रविवार, 22 जुलाई 2018

मुन्ना बजरंगी हत्याकांड: किसकी साजिश, कौन सूत्रधार?



-जितेन्द्र बच्चन
सोमवार की सुबह करीब 6.10 बजे उत्तर प्रदेश की बागपत जेल में पूर्वांचल के कुख्यात माफिया डॉन मुन्ना बजरंगी की गोली मारकर हत्या कर दी गई। लखनऊ से लेकर दिल्ली-मुंबई तक जिस बजरंगी का आतंक था, 40 से ज्यादा हत्याएं कर चुका था, लूट, अपहरण और रंगदारी जैसी कई संगीन वारदात को अंजाम दे चुका था, सरकार ने सात लाख का इनाम घोषित कर रखा था, उसी को गोलियों से भून दिया गया। वह भी जेल के अंदर। इतनी बड़ी साजिश! पुलिस के साथ-साथ सियासी हल्के में भी हड़कंप मच गया- किसने रची साजिश, कौन है सूत्रधार? क्या किसी सफेदपोश के इशारे पर इस वारदात को अंजाम दिया गया या फिर वर्दीवाले बिक गए? आखिर इस कत्ल का मकसद क्या है और कौन है कातिल?
51 वर्षीय प्रेम प्रकाश सिंह उर्फ मुन्ना बजरंगी उत्तर प्रदेश के जनपद जौनपुर के पूरेदयाल गांव का रहने वाला था। पिता का नाम पारस नाथ सिंह है। वह मुन्ना को पढ़ा-लिखाकर बड़ा आदमी बनाना चाहते थे, लेकिन बेटे को फिल्मों की तरह गैंगस्टर बनने का शौक हो गया। पिता के अरमानों को कुचलते हुए 5वीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी और किशोर उम्र में ही जुर्म की राह पर चल पड़ा। महज 17 साल की उम्र में उसके खिलाफ जौनपुर के थाना सुरेरी में मारपीट और अवैध असलहा रखने का मामला दर्ज हुआ।
1980 आते-आते मुन्ना अपराध की दुनिया में एक अलग पहचान बनाने लगा। इसी दौरान जौनपुर के स्थानीय दबंग माफिया गजराज सिंह ने उसे संरक्षण दे दिया। मुन्ना के हौंसले और बुलंद हो गए। वर्ष 1984 में मुन्ना ने लूट के लिए एक व्यापारी की हत्या कर दी। इसके बाद गजराज के इशारे पर जौनपुर के भाजपा नेता रामचंद्र सिंह का भी मर्डर कर दिया। फिर तो पूर्वांचल में मुन्ना बजरंगी की तूती बोलने लगी।
1990 में मुन्ना पूर्वांचल के बाहुबली माफिया मुख्तार अंसारी की गैंग में शामिल हो गया। वह मऊ से अपनी गैंग संचालित कर रहे थे पर वर्चस्व पूरे पूर्वांचल पर था। करीब छह साल बाद मुख्तार ने अपराध की दुनिया से राजनीति में कदम रखा। वह 1996 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर मऊ से विधायक निर्वाचित हुए। मुख्तार की ताकत बढ़ गई। उनके निर्देश पर मुन्ना सरकारी ठेकों को भी अब प्रभावित करने लगा था।
उधर उन्हीं दिनों भाजपा विधायक कृष्णानंद राय भी तेजी से आगे बढ़ने लगे। पूर्वांचल में सरकारी ठेकों और वसूली के कारोबार पर उनका कब्जा होने लगा। दरअसल, कृष्णानंद पर मुख्तार अंसारी के दुश्मन ब्रिजेश सिंह का हाथ था। कृष्णानंद का गैंग तजी से फलने-फूलने लगा। दोनों गैंग के मुखिया अपनी-अपनी ताकत बढ़ाने के लिए अंडरवर्ल्ड के साथ भी जुड़ गए। बाद में कृष्णानंद मुख्तार की आंख की किरकिरी बन गए। उसने चुनौती बन रहे कृष्णानंद का काम तमाम करने का मन बना लिया। यह जिम्मेदारी मुन्ना बजरंगी को दी गई। मुन्ना ने मुख्तार के निर्देश पर 29 नवंबर, 2005 को दिनदहाड़े कृष्णानंद राय को गोलियों से भून दिया।
मुन्ना और उसके साथियों ने लखनऊ हाईवे पर गाजीपुर से बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की दो गाड़ियों पर एके- 47 से 400 गोलियां बरसाई थीं। वारदात में राय के अलावा उनके साथ चल रहे छह अन्य लोग भी मारे गए थे। इन सभी के शरीर से पोस्टपार्टम के दौरान 60 से 100 तक गोलियां बरामद हुईं थीं। इस घटना के बाद मुन्ना बजरंगी के नाम से हर कोई खौफ खाने लगा। कानून की नजर में वह मोस्ट वॉन्टेड बन गया। हत्या, अपहरण और वसूली के कई मामले उस पर अब तक दर्ज हो चुके थे। सरकार ने मुन्ना बजरंगी पर सात लाख रुपये का इनाम घोषित कर दिया। सीबीआई, उत्तर प्रदेश पुलिस और एसटीएफ उसे तलाशने लगी।
मुन्ना लगातार लोकेशन बदलता रहा। पुलिस का दबाव भी लगातार बढ़ता गया। यूपी, बिहार और दिल्ली में रहना मुश्किल हो गया तो मुन्ना भागकर मुंबई पहुंच गया। वहां एक लंबा अरसा उसने गुजारा। अंडरवर्ल्ड के लोगों से रिश्ते गहरे हो गए। उन्हीं दिनों लोकसभा चुनाव होने लगा तो उसने गाजीपुर लोकसभा सीट पर एक महिला को डमी उम्मीदवार बनाने की कोशिश की। इस बात को लेकर मुन्ना के मुख्तार अंसारी से संबंध खराब हो गए। उधर राय की हत्या के चलते भाजपा भी मुन्ना को दरकिनार कर चुकी थी। ऐसे में उसने कांग्रेस का दामन थाम लिया।

लेकिन अपराधी कितना भी चालक क्यों न हो, कानून से ज्यादा गुनाह की उम्र नहीं होती। दिल्ली पुलिस ने 29 अक्टूबर, 2009 को दिल्ली के विवादास्पद एनकाउंटर स्पेशलिस्ट राजबीर सिंह की हत्या में हाथ होने के शक में मुंबई के मलाड इलाके से मुन्ना को गिरफ्तार कर लिया। तब से उसे अलग-अलग जेलों में रखा जा रहा था। इसके बावजूद वह जेल से लोगों को धमकाने, वसूली करने जैसे मामलों को अंजाम देता रहा। खुद मुन्ना का दावा था कि वह 20 साल में 40 हत्याएं कर चुका है।
रविवार, 08 जुलाई को मुन्ना बजरंगी को झांसी जेल से बागपत जेल में शिफ्ट किया गया था। बसपा के पूर्व विधायक लोकश दीक्षित और उनके भाई नारायण दीक्षित से 22 सितंबर, 2017 को फोन पर रंगदारी मांगने और धमकी देने के मामले में मुन्ना को सोमवार को कोर्ट में पेशी थी। उसी सुबह बागपत जेल में गोली मारकर उसकी हत्या कर दी गई। सिर और सीने पर कुल 10 गोलियां मारी गई थीं। मुन्ना बजरंगी की पत्नी सीमा सिंह की तहरीर पर थाना खेखड़ा पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर तफ्तीश शुरू कर दी है। मुन्ना बजरंगी के वकील विकास श्रीवास्वत का कहना है कि माफिया सुनील राठी ने उसकी हत्या की है। पुलिस ने कत्ल में इस्तेमाल पिस्टल जेल की गटर से बरामद कर लिया है। साथ ही आरोपी सुनील राठी से कड़ी पूछताछ जारी थी।
पुलिस तीन एंगल से गैंगस्टर सुनील राठी से पूछताछ कर रही है।
उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अपराध जगत में सुनील राठी कुख्यात है। हाल ही में राठी को रुड़की जेल से बागपत शिफ्ट किया गया था। राठी का भाई पूर्वांचल की जेल में बंद है, जहां उसके साथ हाल ही में कुछ कैदियों ने जेल में दबदबे को लेकर मारपीट की थी। राठी को शक था कि उसके भाई के साथ मारपीट करने वाले मुन्ना बजरंगी के गुर्गे थे। दूसरा, सुनील राठी का उत्तराखंड में बड़ा वर्चव था। वहां की जेल में रहते हुए राठी कारोबारियों से अवैध वसूली कर रहा था। मुन्ना की नजर भी उत्तराखंड पर थी। तीसरा कारण किसी ने मुन्ना बजरंगी की हत्या की सुपारी दी थी।
लेकिन 09 जुलाई को बागपत जिला अस्पताल में मुन्ना बजरंगी की पत्नी सीमा सिंह ने यह कहकर सनसनी फैला दी कि इस हत्याकांड की साजिश में केंद्रीय रेलमंत्री मनोज सिन्हा, पूर्व सांसद धनंजय सिंह और कृष्णानंद राय की पत्नी व भाजपा विधायक अलका राय शामिल हैं। इन्हीं लोगों ने शासन-प्रशासन से मिलकर मुन्ना बजरंगी की हत्या करवाई है। ये लोग नहीं चाहते थे कि वह राजनीति में आगे जाएं। सीमा ने यह भी कहा कि इससे पहले भी उसके पति पर कई बार हमले हो चुके हैं। इसकी शिकायत हमने मुख्यमंत्री से भी की थी और सुरक्षा की गुहार लगाई थी, लेकिन हमारी बात को गंभीरता से नहीं लिया गया।
फिलहाल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर मामले की न्यायिक जांच के आदेश दिए गए हैं। एडीजी जेल ने त्वरित कार्रवाई करते हुए बागपत के जेलर उदय प्रताप सिंह, डिप्टी जेलर शिवाजी यादव, हेड वार्डन अरजिंदर सिंह और बैरक के प्रभारी माधव कुमार को निलंबित कर दिया है। कारागार की व्यवस्था सुचारू रूप से संचालित रहे, इसके लिए जिला कारागार गौतमबुद्धनगर के जेलर सुरेश कुमार सिंह को तैनात किया गया है। सीमा सिंह ने मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है। वहीं इस सवाल का जवाब अब भी नहीं मिला है कि जेल में पिस्टल कैसे पहुंचा? और जेल में जिस सेल के पास मुन्ना बजरंगी को गोली मारी गई, वहां के सीसीटीवी खराब क्यों थे?
सवाल और भी हैं। जैसे हत्या के वक्त बैरक के पास लगा सीसीटीवी काम नहीं कर रहा था। क्या ऐसा जान-बूझकर किया गया था या यह सिर्फ जेल प्रशासन की लापरवाही है? जिस तरह से हाई सिक्योरिटी बैरक में हत्यारे ने गोली मारकर फोटो खींची, इससे साफ है कि वो पूरे इत्मिनान में था कि काम होने तक उसे कोई पकड़ने नहीं आएगा। कहीं जेल प्रशासन या सिस्टम का आदमी हत्यारे से मिला हुआ था? इसके अलावा एक और सवाल बड़ा है, कहीं सरकारी मशीनरी ने ही मुन्ना बजरंगी को सोची-समझी साजिश के तहत ठिकाने तो नहीं लगा दिया?
अब नियमित होगा जेलों का निरीक्षण
जेलों में बिगड़ी व्यवस्था को सुधारने के लिए अब कड़ी नजर रखी जायेगी। वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा जेलों का निरीक्षण भी अब नियमित होगा। लापरवाही पर विधिक कार्रवाई की जायेगी। शासन भी इस मामले को लेकर गंभीर है और जेलों के अंदर की व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए एक प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक सुलखान सिंह की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय एक कमेटी का गठन किया गया है।
- चन्द्र प्रकाश, अपर पुलिस महानिदेशक, जेल

यूपी की जेलों में पहले भी हो चुका है खूनखराबा
15 मार्च, 2005 : वाराणसी के केंद्रीय कारागार में मुन्ना बजरंगी के शार्प शूटर अनुराग उर्फ अन्नू त्रिपाठी की गोली मारकर हत्या। अन्नू त्रिपाठी बंशीलाल यादव की हत्या के आरोप में वाराणसी की जेल में बंद था।
16 मार्च, 2012 : कानपुर देहात के माती जेल में  सजायाफ्ता बंदी रामशरण सिंह भदौरिया की संदिग्ध हालत में बैरक के अंदर ही हुई मौत। इस मामले में बंदियों का आरोप था कि वसूली को लेकर जेल के सुरक्षा कर्मियों ने देर रात रामशरण की पिटाई की थी, जिससे उसकी मौत हो गयी।
18 अप्रैल, 2012 : मेरठ के कारागार में जेल अधिकारियों द्वारा जेल के अंदर तलाशी के दौरान कैदियों ने बवाल कर दिया। स्थिति को संभालने के लिए गोली चलानी पड़ी, जिसमें एक बंदी मेहरादीन पुत्र बाबू खां और कैदी सोमवीर ने दम तोड़ दिया।
14 फरवरी, 2014 : गाजीपुर जेल में निरीक्षण के दौरान जिला प्रशासन के अधिकारियों व कैदियों के बीच कहासुनी खूनी संघर्ष में तब्दील हो गई। आक्रोशित कैदियों को काबू में करने के लिए बल  प्रयोग में एक बंदी विश्वनाथ प्रजापति की मौत हो गयी।
17 जनवरी, 2015 : मथुरा की जेल में बंदियों के दो गुट आपस में भिड़ गए। इस दौरान एक बंदी द्वारा रिवाल्वर से दूसरे बंदी पिन्टू उर्फ अक्षय सोलंकी पुत्र सत्येन्द्र सोलंकी की हत्या कर दी थी।
26 मार्च, 2017 : फर्रूखाबाद के फतेहगढ़ जिला जेल में  थी को सही समय पर इलाज न मुहैया कराये जाने पर कैदियों ने हंगामा शुरु कर दिया। जेलकर्मियों पर पथराव कर जेल के भंडार गृह में आग लगा दी थी। बवाल में प्रभारी जिलाधिकारी, मुख्य विकास अधिकारी और जेल अधीक्षक समेत कई अधिकारियों को चोटें आयी थीं।
21 मई, 2017 : कन्नौज जनपद के अनोगी जेल में जेलरों द्वारा एक कैदी की पिटाई से नाराज कैदियों ने देर रात बवाल कर दिया। शांत कराने के लिए पहुंचे जेल अधीक्षक यूपी मिश्रा को घेरकर कैदियों ने हाथापाई शुरू कर दी। जेलर को बचाने पहुंचे डिप्टी जेलर सुरेन्द्र मोहन तो कैदियों ने उनको जमकर पीटा था।
19 दिसम्बर, 2017 : जौनपुर की जिला जेल में कैदियों के दो गुटों के बीच बवाल हो गया था। इस खूनी संघर्ष में कुख्यात अपराधी प्रमोद राठी सहित छह बदमाश घायल हुए थे।

रविवार, 17 जून 2018

शशि थरूर हाजिर हो!


-जितेन्द्र बच्चन
कानून के कटघरे में शशि थरूर। उधड़ने लगीं सुनंदा पुष्कर की मौत की परतें। टूटने लगा 17 जनवरी 2014 की रात का तिलस्म। दिल्ली पुलिस का संगीन इल्जाम। कांग्रेस के एक और वरिष्ठ नेता का चेहरा बेनकाब। करीब चार साल तक एक शख्स बड़े-बड़े अधिकारियों के लिए छलावा बना रहा। मामले की तफतीश में लगी दिल्ली पुलिस भी गच्चा खा गई, लेकिन उसी की एसआईटी के कुछ अफसरों की नजर अर्जुन की तरह सिर्फ और सिर्फ मछली की आंख पर लगी रही। तीर निशाने पर बैठा और कोर्ट में पेश तीन हजार पेज की चार्जशीट पर अदालत ने 5 जून, 2018 को संज्ञान ले लिया- शशि थरूर हाजिर हो!
5 जून, 2018 को दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट के एडिशनल चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट समर विशाल ने दिल्ली पुलिस की एसआईटी की चार्जशीट पर संज्ञान लेते हुए कहा है, ''दलीलें सुनने के बाद इस मामले में चार्जशीट और अन्य दस्तावेजों के आधार पर केस आगे बढ़ाया जा सकता है। पुलिस की रिपोर्ट में शशि थरूर पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने और उनके साथ क्रूर तरीके से पेश आने के आरोपी हैं। उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए पर्याप्त आधार है।'' अदातल ने शशि थरूर को 7 जुलाई को इस मामले में हाजिर होने का आदेश दिया है।
पुलिस का दावा है कि थरूर के खिलाफ आरोपों की जांच पेशेवर तरीके से की गई है और कोर्ट में वह अपने आरोपों का बचाव करेगी। वहीं थरूर के वकील विकास पाहवा ने कोर्ट के फैसले पर कहा कि शशि थरूर ने कोई गुनाह किया ही नहीं है। सारा केस मनगढ़ंत है। चार्जशीट से निपटने के लिए हमारे पास सभी कानूनी रास्ते खुले हुए हैं। खुद कांग्रेस नेता थरूर ने भी एक बयान में कहा है, ''इस मामले की शुरुआत से ही मैंने जांच में पूरा सहयोग किया और सभी तरह से कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया। पुलिस की चार्जशीट मनगढ़ंत और बदले की भावना से तैयार की गई है। यह हमारी छवि धूमिल करने की साजिश का हिस्सा है। आखिर में जीत सत्य की होती है।'' इससे पहले थरूर ने अपने एक ट्वीट में चार्जशीट को हास्यास्पद बताया था और कहा था- ''जो कोई भी सुनंदा को जानता था, उसे यह बात पता है कि केवल मेरे उकसाने से वह आत्महत्या नहीं कर सकती है। यह अविश्वसनीय है।''
फिलहाल, पुलिस का मानना है कि शशि थरूर के खिलाफ पर्याप्त सबूत (यथावत के 01 से 15 जून के अंक में प्रकाशित) मौजूद हैं। मार्च 2018 में आई सीक्रेट रिपोर्ट की मानें तो पुलिस को पहले दिन से पता था कि सुनंदा की हत्या की गई है। दिल्ली पुलिस के डिप्टी कमिश्नर बी. एस. जायसवाल ने जो पहली रिपोर्ट तैयार की थी, उसमें साफ तौर पर जिक्र था कि वसंत विहार के एसडीएम आलोक शर्मा ने निरीक्षण के बाद कहा था कि यह सुसाइड नहीं है। इस आधार पर सरोजिनी नगर थाना के एसएचओ को इस मामले की जांच हत्या के तौर पर भी करने को कहा था।
ज्ञात रहे कि 17 जनवरी, 2014 की रात दिल्ली के लीला होटल के कमरा नंबर 345 में सुनंदा पुष्कर संदिग्ध हालात में मृत मिली थीं। उनकी बॉडी होटल के एक कमरे में बेड पर पड़ी थी। दिल्ली पुलिस ने जांच शुरू की और एक साल बाद मर्डर केस दर्ज किया था। अदालत में दिल्ली पुलिस ने सुनवाई के दौरान यह भी बताया कि मौत से दो दिन पहले सुनंदा पुष्कर ने एक बेहद उदासी भरी कविता लिखी थी। उन्होंने लिखा था कि वह जीना नहीं, मरना चाहती हैं। कथित तौर पर इससे एक दिन पहले सुनंदा और पाकिस्तानी पत्रकार मेहर तरार के बीच ट्विटर पर बहस हुई थी। यह बहस शशि थरूर के साथ मेहर के कथित ‘अफेयर’ को लेकर हुई थी। पुलिस ने सुनंदा की कविता को चार्जशीट का हिस्सा बनाया है। साथ ही थरूर के नौकर नारायण सिंह को मुख्य गवाह बनाया है।
7 जुलाईको मामले की अगली सुनवाई एडिशल चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट (एसीएमएम) समर विशाल की अदालत में होगी। भारतीय जनता पार्टी के नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा है कि वह इस केस में हस्तक्षेप याचिका दायर कर आईपीसी की धारा 201 (साक्ष्यों को नष्ट करने) और 302 (हत्या) को भी जोड़ने की मांग करेंगे। अब आगे क्या होगा, यह तो वक्त के गर्भ में है, लेकिन इतना निश्वित है कि 3000 पन्नों की चार्जशीट में सांसद शशि थरूर अकेले आरोपी हैं। इसमें आईपीसी 498ए (महिला पर क्रूरता के लिए पति या उसका कोई संबंधी जिम्मेदार) और आईपीसी 306 (खुदकुशी के लिए उकसाना) का जिक्र है। अगर इन दोनों धाराओं के तहत शशि थरूर दोशी पाए जाते हैं तो 498ए में अधिकतम तीन साल और दफा 306 में 10 साल की सजा हो सकती है।

रविवार, 3 जून 2018

सुनंदा मामले में थरूर पर कसेगा कानून का शिकंजा


-जितेन्द्र बच्चन
तकदीर का सितम कहें या फिर कुछ और, सुनंदा पुष्कर जीते जी जितनी सुर्खियों में रहीं, मौत के बाद भी वे उतनी ही सुर्खियों में हैं। कश्मीर मूल की सुनंदा की जिंदादिली का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि महिलाओं पर लिखी प्रसून जोशी की एक कविता वह अक्सर गुनगुनाती रहतीं- ‘नारी हूं मैं, मजबूरी या लाचारी नहीं। खुद अपनी जिम्मेदारी हूं मैं, नारी हूं मैं...।’ जिन मुद्दों पर बड़े-बड़े नेता बयान देने से बचते हैं, उन पर सुनंदा बेबाकी से राय रखतीं। लेकिन उनकी मौत का रहस्य आज भी बरकरार है। किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि इतनी तरक्कीपसंद महिला का अंत इस तरह होगा।
करीब सवा चार साल बाद 14 मई, 2018 को सुनंदा पुष्कर की मौत के मामले में दिल्ली पुलिस की एसआइटी (विशेष जांच दल) ने पटियाला हाउस कोर्ट में चार्जशीट दायर की है। एसआईटी ने आत्महत्या के लिए उकसाने और प्रताड़ना की धाराओं के तहत करीब 3000 पेज की चार्जशीट में पूर्व केंद्रीय मंत्री व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर को मुख्य संदिग्ध आरोपी माना है। उन्हें कॉलम नंबर 11 में रखा गया है, लेकिन निचली अदालत और हाई कोर्ट की तमाम फजीहत के बाद दिल्ली पुलिस ने जो चार्जशीट पेश की है, उससे उसकी मंशा पर ही सवाल उठने लगे हैं। खुद थरूर ने कहा है, '17 अक्टूबर, 2017 को दिल्ली हाई कोर्ट में मामले के जांच अधिकारी ने बयान दिया था कि इस केस में उन्हें किसी के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं मिला है। अब छह महीने बाद वह कह रहे हैं कि मैंने सुनंदा को खुदकशी के लिए उकसाया है। यह अविश्वसनीय है।'
दरअसल 17 जनवरी, 2014 की रात दिल्ली के होटल लीला पैलेस के कमरा नंबर 345 से मौत की जो पहेली बाहर निकली, उसकी गुत्थी आज तक नहीं सुलझी है। फाइव स्टार के उस होटल में सुनंदा का शव मिला था। 20 जनवरी की प्रथम पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि सुनंदा की मौत दवा के ओवरडोज से हुई है। यानी दवा जहर बन गई, लेकिन दवा का ओवरडोज सुनंदा ने जान-बूझकर लिया या फिर अनजाने में? इसे खुदकुशी कहेंगे या फिर गलती से हुई मौत, यह गुत्थी नहीं सुलझी तो सुनंदा के शव का दोबारा पोस्टमार्टम कराया गया। एम्स के मेडिकल बोर्ड ने 29 सितंबर, 2014 की रिपोर्ट में बताया कि सुनंदा की मौत जहर से हुई है। लेकिन वह जहर कौन-सा था, इसके बारे में बोर्ड नहीं बता पाया। नतीजतन मौत का रहस्य बरकरार रहा।
पुलिस की तफ्तीश में इस बीच एक और बात पता चली कि घटना से एक दिन पहले सुनंदा और पाकिस्तानी पत्रकार मेहर तरार के बीच ट्विटर पर बहस हुई थी। यह बहस शशि थरूर के साथ मेहर के कथित ‘अफेयर’ को लेकर हुई थी। थाना सरोजनी नगर पुलिस ने एक जनवरी, 2015 को अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर शशि थरूर सहित कई व्यक्तियों से पूछताछ की। थरूर के घरेलू सहायक नारायण सिंह, चालक बजरंगी और दोस्त संजय दीवान का पॉलीग्राफ टेस्ट भी कराया गया, लेकिन सुनंदा की मौत का कोई सुराग नहीं मिला। तब सुनंदा के विसरा को जांच के लिए एफबीआई लैब अमेरिका भेजा गया। वहां की लैब में भी जहर के बारे में पता नहीं लग सका।
सुनंदा पुष्कर (51) की पहचान सिर्फ केंद्रीय मानव संसाधन राज्य मंत्री रहे शशि थरूर की पत्नी तक ही सीमित नहीं थी। वह एक सफल बिजनेस वुमन थीं और उनकी खुद की संपत्ति 100 करोड़ से अधिक है। हाई प्रोफाइल सुनंदा ने जीवन का सफर जम्मू कश्मीर की हसीन वादियों से शुरू कर दुबई की तपती रेत तक भरपूर जिया। इतना जिया कि लोगों को उनकी शख्शियत पर रश्क होता। मूल रूप से कश्मीर के सोपोर जिले के बंमई गांव की रहने वाली सुनंदा का जन्म 01 जनवरी, 1962 को हुआ था। बाद में कश्मीर में आतंकी घटनाएं बढ़ने लगीं तो परिवार जम्मू आ गया। पिता पुष्कर नाथ दास आर्मी में लेफ्टीनेंट कर्नल थे, जबकि सुनंदा का एक भाई सेना में उच्चाधिकारी है और दूसरा डॉक्टर है।
19 साल की उम्र में सुनंदा की कश्मीरी ब्राह्मण संजय रैना के साथ पहली शादी हुई थी। रैना उन दिनों दिल्ली के एक होटल में कार्यरत थे। सुनंदा भी एक होटल में रिसेप्शनिस्ट थीं, लेकिन दोनों का वैवाहिक जीवन अच्छा नहीं गुजरा। वर्ष 1988 में दोनों का तलाक हो गया। आजाद ख्याल की सुनंदा ने वर्ष 1989 में दिल्ली का रुख कर लिया, जहां वह हाई प्रोफाइल पार्टियों की जान बन गर्इं, फिर एक रोज अपना जहां तलाशने के लिए सुनंदा ने दुबई की फलाइट पकड़ ली और वहां 1991 में केरल के व्यवसायी सुजीत मेनन के साथ दूसरी शादी कर ली। दोनों ने कुछ लोगों के साथ मिलकर एक्सप्रेशंस नामक एक कंपनी बनाई, जो कई प्रोडक्ट लांच कराए और मॉडल हेमंत त्रिवेदी, विक्त्रम फड़नीस, ऐश्वर्या रॉय के साथ कई शो भी आयोजित किए। इसके बाद सुनंदा को एक बड़ी विज्ञापन कंपनी के साथ काम करने का मौका मिला। उनकी जिंदगी का यह सबसे अच्छा दौर था। दुबई में ही उन्होंने बेटे शिव मेनन को जन्म दिया।
बला की खूबसूरत थीं सुनंदा। लोग उन्हें दुबई में ब्यूटीशियन के तौर पर भी जानते थे, लेकिन खुद सुनंदा मीडिया की सुर्खियों में तब आर्इं, जब तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री रहे शशि थरूर के साथ उनकी शादी हुई। इससे पहले उन्हें कोई नहीं जानता था कि वे क्या हैं और क्या करती हैं, लेकिन दिल्ली की चमक और महत्वाकांक्षा की सीढ़ी ने जल्द ही सुनंदा को देश-विदेश की हाई प्रोफाइल सोसाइटियों में प्रसिद्धि दिलवा दी। शशि थरूर के साथ उनकी जोड़ी को लोग खूब सराहते। खुद सुनंदा और थरूर भी अपने दांपत्य को लेकर बहुत खुश नजर आते पर उनकी इस खुशी को न जाने किसकी नजर लगी कि सुनंदा की मौत हो गई। ऐसी मौत, जिसकी गुत्थी पुलिस आज तक नहीं सुलझा पाई।
भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने 30 अगस्त, 2017 को हाई कोर्ट में कहा था, 'सुनंदा केस मर्डर के अलावा मनी लांड्रिंग से जुड़ा हुआ है, जिसकी जांच होना बहुत जरूरी है। हो सकता है कि सुनंदा का मर्डर इसीलिए किया गया हो।' उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि पुलिस इस बात पर अपना समय क्यों बर्बाद कर रही है कि सुनंदा को ज़हर कौन-सा दिया गया? जांच तो इसकी होनी चाहिए कि जहर क्यों और किसने दिया?' हाई कोर्ट ने भी दिल्ली पुलिस को जमकर फ़टकारते हुए कहा कि तीन साल से ज्यादा बीत जाने के बाद भी आप लोग किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाए हैं। 2014 के मामले में अब तक न आपके पास कोई स्टेटस रिपोर्ट है और न ही आप चार्जशीट फ़ाइल कर पाए हैं।
05 सितंबर, 2017 को पटियाला कोर्ट में इस मामले की सुनवाई थी। उस रोज महानगर दंडाधिकारी धर्मेन्द्र सिंह ने भी नराजगी जाहिर करते हुए संबंधित पुलिस उपायुक्त को कोर्ट में पेश होने का निर्देश देते हुए पूछा कि पुलिस बताए कि उसे इस मामले की जांच के लिए अब और समय क्यों दिया जाए? अदालतों का सख्त रुख देखते हुए 15 सितंबर को गृह मंत्रालय ने भी इस मामले में दिल्ली पुलिस को एक पत्र लिखकर सुनंदा पुष्कर के विसरा नमूने को एफबीआई प्रयोगशाला से भारत वापस लाने के लिए कहा। उसके बाद 18 सितंबर को मामले में गठित एसआईटी के सदस्य डीसीपी (साउथ) ईश्वर सिंह की अगुवाई में एक टीम अमेरिका गई। वहां से लौटकर टीम ने ज्वॉइंट सीपी आरपी उपाध्याय को रिपोर्ट सौंप दी।
21 सितंबर, 2017 को दिल्ली पुलिस और केंद्र सरकार की तरफ से हाई कोर्ट में एडिशनल सॉलिसिटर जनरल संजय जैन पेश हुए। कोर्ट को बताया कि मामले की जांच आखिरी पड़ाव पर है। अगले आठ सप्ताह में पूरी हो जाएगी, लेकिन करीब सवा चार साल बाद 14 मई, 2018 को दिल्ली पुलिस की एसआईटी ने पटियाला हाउस कोर्ट में आईपीसी की धारा 306 और 498ए के तहत 3000 पेज की चार्जशीट पेश की। शशि थरूर इस चार्जशीट में अकेले आरोपी हैं। जांच में एसआईटी को हत्या के सबूत नहीं मिले। जो सबूत मिले हैं, उसके अनुसार सुनंदा को बहुत प्रताड़ित किया जाता था और उनकी पिटाई की जाती थी। एसआईटी का मानना है कि थरूर की प्रताड़ना से तंग आकर सुनंदा ने खुदकशी की थी और दिल्ली पुलिस ने थरूर को संदिग्ध आरोपी माना है। मामले की अगली सुनवाई 05 जून को होगी। उस रोज पटियाला हाउस कोर्ट शशि थरूर को समन कर सकता है। ऐसे में उनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। अब देखना यह है कि सुनंदा की मौत की गुत्थी सुलझती भी है या फिर यह मर्डर केस भी देश की अनसुलझी पहेलियों की फेहरिस्त में शुमार हो जाएगा?


इस केस से जुड़े सभी गवाहों और दस्तावेजों को यूपीए सरकार और भ्रष्ट पुलिस ने नष्ट कर दिया था। वर्तमान साक्ष्य के आधार पर चार्जशीट दाखिल हुई है। ट्रायल के दौरान अधिक सूचनाएं सामने आएंगी। शशि थरूर पर आरोप है कि उन्होंने सुनंदा पुष्कर को आत्महत्या करने के लिए मजबूर किया था।
- सुब्रमण्यम स्वामी, भाजपा नेता


'जो कोई भी सुनंदा को जानता था, उसे यह बात पता है कि अकेले मेरे उकसाने से वह खुदकशी नहीं कर सकती। सवा चार साल की जांच के बाद दिल्ली पुलिस का ऐसे नतीजों पर पहुंचना उसकी मंशा पर सवाल खड़े करता है। 17 अक्टूबर, 2017 को दिल्ली हाई कोर्ट में जांच अधिकारी ने बयान दिया था कि इस केस में उन्हें किसी के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं मिला है। अब छह महीने बाद वह कह रहे हैं कि मैंने खुदकशी के लिए उकसाया है। यह अविश्वसनीय है।
-शशि थरूर, पूर्व केंद्रीय मंत्री व वरिष्ठ कांग्रेस नेता

महत्वपूर्ण घटनाक्रम: कब क्या हुआ
15 जनवरी 2014: सुनंदा पुष्कर ने होटल लीला पैलेस में चेक इन किया।
17 जनवरी 2014: शशि थरूर के आने पर दोनों सुइट नंबर 345 में शिफ्ट हुए।
17 जनवरी 2014: सुनंदा पुष्कर होटल के कमरे में संदिग्ध परिस्थितियों में मृत पाई गईं। एसडीएम जांच बैठाई गई।
18 जनवरी 2014: डॉ. सुधीर गुप्ता, डॉ. आदर्श कुमार, डॉ. शशांक पुनिया की देखरेख में मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया।
19 जनवरी 2014: केरला इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के निदेशक डॉ. जी विजयराघवन ने मीडिया में बयान दिया कि सुनंदा को ऐसी कोई गंभीर बीमारी नहीं थी, जिससे कि अचानक उनकी जान चली जाती।
21 जनवरी 2014 : सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट ने अपनी रिपोर्ट में मौत का कारण जहर देना बताया। एसडीएम आलोक शर्मा ने पुलिस को हत्या, खुदकशी के दृष्टिकोण से मामले की जांच करने के लिए कहा।
23 जनवरी 2014: मामला क्राइम ब्रांच को सौंपा गया, लेकिन क्राइम ब्रांच ने केस लेने से मना कर दिया।
22 मार्च 2014: फोरेंसिक विभाग ने विसरा रिपोर्ट जारी कर बताया कि मौत का कारण जहर नहीं था। पुलिस ने फिर रिपोर्ट को एम्स भेजकर उसकी राय मांगी।
09 जून 2014: एम्स के फोरेंसिक विभाग के प्रमुख सुधीर गुप्ता ने कहा कि रिपोर्ट तैयार करने में उनपर दबाव बनाया जा रहा है।
02 जुलाई 2014 : एम्स ने सुधीर के आरोपों का खंडन किया और स्वास्थ्य मंत्री को रिपोर्ट सौंपी।
06 जनवरी 2015: दिल्ली पुलिस आयुक्त ने मीडिया को दिए बयान में सुनंदा पुष्कर मामले में हत्या की धारा के तहत मामला दर्ज किए जाने संबंधी बयान दिया।

मंगलवार, 8 मई 2018

दुष्कर्म का बापू

-जितेन्द्र बच्चन
कथावाचक आसाराम के भक्तों को गहरा आघात! स्वयंभू 'भगवान' आसुमल हरपलाणी उर्फ आसाराम को उम्रकैद। जोधपुर की जिला अदालत ने एक नाबालिग लड़की से दुष्कर्म करने के मामले में सुनाई सजा। जुर्म के इस दलदल में आसाराम के अलावा उसके दो सहयोगियों शिल्पी और शरतचंद्र को भी अदालत ने दोषी ठहराते हुए 20-20 साल की सजा सुनाई है। बाबा के तमाम रसूख कानून के आगे बौने पड़ गए। साजिश और फरेब के बल पर बटोरी गई जिन्दगी भर की अकूत दौलत गवाहों, सबूतों और तर्कों को खरीद नहीं सकी। करीब 77 साल के आसाराम की बाकी की जिंदगी अब सलाखों के पीछ ही कटेगी।
25 अप्रैल, 2018 को सेंट्रल जेल जोधपुर में एससी/एसटी की अदालत में जज मधुसूदन शर्मा के सजा का ऐलान करते ही आसाराम का चेहरा पीला पड़ गया। वह निढाल हो गया। कल तक जो शख्स लोगों को पाप-पुण्य का पाठ पढ़ाता था, आज अपने दुष्कर्मों का अहसास होते ही फूट-फूटकर रोने लगा। साल 2013 के अगस्त महीने की 16 तारीख को आसाराम के खिलाफ यूपी के शाहजहांपुर की एक लड़की ने उसे नंगा कर दिया। कोर्ट ने एक-एक कर आसाराम को कुल छह अपराध में दोषी करार दिया है। उसका हर गुनाह साबित हुआ है। आसाराम के बचाव में खड़ी वकीलों की फौज भी पॉक्सो एक्ट के आगे छोटी पड़ गई।
धारा 370(4) के तहत अदालत ने आसाराम को दोषी पाया है। इस जुर्म के लिए उसे 10 वर्ष के कठोर कारावास और एक लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है। जुर्माना न भरने की स्थिति में सजा एक वर्ष और बढ़ जाएगी। धारा 342 के तहत आसाराम अपराधी करार दिया गया है। इस अपराध के लिए उसे एक वर्ष का कठोर कारावास दिया गया है और 1000 रुपये का जुर्माना लगा है। जुर्माना न भरने की स्थिति में एक माह की अतिरिक्त कैद भोगनी पड़ेगी। धारा 506 के तहत आसाराम का जुर्म साबित हुआ है। इस जुर्म के लिए कोर्ट ने आसाराम को एक वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई है और 1000 रुपये का अर्थदण्ड लगाया है। धारा 376(2) (एफ) के तहत भी उसे दोषी पाया गया। इस अपराध के लिए उम्रकैद की सजा मिली है। इसी जुर्म के लिए आसाराम पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है, जिसे अदा न करने पर एक साल का कठोर कारावास बढ़ जाएगा। धारा 376 (डी) के तहत आसाराम अपराधी सिद्ध हुआ है। इसके लिए भी आसाराम को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है और एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है। जुर्माना न भरने की स्थिति में एक साल अतिरिक्त कठोर कारावास की सजा भुगतनी होगी। जबकि किशोर न्याय (बालकों की देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम की धारा 23 के तहत भी आसाराम को अपराधी पाया गया। इसके लिए अदालत ने छह माह के साधारण कारावास की सजा सुनाई है।
आसाराम के गुनाहों की फेहरिश्त इतनी लंबी है कि उसको दो-दो आजीवन कारावास और 12 वर्ष 6 माह की कठोर कैद की सजा मिली है। इसके अलावा कुल तीन लाख दो हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया है। शाहजहांपुर के एसपी कृष्ण बहादुर सिंह कहते हैं, 'आसाराम पर इल्जाम और तोहमत लगाने वालों की कमी नहीं है, लेकिन खुलासा करने का साहस इस जिले की लड़की ने ही दिखाया।' लड़की के पिता का इल्जाम था कि उनकी बेटी गई तो थी बाबा के गुरुकुल में शिक्षा, संस्कार और दीक्षा की आस लेकर, लेकिन दुष्कर्मी ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा। 14 अगस्त, 2013 को  लड़की के माता-पिता अनुष्ठान के लिए बेटी को लेकर जोधपुर के आश्रम गए थे। वहां आसाराम ने उनके ठहरने का इंतजाम करवा दिया, लेकिन 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस के दिन अनुष्ठान के बहाने आसाराम ने लड़की के साथ दुष्कर्म किया। लड़की ने विरोध किया तो उसे जान से मारने की धमकी दी गई।
17 अगस्त को लड़की ने सारी बात घरवालों से बताई। माता-पिता पर पहाड़ टूट पड़ा। आसाराम 18 से 20 अगस्त तक दिल्ली के रामलीला मैदान में शिविर कर रहे थे। परिजनों के साथ पीड़ित लड़की दिल्ली पहुंच गई। मध्य जिला के थाना कमला मार्केट पुलिस से मिली। लड़की का मजिस्ट्रेट के सामने 164 के तहत बयान हुआ। लड़की का मेडिकल कराया गया। दुष्कर्म की पुष्टि होते ही पुलिस ने आसाराम के खिलाफ रेप के साथ-साथ पॉस्को एक्ट के तहत मामला दर्ज कर आगे की कार्रवाई के लिए मुकदमा जोधपुर पुलिस को स्थानांतिरत कर दिया।
1941 में पाकिस्तान के सिंध प्रांत में पैदा हुए आसाराम का परिवार देश के विभाजन के समय गुजरात आ गया था। यहां करीब 10 एकड़ उपजाऊ जमीन मिल गई, जिसमें आसाराम ने अपना पहला आश्रम बनाया। सथ ही उन्होंने अपना सरनेम बापू कर लिया। आश्रम के प्रवक्ता मनीष बगाड़िया के अनुसार, दुनिया भर में आसाराम के पास 425 आश्रम, 1,400 समिति, 17,000 बाल संस्कार केंद्र और 50 गुरुकुल हैं। वहीं एक अन्य प्रवक्ता नीलम दुबे का दावा है कि भारत और विदेश में आसाराम के पांच करोड़ से अधिक अनुयायी हैं। हो भी सकते हैं, लेकिन आसाराम और उनके बेटे नारायण साईं ने जो किया, वह सर्वविदित है।
आसाराम जब गिरफ्तार नहीं हुए थे, तब उन्होंने अपने एक बयान में कहा था, ‘मैं घटना के दिन आश्रम में मौजूद था, लेकिन लड़की (पीड़िता) को कुछ लोगों ने भटका दिया है। भगवान बुद्ध पर भी ऐसे आरोप लगे थे, पर सच्चाई सामने आ जाएगी। अगर वे मुझे सलाखों के पीछे डालें तो मैं हंसते हुए जेल जाना चाहता हूं। मैं जेल को बैकुंठ जैसा मानता हूं।’ लेकिन वही बैकुंठ अब आसाराम के लिए नरक बन चुका है, तभी तो जोधपुर की अदालत में उम्रकैद की सजा सुनते ही वह रोने लगे।
आसाराम पक्ष के एक वकील आर.के. नायक ने जोधपुर कोर्ट के न्यायाधीश मधुसूदन शर्मा पर दबाव में फैसला करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा है कि इस मुकदमे का ट्रायल मीडिया ने किया है। जज जबरदस्त दबाव में थे, इसलिए उन्होंने इस मामले के तथ्यों को नहीं देखा और दबाव में फैसला सुना दिया। आसाराम का पक्ष लेते हुए आर.के. नायक ने कहा कि आसाराम निर्दोष हैं। वे आसाराम को रेपिस्ट नहीं मानते। इस फैसले के खिलाफ अगर हाईकोर्ट में बात नहीं बनी तो वे उच्चतम न्यायालय तक जाएंगे।
फिलहाल, कैदी नंबर 130 के रूप में आसाराम अभी तो सेंट्रल जेल जोधपुर में एक सजायाफ्ता मुजरिम के तौर पर रहेगा। जेल सूत्रों के मुताबिक, इससे पहले आसाराम अब तक जेल में संत की हैसियत से ही रह रहा था, लेकिन अब उसकी हैसियत एक सजायाफ्ता मुजरिम जैसी ही होगी। डीआईजी (जेल) विक्रम सिंह ने बताया कि अभी तत्काल आसाराम को बैरक नंबर 2 में ही रखा जाएगा। बाद में सुरक्षा के नियमों के तहत किस बैरक में शिफ्ट करना है, उस पर विचार किया जाएगा। वहीं इसी मामले के आरोपी रहे और आसाराम के प्रमुख सेवादार शिवा और रसोइया प्रकाश को अदालत ने बरी कर दिया है। पीड़िता और उसके परिजन भी बहुत खुश हैं। उन्होंने कहा है कि भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं। अदालत के इस फैसले से लोगों की आस्था कानून में और बढ़ेगी।