सोमवार, 22 अप्रैल 2013


हैवानियत

नन्हीं-सी जान और दो-दो शैतान! न दया आई, न ही दिल पसीजा। हैवानियत की सारी हदें पार कर गए दरिंदे। आंखों का पानी तो पहले ही मर चुका था, इंसानियत का भी कत्ल कर डाला! रही-सही कसर पुलिस ने बच्ची के बाप को दो हजार रुपये देने की पेशकश कर पूरी कर दी! लानत है ऐसी पुलिस पर, जो वर्दी को शर्मसार कर दे!


पांच साल की बच्ची के साथ हैवानियत! दहल उठी दिल्ली! सदमे में हैं देश के प्रधानमंत्री! कांप उठा मां का कलेजा। हिल गए लोग, लेकिन दुष्कर्मियों के न हाथ कांपे और न ही दिल पसीजा। बहते रहे आंसू, सिसकती रही मासूम। तब भी जालिमों को तरस नहीं आया, दबोच लिया भूखे भेड़िये की तरह। रौंद डाली सारी मासूमियत। तोड़ते रहे कहर। ढाते रहे सितम। लहूलुहान हो गई इंसानियत! बेहोश हो गई बच्ची! भूखी-प्यासी 40 घंटे बंद रखा कमरे में। हवा तक नहीं लगने दी बाहर की। उफ्! कितना दर्द बर्दाश्त किया होगा उसने। वह भी महज पांच साल की उम्र में। दो दिन बाद बड़ी मुश्किल से मां का सामना हुआ, तो खून से लथपथ थी मासूम। जिस्म का अंग-अंग जख्मी था उसका। पर, हाय री दिल्ली पुलिस, इस पर भी उसका रवैया हैरान करने वाला रहा। इस बात का एहसास होते ही कि मामला मीडिया में जा सकता है और फिर होगी हमारी छीछालेदर, बच्ची को दिल्ली के एक कोने में बने नगर निगम के अस्पताल में ले जाकर दाखिल करा दिया, ताकि पता न चले किसी को। एक पुलिसकर्मी ने लड़की के पिता को दो हजार रुपये देने की कोशिश की। उसका कहना था, ‘खर्चा-पानी दे रहा हूं। किसी से कुछ बताओगे, तो मुफ्त में बदनाम हो जाओगे। चुप रहने में ही बेहतरी है।’ पिता की आंखें भर आइं- ‘क्या तुम्हारी बच्ची के साथ कोई दुष्कर्म करता, तब भी तुम मामला रफा-दफा करने की कोशिश करते?’ कितनी शूरमा है दिल्ली पुलिस! हैवानों के आगे घुटने टेक देती है, लेकिन पीड़ित से सौदा करने में कभी नहीं चूकती! इतना भी नहीं सोचा कि अगर पुलिस ही इंसाफ के दरवाजे पर ताला लगाकर बैठ जाएगी, तो कैसे बचेगी लोकतंत्र की इज्जत? बेदिल ही नहीं, बेदर्द भी है दिल्ली पुलिस।
वाकया 15 अप्रैल 2013 का है। पूर्वी दिल्ली के गांधीनगर इलाके में मासूम गुड़िया का परिवार रहता है। पिता पेशे से बेलदार है और चाचा मेहनत-मजदूरी करता है। प्रथम तल पर किराए का कमरा ले रखा है। गरीबी में ही गुजर-बसर होता है। वारदात की शाम पांच साल की गुड़िया अपने दरवाजे पर खेल रही थी, तभी भूतल पर रहने वाला मनोज (22) आ गया। मासूम को देखते ही उसके दिमाग का शैतान नाचने लगा। वह बहला-फुसलाकर उसे अपने कमरे में ले आया। अगवा कर लिया बच्ची को। कमरे में उसका दोस्त प्रदीप भी था। दोनों ने गुड़िया के साथ दो दिन तक कई बार रेप किया। तब भी मन नहीं भरा, तो बच्ची के प्राइवेट पार्ट में दो मोमबत्तियां और सौ मिलीलीटर तेल की सीलबंद एक शीशी डाल दी। बेचारी दर्द से बिलबिला उठी, लेकिन हैवानों को उस पर तरस नहीं आया। बच्ची की छाती, होंठ और गालों पर दांत काटने के कई निशान हैं। गला दबाने और चाकू से गर्दन काटने की कोशिश भी की गई। बच्ची बेहोश हो गई। शैतानों ने सोचा, शायद बच्ची खत्म हो गई और दोनों आरोपी बाहर से दरवाजे पर ताला लगाकर फरार हो गए। गुड़िया के माता-पिता बेटी को खोज-खोजकर परेशान थे। पूरा दिन बीत गया। सारा गली-मोहल्ला छान मारा। समझ में नहीं आ रहा था कि नन्हीं-सी जान को धरती निगल गई या आसमान। रात करीब साढ़े आठ बजे बच्ची की मां थाना गांधीनगर पहुुंची। एसएचओ धर्मपाल सिंह और सब-इंस्पेक्टर महावीर सिंह, दोनों थाने में मौजूद थे। मां उनके आगे रोने लगी, ‘साहब! मेरी फूल-सी बच्ची न जाने कहां गायब हो गई। बहुत तलाश किया, लेकिन कुछ पता नहीं चल रहा है।’ पुलिस ने बड़ी हिकारत से एक नजर उसे देखा, फिर झिड़कते हुए कहा, ‘तो यहां क्यों चली आई? पुलिस कोई जादू की छड़ी है क्या कि घुमाया और लड़की मिल गई! जाओ, खुद ही तलाश करो।’ उसी समय गुड़िया के पिता और चाचा भी थाने आ पहुंचे। वे भी बार-बार पुलिसवालों से हाथ-पांव जोड़ते रहे। बड़ी मुश्किल से रात करीब 10 बजे थानेदार का दिल पसीजा। उसके आदेश पर अपहरण का मामला दर्ज कर लिया गया। घटना की तफ्तीश सब-इंस्पेक्टर महावीर सिंह को मिली, लेकिन महावीर ने मौके पर जाकर छानबीन करने की जरूरत नहीं समझी। उन्होंने परिजनों को बच्ची को तलाशने की हिदायत देकर घर भेज दिया। गोया एफआईआर लिख ली और तफ्तीश भूल गए। अगले रोज भी बच्ची का कुछ पता नहीं चला, न ही कोई पुलिस वाला पीड़ित परिवार के घर पूछताछ करने आया। मां-बाप बेटी को लेकर हलकान रहे। पूरी रात आंखों-आंखों में काट दी। तीसरे दिन भी मां का कलेजा बच्ची को लेकर कचोटता रहा, ‘न जाने कहां है गुड़िया? किस हाल में होगी हमारी बेटी?’ तभी पड़ोसी मनोज के कमरे से लड़की के रोने की आवाज सुनकर उसका कलेजा मुंह को आ लगा- ‘यह तो मेरी बेटी है!’ मां के सीने पर दोहत्थड़ बजने लगे। छाती-कपार पीटते हुए उसने सारा मोहल्ला इकट्ठा कर लिया। पिता ने फोन पर मामले की सूचना पुलिस को दी। तब भी सब-इंस्पेक्टर महावीर सिंह मौके पर नहीं गए। लोगों ने मनोज के कमरे का ताला तोड़ दिया। सामने गुड़िया खून से लथपथ बेहोश पड़ी थी। काटो तो खनू नहीं, सब के सब अवाक् रह   गए। मां-बाप की पीड़ा का पारावार न था। फूट-फूटकर रोने लगे परिजन। पुलिस को हालात से अवगत कराया गया। एसएचओ के निर्देश पर बच्ची को दिलशाद गार्डन स्थित स्वामी दयानंद अस्पताल में ले जाकर भर्ती करा दिया गया। यहां के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. आरएन बंसल ने बताया कि बच्ची की हालत बहुत नाजुक थी। उसकी तत्काल सर्जरी की गई। प्राइवेट पार्ट से मोमबत्तियों के टुकड़े और पेट में सौ मिलीलीटर तेल की एक शीशी निकली। बच्ची के पेट में भी संक्रमण पाया गया है। इस बीच दुष्कर्म की यह घटना जो ही सुनता, आक्रोश में मुट्ठी ताने विरोध करने दयानंद अस्पताल पहुंचने लगा। लोगों ने हंगामा और प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। ‘आप’ के तमाम कार्यकर्ता सड़कों पर उतरकर पुलिस के विरोध में नारे बुलंद करने लगे। करवां बढ़ता गया और विरोध भी। लोगों की मांग थी कि आरोपी को फौरन गिरफ्तार किया जाए और बच्ची को किसी बड़े अस्पताल में रेफर किया जाए, लेकिन पुलिस और सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। 19 अप्रैल को जब मामला हाथ से निकलने लगा, तो दिल्ली सरकार के वरिष्ठ मंत्री डॉ. एके वालिया, किरण वालिया और कांग्रेस सांसद संदीप दीक्षित बच्ची को देखने दयानंद अस्पताल पहुंचे। आक्रोशित लोगों ने इनका जमकर विरोध किया। प्रदर्शनकारियों ने किरण वालिया को गाड़ी से बाहर नहीं निकलने दिया। डॉ. वालिया और संदीप दीक्षित के साथ धक्का-मुक्की की गई। वहीं, अब तक इस मामले में दिल्ली पुलिस का चेहरा बेनकाब हो चुका था। प्रदर्शन कर रहे लोगों के बीच मौजूद इलाके के एसीपी बनी सिंह अहलावत दोषी पुलिसकर्मियों को बर्खास्त करने की मांग सुनकर तिलमिला उठे। उन्होंने प्रदर्शन कर रही ‘आम आदमी पार्टी’ की कार्यकर्ता बीनू रावत को दो झापड़ रसीद कर दिए। तब तो लोगों का गुस्सा और फूट पड़ा। थाना गांधीनगर से लेकर अस्पताल तक विरोध करने वाले सड़क पर उतर आए। डॉ. वालिया सहम गए। उनके आदेश पर तुरंत बच्ची को दयानंद अस्पताल से एम्स रेफर कर दिया गया। एम्स के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. डीके शर्मा के अनुसार, दुष्कर्म पीड़ित बच्ची को तत्काल एबी-5 की पांचवीं मंजिल पर आईसीयू में शिफ्ट किया गया। इलाज के लिए डिपार्टमेंट आॅफ गायनकोलॉजी, पीडियाट्रिक सर्जरी, पीडियाट्रिक मेडिसन और डिपार्टमेंट आॅफ एनेस्थेसिया के चार डॉक्टरों की टीम बनाई गई। इस बीच लोगों के बढ़ते विरोध व आक्रोश को देख-सुनकर मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के भी हाथ-पांव फूल आए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने घटना पर हैरानी जताते हुए दिल्ली के उपराज्यपाल से बात की और लापरवाह अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई करने पर जोर दिया। गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने भी मामले की समीक्षा की। उसके बाद पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार को कुछ दिशा-निर्देश दिए। दिल्ली पुलिस मुख्यालय में हड़कंप मच गया। रात करीब आठ बजे पुलिस कमिश्नर के घर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की एक बैठक हुई, जिसमें विशेष पुलिस आयुक्त (कानून एवं व्यवस्था) दीपक मिश्रा भी शामिल थे। रात लगभग नौ बजे मीटिंग समाप्त होने के पश्चात पुलिस मुख्यालय में पूर्वी दिल्ली के डीसीपी प्रभाकर ने पत्रकारों को बताया कि एसीपी बीएस अहलावत को दुर्व्यवहार के मामले में निलंबित कर दिया गया है। रेप केस में लापरवाही बरतने वाले थाना गांधीनगर के एसएचओ धर्मपाल सिंह और मामले के विवेचनाधिकरी  महावीर सिंह को सस्पेंड कर दिया गया है। साथ ही पीड़ित परिवार को दो हजार रुपये देने की कोशिश के मामले की जांच विजिलेंस शाखा को सौंप दी गई है। इसके अगले रोज 20 अप्रैल को दिल्ली पुलिस की टीम ने आरोपी मनोज (22) को बिहार के मुजफ्फरपुर स्थित थाना करजा के चिकनौटा गांव में उसकी ससुराल से गिरफ्तार कर लिया। आरोपी ने पुलिस पूछताछ में गुड़िया के साथ गुनाह करने का जुर्म कबूल कर लिया है। 22 अप्रैल 2013 को इस मामले के दूसरे आरोपी प्रदीप को भी पुलिस ने बिहार के लखीसराय से गिरफ्तार कर लिया। वह अपने मामा के घर बढ़ैया गांव में छिपा था। प्रदीप मूल रूप से दरभंगा बिहार का रहने वाला है। दोनों अब तिहाड़ जेल में हैं। लेकिन दुष्कर्म की इस घटना के विरोध में लोगों का विरोध जारी है। पुलिस मुख्यालय और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के निवास पर लोगों का लगातार धरना-प्रदर्शन जारी था। उनकी मांग है, पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार इस्तीफा दें। भाजपा नेता सुषमा स्वराज ने आरोपी को फांसी देने की मांग की है। इसके बावजूद अपराधियों के हौंसले बुलंद हैं। राजधानी में रेप की घटनाएं थमने का नाम ले रही हैं।

शातिर दिमाग है मुलजिम
आरोपी मनोज मूल रूप से ग्राम भरथुआ थाना औराई जिला मुजफ्फरपुर बिहार का रहने वाला है। उसके दो भाई और चार बहने हैं। मनोज के पिता बिंदेश्वर शाह दिल्ली के ओल्ड सीलमपुर इलाके में फ्रूट जूस की रेहड़ी लगाते हैं, जबकि मनोज एक फैक्ट्री में मजदूरी करता था। करीब साल भर पहले इसने गांव में लव मैरिज की थी। पत्नी गांव में ही रहती है। मनोज को इसके पहले भी वर्ष 2010 में थाना गांधीनगर पुलिस ने बिना इजाजत किसी के घर में घुसने के मामले में गिरफ्तार किया था। उस वक्त करीब सवा महीने वह जेल में रहा था। वह बहुत शातिर दिमाग है। मुजफ्फरपुर में भी मनोज के खिलाफ दो आपराधिक मामले दर्ज हैं। बेटे की हरकतों से तंग आकर पिता ने उसे घर से निकाल दिया था। इसके बाद उसने पीड़ित के घर के पास किराए पर कमरा लिया था। घटना की शाम मनोज ने दोस्त प्रदीप के साथ अश्लील फिल्म देखी और  दोनों ने शराब भी पी थी। उसके बाद दोनों ने  मासूम के सथ रेप किया। दोनों आरोपियों ने पूछताछ में गुनाह कबूल कर लिया है।
प्रभाकर, डीसीपी, पूर्वी दिल्ली

तारीख बदली तकदीर नहीं
16 दिसंबर को दिल्ली में हुई दामिनी गैंगरेप की घटना से भी दिल्ली पुलिस ने कोई सबक नहीं सीखा। आपको याद होगा पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार साहब, आपने उस वक्त कहा था कि ‘हर कंप्लेंट पर कार्रवाई की जाएगी।’ दिल्ली के लोगों से वादे किए थे, सड़क पर पूरी फोर्स उतरेगी। बिस्तर से उठकर पुलिस अफसर सुरक्षा में लगेंगे। तारीख बदली, दिन बदले, लेकिन तकदीर नहीं बदली। पहले दामिनी शिकार बनी थी और अब गुड़िया! उस रोज 16 दिसंबर था और आज 15 अप्रैल। दरिंदगी की कहानी वही है और पुलिस कमिश्नर भी आप ही हैं। गुस्सा तो बहुत आएगा आपको यह पढ़कर कि आपकी पुलिस के निकम्मेपन की कहानी हम बता रहे हैं। क्या करें, हकीकत से मुंह नहीं मोड़ा जाता कमिश्नर साहब! न तो आपकी पुलिस ने उस घटना से कोई सबक लिया और न ही दिल्ली में जुर्म कम हुआ। उस पिता से क्या कहें कमिश्नर साहब, जिसकी बेटी के साथ रेप हुआ और पुलिस उसी पर मामले को दबाने का दबाव बनाती रही। छह घंटे तक मां को इस कोशिश में थाने में बिठाए रखा कि शायद अब भी मामला रफा-दफा हो जाए?

लापरवाही की हद कर दी
इस मामले पर केंद्र सरकार को सख्त कदम उठाना चाहिए। दिल्ली पुलिस महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अत्याचार पर रोक लगाने में अक्षम रही है। लापरवाही की हद कर दी है।
-ममता शर्मा, अध्यक्ष, राष्ट्रीय महिला आयोग

उच्चस्तरीय जांच की मांग
पीड़ित बच्ची के परिजनों ने पुलिस पर रिश्वत देने का जो आरोप लगाया है, वह अपने आपमें शर्मनाक है। इसकी उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए।
-बरखा सिंह, अध्यक्ष, राज्य महिला आयोग
-जितेंद्र बच्चन

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