सोमवार, 28 जनवरी 2013

सलाखों के पीछे पहुंचा महाठग

शख्स एक, नाम कई और हर नाम के साथ जुड़ा है एक नया फरेब! गुनाह की बिसात पर लगाया दौलत का अंबार! कभी डॉन बनने का शौक, तो कभी कलाई में 19 लाख की घड़ी! जितने नाम, उतने चेहरे और हर चेहरे के पीछे छिपा है गुनाहों का नायाब तरीका! एक हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की कर चुका है ठगी! करीब ढाई लाख लोगों को लगाया चूना और उसके इस गुनाह में शामिल है उसकी खूबसूरत बीवी!

करोलबाग, रामा रोड, दिल्ली में स्टॉक गुरु  इंडिया कंपनी खुलने के सप्ताह भर बाद ही निवेशकों की लाइन लगने लगी। स्कीम ही ऐसी थी, 10 हजार रु पये छह महीने तक डिपॉजिट करो। बदले में छह महीने तक हर माह 20 पर्सेंट रिटर्न और सातवें महीने पूरी रकम वापस। लोगों ने फायदा उठाने के लिए जमकर पैसा लगाया। दो-तीन महीने में ही कंपनी के पास करोड़ों रु पये इकट्ठा हो गए। देश भर के लोग स्टॉक गुरु कंपनी में निवेश करने लगे। कंपनी का निदेशक उल्हास प्रभाकर लग्जरी गाड़ी में आॅफिस आता। उसके आगे-पीछे महंगी गाड़ियों का काफिला चलता और साथ में बॉडीगार्ड भी रहते। जो भी मिलता, उसकी बातों और व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना न रहता। प्रभाकर कभी फिल्म निर्माण की बात करता, तो कभी लोगों के सामने अल्प आय वर्ग के लिए कॉलोनी बनाने की स्कीम पेश कर निवेश करने की सलाह देता। कभी किसी को उस पर शक नहीं हुआ। मोतीनगर दिल्ली के अमरजीत सिंह ने भी करीब सात लाख रुपये निवेश कर दिए। उन्हें कंपनी ने पांच अप्रैल, 2010 को लाभांश के चेक देने के लिए बुलाया था, लेकिन वह दिन कभी नहीं आया। अमरजीत सिंह कंपनी के दफ्तर पहुंचे, तो आॅफिस में ताला लटक रहा था। पता चला कि कंपनी फर्जी थी। न निदेशक का पता है न मैनेजर का। लोगों के करोड़Þों रुपये लेकर फरार हो गई कंपनी। लोगों के होश उड़ गए। दिल्ली एनसीआर के अब तक हजारों लोग लाखों रुपये का निवेश कर चुके थे। अमरजीत सिंह के साथ पचासों लोग थाना मोतीनगर जाकर हंगामा करना शुरू कर दिया। पुलिस के बड़े अधिकारी मौके पर पहुंचे। उन्होंने कंपनी के खिलाफ मामला दर्ज कर शीघ्र कार्रवाई करने का आश्वासन दिया।

पत्नी ने दिया हर जुर्म में साथ
दो महीने बाद सात जून को सोनीपत और गुड़गांव के भी कुछ निवेशकों ने दिल्ली आकर हंगामा किया। पुलिस लोगों को जांच के नाम पर टहलाती रही। धीरे-धीरे एक साल बीत गए। इस बीच न प्रभाकर का पता चला और न ही निवेशकों को उनकी रकम मिलने की कोई संभावना बनी। जुलाई, 2011 में सैकड़ों निवेशकों ने पुलिस और ठगी के विरोध में सड़क पर संघर्ष करने का ऐलान कर दिया, तब मोतीनगर थाना में दर्ज मामले की जांच क्र ाइम ब्रांच (ईओडब्ल्यू) को सौंप दी गई। इकनॉमिक आॅफेंस विंग के जॉइंट कमिश्नर संदीप गोयल के नेतृत्व में कई टीमें पूरे देश में फैल गई। पता चला, प्रभाकर के इस गुनाह के खेल में उसकी पत्नी साक्षी भी शामिल है। प्रभाकर बहुत शातिर दिमाग है। पुलिस से बचने के लिए वह प्लास्टिक सर्जरी का सहारा ले सकता है। उसके गुनाहों की फेहरिस्त बहुत लंबी है। पुलिस ने दोनों आरोपियों को विदेश भागने से रोकने के लिए एलओसी ओपन करा दी, तभी एक रोज खबर मिली की प्रभाकर उसकी पत्नी साक्षी नाम बदलकर रत्नागिरी (महाराष्ट्र) में रह रहे हैं। जांच टीम में शामिल इंस्पेक्टर राजकुमार शाह और हवलदार हबीब खान 11 नवंबर, 2012 को रत्नागिरी जा पहुंचे। आरोपियों की पहचान हो गई और दोनों आरोपियों को पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में गिरफ्तार कर लिया गया।

बढ़ सकती है ठगी की रकम
जॉइंट कमिश्नर संदीप गोयल के मुताबिक, उल्हास प्रभाकर खेर (33) उर्फ सिद्धार्थ जे. मराठे उर्फ लोकेश्वर देव उर्फ लोकेश्वर वीर उर्फ देव साहब उर्फ रोहित मूलत: नागपुर महारष्ट्र का निवासी है। पढ़ाई-लिखाई में मन नहीं लगा। मुश्किल से 11वीं पास किया। उसके बाद करोड़ों में खेलने का सपना देखने लगा। प्रभाकर की पत्नी साक्षी (30) उर्फ माया उर्फ रक्षा जे. उर्स उर्फ प्रियंका सारस्वत देव ने जर्निलज्म में बीए सेकंड इयर तक पढ़ाई की है। पांच साल का एक बेटा और तीन साल तथा आठ महीने की दो बेटियां हैं। दोनों आरोपियों ने जनवरी, 2010 में दिल्ली के रामा रोड स्थित लीजा कॉम्प्लेक्स में स्टॉक गुरु  इंडिया के नाम से कंपनी खोली थी। लुभावनी स्कीम बताकर कुछ ही महीनों में देशभर के 2,05,062 लोगों से करोड़ों रुपये जमा करा लिए। ईओडब्ल्यू को इनके खिलाफ अब तक 14 हजार से ज्यादा निवेशकों की शिकायतें मिली हैं। इनमें दिल्ली-एनसीआर के लोग भी शामिल हैं। जांच-पड़ताल में अभी तक आरोपियों के नाम से 83 करोड़ रु पये से ज्यादा की संपित्त का पता चला है। साथ ही करीब 500 करोड़ रुपये की ठगी का खुलासा हो चुका है, लेकिन असल रकम एक हजार करोड़ रु पये से कहीं ज्यादा होने की आशंका है।

पहचान बदलकर बचते रहे दोनों
अडिशनल डीसीपी एसडी मिश्रा के अनुसार, आरोपी प्रभाकर को इससे पहले 2004 में नागपुर (महाराष्ट्र) पुलिस ने करीब एक लाख रु पये की चीटिंग के एक मामले   में गिरफ्तार किया था। प्रभाकर ने इस मामले से कोई सबक नहीं लिया, बल्कि उसने पुलिस, लोगों की कार्यप्रणाली और उनकी सोच पर गहरी नजर रखी। जमानत पर छूटने के बाद 2005 में वह बेंगलुरु  चला गया। यहां उसकी मुलाकात साक्षी से हुई, जो बेंगलुरु की एक कंपनी में रिसेप्शिनस्ट थी। दोनों जल्द ही एक-दूसरे से प्रेम करने लगे और फिर इन्होंने लव मैरेज कर ली। इसके बाद निकल पड़े ठगी के रास्ते पर। शुरू में ये दोनों फर्जी नाम-पते पर क्र ेडिट कार्ड लेते। जमकर खरीदारी करते और फरार हो जाते। घरवालों से बहुत कम संपर्क रखते थे। जब भी पता बदलते, नाम और रंग-रूप भी बदल लेते। जिस शहर में रहते, वहां के टॉप के हेयर स्टाइलिस्ट के यहां जाते। मोबाइल फोन का प्रभाकर इस्तेमाल कम करता था। एक सिम से एक बार ही बात करता, वह भी अपने रिहायशी इलाके से करीब 10 किलोमीटर दूर जाकर। अब तक वह करीब 200 सिमकार्डों का इस्तेमाल कर चुका है, जिससे पुलिस को उसकी सही लोकेशन नहीं मिल पाती थी और कानून की पकड़ से दूर बना रहता।

रत्नागिरी में बड़ा घोटला करने का था इरादा
आर्थिक अपराध शाखा के अधिकारियों ने बताया कि 2010 में प्रभाकर दिल्ली आ गया और यहां स्टॉक गुरु  इंडिया नाम से फर्जी कंपनी खोलकर लोगों को चूना लगाना शुरू कर दिया। कहा जाता है कि वह ऊंचा रिटर्न देकर नागरिकों का पैसा निकलवाता था और उसे शेयर बाजार में लगाता था। दिल्ली में जब लोगों को शक हो गया, तो दोनों आरोपी फरार हो गए। इसके बाद रत्नागिरी चले गए। वहां भी दोनों दूसरी स्टॉक गुरु इंडिया जैसी धोखाधड़ी कर बड़ा घोटाला करने की फिराक में थे। इसके लिए आरोपी रत्नागिरी के कई बैंकों में 50 से अधिक अकाउंट खोल चुके थे। पुलिस को इनके नाम से रत्नागिरी इंडस्ट्रियल एरिया में 750 स्क्वायर यार्ड का एक प्लॉट भी मिला है। 15 लाख रु पये की गोल्ड जूलरी, 7 कार और दो बाइक की रिकवरी हुई। रत्नागिरी में गिरफ्तारी के समय प्रभाकर के पास से फर्जी राशन कार्ड, 18 पैन कार्ड, 2 इंटरनेशनल डेबिट कार्ड, 75 क्र ेडिट व डेबिट कार्ड, 20 पेयर कॉन्टेक्ट लेंस, 30 मोबाइल सिम कार्ड,131 चेक बुक, पांच टॉय पिस्टल और रिवॉल्वर, 400 बुलेट , दो एयर गन और एक मोबाइल जैमर बरामद हुआ है।

दिल्ली से भी करोड़ों की बरामदगी
अपराध शाखा की जांच में अभी तक दोनों आरोपियों के नाम से 83 करोड़ रु पये की संपत्ति का पता लगा है। इनमें विभिन्न बैंकों में 23 करोड़ रु पये, 50 लाख की 60 कलाई घड़ियां, 20 करोड़ रु पये से अधिक का अन्य माल, दिल्ली और बाहर करीब 6 करोड़ रु पये की प्रॉपर्टी, 20.45 करोड़ रु पये के अनपेड डीडी आदि शामिल हैं। प्रभाकर ने दिल्ली में 13 फर्जी नाम-पते पर 20 से अधिक बैंकों में 94 खाते खोल रखे थे। द्वारका में 8 फ्लैट, भिवानी, अलवर और मुरादाबाद में एक-एक फ्लैट और गोवा में एक विला खरीद रखा था। लैंड क्रूजर, मिर्सडीज़ और पजेरो जैसी महंगी 12 कारें भी पुलिस ने बरामद की हैं। इनकी कीमत 60 करोड़ रु पये बताई गई है। जानकारी के मुताबिक, प्रभाकर निवेशकों को लूटने के लिए हर बार अपना चेहरा बदल लेता। उसके पास से 20 कॉन्टेक्ट लेंस भी पुलिस ने बरामद किए हैं। जिस शहर में पति-पत्नी रहते, वहां के टॉप हेयर ड्रेसर के पास दोनों जाते थे। प्रभाकर के शातिर दिमाग का इसी से पता चलता है कि जिंदा रहते हुए भी उसने खुद को मृत घोषित कर रखा था। मार्च, 2004 में उसके कहने पर साक्षी ने प्रभाकर के परिवार को एक ई-मेल कर सूचना दी थी कि प्रभाकर की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। इसीलिए पुलिस ने जब प्रभाकर की गिरफ्तारी की सूचना उसकी मां श्रीमती कमल को फोन पर दी, तो उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था।

अपने किए पर कोई पछतावा नहीं
प्रभाकर की ज्यादा पढ़ा-लिखा न होने के बावजूद स्टॉक और फाइनेंस पर अच्छी पकड़ है। पुलिस भी उस पर हाथ नहीं डाल पा रही थी, इसलिए उसके हौसले बढ़ते गए। वह ठगी का नया-नया तरीका अपनाता रहा। इसमें उसका पूरा साथ उसकी पत्नी साक्षी ने दिया। दोनों का मकसद लोगों को ठगकर दौलत का अंबार लगाना था। खुद प्रभाकर 19 लाख रु पये की सोने कीरोलेक्स घड़ी बांधता था। सोचा था, कभी पकड़े नहीं जाएंगे, पर यह भूल गए कि कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं। वह दो पैर से भागता है, तो पुलिस हजार पैरों से उसका पीछा करती है। दिल्ली पुलिस ने आरोपी प्रभाकर और साक्षी को गिरफ्तार कर लिया। मुंबई में भी प्रभाकर की कुछ प्रॉपर्टी का पता चला है। वहां की पुलिस जांच में लगी है, लेकिन आर्थिक अपराध शाखा के अधिकारियों ने बताया कि सलाखों के पीछे पहुंचने पर भी इन दोनों आरोपियों को अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है।

फाइव स्टार होटल में पार्टी देता
प्रभाकर निवेशकों को फिल्म वर्ल्ड में काम करने की ट्रेनिंग भी देता था और उसके लिए एक मराठी मूवी की पटकथा भी लिख डाली थी। उसने इस फिल्म के लिए हीरो - हीरोइन की जरु रत का विज्ञापन भी दिया था, वहीं करोलबाग, दिल्ली निवासी अंकुर (पीड़ित) के अनुसार प्रभाकर सप्ताह में दो बार फाइव स्टार होटल या फिर फार्महाउस पार्टी करता था। उसमें बॉलिवुड और टीवी की सिलेब्रिटीज को भी बुलाया जाता था। फ्री में शराब पिलाई जाती थी। लोगों से आमने-सामने पिब्लसिटी के जरिए या फिर फेसबुक या एसएमएस से संपर्क किया जाता था।
पुलिस का कहना है कि आरोपी पति-पत्नी नाम और पहचान बदलकर काम करते थे। रत्नागिरी में 11 नवंबर को जब इन्हें गिरफ्तार किया गया, तो ये दोनों सिद्धार्थ जे. मराठे   और माया मराठे के नाम से वहां रह रहे थे। आरोपी प्रभाकर दिल्ली में लोकेश्वर देव, गोवा में लोकेश्वर वीर देव उर्फ देव साहब, बेंगलुरु  में उल्हास उर्फ रोहित और मुंबई में सिद्धार्थ मराठे के नाम से लोगों को चूना लगा चुका है।

-जितेन्द्र बच्चन

छत्तीसगढ़ में फैल रही लाल मुसीबत - जितेन्द्र बच्चन


केंद्र और राज्य सरकार ने नक्सलियों के खिलाफ मोर्चे पर सुरक्षा बलों के 30 हजार जवानों को झोंक रखा है। बीते चार साल में इस लाल आतंक पर लगाम कसने के लिए 3,975 करोड़ रुपये •ाी फंूके जा चुके हैं। बावजूद इसके नक्सलियों के खौफ के कारोबार में लगातार इजाफा हो रहा है। कहीं सुरक्षाबलों की रणनीति में कोई सुराख तो नहीं?

लाल आतंक को जड़ से उखाड़ फेंकने के अनिगनत वादों, ढेरों रणनीतियों और •ाारी-•ारकम रकम खर्च करने के बावजूद नतीजा सिफर है। नक्सलियों से निपटने के लिए तैनात केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, सीमा सुरक्षा बल, •ाारत-तिब्बत सीमा पुलिस की दो दर्जन से ज्यादा बटालियन और छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल की 20 बटालियन के पास नहीं है ठोस रणनीति। राज्य के जांजगीर को छोड़ बाकी17 जिले माओवादियों की गतिविधियों से प्र•ाावित हैं। जबकि केंद्र और राज्य सरकार ने नक्सलियों के खिलाफ मोर्चे पर सुरक्षा बलों के 30 हजार जवानों को झोंक रखा है। बीते चार साल में लाल आतंक पर लगाम कसने के लिए 3,975 करोड़ रुपये •ाी फंूके जा चुके हैं। बावजूद इसके राज्य में माओवादियों के खौफ के कारोबार में लगातार इजाफा हो रहा है। उनकी ताकत में •ाी बढ़ोतरी हुई है। दरअसल, इसके पीछे माओवादियों की ठोस रणनीति है। फरवरी, 2007 में झारखंड में हुई अपनी 9वीं कांग्रेस में माओवादियों ने सुरक्षा बलों पर छापामार हमले के बजाए चलायमान युद्ध का ऐलान किया था। इस युद्ध को देश के कोने-कोने तक पहुंचाने के साथ पीएलजीए (पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी) को पीएलए (पीपुल्स गुरिल्ला आर्मी) में और गुरिल्ला जोन को बेस एरिया में तब्दील कर दिया गया। साथ ही लड़ाकों को नए सिरे से लामबंद करने के लिए उनकी माली हालत •ाी दुरु स्त करने की कवायद शुरू की। उनकी इस राणनीति ने माओवादियों में नई जान फूंक दी, जिसका नतीजा यह रहा कि 28-29 मार्च की रात पश्चिम बस्तर के रानीबोदली पोस्ट पर अपने पहले चलायमान हमले का नमूना देते हुए उन्होंने सुरक्षा बलों के 55 जवानों को मौत के घाट उतार दिया... और यह सिलिसला आज •ाी जारी है।
सैटेलाइट फोन होने का •ाी खुलासा
साढेÞ चार वर्षों में माओवादी हमले में 1,277 लोगों ने जान गंवाई है, जिसमें 632 पुलिसवाले और बाकी सुरक्षा बलों के जवान हैं। इसी अविध में पुलिस ने •ाी 353 माओवादियों को मार गिराने का दावा किया है, लेकिन बस्तर को आधार बनाकर राज्य के दीगर हिस्सों में विस्तार के लिए माओवादियों ने यहां अपनी लेवी (जबरिया वसूली) करीब 70 करोड़ रुपये से बढांकर 200 करोड़ रुपये कर ली है। इससे उनकी आर्थिक स्थिति तो मजबूत हुई ही, नक्सलियों की ताकत में •ाी इजाफा हुआ है। 1968 में माओवादियों ने 15 लड़ाकों के साथ पश्चिमी बस्तर के बीजापुर जिले में मद्देडदलम का गठन किया था, जबकि आज यहां माओवादियों की 7 डिवीजनल कमेटी, लड़ाकों की दो बटालियन, 11 कंपनी और 30 प्लाटून हैं। अपनी इसी मजबूत माली हालत के चलते माओवादी सुरक्षा बलों के साथ लंबी लड़ाई को तैयार हैं। लड़ाकों की बेतहाशा बढ़ोतरी के साथ ही उन्होंने असलहा और गोला-बारूद •ाी •ाारी तादाद में जमा कर लिया है। पुलिस के यूबीजीएल (अंडर बैरल ग्रेनेड लांचर) के जवाब में माओवादी अमेरिकन एम16 सीरीज के घातक हथियार, जिनमें ग्रेनेड लांचर लगता है, के जुगाड़ में हैं। पिछले हफ्ते ही माओवादियों के पास सैटेलाइट फोन होने का •ाी खुलासा हुआ है, जिसके जरिए वे बीजापुर के रानीबोदली क्षेत्र से अपने किसी कमांडर से हमले का आदेश ले रहे थे।
केशकाल को बनाया मुख्य जंक्शन
दंडकारण्य विमुक्त प्रांत के लिए बस्तर तक ही दायरा रखने वाले नक्सलियों की निगाहें अब समूचे राज्य पर है। रंगदारी बढ़ाने के लिए उनका अगला निशाना रायगढ़ और कोरबा है। बीते साल माओवादी धमतरी और महासमुंद में नए रंगरूटों के दम पर ठीक से पैठ नहीं जमा पाए थे, इसलिए अबकी उन्होंने दंतेवाड़ा के चिंतलनार इलाके से धुरंधर लड़ाकों की एक हथियारबंद कंपनी नए रास्ते कांगेर घाटी, माचकोट सघन वन क्षेत्रों से होते हुए करपावंड की ओर से केशकाल होते हुए सीतानदी अ•ायारण्य की ओर रवाना की, जिसने वहां पहुंचकर एक शिविर •ाी लगा लिया है। बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक टी.जे. लांगकुमेर के अनुसार, माओवादी पहले सीमावर्ती आंध्र प्रदेश और दक्षिण बस्तर से स्टेट हाइवे क्र मांक-5 से उत्तर बस्तर के राजनांदगांव और प्रदेश की अन्य जगहों पर जाते थे। अब नक्सलियों ने दर•ाा और ईस्ट बस्तर डिवीजनल कमेटी खड़ी कर कई छोटे मार्ग विकिसत कर लिए हैं। केशकाल उनका मुख्य जंक्शन है, इसलिए पिछले कई साल से उन्होंने यहां कोई बड़ी वारदात नहीं की है।
धमतरी के कई इलाकों में •ाी गतिविधियां बढ़ीं
7 अक्टूबर, 2012 को नक्सलियों ने राष्ट्रीय राजमार्ग-63 पर गीदम और बास्तानार के बीच बारूदी सुरंग विस्फोट कर सीमा सशस्त्र बल के एक वाहन को उड़ा दिया था, जिसमें तीन जवान शहीद हो गए थे और एक जवान गं•ाीर रु प से घायल हो गया था। इससे पहले तक इस राजमार्ग को गीदम से जगदलपुर तक सुरिक्षत माना जाता था। अब जगदलपुर से 25 किमी दूर नानगुर इलाके में नक्सलियों की   एक छोटी टुकड़ी तैनात होने की खबर है। बकावंड और करपावंड क्षेत्र में उनका सर्वे चल रहा है और कांकेर के कोरर क्षेत्र और धमतरी के सिंहपुर, मगरलोड में •ाी नक्सल गतिविधियां बढ़ी हैं। रायगढ़ से करीब 50 किमी दूर गोगारडा अ•ायारण्य साल •ार से नक्सलियों का ठिकाना बना हुआ है। नवंबर, 2012 में यहां बड़ी संख्या में माओवादियों का जमावड़ा हुआ था, वहीं कोरबा से 70 किमी दूर जंगल और पहाड़ियों से घिरे स्यांग और लेमरु  में बीते दो साल से माओवादियों की आमदरफ्त है। बिलासपुर के अचानकमार अ•ायारण्य में •ाी पिछले कुछ समय से इनकी गतिविधियों की खबर है। हाल ही में यहां माओवादियों के पर्चे •ाी मिले थे।
सरकार के दावे की खुली पोल
छत्तीसगढ़ सरकार का दावा है कि नक्सली घटनाओं में कमी आई है और इसका कारण राज्य के नक्सल प्र•ाावित क्षेत्रों में पुलिस का बढ़ता दबाव है। राज्य के गृह मंत्री ननकी राम कंवर का कहना है, वर्ष 2006 की तुलना में वर्ष 2012 में नक्सली घटनाएं लग•ाग आधी हो गई हैं और आम नागरिकों की हत्या की घटनाएं महज 20 फीसदी रह गई, पर हकीकत सरकार के दावे की कलई खोलती है। राज्य में नक्सलियों की ताकत घटी नहीं, बल्कि लगातार बढ़ी है। रमन सरकार द्वारा जारी ग्राम सुराज अ•िायान के दौरान सुकमा जिले के केरलापाल क्षेत्र से 21 अप्रैल, 2012 की दोपहर कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन का अपहरण कर लिया गया। माओवादियों ने मेनन के दो अंगरक्षकों की गोली मारकर हत्या कर दी। इस अप्रत्याशित घटना से हड़बड़ाई राज्य सरकार ने मेनन को छुड़ाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया, तब •ाी माओवादियों ने 13 दिन बाद तीन मई को मेनन को रिहा किया और देश-दुनिया को नक्सली यह •ाी बताने में कामयाब रहे कि वह वाकई सबसे बड़े लोकतंत्र की सबसे बड़ी चुनौती हैं।
मई, 2012 में राज्य के दंतेवाड़ा जिले में माओवादियों ने केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के वाहन पर हमला किया, जिसमें छह पुलिसकर्मी समेत सात लोग मारे गए। इस घटना से करीब 10 दिन पहले माओवादियों ने सुकमा जिले में दो पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी। मार्च, 2012 में राज्य के कांकेर जिले में विस्फोट कर सीमा सुरक्षा बल की गाड़ी को उड़ा दिया, जिसमें तीन जवान शहीद हो गए। बीजापुर जिले के सारकेगुड़ा क्षेत्र में पुलिस ने 29 जून को मुठ•ोड़ में 19 नक्सलियों को मार गिराने का दावा किया था। राज्य सरकार ने •ाी कहा कि पुलिस ने नक्सलियों को ही मारा है और उसमें दंतेवाड़ा जेल ब्रेक मामले का मास्टर माइंड •ाी शामिल था, लेकिन पुलिस अपनी कामयाबी का जश्न मनाती, उससे पहले ही राज्य के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने इस घटना में बड़ी संख्या में महिलाओं और बच्चों के मारे जाने का आरोप लगाते हुए सीबीआई जांच की मांग की। अंतत: घटना को लेकर विवाद बढ़ता देख राज्य सरकार ने मामले की न्यायिक जांच की घोषणा कर दी। नक्सलियों के निशाने पर नक्सल विरोधी नेता (पूर्व नेता प्रतिपक्ष) महेंद्र कर्मा •ाी रहे। आठ नवंबर को हुए हमले में महेंद्र कर्मा बाल-बाल बचे। सरकार की रणनीति को और कामयाब बनाने के लिए नक्सली मामलों के जानकार राम निवास नए पुलिस महानिदेशक बनाए गए। पद ग्रहण करते समय उन्होंने कहा कि उनकी पहली प्राथमिकता नक्सली समस्या का निबटारा है, लेकिन नक्सलियों ने उन्हें चुनौती देते हुए तीन दिसंबर, 2012 को सुकमा जिला मुख्यालय से आठ किलोमीटर दूर नीलावरन के पंचायत •ावन को विस्फोट से उड़ा दिया।
नक्सली कैंप ध्वस्त, दो नक्सली गिरफ्तार
नारायणपुर के एसपी मयंक श्रीवास्तव के अनुसार, 31 दिसंबर, 2012 की सुबह मुखिबर से सूचना मिली थी कि केशकाल दलम कमांडर कमलेश एवं माड दलम की सरिता ग्रामीणों की बैठक कर संघम सदस्यों को विशेष ट्रेनिंग दे रहे हैं। डीआरजी एवं एसटीएफ की पार्टी ने जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर स्थित मचानार एवं परलमेटा के जंगलों में दबिश दी, तो पुलिस नक्सली मुठ•ोड़ में पुलिस को बड़ी सफलता हाथ लगी। पुलिस ने नक्सलियों के कैंप को धवस्त कर मौके से दो नक्सलियों को गिरफ्तार कर •ाारी मात्रा में नक्सलियों का सामान बरामद किया है। करीब एक घंटे तक चली मुठ•ोड़ के बाद बाकी के नक्सली घने जंगल का सहारा लेते हुए वहां से •ााग खडे हुए।
छह गुना बजट बढ़ने के बाद •ाी पुलिस असफल
सरकार नक्सलियों से निबटने के लिए अब तक तमाम संसाधन झोंक चुकी है। गत छह साल में पुलिस का बजट 6 गुना बढ़ा दिया गया। वर्ष 2005-06 में 350 करोड़ रुपये बजट था, जो 2010-11 में 1,100 करोड़ रुपये हो गया और 2011-12 में यह 1,500 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। इसका 70 फीसदी से अधिक नक्सल प्र•ाावित क्षेत्रों में खर्च हो रहा है, जबकि पुलिस के आधुनिकीकरण के लिए मिलने वाली राशि अलग है। इसके अलावा इस मद में पिछले तीन साल में केंद्र से करीब 400 करोड़ रुपये मिले हैं। केंद्रीय सुरक्षा बलों के वेतन का •ाुगतान •ाी राज्य सरकार करती है, जो राशि करीब 1,000 करोड़ रुपये तक पहुंच चुकी है। कुल खर्च 3,975 करोड़ रुपये बनता है। राज्य के गृह मंत्री ननकीराम कंवर मानते हैं कि राज्य में माओवादियों की ताकत बढ़ी है। यही वजह है कि वे कई मौकों पर बस्तर को सेना के हवाले करने की हिमायत कर चुके हैं।
अतिरिक्त महानिदेशक ने जताई अन•िाज्ञता
23 मई, 2012 को माओवादियों ने रायपुर से सटे ओडीशा के सोनाबेडा में गरियाबंद के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक राजेश पवार समेत 9 लोगों की हत्या कर दी थी। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के काफिले तक को वे निशाना बना चुके हैं। रायपुर जिले के 8 थाना   क्षेत्रों में माओवादियों की गतिविधियां हैं। हालांकि, पुलिस महानिदेशक अनिल नवानी और अतिरिक्त महानिदेशक (नक्सल आॅपरेशन) राम निवास राज्य के 18 में से 15 जिलों के नक्सल प्र•ाावित होने से अनि•ाज्ञता जताते हैं। सरकार की ओर से विधानस•ाा में दी गई इस जानकारी के बारे में राम निवास कहते हैं कि नक्सली प्र•ााव के कई मापदंड होते हैं और एकाध मापदंड की वजह से किसी इलाके को नक्सल प्र•ाावित नहीं कहा जा सकता। वे कहते हैं, ‘बस्तर के पांच जिले नक्सल प्र•ाावित हैं, लेकिन सरगुजा फिलहाल नक्सल मुक्त हो चुका है। जबकि सरकार सरगुजा के 29 थानों को नक्सल प्र•ाावित मानती है।’
जितेन्द्र बच्चन

रविवार, 27 जनवरी 2013

खूनी साजिश



पहले एक खुशहाल परिवार को उजाड़ा, फिर खुद किसी और की हो गई। कुछ ऐसी ही है रेखा सेन से रेखा मिश्रा और फिर शबनम बनने की कहानी। इस औरत का खेल यहीं नहीं थमा, बल्कि यहीं से शुरू होती है इसके इश्क, फरेब और खूनी साजिश की रोंगटे खड़ी कर देनी वाली कहानी।

 खंडवा का बहुचर्चित प्रसन्न मिश्रा हत्याकांड
रेखा मिश्रा ने पुलिस को जो बताया, उसे सुनकर स•ाी हैरान रह गए। उसका कहना था कि 11 जुलाई की रात करीब नौ बजे एसडीओ साहब के मोबाइल पर किसी का फोन आया था। इसके बाद वह तैयार होने लगे, फिर रात 9.30 बजे एक व्यक्ति आॅटो लेकर आया और प्रसन्न मिश्रा उसके साथ चले गए। तब से आज 12 दिन बीत गए, उनका कुछ पता नहीं है। उनका मोबाइल •ाी नहीं लग रहा है। प्रसन्न एनवीडीए कॉलोनी में रहते थे और एसडीओ थे। उनके गुम होने की खबर से पुलिस में हड़कंप मच गया- कहां गए प्रसन्न मिश्रा? किसने किया था उन्हें फोन? आॅटो में कौन आया था? किसके साथ गए और रेखा ने बारह दिन बाद इस मामले की सूचना क्यों दी? 23 जुलाई को थाना कोतवाली (खंडवा) पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज कर वरिष्ठ अधिकारियों को सूचना दी। इसके बाद मामले की जांच-पड़ताल शुरू कर दी। खुद रेखा •ाी पति को तलाशती रही।
रेखा सेन (38) मूल रूप से खिरकिया की रहने वाली है। उसने प्रसन्न मिश्रा से प्रेम विवाह किया था। पति-पत्नी दोनों एकसाथ एनवीडीए कॉलोनी (खंडवा) में हंसी-खुशी के साथ रह रहे थे। प्रसन्न मिश्रा की यह दूसरी शादी थी। पहली पत्नी का नाम मधु है। मधु मिश्रा के साथ प्रसन्न की शादी 1986 में हुई थी। उससे एक बेटी है प्रज्ञा मिश्रा। चार साल तक मधु के साथ उनका पारिवारिक जीवन बहुत अच्छा बीता। इसके बाद प्रसन्न की जिंदगी में रेखा सेन आ गई। प्रेमिका के आते पत्नी जहर लगने लगी। जल्द ही रेखा और प्रसन्न ने शादी करने का फैसला कर लिया। इस ऐलान से मधु का वजूद हिल गया। गुस्से में उन्होंने पूरा आसमान सिर पर उठा लिया, ‘प्रसन्न! एम म्यान में दो तलवार नहीं रह सकती। इस घर में अब मैं रहूंगी या फिर वह चुड़ैल!’ घर में कलह शुरू हो गई। प्रसन्न रेखा को छोड़ने को तैयार नहीं थे और मधु सौतन को बर्दास्त नहीं कर पा रही थी। आखिर तंग आकर मधु मिश्रा ने पति का घर छोड़ दिया। वह मायके में जाकर रहने लगी।
रेखा को इसी मौके की तलाश थी। प्रसन्न के साथ अब वह पत्नी की हैसियत से खुलेआम रहने लगी। मधु मिश्रा के •ााई ने थोड़ा-बहुत विरोध किया, लेकिन उनकी •ाी एक नहीं चली। प्रसन्न रेखा के साथ बड़ी हंसी-खुशी के साथ रहने लगे, त•ाी अचानक एक रोज वह गायब हो गए। पुलिस की तमाम कोशिशों के बावजूद प्रसन्न मिश्रा का पता नहीं चला, तो मामले की जांच सीआईडी को सौंप दी गई। वह •ाी एसडीओ साहब को नहीं ढूंढ पाई। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि प्रसन्न को जमीन निगल गई या आसमान?
14 जुलाई, 2010 को पुलिस इसी उधेड़बुन में लगी थी, त•ाी एक मुखबिर ने चौंकाने वाली खबर दी। उसका कहना था, ‘एसडीओ साहब 11 जुलाई, 2003 को गायब नहीं हुए थे, बल्कि उनकी हत्या की गई है और इस खूनी साजिश की सूत्रधार है खुद उनकी पत्नी रेखा!’ इंसपेक्टर •ाूपेंद्र •ादौरिया चौंक पड़े, ‘बताओ, और क्या जानते हो मिश्रा के बारे में?’ मुखबिर ने बताया, ‘सर, रेखा ने प्रसन्न से शादी जरूर की थी, लेकिन अब वह उनसे ऊब चुकी थी। वह एक नए आशिक के इश्क में गिरफ्तार हो चुकी थी। उसका नाम सैयद साहेब अली पुत्र सैयद अहमद है। वह कहारवाड़ी खंडवा का रहने वाला है। सैयद और उसका •ााई सैयद करामात अली •ाी इस मामले में शामिल है। एसडीओ साहब के शव को ये दोनों बाइक (एमपी04 आर-1862) से ले जाकर शहर से करीब 28 किमी दूर खेड़ी गांव के आगे रोड पर बन रही पुलिया के पास एक गड्ढे में दफना दिया था।’
प्रसन्न मिश्रा की गुमशुदगी का राज खुलते ही इंस्पेक्टर •ाौदरिया ने मामले की सूचना पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को दी। इसके बाद रेखा को हिरासत में ले लिया। उसका कहना था कि वह किसी साहेब अली को नहीं जानती और वह अंतिम सांस तक प्रसन्न मिश्रा की ही पत्नी है। पुलिस ने तफ्तीश तेज कर दी। गहन जांच-पड़ताल में मामले के विवेचनाधिकारी के हाथ एक ऐसा नॉमिनेशन फार्म हाथ लग गया, जिस पर प्रॉविडेंट फंड के वि•ााजन का उल्लेख था। जिला सहकारी बैंक होशंगाबाद की एक पासबुक मिली, जिसमें 21 जून 03 तक 1 लाख 29 हजार 250 रुपये शेष थे। इसके अलावा एक पासबुक •ाारतीय स्टेट बैंक शाखा सिविल लाइन खंडवा की मिली, जिसमें 9 अगस्त, 03 को 36,841 रु पये जमा थे। ये स•ाी दस्तावेज शबनम के नाम थे, लेकिन फोटो रेखा का लगा था। •ादौरिया चौंक पड़े, यह कैसे हो सकता है? जरूर दाल में कुल काला है! रेखा मिश्रा ने साहेब अली को 24 सितंबर, 04 और 24 सितंबर, 07 को ग्रीटिंग कार्ड •ोजा था। उससे •ाी यह बात सबित हो गई कि रेखा झूठ बोल रही है। वह साहेब अली को अच्छी तरह जानती है। थोड़ी और गहन जांच में खंडवा से बना राशन कार्ड और मतदाता परिचय पत्र •ाी बरामद हुआ, जिसमें फोटो रेखा मिश्रा का लगा था, लेकिन नाम की जगह शबनम पति सैयद साहेब अली लिखा था।
विवेचनाधिकरी ने इन सारे सुबूतों   को रेखा के सामने रखा, तो उसने घुटने टेक दिए। इसके बाद पुलिस ने साहेब अली और करामत अली को •ाी गिरफ्तार कर लिया। साहेब अली की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त बाइक •ाी बरामद कर ली। इन दोनों आरोपियों ने •ाी पुलिस पूछताछ में अपना-अपना गुनाह कबूल कर लिया। पुलिस ने 15 जुलाई, 2010 को नायब तहसीलदार विजय प्रकाश सक्सेना की मौजूदगी में आरोपियों की निशानदेही पर जेसीबी से खुदाई की, तो सड़क के करीब 20 फीट नीचे प्रसन्न का कंकाल बरामद हो गया। डीएनए टेस्ट के लिए उसे पहले सागर, फिर इंदौर •ोजा गया। रिपोर्ट से यह बात तय हो गई कि वह नरकंकाल प्रसन्न मिश्रा का ही था। दरअसल, प्रसन्न मिश्रा रेखा के साथ रह जरूर रहे थे, लेकिन कुछ दिन बाद ही उन्हें अपनी पत्नी मधु की याद आने लगी थी। उन्हें अपनी गलती का अहसास होने लगा था। वह मधु को खोने के गम में शराब पीने लगे, फिर शराब जैसे उनकी दवा बन गई। रेखा परेशान रहने लगी। उसके आगोश में अब प्रसन्न खुश नहीं रहते थे। उनकी शराब की लत छुड़ाने के लिए शासकीय लोक अ•िायोजक दीपक कुरे के मुताबिक, रेखा ने साहेब अली का सहारा लिया। वह पेशे से तांत्रिक था, लेकिन जब उसे पता चला कि प्रसन्न एसडीओ हैं और उनके पास लाखों की दौलत है तो उस तांत्रिक के मन में लालच समा गया। उसने रेखा को अपने प्रेम-जाल में फंसाना शुरू कर दिया। कुछ दिन बाद ही दोनों के बीच अवैध संबंध हो गए।
रेखा अब तक जिसे दिल की गहराईयों से चाहती थी, उसी प्रसन्न मिश्रा को दूध में गिरी मक्खी की तरह निकाल दिया। साहेब अली और रेखा ने शादी करने का फैसला कर लिया। साहेब अली ने इससे पहले रेखा को समझाया कि अगर प्रसन्न की हत्या कर दी जाए, तो सारी दौलत की तुम इकलौती वारिस हो जाओगी। धन के लो•ा में औरत का विवेक जाता रहा। जर-जोरू और जमीन हड़पने के लिए साहेब अली की साजिश कामयाब हो गई। उसने अपने •ााई करामात अली और रेखा की मदद से प्रसन्न मिश्रा की एक रस्सी से गला घोटकर हत्या कर दी। शव घर से बहुत दूर हरसूद रोड स्थित खेड़ी के पास ले जाकर दफना दिया। प्रसन्न मिश्रा के कपड़े, उनका मोबाइल और गला घोटने वाली रस्सी खेड़ी के पास ही नदी में फेंक दिया। कुछ दिन बाद जहां प्रसन्न मिश्रा का शव दफन था, उस पर सड़क बन गई। आरोपियों ने सोचा, अब कोई डर नहीं है। रेखा ने धर्म बदलकर साहेब अली के साथ शादी कर ली। रेखा मिश्रा से वह शबनम बन गई। लड़की वि•ाूति का नाम बदलकर मुस्कान अली रख दिया। बच्ची के अनुसार, रेखा उस पर दबाव डालती थी कि वह साहेब अली को ही अपना पिता कहे। वि•ाूति जब विरोध करती तो साहेब अली तंत्र-मंत्र कर उसे जिंदा जलाने की धमकी •ाी देता। घटना के तीन साल बाद रेखा ने मकान •ाी बदल दिया। अब स•ाी इंदौर की ग्रीन पार्क कॉलोनी में रहने लगे थे। इन स•ाी को अब प्रसन्न मिश्रा की सिविल मौत का इंतजार था। कानून के मुताबिक, किसी •ाी व्यक्ति के गायब होने के सात साल बाद उसकी सिविल मौत मान ली जाती है। ऐसे में उसकी सारी संपत्ति और धन रेखा मिश्रा और उसके बच्चों को हो जाती, लेकिन पाप क•ाी नहीं छिपता। पुलिस ने तीनों आरोपियों रेखा मिश्रा, साहेब अली और करामत को गिरफ्तार कर जेल •ोज दिया। अदालत में मामले की सुनवाई होती रही। पुलिस ने कुल 20 लोगों को इस बीच बतौर गवाह पेश किया। अंतत: 22 जनवरी, 2013 को न्यायालय ने अपने 42 पेज के फैसले में रेखा उर्फ शबनम, साहेब अली और करामत को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई।


पुलिस ने दिखाई लापरवाही
प्र्रसन्न मिश्रा के •ााई अनुराग मिश्रा का कहना है कि उन्होंने •ौया के मामले में तांत्रिक साहेब अली और रेखा मिश्रा के हाथ होने की आशंका पहले ही पुलिस से व्यक्त की थी। पुलिस अगर लापरवाही न करती तो मामले की गुत्थी बहुत पहले सुलझ जाती। अदालत के सजा सुनाए जाने के बाद अनुराग कोर्ट से बाहर निकलकर •ााई की याद में रो पड़े। उनका कहना था, ‘मेरे •ााई की आत्मा को अब शांति मिलेगी।’



जितेन्द्र बच्चन