सिंह और सब-इंस्पेक्टर महावीर सिंह, दोनों थाने में मौजूद थे। मां उनके आगे रोने लगी, ‘साहब! मेरी फूल-सी बच्ची न जाने कहां गायब हो गई। बहुत तलाश किया, लेकिन कुछ पता नहीं चल रहा है।’ पुलिस ने बड़ी हिकारत से एक नजर उसे देखा, फिर झिड़कते हुए कहा, ‘तो यहां क्यों चली आई? पुलिस कोई जादू की छड़ी है क्या कि घुमाया और लड़की मिल गई! जाओ, खुद ही तलाश करो।’ उसी समय गुड़िया के पिता और चाचा भी थाने आ पहुंचे। वे भी बार-बार पुलिसवालों से हाथ-पांव जोड़ते रहे। बड़ी मुश्किल से रात करीब 10 बजे थानेदार का दिल पसीजा। उसके आदेश पर अपहरण का मामला दर्ज कर लिया गया। घटना की तफ्तीश सब-इंस्पेक्टर महावीर सिंह को मिली, लेकिन महावीर ने मौके पर जाकर छानबीन करने की जरूरत नहीं समझी। उन्होंने परिजनों को बच्ची को तलाशने की हिदायत देकर घर भेज दिया। गोया एफआईआर लिख ली और तफ्तीश भूल गए। अगले रोज भी बच्ची का कुछ पता नहीं चला, न ही कोई पुलिस वाला पीड़ित परिवार के घर पूछताछ करने आया। मां-बाप बेटी को लेकर हलकान रहे। पूरी रात आंखों-आंखों में काट दी। तीसरे दिन भी मां का कलेजा बच्ची को लेकर कचोटता रहा, ‘न जाने कहां है गुड़िया? किस हाल में होगी हमारी बेटी?’ तभी पड़ोसी मनोज के कमरे से लड़की के रोने की आवाज सुनकर उसका कलेजा मुंह को आ लगा- ‘यह तो मेरी बेटी है!’ मां के सीने पर दोहत्थड़ बजने लगे। छाती-कपार पीटते हुए उसने सारा मोहल्ला इकट्ठा कर लिया। पिता ने फोन पर मामले की सूचना पुलिस को दी। तब भी सब-इंस्पेक्टर महावीर सिंह मौके पर नहीं गए। लोगों ने मनोज के कमरे का ताला तोड़ दिया। सामने गुड़िया खून से लथपथ बेहोश पड़ी थी। काटो तो खनू नहीं, सब के सब अवाक् रह   गए। मां-बाप की पीड़ा का पारावार न था। फूट-फूटकर रोने लगे परिजन। पुलिस को हालात से अवगत कराया गया। एसएचओ के निर्देश पर बच्ची को दिलशाद गार्डन स्थित स्वामी दयानंद अस्पताल में ले जाकर भर्ती करा दिया गया। यहां के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. आरएन बंसल ने बताया कि बच्ची की हालत बहुत नाजुक थी। उसकी तत्काल सर्जरी की गई। प्राइवेट पार्ट से मोमबत्तियों के टुकड़े और पेट में सौ मिलीलीटर तेल की एक शीशी निकली। बच्ची के पेट में भी संक्रमण पाया गया है। इस बीच दुष्कर्म की यह घटना जो ही सुनता, आक्रोश में मुट्ठी ताने विरोध करने दयानंद अस्पताल पहुंचने लगा। लोगों ने हंगामा और प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। ‘आप’ के तमाम कार्यकर्ता सड़कों पर उतरकर पुलिस के विरोध में नारे बुलंद करने लगे। करवां बढ़ता गया और विरोध भी। लोगों की मांग थी कि आरोपी को फौरन गिरफ्तार किया जाए और बच्ची को किसी बड़े अस्पताल में रेफर किया जाए, लेकिन पुलिस और सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। 19 अप्रैल को जब मामला हाथ से निकलने लगा, तो दिल्ली सरकार के वरिष्ठ मंत्री डॉ. एके वालिया, किरण वालिया और कांग्रेस सांसद संदीप दीक्षित बच्ची को देखने दयानंद अस्पताल पहुंचे। आक्रोशित लोगों ने इनका जमकर विरोध किया। प्रदर्शनकारियों ने किरण वालिया को गाड़ी से बाहर नहीं निकलने दिया। डॉ. वालिया और संदीप दीक्षित के साथ धक्का-मुक्की की गई। वहीं, अब तक इस मामले में दिल्ली पुलिस का चेहरा बेनकाब हो चुका था। प्रदर्शन कर रहे लोगों के बीच मौजूद इलाके के एसीपी बनी सिंह अहलावत दोषी पुलिसकर्मियों को बर्खास्त करने की मांग सुनकर तिलमिला उठे। उन्होंने प्रदर्शन कर रही ‘आम आदमी पार्टी’ की कार्यकर्ता बीनू रावत को दो झापड़ रसीद कर दिए। तब तो लोगों का गुस्सा और फूट पड़ा। थाना गांधीनगर से लेकर अस्पताल तक विरोध करने वाले सड़क पर उतर आए। डॉ. वालिया सहम गए। उनके आदेश पर तुरंत बच्ची को दयानंद अस्पताल से एम्स रेफर कर दिया गया। एम्स के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. डीके शर्मा के अनुसार, दुष्कर्म पीड़ित बच्ची को तत्काल एबी-5 की पांचवीं मंजिल पर आईसीयू में शिफ्ट किया गया। इलाज के लिए डिपार्टमेंट आॅफ गायनकोलॉजी, पीडियाट्रिक सर्जरी, पीडियाट्रिक मेडिसन और डिपार्टमेंट आॅफ एनेस्थेसिया के चार डॉक्टरों की टीम बनाई गई। इस बीच लोगों के बढ़ते विरोध व आक्रोश को देख-सुनकर मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के भी हाथ-पांव फूल आए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने घटना पर हैरानी जताते हुए दिल्ली के उपराज्यपाल से बात की और लापरवाह अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई करने पर जोर दिया। गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने भी मामले की समीक्षा की। उसके बाद पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार को कुछ दिशा-निर्देश दिए। दिल्ली पुलिस मुख्यालय में हड़कंप मच गया। रात करीब आठ बजे पुलिस कमिश्नर के घर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की एक बैठक हुई, जिसमें विशेष पुलिस आयुक्त (कानून एवं व्यवस्था) दीपक मिश्रा भी शामिल थे। रात लगभग नौ बजे मीटिंग समाप्त होने के पश्चात पुलिस मुख्यालय में पूर्वी दिल्ली के डीसीपी प्रभाकर ने पत्रकारों को बताया कि एसीपी बीएस अहलावत को दुर्व्यवहार के मामले में निलंबित कर दिया गया है। रेप केस में लापरवाही बरतने वाले थाना गांधीनगर के एसएचओ धर्मपाल सिंह और मामले के विवेचनाधिकरी  महावीर सिंह को सस्पेंड कर दिया गया है। साथ ही पीड़ित परिवार को दो हजार रुपये देने की कोशिश के मामले की जांच विजिलेंस शाखा को सौंप दी गई है। इसके अगले रोज 20 अप्रैल को दिल्ली पुलिस की टीम ने आरोपी मनोज (22) को बिहार के मुजफ्फरपुर स्थित थाना करजा के चिकनौटा गांव में उसकी ससुराल से गिरफ्तार कर लिया। आरोपी ने पुलिस पूछताछ में गुड़िया के साथ गुनाह करने का जुर्म कबूल कर लिया है। 22 अप्रैल 2013 को इस मामले के दूसरे आरोपी प्रदीप को भी पुलिस ने बिहार के लखीसराय से गिरफ्तार कर लिया। वह अपने मामा के घर बढ़ैया गांव में छिपा था। प्रदीप मूल रूप से दरभंगा बिहार का रहने वाला है। दोनों अब तिहाड़ जेल में हैं। लेकिन दुष्कर्म की इस घटना के विरोध में लोगों का विरोध जारी है। पुलिस मुख्यालय और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के निवास पर लोगों का लगातार धरना-प्रदर्शन जारी था। उनकी मांग है, पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार इस्तीफा दें। भाजपा नेता सुषमा स्वराज ने आरोपी को फांसी देने की मांग की है। इसके बावजूद अपराधियों के हौंसले बुलंद हैं। राजधानी में रेप की घटनाएं थमने का नाम ले रही हैं।

शातिर दिमाग है मुलजिम
आरोपी मनोज मूल रूप से ग्राम भरथुआ थाना औराई जिला मुजफ्फरपुर बिहार का रहने वाला है। उसके दो भाई और चार बहने हैं। मनोज के पिता बिंदेश्वर शाह दिल्ली के ओल्ड सीलमपुर इलाके में फ्रूट जूस की रेहड़ी लगाते हैं, जबकि मनोज एक फैक्ट्री में मजदूरी करता था। करीब साल भर पहले इसने गांव में लव मैरिज की थी। पत्नी गांव में ही रहती है। मनोज को इसके पहले भी वर्ष 2010 में थाना गांधीनगर पुलिस ने बिना इजाजत किसी के घर में घुसने के मामले में गिरफ्तार किया था। उस वक्त करीब सवा महीने वह जेल में रहा था। वह बहुत शातिर दिमाग है। मुजफ्फरपुर में भी मनोज के खिलाफ दो आपराधिक मामले दर्ज हैं। बेटे की हरकतों से तंग आकर पिता ने उसे घर से निकाल दिया था। इसके बाद उसने पीड़ित के घर के पास किराए पर कमरा लिया था। घटना की शाम मनोज ने दोस्त प्रदीप के साथ अश्लील फिल्म देखी और  दोनों ने शराब भी पी थी। उसके बाद दोनों ने  मासूम के सथ रेप किया। दोनों आरोपियों ने पूछताछ में गुनाह कबूल कर लिया है।
प्रभाकर, डीसीपी, पूर्वी दिल्ली

तारीख बदली तकदीर नहीं
16 दिसंबर को दिल्ली में हुई दामिनी गैंगरेप की घटना से भी दिल्ली पुलिस ने कोई सबक नहीं सीखा। आपको याद होगा पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार साहब, आपने उस वक्त कहा था कि ‘हर कंप्लेंट पर कार्रवाई की जाएगी।’ दिल्ली के लोगों से वादे किए थे, सड़क पर पूरी फोर्स उतरेगी। बिस्तर से उठकर पुलिस अफसर सुरक्षा में लगेंगे। तारीख बदली, दिन बदले, लेकिन तकदीर नहीं बदली। पहले दामिनी शिकार बनी थी और अब गुड़िया! उस रोज 16 दिसंबर था और आज 15 अप्रैल। दरिंदगी की कहानी वही है और पुलिस कमिश्नर भी आप ही हैं। गुस्सा तो बहुत आएगा आपको यह पढ़कर कि आपकी पुलिस के निकम्मेपन की कहानी हम बता रहे हैं। क्या करें, हकीकत से मुंह नहीं मोड़ा जाता कमिश्नर साहब! न तो आपकी पुलिस ने उस घटना से कोई सबक लिया और न ही दिल्ली में जुर्म कम हुआ। उस पिता से क्या कहें कमिश्नर साहब, जिसकी बेटी के साथ रेप हुआ और पुलिस उसी पर मामले को दबाने का दबाव बनाती रही। छह घंटे तक मां को इस कोशिश में थाने में बिठाए रखा कि शायद अब भी मामला रफा-दफा हो जाए?

लापरवाही की हद कर दी
इस मामले पर केंद्र सरकार को सख्त कदम उठाना चाहिए। दिल्ली पुलिस महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अत्याचार पर रोक लगाने में अक्षम रही है। लापरवाही की हद कर दी है।
-ममता शर्मा, अध्यक्ष, राष्ट्रीय महिला आयोग

उच्चस्तरीय जांच की मांग
पीड़ित बच्ची के परिजनों ने पुलिस पर रिश्वत देने का जो आरोप लगाया है, वह अपने आपमें शर्मनाक है। इसकी उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए।
-बरखा सिंह, अध्यक्ष, राज्य महिला आयोग
-जितेंद्र बच्चन

सोमवार, 15 अप्रैल 2013


हवालात की हकीकत

यूपी पुलिस की एक और काली करतूत! महिला पुलिस ने ही मासूम पर ढाया जुल्म! मांगा न्याय, मिली हवालात! भ्रष्ट पुलिस का अमानवीय चेहरा बेनकाब! पूरी रात आरोपी के परिजनों से होती रही सौदेबाजी! बात नहीं बनी, तो दबंग दारोगा ने पीड़ित बच्ची को ही हिरासत में ले लिया! क्या है हकीकत? बुलंदशहर से लौटकर खोजपरक रिपोर्ट...


      उत्तर प्रदेश पुलिस का घिनौना चेहरा! वर्दीधारी गुंडों की करतूत! क्र ाइम कंट्रोल के नाम पर बुलंदशहर पुलिस ने लगाया अखिलेश सरकार को पलीता! रोंगटे खड़े कर देने वाले दिल्ली के सामूहिक दुष्कर्म कांड के बाद भी पुलिस के रवैए में कोई सुधार नहीं आया है। रेप के कानून में कड़े प्रावधान के पश्चात भी पुलिस खुद को कानून से ऊपर समझती है। बुलंदशहर में दलित बच्ची के साथ हुई घटना ने साबित कर दिया है कि समाज का कमजोर तबका आज भी सुरक्षा के साथ सम्मान का जीवन जीने को दूभर है। दस साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म हुआ था। उसकी हालत खराब थी। बेटी के साथ मां मामला दर्ज कराने थाना कोतवाली पहुंची, तो पहले पुलिस ने कोई सुनवाई नहीं की। बाद में दोनों को रात भर कोतवाली में बिठाए रखा। इस बीच बच्ची का डॉक्टरी परीक्षण भी नहीं कराया। मुसीबत तब और बढ़ गई, जब बच्ची को महिला थाने भेज दिया। वहां भोर में महिला पुलिसकर्मियों ने लड़की के परिजनों को कुछ रुपये दिलाने की बात कहकर मामला दर्ज न कराने को कहा। तब भी पीड़ित पक्ष नहीं माना, तो उन्हें गालियां दी गईं और मासूम बच्ची को ही हवालात में डाल दिया।
 समाज और कानून को ठेंगा दिखाने वाला यह वाकाया 7 अप्रैल, 2013 का है। आठ अप्रैल की सुबह पुलिस की यह शर्मनाक करतूत जंगल में लगी आग की तरह फैलते देर नहीं लगी। शहर में बवाल मच गया। करतूत मीडिया की सुर्खियां बनने लगीं। मामला सर्वोच्च न्यायालय तक जा पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश अल्तमस कबीर के नेतृत्व वाली पीठ ने 10 अप्रैल को स्वत: इस मामले पर संज्ञान लेते हुए नाराजगी जताई और उप्र सरकार को नोटिस देकर पूछा है कि पुलिस दस वर्षीय लड़की को हिरासत में कैसे रख सकती है?
बुलंदशहर का मीरपुर गांव लोधी बहुल है। मुख्यालय से 22 किमी दूर और हाईवे से महज तीन किमी पूर्व में बसे इस गांव की आबादी करीब 1600 है। गांव में चार घर जाटवों के हैं, बाकी 146 घर लोध राजपूत के हैं। जाटवों में ही एक परिवार 47 वर्षीय रामलाल (परिवर्तित नाम) का है। दलित समुदाय के रामलाल की जिंदगी हमेशा दुश्वारियों और किल्लत से भरी रही। उसके दस बच्चे हैं। चार लड़के और छह लड़कियां। पत्नी का नाम इमरती देवी (परिवर्तित नाम) है। दो कमरों के एक घर में बड़ी मुश्किल से पूरे परिवार का गुजर-बसर होता है। खुद रामलाल किराने की एक दुकान पर 200 रुपये रोज की दिहाड़ी पर काम करता है। सबसे बड़ा बेटा मामचंद (परिवर्तित नाम) 25 साल का है। उसकी शादी हो चुकी है। मेहनत-मजदूरी करके घर-गृहस्थी में हाथ बंटाता है, लेकिन आजकल पीलिया से पीड़ित है। तमाम जगह की खाक छानते हुए जब हम पीड़ित लड़की के घर पहुंचे, तो बच्ची के कई नाते-रिश्तेदार मौजूद थे। दरवाजे पर दो पुलिसकर्मी पहरा दे रहे थे। उन्होंने मुझे तिरछी नजरों से घूरा- लो, एक और मीडिया वाले आ गए!
लड़की की मां और बहनों का रो-रोकर बुरा हाल था। थोड़ी देर पहले ही एक महिला डॉक्टर बच्ची को दवा आदि देकर गई थी। बच्ची एक कंबल ओढ़कर घर की कच्ची फर्श पर लेटी हुई थी और अब भी उसकी हालत ठीक नहीं थी। हमारे कैमरामैन को देखते ही घर की ड्योढ़ी पर बैठी कुछ महिलाओं की आंखें भर आर्इं। गोया न्याय मिलने की आस फिर से जाग उठी हो। जितने मुंह उतनी बात, ‘देखिए साहब जी, दबंगों ने इस बच्ची के साथ कितनी जोर-जबरदस्ती की है?’ मां के एक-एक आंसू दुष्कर्म और पुलिसिया अत्याचार की कहानी बता रहे थे। वैसे यह परिवार हमेशा से गांव के दबंगों के निशाने पर रहा है, लेकिन 7 अप्रैल की शाम करीब साढ़े छह बजे जैसे दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा। बच्ची गांव में ही किराने की दुकान से कुछ सामान लेने गई थी। वहां से लौटते समय गांव के ही हरेंद्र लोध की नजर उस पर पड़ गई। लड़की के साथ छह साल की उसकी भतीजी भी थी। उसी ने कुछ देर बाद आकर इमरती देवी को बताया कि गांव का हरेंद्र लड़की को जबरन खींचकर खेतों में ले गया है। वहां भिटौर (उपलों का ढेर) की आड़ में उसके साथ गलत काम कर रहा है।
इमरती देवी का कलेजा मुंह को आ लगा। वह करीब-करीब दौड़ती हुई घर से बाहर निकली। खेतों के बीच पतली-सी सड़क पर उसकी मासूम बच्ची बेहोशी की हालत में पड़ी थी। उसके चेहरे और पूरे शरीर पर काटने और जख्म के निशान थे। बेटी की दुर्दशा देखकर मां का कलेजा कचोटने लगा। वह छाती-कपार पीटती हुई चीखने-चिल्लाने लगी। पास-पड़ोस के तमाम लोग जुट आए। जैसे-तैसे बेहोश बेटी को घर लाया गया। गांव के ही एक-दो लोगों ने मामले की खबर पुलिस को दी, लेकिन कोई नहीं आया। गुस्साए परिजनों ने पुलिस के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी।
इमरती देवी के अनुसार, गांव के कई राजपूतों ने उसका घर घेर लिया। दबंगों का कहना था कि लड़की की जो भी कीमत है, उसे लेकर मामला यहीं रफा-दफा कर दो। थाना-पुलिस करने की जरूरत नहीं है। कोर्ट-कचेहरी में लड़की ने मुंह खोला, तो उसे पत्थरों से   मार-मारकर हम उसकी जान ले लेंगे, लेकिन परिजन साहस बटोरकर रात करीब 9 बजे पीड़ित बच्ची के साथ थाना कोतवाली पहुंच गए। इंस्पेक्टर कवींद्र नारायण मिश्र कोतवाली में मौजूद नहीं थे। सेकंड अफसर सीनियर सब इंस्पेक्टर पीआर शर्मा से इमरती ने घटना के बारे में बताया। उन्हें लिखित में आरोपी हरेंद्र के खिलाफ एक तहरीर भी दी, लेकिन पुलिस मामला दर्ज न कर बड़े (कोतवाल) साहब के आने की बात कर समय जाया करती रही। साहब को न आना था और न ही आए, क्योंकि इंस्पेक्टर मिश्र उस रोज अवकाश पर थे। इस बीच बताया जाता है कि शर्मा का आरोपी पक्ष से भी संपर्क बना रहा। उनका इरादा शायद दबंगों से कुछ रुपये-पैसे दिलवाकर समझौता करवाना था, इसलिए रेप का केस दर्ज न कर मामले को टालते रहे।
रात करीब तीन बजे एसएसआई शर्मा पीड़ित बच्ची को महिला थाना ले गए, जो थाना कोतवाली के बगल में ही है। महिला थानाध्यक्ष गयाश्री चौहान और सब इंस्पेक्टर सरिता द्विवेदी कार्यालय में मौजूद थीं। इमरती देवी ने उनसे भी दुष्कर्म का मामला दर्ज करने की फरियाद की, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया। इमरती देवी बताती हैं कि महिला थाने में मौजूद पुलिसकर्मियों ने उन्हें खूब गालियां दीं, फिर उनकी बेटी को दो झापड़ मारकर हवालात में ठूंस दिया। मैं वहीं लॉकअप के बाहर बैठी रही। रात पहाड़ बन गई, बड़ी मुश्किल से बीती। सुबह 8 अप्रैल को लोगों को पता चला तो महिला थाना और कोतवाली पर भीड़ बढ़ने लगी। इस बीच महिला पुलिसकर्मियों ने जल्दी से पीड़ित बच्ची को हवालात से बाहर निकाल दिया।
लेकिन तब तक मीडिया के माध्यम से मामले की भनक एसएसपी गुलाब सिंह और पुलिस अधीक्षक (नगर) अजय कुमार साहनी को लग चुकी थी। ये दोनों अधिकारी थाना कोतवाली आ गए। उन्होंने माना कि मामला संगीन है और विक्टिम को किसी भी स्थिति में हवालात में बंद नहीं किया जा सकता। उनके आदेश पर थाना कोतवाली पुलिस ने हरेंद्र लोध के खिलाफ दुष्कर्म का मामला दर्ज कर बच्ची को मेडिकल के लिए हॉस्पिटल भेज दिया। इसके थोड़ी देर बाद पुलिस ने मीरपुर निवासी दो बच्चों के पिता आरोपी हरेंद्र को गिरफ्तार कर लिया। उसके खिलाफ एससी/एसटी एक्ट और जान से मारने की धमकी का भी आरोप है, लेकिन खुद हरेंद्र ने पुलिस के सामने ही रेप करने की बात से इंकार किया है। उसका कहना है, ‘घटना की शाम बच्ची उसके खेत में टमाटर तोड़ रही थी। उसने मना किया और उसे पकड़कर दो थप्पड़ मारे और वहां से भगा दिया। इसके अलावा उसने और कुछ नहीं किया।’ लेकिन इमरती देवी उस शाम का वाकया याद आते ही कांप जाती हैं। वह रुंधे गले से बताती हैं, ‘दबंग कहते हैं कि वे मरद हैं। मन मचल गया, तो कौन-सा पहाड़ टूट पड़ा। असली कसूर तो तुम लोगों का है। क्यों लड़की को अकेली घर से बाहर भेजती हो? एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी! हमारा घर जलाने और बेटी कोे मारने की धमकी दे रहे हैं दबंग। गांव की पंचायत भी उन्हीं के साथ है। हम पर बराबर मुकदमा वापस लेने का दबाव डाला जा रहा है।’
8 अप्रैल को जिलाधिकारी जीएस प्रियदर्शी ने मामले की विस्तृत जानकारी मांगी, तो शाम तक एसएसपी गुलाब सिंह ने मामले को ठंडा करने की नीयत से महिला थाना की दो सिपाही नीरू और सोनिया को निलंबित कर दिया। सोचा था मामला दब जाएगा, लेकिन लोगों का विरोध लगातार जारी रहा, तो महिला थानाध्यक्ष गयाश्री चौहान और वहीं की एक सब इंस्पेक्टर सरिता द्विवेदी को भी लाइन हाजिर कर दिया गया। इन सभी पर पीड़ित बच्ची को लॉकअप में बंद करने का आरोप है। एसएसपी के अनुसार, 9 अप्रैल को डॉक्टरी रिपोर्ट मिली। मेडिकल जांच में रेप की पुष्टि नहीं हुई है। इस मामले की विवेचना क्षेत्राधिकारी (नगर) वैभव नारायण मिश्र कर रहे हैं। 10 अप्रैल को प्रदेश के अपर पुलिस महानिदेशक (कानून एवं व्यवस्था) अरुण कुमार ने बताया कि पुलिस अधीक्षक (नगर) की रिपोर्ट पर लड़की को हिरासत में रखने के मामले में महिला पुलिस थाना प्रभारी गयाश्री चौहान और उपनिरीक्षक सरिता द्विवेदी को निलंबित कर दिया गया है। साथ ही इस संबंध में अज्ञात पुलिसकर्मियों के विरुद्ध मुकदमा भी दर्ज किया गया है।  लेकिन अब इस मामले ने सियासी रंग लेना शुरू कर दिया है। राजनीतिक दल सक्रि य हो गए हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी के निर्देश पर पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता संतोष जाटव 10 अप्रैल को मीरपुर गांव पहुंचे और पीड़ित परिवार से पूछताछ की। उनके अलावा और भी नेताओं के गांव पहुंचने का दौर जारी है।

कोतवाली पुलिस पर कार्रवाई क्यों नहीं की?



आईपीएस अधिकारी व एसपी (सिटी) अजय कुमार साहनी दुष्कर्म व पुलिस के खिलाफ दर्ज मामले की जांच कर रहे हैं। उन्होंने माना कि थाना कोतवाली (नगर) के सीनियर सब इंस्पेक्टर पीआर शर्मा और कुछ अन्य पुलिसकर्मी भी जांच के दायरे में हैं। पेश है उनसे की गई बातचीत के मुख्य अंश:
दुष्कर्म का मामला होते हुए भी पुलिस ने तुरंत कार्रवाई क्यों नहीं की?
कार्रवाई तो की गई है। पुलिस ने 7 अप्रैल (घटना) की रात साढ़े 11 बजे ही इस मामले के आरोपी के खिलाफ दफा 376 और 306 के तहत मामला दर्ज कर थाना कोतवाली पुलिस ने जांच शुरू कर दी थी। अब इस मामले की विवेचना सीओ (क्षेत्राधिकारी) सिटी वैभव कृष्ण कर रहे हैं।
फिर मामला इतना बिगड़ कैसे गया? क्या कोतवाली पुलिस ने पीड़ित बच्ची को   हिरासत में रखने का आदेश दिया था?
     कोतवाली प्रभारी इंस्पेक्टर कवींद्र नारायण मिश्र उस रोज अवकाश पर थे। एसएसआई पीआर शर्मा का कहना है कि उन्हें पेशबंदी के तहत फंसाया जा रहा है। मामले की जांच की जा रही है। जो भी दोषी होगा, उसके खिलाफ जरूर कार्रवाई की जाएगी।
महिला थाना के अज्ञात पुलिसकर्मियों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ है। कहीं यह लीपापोती का प्रयास तो नहीं है?
    प्रारंभिक रिपोर्ट में दुष्कर्म की पुष्टि नहीं हुई है। हमें पैथालॉजिकल रिपोर्ट का इंतजार है। वहीं, अब तक चार महिला पुलिसकर्मियों महिला थाना के एसओ गयाश्री चौहान, एसआई सरिता द्विवेदी और दो सिपाहियों को निलंबित कर दिया गया है।
पीड़ित बच्ची का अगर 7 अप्रैल की रात ही डॉक्टरी परीक्षण हो गया था, तो उसे परिजनों के हवाले क्यों नहीं किया गया? बच्ची को हिरासत (हवालात) में क्यों रखा गया?
   मामले की जांच की जा रही है। हम यह भी देख रहे हैं कि 8 अप्रैल की शाम तक बच्ची को महिला थाने में रखने का क्या औचित्य था? पीड़ित लड़की के बड़े भाई की तहरीर के आधार पर महिला पुलिस थाना के अज्ञात कर्मियों के खिलाफ भी बच्ची को हवालात में रखने का मामला दर्ज कर लिया गया है। शीघ्र ही आरोपी पुलिसकर्मियों के नाम उजागर हो जाएंगे।
पीड़ित परिवार को जान-माल का खतरा है?
पीड़ित परिवार की मांग पर दो पुलिस वाले तैनात किए गए हैं। साथ ही वे हमारी निगरानी में हैं।

बढ़ते अपराध के चलते हटाए गए डीजी


प्रदेश में हत्या, दुष्कर्म, लूट और डकैती की घटनाओं पर नजर डालें तो यूपी के प्रमुख शहर यानी राजधानी लखनऊ, कानपुर, मेरठ, आगरा, वाराणसी, इलाहाबाद, गोरखपुर और बरेली में ही पिछले एक साल में 1059 हत्याएं की गर्इं, 382 दुष्कर्म, 906 लूट की वारदात और 64 डकैतियां पड़ीं। लखनऊ में पिछले साल अप्रैल से अब तक 126 हत्याएं, 42 दुष्कर्म, 35 लूट और 4 डकैती की घटनाएं हो चुकी हैं। वहीं राजधानी से महज 80 किलोमीटर दूर कानपुर का हाल और भी बुरा है। पिछले साल अप्रैल से इस साल मार्च तक यहां 253 हत्याएं, 75 दुष्कर्म, 146 लूट और 10 डकैतियां पड़ीं। मेरठ भी अपराध के मामले में पुलिस के लिए बड़ी चुनौती साबित होता दिख रहा है। यहां अप्रैल 2012 से अब तक 211 हत्याएं, 62 बलात्कार, 246 लूट की घटनाएं और 22 डकैतियां पड़ चुकी हैं। अन्य शहरों की बात करें, तो आगरा में जहां 2012 में 70 हत्याएं, 32 दुष्कर्म, 230 लूट और 3 डकैती की घटनाएं हुर्इं। वहीं इस साल अब तक 28 हत्याएं, 13 दुष्कर्म, 40 लूट और तीन डकैतियां पड़ चुकी हैं। इलाहाबाद में 2012 में 102 हत्याएं, 49 दुष्कर्म, 47 लूट और 3 डकैती की घटनाएं हुर्इं। वहीं 2013 में अब तक तीन महीने में यहां 22 हत्याएं, 5 दुष्कर्म, 7 लूट की घटनाएं हो चुकी हैं। इसी तरह बरेली में 2012 में 84 हत्याएं, 48 दुष्कर्म, 68 डकैती और दो लूट की घटनाएं हुर्इं, जबकि 2013 में अब तक 12 हत्याएं, 6 दुष्कर्म, 12 लूट और तीन डकैती की घटनांए हो चुकी हैं। गोरखपुर में 2012 में 57 हत्याएं, 28 दुष्कर्म, 39 लूट और 7 डकैती की घटनाएं दर्ज की गर्इं, जबकि इस साल अभी तक 7 हत्याएं, 5 दुष्कर्म, 8 लूट और 6 डकैती यहां हो चुकी हैं। वहीं वाराणसी में 2012 में जनवरी से दिसंबर तक 21 हत्याएं हुर्इं, 9 दुष्कर्म, 14 लूट की घटनाएं हुर्इं, जबकि इस साल अब तक यहां 13 हत्याएं हो चुकी हैं, इनके अलावा 8 दुष्कर्म, 14 लूट और एक डकैती की घटना दर्ज हो चुकी है।
प्रदेश में बढ़ते अपराध के चलते राज्य सरकार ने पुलिस महानिदेशक अंबरीश चंद्र शर्मा को 12 अप्रैल की शाम हटा दिया। इनकी जगह पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नित बोर्ड के चेयरमैन देवराज नागर को राज्य का नया पुलिस महानिदेशक बनाया गया है। शर्मा को डीजी पीएसी पद की जिम्मेदारी सौपी गई है।

सुप्रीम कोर्ट ने लिया संज्ञान


उच्चतम न्यायालय के संज्ञान में लेने के बाद प्रदेश के एडीजी अरुण कुमार ने  इस बात की पुष्टि की है कि 10 अप्रैल की शाम दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए गए हैं। इस मामले की जांच बुलंदशहर के  पुलिस अधीक्षक (नगर) अजय कुमार साहनी को सौंपी गई है, लेकिन हैरानी इस बात की है कि थाने में आपराधिक कृत्य करने वाले पुलिसकर्मियों को पुलिस अभी चिन्हित तक नहीं कर पाई है। एसपी साहनी के अनुसार, थाना कोतवाली के एसएसआई पीआर शर्मा की तहरीर पर अज्ञात पुलिसवालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया है। लोगों का कहना है कि यह महज खानापूर्ति की जा रही है। क्योंकि 15 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में खुद का बचाव भी करना है।
महिला थाने के जिस हवालात में लड़की को रखा गया, उसके बारे में नई थाना प्रभारी पुष्पा शर्मा ने बताया कि यह हावालात के साथ-साथ सुरक्षा केबिन भी है। वहीं, इस बीच पीड़ित बालिका को हवालात में रखकर उत्पीड़न किए जाने के मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए उत्तर प्रदेश मानवाधिकार आयोग के चेयरमैन जस्टिस एचके सेमा ने प्रदेश के मुख्य सचिव, डीजीपी, प्रमुख सचिव (गृह) और एसएसपी बुलंदशहर को नोटिस दी है। चेयरमैन ने इन अधिकारियों को एक माह का मौका देते हुए घटना और  की गई कार्रवाई के संदर्भ में आख्या मांगी है। लेकिन 12 अप्रैल को ‘हमवतन’ से फोन पर बातचीत करते हुए निलंबित महिला दारोगा ने जो कहा, उससे इस मामले में एक बड़ा मोड़ आ गया है। दंडित महिला पुलिसकर्मियों का कहना है कि असली मुलजिम कोई और है। उन्हें बलि का बकरा बनाया जा रहा है। निलंबित महिला सिपाहियों के अनुसार, दुष्कर्म पीड़ित बच्ची को कोतवाली के एसएसआई शर्मा के आदेश पर हवालात में डाला गया था। निलंबित एसओ गयाश्री चौहान और एसआई   सरिता द्विवेदी ने बताया कि 7 अप्रैल की रात उनकी नामौजूदगी में करीब साढ़े तीन बजे बच्ची को महिला थाने लाया गया। सुबह जब वह आई तो बच्ची को पूछताछ के लिए कोतवाली नगर बुलाया गया था। इसके बाद थानाध्यक्ष गयाश्री चौहान क्राइम मीटिंग में चली गई। उन्हें तो इस घटना के बारे में जानकारी ही नहीं है। बच्ची का मेडिकल रात साढ़े तीन बजे हो गया था। इसके बाद बच्ची को उसे परिजनों के हवाले कर दिया जाना चाहिए था पर ऐसा नहीं किया गया। क्यों? एसआई सरिता द्विवेदी का कहना है कि जब वह 8 अप्रैल की सुबह थाने में आर्इं, तो उस समय बच्ची लॉकअप में नहीं थी। इसके बाद वह राउंड पर चली गई। उन्होंने सिपाही नीरू और सोनिया से बात की। दोनों ने बताया कि एसएसआई कोतवाली व एक दरोगा बच्ची को लेकर आए थे और उन्होंने ही कहा कि इसे हवालात में डाल दो, कहीं भाग न जाए। उन्हें कुछ पता नहीं था। अफसर के आदेश की नाफरमानी भी वह नहीं कर सकती थीं।

पंचायत ने सुनाया फरमान, दलितों में बढ़ी दहशत

15 अप्रैल को मीरपुर गांव में कथित दुष्कर्म मामले को लेकर पंचायत की गई। पंचों ने पीड़ित दलित परिवार को 40 हजार रुपये देते हुए मामले को  वापस लेने का दबाव बनाया। साथ ही पंचायत ने कहा है कि जब डॉक्टरी रिपोर्ट में दुष्कर्म की पुष्टि नहीं हुई है, तो आरोपी हरेंद्र को पुलिस फौरन रिहा करे। इससे दलित परिवार की दहशत और बढ़ गई है। पीड़ित परिजनों का कहना है, ‘सर्वण हमें गांव से निकालने की साजिश रच रहे हैं।’
-जितेन्द्र बच्चन

बुधवार, 3 अप्रैल 2013

जुर्म की रियासत

हर रोज यहां होता है 5 महिलाओं से बलात्कार! 10 लड़कियों से छेड़छाड़! दो कत्ल और 9 दूसरी वारदात! ये है आज की दिल्ली की दास्तान! सोनिया की रियासत! मनमोहन की राजधानी! यहां पास होता है संसद में कानून, फिर भी क्राइम पर नहीं है कंट्रोल! क्राइम कैपिटल बन चुकी है दिल्ली! क्योंकि यहां जुर्म है ज्यादा!