सोमवार, 28 जनवरी 2013

छत्तीसगढ़ में फैल रही लाल मुसीबत - जितेन्द्र बच्चन


केंद्र और राज्य सरकार ने नक्सलियों के खिलाफ मोर्चे पर सुरक्षा बलों के 30 हजार जवानों को झोंक रखा है। बीते चार साल में इस लाल आतंक पर लगाम कसने के लिए 3,975 करोड़ रुपये •ाी फंूके जा चुके हैं। बावजूद इसके नक्सलियों के खौफ के कारोबार में लगातार इजाफा हो रहा है। कहीं सुरक्षाबलों की रणनीति में कोई सुराख तो नहीं?

लाल आतंक को जड़ से उखाड़ फेंकने के अनिगनत वादों, ढेरों रणनीतियों और •ाारी-•ारकम रकम खर्च करने के बावजूद नतीजा सिफर है। नक्सलियों से निपटने के लिए तैनात केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, सीमा सुरक्षा बल, •ाारत-तिब्बत सीमा पुलिस की दो दर्जन से ज्यादा बटालियन और छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल की 20 बटालियन के पास नहीं है ठोस रणनीति। राज्य के जांजगीर को छोड़ बाकी17 जिले माओवादियों की गतिविधियों से प्र•ाावित हैं। जबकि केंद्र और राज्य सरकार ने नक्सलियों के खिलाफ मोर्चे पर सुरक्षा बलों के 30 हजार जवानों को झोंक रखा है। बीते चार साल में लाल आतंक पर लगाम कसने के लिए 3,975 करोड़ रुपये •ाी फंूके जा चुके हैं। बावजूद इसके राज्य में माओवादियों के खौफ के कारोबार में लगातार इजाफा हो रहा है। उनकी ताकत में •ाी बढ़ोतरी हुई है। दरअसल, इसके पीछे माओवादियों की ठोस रणनीति है। फरवरी, 2007 में झारखंड में हुई अपनी 9वीं कांग्रेस में माओवादियों ने सुरक्षा बलों पर छापामार हमले के बजाए चलायमान युद्ध का ऐलान किया था। इस युद्ध को देश के कोने-कोने तक पहुंचाने के साथ पीएलजीए (पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी) को पीएलए (पीपुल्स गुरिल्ला आर्मी) में और गुरिल्ला जोन को बेस एरिया में तब्दील कर दिया गया। साथ ही लड़ाकों को नए सिरे से लामबंद करने के लिए उनकी माली हालत •ाी दुरु स्त करने की कवायद शुरू की। उनकी इस राणनीति ने माओवादियों में नई जान फूंक दी, जिसका नतीजा यह रहा कि 28-29 मार्च की रात पश्चिम बस्तर के रानीबोदली पोस्ट पर अपने पहले चलायमान हमले का नमूना देते हुए उन्होंने सुरक्षा बलों के 55 जवानों को मौत के घाट उतार दिया... और यह सिलिसला आज •ाी जारी है।
सैटेलाइट फोन होने का •ाी खुलासा
साढेÞ चार वर्षों में माओवादी हमले में 1,277 लोगों ने जान गंवाई है, जिसमें 632 पुलिसवाले और बाकी सुरक्षा बलों के जवान हैं। इसी अविध में पुलिस ने •ाी 353 माओवादियों को मार गिराने का दावा किया है, लेकिन बस्तर को आधार बनाकर राज्य के दीगर हिस्सों में विस्तार के लिए माओवादियों ने यहां अपनी लेवी (जबरिया वसूली) करीब 70 करोड़ रुपये से बढांकर 200 करोड़ रुपये कर ली है। इससे उनकी आर्थिक स्थिति तो मजबूत हुई ही, नक्सलियों की ताकत में •ाी इजाफा हुआ है। 1968 में माओवादियों ने 15 लड़ाकों के साथ पश्चिमी बस्तर के बीजापुर जिले में मद्देडदलम का गठन किया था, जबकि आज यहां माओवादियों की 7 डिवीजनल कमेटी, लड़ाकों की दो बटालियन, 11 कंपनी और 30 प्लाटून हैं। अपनी इसी मजबूत माली हालत के चलते माओवादी सुरक्षा बलों के साथ लंबी लड़ाई को तैयार हैं। लड़ाकों की बेतहाशा बढ़ोतरी के साथ ही उन्होंने असलहा और गोला-बारूद •ाी •ाारी तादाद में जमा कर लिया है। पुलिस के यूबीजीएल (अंडर बैरल ग्रेनेड लांचर) के जवाब में माओवादी अमेरिकन एम16 सीरीज के घातक हथियार, जिनमें ग्रेनेड लांचर लगता है, के जुगाड़ में हैं। पिछले हफ्ते ही माओवादियों के पास सैटेलाइट फोन होने का •ाी खुलासा हुआ है, जिसके जरिए वे बीजापुर के रानीबोदली क्षेत्र से अपने किसी कमांडर से हमले का आदेश ले रहे थे।
केशकाल को बनाया मुख्य जंक्शन
दंडकारण्य विमुक्त प्रांत के लिए बस्तर तक ही दायरा रखने वाले नक्सलियों की निगाहें अब समूचे राज्य पर है। रंगदारी बढ़ाने के लिए उनका अगला निशाना रायगढ़ और कोरबा है। बीते साल माओवादी धमतरी और महासमुंद में नए रंगरूटों के दम पर ठीक से पैठ नहीं जमा पाए थे, इसलिए अबकी उन्होंने दंतेवाड़ा के चिंतलनार इलाके से धुरंधर लड़ाकों की एक हथियारबंद कंपनी नए रास्ते कांगेर घाटी, माचकोट सघन वन क्षेत्रों से होते हुए करपावंड की ओर से केशकाल होते हुए सीतानदी अ•ायारण्य की ओर रवाना की, जिसने वहां पहुंचकर एक शिविर •ाी लगा लिया है। बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक टी.जे. लांगकुमेर के अनुसार, माओवादी पहले सीमावर्ती आंध्र प्रदेश और दक्षिण बस्तर से स्टेट हाइवे क्र मांक-5 से उत्तर बस्तर के राजनांदगांव और प्रदेश की अन्य जगहों पर जाते थे। अब नक्सलियों ने दर•ाा और ईस्ट बस्तर डिवीजनल कमेटी खड़ी कर कई छोटे मार्ग विकिसत कर लिए हैं। केशकाल उनका मुख्य जंक्शन है, इसलिए पिछले कई साल से उन्होंने यहां कोई बड़ी वारदात नहीं की है।
धमतरी के कई इलाकों में •ाी गतिविधियां बढ़ीं
7 अक्टूबर, 2012 को नक्सलियों ने राष्ट्रीय राजमार्ग-63 पर गीदम और बास्तानार के बीच बारूदी सुरंग विस्फोट कर सीमा सशस्त्र बल के एक वाहन को उड़ा दिया था, जिसमें तीन जवान शहीद हो गए थे और एक जवान गं•ाीर रु प से घायल हो गया था। इससे पहले तक इस राजमार्ग को गीदम से जगदलपुर तक सुरिक्षत माना जाता था। अब जगदलपुर से 25 किमी दूर नानगुर इलाके में नक्सलियों की   एक छोटी टुकड़ी तैनात होने की खबर है। बकावंड और करपावंड क्षेत्र में उनका सर्वे चल रहा है और कांकेर के कोरर क्षेत्र और धमतरी के सिंहपुर, मगरलोड में •ाी नक्सल गतिविधियां बढ़ी हैं। रायगढ़ से करीब 50 किमी दूर गोगारडा अ•ायारण्य साल •ार से नक्सलियों का ठिकाना बना हुआ है। नवंबर, 2012 में यहां बड़ी संख्या में माओवादियों का जमावड़ा हुआ था, वहीं कोरबा से 70 किमी दूर जंगल और पहाड़ियों से घिरे स्यांग और लेमरु  में बीते दो साल से माओवादियों की आमदरफ्त है। बिलासपुर के अचानकमार अ•ायारण्य में •ाी पिछले कुछ समय से इनकी गतिविधियों की खबर है। हाल ही में यहां माओवादियों के पर्चे •ाी मिले थे।
सरकार के दावे की खुली पोल
छत्तीसगढ़ सरकार का दावा है कि नक्सली घटनाओं में कमी आई है और इसका कारण राज्य के नक्सल प्र•ाावित क्षेत्रों में पुलिस का बढ़ता दबाव है। राज्य के गृह मंत्री ननकी राम कंवर का कहना है, वर्ष 2006 की तुलना में वर्ष 2012 में नक्सली घटनाएं लग•ाग आधी हो गई हैं और आम नागरिकों की हत्या की घटनाएं महज 20 फीसदी रह गई, पर हकीकत सरकार के दावे की कलई खोलती है। राज्य में नक्सलियों की ताकत घटी नहीं, बल्कि लगातार बढ़ी है। रमन सरकार द्वारा जारी ग्राम सुराज अ•िायान के दौरान सुकमा जिले के केरलापाल क्षेत्र से 21 अप्रैल, 2012 की दोपहर कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन का अपहरण कर लिया गया। माओवादियों ने मेनन के दो अंगरक्षकों की गोली मारकर हत्या कर दी। इस अप्रत्याशित घटना से हड़बड़ाई राज्य सरकार ने मेनन को छुड़ाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया, तब •ाी माओवादियों ने 13 दिन बाद तीन मई को मेनन को रिहा किया और देश-दुनिया को नक्सली यह •ाी बताने में कामयाब रहे कि वह वाकई सबसे बड़े लोकतंत्र की सबसे बड़ी चुनौती हैं।
मई, 2012 में राज्य के दंतेवाड़ा जिले में माओवादियों ने केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के वाहन पर हमला किया, जिसमें छह पुलिसकर्मी समेत सात लोग मारे गए। इस घटना से करीब 10 दिन पहले माओवादियों ने सुकमा जिले में दो पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी। मार्च, 2012 में राज्य के कांकेर जिले में विस्फोट कर सीमा सुरक्षा बल की गाड़ी को उड़ा दिया, जिसमें तीन जवान शहीद हो गए। बीजापुर जिले के सारकेगुड़ा क्षेत्र में पुलिस ने 29 जून को मुठ•ोड़ में 19 नक्सलियों को मार गिराने का दावा किया था। राज्य सरकार ने •ाी कहा कि पुलिस ने नक्सलियों को ही मारा है और उसमें दंतेवाड़ा जेल ब्रेक मामले का मास्टर माइंड •ाी शामिल था, लेकिन पुलिस अपनी कामयाबी का जश्न मनाती, उससे पहले ही राज्य के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने इस घटना में बड़ी संख्या में महिलाओं और बच्चों के मारे जाने का आरोप लगाते हुए सीबीआई जांच की मांग की। अंतत: घटना को लेकर विवाद बढ़ता देख राज्य सरकार ने मामले की न्यायिक जांच की घोषणा कर दी। नक्सलियों के निशाने पर नक्सल विरोधी नेता (पूर्व नेता प्रतिपक्ष) महेंद्र कर्मा •ाी रहे। आठ नवंबर को हुए हमले में महेंद्र कर्मा बाल-बाल बचे। सरकार की रणनीति को और कामयाब बनाने के लिए नक्सली मामलों के जानकार राम निवास नए पुलिस महानिदेशक बनाए गए। पद ग्रहण करते समय उन्होंने कहा कि उनकी पहली प्राथमिकता नक्सली समस्या का निबटारा है, लेकिन नक्सलियों ने उन्हें चुनौती देते हुए तीन दिसंबर, 2012 को सुकमा जिला मुख्यालय से आठ किलोमीटर दूर नीलावरन के पंचायत •ावन को विस्फोट से उड़ा दिया।
नक्सली कैंप ध्वस्त, दो नक्सली गिरफ्तार
नारायणपुर के एसपी मयंक श्रीवास्तव के अनुसार, 31 दिसंबर, 2012 की सुबह मुखिबर से सूचना मिली थी कि केशकाल दलम कमांडर कमलेश एवं माड दलम की सरिता ग्रामीणों की बैठक कर संघम सदस्यों को विशेष ट्रेनिंग दे रहे हैं। डीआरजी एवं एसटीएफ की पार्टी ने जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर स्थित मचानार एवं परलमेटा के जंगलों में दबिश दी, तो पुलिस नक्सली मुठ•ोड़ में पुलिस को बड़ी सफलता हाथ लगी। पुलिस ने नक्सलियों के कैंप को धवस्त कर मौके से दो नक्सलियों को गिरफ्तार कर •ाारी मात्रा में नक्सलियों का सामान बरामद किया है। करीब एक घंटे तक चली मुठ•ोड़ के बाद बाकी के नक्सली घने जंगल का सहारा लेते हुए वहां से •ााग खडे हुए।
छह गुना बजट बढ़ने के बाद •ाी पुलिस असफल
सरकार नक्सलियों से निबटने के लिए अब तक तमाम संसाधन झोंक चुकी है। गत छह साल में पुलिस का बजट 6 गुना बढ़ा दिया गया। वर्ष 2005-06 में 350 करोड़ रुपये बजट था, जो 2010-11 में 1,100 करोड़ रुपये हो गया और 2011-12 में यह 1,500 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। इसका 70 फीसदी से अधिक नक्सल प्र•ाावित क्षेत्रों में खर्च हो रहा है, जबकि पुलिस के आधुनिकीकरण के लिए मिलने वाली राशि अलग है। इसके अलावा इस मद में पिछले तीन साल में केंद्र से करीब 400 करोड़ रुपये मिले हैं। केंद्रीय सुरक्षा बलों के वेतन का •ाुगतान •ाी राज्य सरकार करती है, जो राशि करीब 1,000 करोड़ रुपये तक पहुंच चुकी है। कुल खर्च 3,975 करोड़ रुपये बनता है। राज्य के गृह मंत्री ननकीराम कंवर मानते हैं कि राज्य में माओवादियों की ताकत बढ़ी है। यही वजह है कि वे कई मौकों पर बस्तर को सेना के हवाले करने की हिमायत कर चुके हैं।
अतिरिक्त महानिदेशक ने जताई अन•िाज्ञता
23 मई, 2012 को माओवादियों ने रायपुर से सटे ओडीशा के सोनाबेडा में गरियाबंद के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक राजेश पवार समेत 9 लोगों की हत्या कर दी थी। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के काफिले तक को वे निशाना बना चुके हैं। रायपुर जिले के 8 थाना   क्षेत्रों में माओवादियों की गतिविधियां हैं। हालांकि, पुलिस महानिदेशक अनिल नवानी और अतिरिक्त महानिदेशक (नक्सल आॅपरेशन) राम निवास राज्य के 18 में से 15 जिलों के नक्सल प्र•ाावित होने से अनि•ाज्ञता जताते हैं। सरकार की ओर से विधानस•ाा में दी गई इस जानकारी के बारे में राम निवास कहते हैं कि नक्सली प्र•ााव के कई मापदंड होते हैं और एकाध मापदंड की वजह से किसी इलाके को नक्सल प्र•ाावित नहीं कहा जा सकता। वे कहते हैं, ‘बस्तर के पांच जिले नक्सल प्र•ाावित हैं, लेकिन सरगुजा फिलहाल नक्सल मुक्त हो चुका है। जबकि सरकार सरगुजा के 29 थानों को नक्सल प्र•ाावित मानती है।’
जितेन्द्र बच्चन

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