सोमवार, 15 अप्रैल 2013


हवालात की हकीकत

यूपी पुलिस की एक और काली करतूत! महिला पुलिस ने ही मासूम पर ढाया जुल्म! मांगा न्याय, मिली हवालात! भ्रष्ट पुलिस का अमानवीय चेहरा बेनकाब! पूरी रात आरोपी के परिजनों से होती रही सौदेबाजी! बात नहीं बनी, तो दबंग दारोगा ने पीड़ित बच्ची को ही हिरासत में ले लिया! क्या है हकीकत? बुलंदशहर से लौटकर खोजपरक रिपोर्ट...


      उत्तर प्रदेश पुलिस का घिनौना चेहरा! वर्दीधारी गुंडों की करतूत! क्र ाइम कंट्रोल के नाम पर बुलंदशहर पुलिस ने लगाया अखिलेश सरकार को पलीता! रोंगटे खड़े कर देने वाले दिल्ली के सामूहिक दुष्कर्म कांड के बाद भी पुलिस के रवैए में कोई सुधार नहीं आया है। रेप के कानून में कड़े प्रावधान के पश्चात भी पुलिस खुद को कानून से ऊपर समझती है। बुलंदशहर में दलित बच्ची के साथ हुई घटना ने साबित कर दिया है कि समाज का कमजोर तबका आज भी सुरक्षा के साथ सम्मान का जीवन जीने को दूभर है। दस साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म हुआ था। उसकी हालत खराब थी। बेटी के साथ मां मामला दर्ज कराने थाना कोतवाली पहुंची, तो पहले पुलिस ने कोई सुनवाई नहीं की। बाद में दोनों को रात भर कोतवाली में बिठाए रखा। इस बीच बच्ची का डॉक्टरी परीक्षण भी नहीं कराया। मुसीबत तब और बढ़ गई, जब बच्ची को महिला थाने भेज दिया। वहां भोर में महिला पुलिसकर्मियों ने लड़की के परिजनों को कुछ रुपये दिलाने की बात कहकर मामला दर्ज न कराने को कहा। तब भी पीड़ित पक्ष नहीं माना, तो उन्हें गालियां दी गईं और मासूम बच्ची को ही हवालात में डाल दिया।
 समाज और कानून को ठेंगा दिखाने वाला यह वाकाया 7 अप्रैल, 2013 का है। आठ अप्रैल की सुबह पुलिस की यह शर्मनाक करतूत जंगल में लगी आग की तरह फैलते देर नहीं लगी। शहर में बवाल मच गया। करतूत मीडिया की सुर्खियां बनने लगीं। मामला सर्वोच्च न्यायालय तक जा पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश अल्तमस कबीर के नेतृत्व वाली पीठ ने 10 अप्रैल को स्वत: इस मामले पर संज्ञान लेते हुए नाराजगी जताई और उप्र सरकार को नोटिस देकर पूछा है कि पुलिस दस वर्षीय लड़की को हिरासत में कैसे रख सकती है?
बुलंदशहर का मीरपुर गांव लोधी बहुल है। मुख्यालय से 22 किमी दूर और हाईवे से महज तीन किमी पूर्व में बसे इस गांव की आबादी करीब 1600 है। गांव में चार घर जाटवों के हैं, बाकी 146 घर लोध राजपूत के हैं। जाटवों में ही एक परिवार 47 वर्षीय रामलाल (परिवर्तित नाम) का है। दलित समुदाय के रामलाल की जिंदगी हमेशा दुश्वारियों और किल्लत से भरी रही। उसके दस बच्चे हैं। चार लड़के और छह लड़कियां। पत्नी का नाम इमरती देवी (परिवर्तित नाम) है। दो कमरों के एक घर में बड़ी मुश्किल से पूरे परिवार का गुजर-बसर होता है। खुद रामलाल किराने की एक दुकान पर 200 रुपये रोज की दिहाड़ी पर काम करता है। सबसे बड़ा बेटा मामचंद (परिवर्तित नाम) 25 साल का है। उसकी शादी हो चुकी है। मेहनत-मजदूरी करके घर-गृहस्थी में हाथ बंटाता है, लेकिन आजकल पीलिया से पीड़ित है। तमाम जगह की खाक छानते हुए जब हम पीड़ित लड़की के घर पहुंचे, तो बच्ची के कई नाते-रिश्तेदार मौजूद थे। दरवाजे पर दो पुलिसकर्मी पहरा दे रहे थे। उन्होंने मुझे तिरछी नजरों से घूरा- लो, एक और मीडिया वाले आ गए!
लड़की की मां और बहनों का रो-रोकर बुरा हाल था। थोड़ी देर पहले ही एक महिला डॉक्टर बच्ची को दवा आदि देकर गई थी। बच्ची एक कंबल ओढ़कर घर की कच्ची फर्श पर लेटी हुई थी और अब भी उसकी हालत ठीक नहीं थी। हमारे कैमरामैन को देखते ही घर की ड्योढ़ी पर बैठी कुछ महिलाओं की आंखें भर आर्इं। गोया न्याय मिलने की आस फिर से जाग उठी हो। जितने मुंह उतनी बात, ‘देखिए साहब जी, दबंगों ने इस बच्ची के साथ कितनी जोर-जबरदस्ती की है?’ मां के एक-एक आंसू दुष्कर्म और पुलिसिया अत्याचार की कहानी बता रहे थे। वैसे यह परिवार हमेशा से गांव के दबंगों के निशाने पर रहा है, लेकिन 7 अप्रैल की शाम करीब साढ़े छह बजे जैसे दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा। बच्ची गांव में ही किराने की दुकान से कुछ सामान लेने गई थी। वहां से लौटते समय गांव के ही हरेंद्र लोध की नजर उस पर पड़ गई। लड़की के साथ छह साल की उसकी भतीजी भी थी। उसी ने कुछ देर बाद आकर इमरती देवी को बताया कि गांव का हरेंद्र लड़की को जबरन खींचकर खेतों में ले गया है। वहां भिटौर (उपलों का ढेर) की आड़ में उसके साथ गलत काम कर रहा है।
इमरती देवी का कलेजा मुंह को आ लगा। वह करीब-करीब दौड़ती हुई घर से बाहर निकली। खेतों के बीच पतली-सी सड़क पर उसकी मासूम बच्ची बेहोशी की हालत में पड़ी थी। उसके चेहरे और पूरे शरीर पर काटने और जख्म के निशान थे। बेटी की दुर्दशा देखकर मां का कलेजा कचोटने लगा। वह छाती-कपार पीटती हुई चीखने-चिल्लाने लगी। पास-पड़ोस के तमाम लोग जुट आए। जैसे-तैसे बेहोश बेटी को घर लाया गया। गांव के ही एक-दो लोगों ने मामले की खबर पुलिस को दी, लेकिन कोई नहीं आया। गुस्साए परिजनों ने पुलिस के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी।
इमरती देवी के अनुसार, गांव के कई राजपूतों ने उसका घर घेर लिया। दबंगों का कहना था कि लड़की की जो भी कीमत है, उसे लेकर मामला यहीं रफा-दफा कर दो। थाना-पुलिस करने की जरूरत नहीं है। कोर्ट-कचेहरी में लड़की ने मुंह खोला, तो उसे पत्थरों से   मार-मारकर हम उसकी जान ले लेंगे, लेकिन परिजन साहस बटोरकर रात करीब 9 बजे पीड़ित बच्ची के साथ थाना कोतवाली पहुंच गए। इंस्पेक्टर कवींद्र नारायण मिश्र कोतवाली में मौजूद नहीं थे। सेकंड अफसर सीनियर सब इंस्पेक्टर पीआर शर्मा से इमरती ने घटना के बारे में बताया। उन्हें लिखित में आरोपी हरेंद्र के खिलाफ एक तहरीर भी दी, लेकिन पुलिस मामला दर्ज न कर बड़े (कोतवाल) साहब के आने की बात कर समय जाया करती रही। साहब को न आना था और न ही आए, क्योंकि इंस्पेक्टर मिश्र उस रोज अवकाश पर थे। इस बीच बताया जाता है कि शर्मा का आरोपी पक्ष से भी संपर्क बना रहा। उनका इरादा शायद दबंगों से कुछ रुपये-पैसे दिलवाकर समझौता करवाना था, इसलिए रेप का केस दर्ज न कर मामले को टालते रहे।
रात करीब तीन बजे एसएसआई शर्मा पीड़ित बच्ची को महिला थाना ले गए, जो थाना कोतवाली के बगल में ही है। महिला थानाध्यक्ष गयाश्री चौहान और सब इंस्पेक्टर सरिता द्विवेदी कार्यालय में मौजूद थीं। इमरती देवी ने उनसे भी दुष्कर्म का मामला दर्ज करने की फरियाद की, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया। इमरती देवी बताती हैं कि महिला थाने में मौजूद पुलिसकर्मियों ने उन्हें खूब गालियां दीं, फिर उनकी बेटी को दो झापड़ मारकर हवालात में ठूंस दिया। मैं वहीं लॉकअप के बाहर बैठी रही। रात पहाड़ बन गई, बड़ी मुश्किल से बीती। सुबह 8 अप्रैल को लोगों को पता चला तो महिला थाना और कोतवाली पर भीड़ बढ़ने लगी। इस बीच महिला पुलिसकर्मियों ने जल्दी से पीड़ित बच्ची को हवालात से बाहर निकाल दिया।
लेकिन तब तक मीडिया के माध्यम से मामले की भनक एसएसपी गुलाब सिंह और पुलिस अधीक्षक (नगर) अजय कुमार साहनी को लग चुकी थी। ये दोनों अधिकारी थाना कोतवाली आ गए। उन्होंने माना कि मामला संगीन है और विक्टिम को किसी भी स्थिति में हवालात में बंद नहीं किया जा सकता। उनके आदेश पर थाना कोतवाली पुलिस ने हरेंद्र लोध के खिलाफ दुष्कर्म का मामला दर्ज कर बच्ची को मेडिकल के लिए हॉस्पिटल भेज दिया। इसके थोड़ी देर बाद पुलिस ने मीरपुर निवासी दो बच्चों के पिता आरोपी हरेंद्र को गिरफ्तार कर लिया। उसके खिलाफ एससी/एसटी एक्ट और जान से मारने की धमकी का भी आरोप है, लेकिन खुद हरेंद्र ने पुलिस के सामने ही रेप करने की बात से इंकार किया है। उसका कहना है, ‘घटना की शाम बच्ची उसके खेत में टमाटर तोड़ रही थी। उसने मना किया और उसे पकड़कर दो थप्पड़ मारे और वहां से भगा दिया। इसके अलावा उसने और कुछ नहीं किया।’ लेकिन इमरती देवी उस शाम का वाकया याद आते ही कांप जाती हैं। वह रुंधे गले से बताती हैं, ‘दबंग कहते हैं कि वे मरद हैं। मन मचल गया, तो कौन-सा पहाड़ टूट पड़ा। असली कसूर तो तुम लोगों का है। क्यों लड़की को अकेली घर से बाहर भेजती हो? एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी! हमारा घर जलाने और बेटी कोे मारने की धमकी दे रहे हैं दबंग। गांव की पंचायत भी उन्हीं के साथ है। हम पर बराबर मुकदमा वापस लेने का दबाव डाला जा रहा है।’
8 अप्रैल को जिलाधिकारी जीएस प्रियदर्शी ने मामले की विस्तृत जानकारी मांगी, तो शाम तक एसएसपी गुलाब सिंह ने मामले को ठंडा करने की नीयत से महिला थाना की दो सिपाही नीरू और सोनिया को निलंबित कर दिया। सोचा था मामला दब जाएगा, लेकिन लोगों का विरोध लगातार जारी रहा, तो महिला थानाध्यक्ष गयाश्री चौहान और वहीं की एक सब इंस्पेक्टर सरिता द्विवेदी को भी लाइन हाजिर कर दिया गया। इन सभी पर पीड़ित बच्ची को लॉकअप में बंद करने का आरोप है। एसएसपी के अनुसार, 9 अप्रैल को डॉक्टरी रिपोर्ट मिली। मेडिकल जांच में रेप की पुष्टि नहीं हुई है। इस मामले की विवेचना क्षेत्राधिकारी (नगर) वैभव नारायण मिश्र कर रहे हैं। 10 अप्रैल को प्रदेश के अपर पुलिस महानिदेशक (कानून एवं व्यवस्था) अरुण कुमार ने बताया कि पुलिस अधीक्षक (नगर) की रिपोर्ट पर लड़की को हिरासत में रखने के मामले में महिला पुलिस थाना प्रभारी गयाश्री चौहान और उपनिरीक्षक सरिता द्विवेदी को निलंबित कर दिया गया है। साथ ही इस संबंध में अज्ञात पुलिसकर्मियों के विरुद्ध मुकदमा भी दर्ज किया गया है।  लेकिन अब इस मामले ने सियासी रंग लेना शुरू कर दिया है। राजनीतिक दल सक्रि य हो गए हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी के निर्देश पर पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता संतोष जाटव 10 अप्रैल को मीरपुर गांव पहुंचे और पीड़ित परिवार से पूछताछ की। उनके अलावा और भी नेताओं के गांव पहुंचने का दौर जारी है।

कोतवाली पुलिस पर कार्रवाई क्यों नहीं की?



आईपीएस अधिकारी व एसपी (सिटी) अजय कुमार साहनी दुष्कर्म व पुलिस के खिलाफ दर्ज मामले की जांच कर रहे हैं। उन्होंने माना कि थाना कोतवाली (नगर) के सीनियर सब इंस्पेक्टर पीआर शर्मा और कुछ अन्य पुलिसकर्मी भी जांच के दायरे में हैं। पेश है उनसे की गई बातचीत के मुख्य अंश:
दुष्कर्म का मामला होते हुए भी पुलिस ने तुरंत कार्रवाई क्यों नहीं की?
कार्रवाई तो की गई है। पुलिस ने 7 अप्रैल (घटना) की रात साढ़े 11 बजे ही इस मामले के आरोपी के खिलाफ दफा 376 और 306 के तहत मामला दर्ज कर थाना कोतवाली पुलिस ने जांच शुरू कर दी थी। अब इस मामले की विवेचना सीओ (क्षेत्राधिकारी) सिटी वैभव कृष्ण कर रहे हैं।
फिर मामला इतना बिगड़ कैसे गया? क्या कोतवाली पुलिस ने पीड़ित बच्ची को   हिरासत में रखने का आदेश दिया था?
     कोतवाली प्रभारी इंस्पेक्टर कवींद्र नारायण मिश्र उस रोज अवकाश पर थे। एसएसआई पीआर शर्मा का कहना है कि उन्हें पेशबंदी के तहत फंसाया जा रहा है। मामले की जांच की जा रही है। जो भी दोषी होगा, उसके खिलाफ जरूर कार्रवाई की जाएगी।
महिला थाना के अज्ञात पुलिसकर्मियों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ है। कहीं यह लीपापोती का प्रयास तो नहीं है?
    प्रारंभिक रिपोर्ट में दुष्कर्म की पुष्टि नहीं हुई है। हमें पैथालॉजिकल रिपोर्ट का इंतजार है। वहीं, अब तक चार महिला पुलिसकर्मियों महिला थाना के एसओ गयाश्री चौहान, एसआई सरिता द्विवेदी और दो सिपाहियों को निलंबित कर दिया गया है।
पीड़ित बच्ची का अगर 7 अप्रैल की रात ही डॉक्टरी परीक्षण हो गया था, तो उसे परिजनों के हवाले क्यों नहीं किया गया? बच्ची को हिरासत (हवालात) में क्यों रखा गया?
   मामले की जांच की जा रही है। हम यह भी देख रहे हैं कि 8 अप्रैल की शाम तक बच्ची को महिला थाने में रखने का क्या औचित्य था? पीड़ित लड़की के बड़े भाई की तहरीर के आधार पर महिला पुलिस थाना के अज्ञात कर्मियों के खिलाफ भी बच्ची को हवालात में रखने का मामला दर्ज कर लिया गया है। शीघ्र ही आरोपी पुलिसकर्मियों के नाम उजागर हो जाएंगे।
पीड़ित परिवार को जान-माल का खतरा है?
पीड़ित परिवार की मांग पर दो पुलिस वाले तैनात किए गए हैं। साथ ही वे हमारी निगरानी में हैं।

बढ़ते अपराध के चलते हटाए गए डीजी


प्रदेश में हत्या, दुष्कर्म, लूट और डकैती की घटनाओं पर नजर डालें तो यूपी के प्रमुख शहर यानी राजधानी लखनऊ, कानपुर, मेरठ, आगरा, वाराणसी, इलाहाबाद, गोरखपुर और बरेली में ही पिछले एक साल में 1059 हत्याएं की गर्इं, 382 दुष्कर्म, 906 लूट की वारदात और 64 डकैतियां पड़ीं। लखनऊ में पिछले साल अप्रैल से अब तक 126 हत्याएं, 42 दुष्कर्म, 35 लूट और 4 डकैती की घटनाएं हो चुकी हैं। वहीं राजधानी से महज 80 किलोमीटर दूर कानपुर का हाल और भी बुरा है। पिछले साल अप्रैल से इस साल मार्च तक यहां 253 हत्याएं, 75 दुष्कर्म, 146 लूट और 10 डकैतियां पड़ीं। मेरठ भी अपराध के मामले में पुलिस के लिए बड़ी चुनौती साबित होता दिख रहा है। यहां अप्रैल 2012 से अब तक 211 हत्याएं, 62 बलात्कार, 246 लूट की घटनाएं और 22 डकैतियां पड़ चुकी हैं। अन्य शहरों की बात करें, तो आगरा में जहां 2012 में 70 हत्याएं, 32 दुष्कर्म, 230 लूट और 3 डकैती की घटनाएं हुर्इं। वहीं इस साल अब तक 28 हत्याएं, 13 दुष्कर्म, 40 लूट और तीन डकैतियां पड़ चुकी हैं। इलाहाबाद में 2012 में 102 हत्याएं, 49 दुष्कर्म, 47 लूट और 3 डकैती की घटनाएं हुर्इं। वहीं 2013 में अब तक तीन महीने में यहां 22 हत्याएं, 5 दुष्कर्म, 7 लूट की घटनाएं हो चुकी हैं। इसी तरह बरेली में 2012 में 84 हत्याएं, 48 दुष्कर्म, 68 डकैती और दो लूट की घटनाएं हुर्इं, जबकि 2013 में अब तक 12 हत्याएं, 6 दुष्कर्म, 12 लूट और तीन डकैती की घटनांए हो चुकी हैं। गोरखपुर में 2012 में 57 हत्याएं, 28 दुष्कर्म, 39 लूट और 7 डकैती की घटनाएं दर्ज की गर्इं, जबकि इस साल अभी तक 7 हत्याएं, 5 दुष्कर्म, 8 लूट और 6 डकैती यहां हो चुकी हैं। वहीं वाराणसी में 2012 में जनवरी से दिसंबर तक 21 हत्याएं हुर्इं, 9 दुष्कर्म, 14 लूट की घटनाएं हुर्इं, जबकि इस साल अब तक यहां 13 हत्याएं हो चुकी हैं, इनके अलावा 8 दुष्कर्म, 14 लूट और एक डकैती की घटना दर्ज हो चुकी है।
प्रदेश में बढ़ते अपराध के चलते राज्य सरकार ने पुलिस महानिदेशक अंबरीश चंद्र शर्मा को 12 अप्रैल की शाम हटा दिया। इनकी जगह पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नित बोर्ड के चेयरमैन देवराज नागर को राज्य का नया पुलिस महानिदेशक बनाया गया है। शर्मा को डीजी पीएसी पद की जिम्मेदारी सौपी गई है।

सुप्रीम कोर्ट ने लिया संज्ञान


उच्चतम न्यायालय के संज्ञान में लेने के बाद प्रदेश के एडीजी अरुण कुमार ने  इस बात की पुष्टि की है कि 10 अप्रैल की शाम दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए गए हैं। इस मामले की जांच बुलंदशहर के  पुलिस अधीक्षक (नगर) अजय कुमार साहनी को सौंपी गई है, लेकिन हैरानी इस बात की है कि थाने में आपराधिक कृत्य करने वाले पुलिसकर्मियों को पुलिस अभी चिन्हित तक नहीं कर पाई है। एसपी साहनी के अनुसार, थाना कोतवाली के एसएसआई पीआर शर्मा की तहरीर पर अज्ञात पुलिसवालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया है। लोगों का कहना है कि यह महज खानापूर्ति की जा रही है। क्योंकि 15 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में खुद का बचाव भी करना है।
महिला थाने के जिस हवालात में लड़की को रखा गया, उसके बारे में नई थाना प्रभारी पुष्पा शर्मा ने बताया कि यह हावालात के साथ-साथ सुरक्षा केबिन भी है। वहीं, इस बीच पीड़ित बालिका को हवालात में रखकर उत्पीड़न किए जाने के मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए उत्तर प्रदेश मानवाधिकार आयोग के चेयरमैन जस्टिस एचके सेमा ने प्रदेश के मुख्य सचिव, डीजीपी, प्रमुख सचिव (गृह) और एसएसपी बुलंदशहर को नोटिस दी है। चेयरमैन ने इन अधिकारियों को एक माह का मौका देते हुए घटना और  की गई कार्रवाई के संदर्भ में आख्या मांगी है। लेकिन 12 अप्रैल को ‘हमवतन’ से फोन पर बातचीत करते हुए निलंबित महिला दारोगा ने जो कहा, उससे इस मामले में एक बड़ा मोड़ आ गया है। दंडित महिला पुलिसकर्मियों का कहना है कि असली मुलजिम कोई और है। उन्हें बलि का बकरा बनाया जा रहा है। निलंबित महिला सिपाहियों के अनुसार, दुष्कर्म पीड़ित बच्ची को कोतवाली के एसएसआई शर्मा के आदेश पर हवालात में डाला गया था। निलंबित एसओ गयाश्री चौहान और एसआई   सरिता द्विवेदी ने बताया कि 7 अप्रैल की रात उनकी नामौजूदगी में करीब साढ़े तीन बजे बच्ची को महिला थाने लाया गया। सुबह जब वह आई तो बच्ची को पूछताछ के लिए कोतवाली नगर बुलाया गया था। इसके बाद थानाध्यक्ष गयाश्री चौहान क्राइम मीटिंग में चली गई। उन्हें तो इस घटना के बारे में जानकारी ही नहीं है। बच्ची का मेडिकल रात साढ़े तीन बजे हो गया था। इसके बाद बच्ची को उसे परिजनों के हवाले कर दिया जाना चाहिए था पर ऐसा नहीं किया गया। क्यों? एसआई सरिता द्विवेदी का कहना है कि जब वह 8 अप्रैल की सुबह थाने में आर्इं, तो उस समय बच्ची लॉकअप में नहीं थी। इसके बाद वह राउंड पर चली गई। उन्होंने सिपाही नीरू और सोनिया से बात की। दोनों ने बताया कि एसएसआई कोतवाली व एक दरोगा बच्ची को लेकर आए थे और उन्होंने ही कहा कि इसे हवालात में डाल दो, कहीं भाग न जाए। उन्हें कुछ पता नहीं था। अफसर के आदेश की नाफरमानी भी वह नहीं कर सकती थीं।

पंचायत ने सुनाया फरमान, दलितों में बढ़ी दहशत

15 अप्रैल को मीरपुर गांव में कथित दुष्कर्म मामले को लेकर पंचायत की गई। पंचों ने पीड़ित दलित परिवार को 40 हजार रुपये देते हुए मामले को  वापस लेने का दबाव बनाया। साथ ही पंचायत ने कहा है कि जब डॉक्टरी रिपोर्ट में दुष्कर्म की पुष्टि नहीं हुई है, तो आरोपी हरेंद्र को पुलिस फौरन रिहा करे। इससे दलित परिवार की दहशत और बढ़ गई है। पीड़ित परिजनों का कहना है, ‘सर्वण हमें गांव से निकालने की साजिश रच रहे हैं।’
-जितेन्द्र बच्चन

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