बुधवार, 10 जुलाई 2013

फंदे में फंसा
करोड़पति कंपाउंडर












एक अदना-सा कंपाउंडर और करोड़ों की मिल्कियत! अपना अस्पताल! अजमेर से पाली और उदयपुर से जयपुर तक फैला है इसके जमीन का जाल! दर्जनों नर्सिंग कॉलेजों में है हिस्सेदारी। पूरे राज्य में चल रहा था करप्शन का नेटवर्क। कौन है यह कंपाउंडर? कैसे बना 200 करोड़ का मालिक? और कौन-कौन शामिल हैं उसके गिरोह में? 


                                                                   
एंटी करप्शन ब्यूरो ने सवाई मान सिंह अस्पताल जयपुर के एक कंपाउंडर महेश चंद्र शर्मा के घर छापा क्या मारा, जैसे कुबेर का खजाना खुल गया। अफसरों की आंखें फटी की फटी रह गर्इं। नोट गिनते-गिनते हाथ थक गए और प्रॉपर्टी इतनी कि कोई धन्ना सेठ झक मारे। अपना अस्पताल, कई शहरों में रिसार्ट, दर्जनों नर्सिंग कॉलेजों में हिस्सेदारी और राजस्थान में करोड़ों का फार्महाउस। देश के स्वास्थ्य मंत्रालय ने शर्मा को सलाहकार बना रखा था। इंडियन नर्सिंग काउंसिल (भारतीय नर्सिंग परिषद) का सदस्य भी था वह। इसी ओहदे और रुतबे की आंड़ में यह आरोपी नर्सिंग कॉलेजों से लाखों रुपये की उगाही करता था। दो महीने में 55 नर्सिंग कॉलेजों की मान्यता को लेकर नोटिस दे चुका था। सीट बढ़वाने और उनकी गड़बड़ियां दबा देने के नाम पर 15 से 25 लाख रु पये तक लेता था। जो न देते, उनके यहां निरीक्षण के दौरान कमी निकालकर मान्यता रद करने की धमकी देता। 29 जून की रात भी अग्रवाल फार्म स्थित आरएजी अस्पताल में शर्मा एक नर्सिंग कॉलेज का आईएनसी की वेबसाइट पर नाम जुड़वाने और कॉलेज में दो कोर्स बढ़ाने के नाम पर पांच लाख रुपये की रिश्वत ले रहा था, तभी भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की टीम ने उसे रंगे हाथों दबोच लिया। उसके साथ उसके निजी सहयोगी राजेंद्र सैनी को भी गिरफ्तार किया गया है। तलाशी में ब्यूरो को महेश शर्मा और उसके परिवार के नाम से 200 करोड़ से अधिक की संपत्ति के दस्तावेज मिले हैं। ऐसे में सवाल उठता है, कौन है महेश चंद्र शर्मा? वह कंपाउंडर से दो सौ करोड़ का मालिक कैसे बन गया? क्या उसके गुनाह में नेता और मंत्री भी शामिल हैं? किन-किन अधिकारियों से इसकी साठ-गांठ है?
महेश चंद्र शर्मा (52) जयपुर के विद्युतनगर का रहने वाला है। यहां उसका 800 स्क्वेयर यार्ड में बंगला है। खुद शर्मा सवाई मान सिंह अस्पताल में सेकंड ग्रेड कंपाउंडर था। 1984-85 में उसे यह नौकरी मिली थी, लेकिन नौकरी कम, असर-रसूखदारों वालों से संपर्क बनाने में ज्यादा मशगूल रहता। एक झटके में लाखों-करोड़ों बटोर लेने का सपना था। 2003-2004 में आखिर शर्मा का फरेबी हुनर काम कर गया। एक नर्सिंग कॉलेज में असिस्टेंट लेक्चरर बन गया। तनख्वाह करीब 50 हजार हो गई। इसके बाद शर्मा नर्सिंग कॉलेजों के निरीक्षण आदि कार्यों से जुड़ गया। इसी दौरान उसकी मुलाकात इंडियन नर्सिंग काउंसिल के पदाधिकारियों से हुई। उन पर ऐसा जादू चलाया कि 2007 में इंडियन नर्सिंग काउंसिल ने उसे राजस्थान का आब्जर्वर बना दिया। इसके बाद 2008 में अच्छे काम के लिए शर्मा को राष्ट्रपति पुरस्कार से नवाजा गया। हौंसले और बुलंद हो गए। 2011 तक आब्जर्वर पद पर बना रहा। फरवरी 2012 में महेश शर्मा ने वीआरएस के लिए आवेदन किया। नहीं मिला, तो उसने नौकरी पर आना ही बंद कर दिया। अब शर्मा राजस्थान के सभी नर्सिंग कॉलेजों को आईएनसी से एनओसी दिलाने का ठेका लेने लगा। अन्य काम भी वही करवाता। बदले में लाखों रुपये लेता। देखते ही देखते शर्मा की दलाली का धंधा चल निकला। दौलत का अंबार लगाता रहा। बाद में कानूनी शिकंजा कसने लगा, तो 2011 में शर्मा स्टेट आब्जर्वर के पद से हट गया, लेकिन उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। अलबत्ता शर्मा को स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपना सलाहकार जरूर बना दिया।
दरअसल, कॉलेज संचालक संस्था का गठन कर चिकित्सा विभाग ग्रुप-3 कार्यालय में विभिन्न कोर्स के लिए आवेदन करते थे। संस्था की फाइल राजस्थान नर्सिंग काउंसिल (आरएनसी) को जांच-पड़ताल के लिए भेजी जाती थी। महेश शर्मा संबंधित संस्था से संपर्क कर उन्हें एनओसी दिलाने का ठेका ले लेता। शर्मा ही आरएनसी के अधिकारियों की मिलीभगत से संस्थाओं के यहां निरीक्षण करने जाता और सारी रिपोर्ट संस्था के पक्ष में लगा देता। इन संस्थाओं में कई नेताओं और उच्च अधिकारियों के नर्सिंग कॉलेज भी शामिल हैं। शर्मा सारे नियम-कानून ताक पर रखकर संस्था की फाइल का सत्यापन कर देता और निरीक्षक फाइल को आरएनसी को सौंप देते। इसके बाद आरएनसी के अधिकारी संस्था की फाइल ग्रुप-3 दफ्तर भेज देते। वहां से कॉलेजों को कोर्स चलाने के लिए एनओसी जारी कर दी जाती। इसके बाद संस्था को आईएनसी से भी विभिन्न कोर्स के लिए एनओसी लेनी पड़ती थी। इसके लिए काउंसिल ने शर्मा को स्टेट आब्जर्वर बना रखा था। शर्मा की रिपोर्ट के आधार पर एनओसी जारी कर दी जाती थी, लेकिन जिस संस्था को कुछ दिन तक एनओसी नहीं मिलती थी, वह महेश शर्मा से संपर्क करती थी। शर्मा उनसे रिश्वत की रकम लेकर संबंधित संस्था को एनओसी देने के लिए आईएनसी को रिपोर्ट भेज देता। तत्पश्चात आईएनसी चेयरमैन उस संस्था को भी एनओसी जारी कर देते।
महेश शर्मा का यह गोरखधंधा कई साल से चल रहा था। बड़े अफसरों और सत्ता में बैठे नेताओं-मंत्रियों तक से उसकी साठगांठ थी। इसीलिए वह अभी तक बचता रहा। एसीबी के अधिकारियों की मानें, तो शर्मा की गिरफ्तारी के समय भी कुछ नेताओं के फोन आए थे। इनमें से कईयों के नर्सिंग कॉलेज चल रहे हैं। उनकी मान्यता से लेकर एनओसी रिन्यू कराने तक का सारा काम महेश शर्मा ही देखता रहा है। लेकिन एक न एक दिन तो इस मामले का पर्दाफाश होना ही था। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) की महानिरीक्षक स्मिता श्रीवास्तव के अनुसार, वीटी रोड निवासी डॉ. आरपी सैनी का जयपुर के अग्रवाल फार्म स्थित ज्ञानाराम जमनालाल नर्सिंग कॉलेज है। सैनी अपने कॉलेज का नाम आईएनसी की वेबसाइट पर जुड़वाना चाहते थे और दो कोर्स भी शुरू करवाने का इरादा था। इसके लिए महेश शर्मा उनसे 5 लाख रुपये मांग रहा था। डॉ. सैनी ने एसीबी से संपर्क किया। उनकी शिकायत थी कि 2008 से अब तक शर्मा उनसे एक करोड़ रुपये ले चुका है। फरवरी में वेबसाइट पर नाम जुड़वाया था, लेकिन मई में हटवा दिया। अब कॉलेज का नाम फिर से जुड़वाने के लिए पांच लाख रुपये की मांग कर रहा है। स्मिता श्रीवास्तव को यकीन नहीं आ रहा था। उन्होंने मामले की तहकीकात करने के लिए एक टीम बना दी।
योजना के अनुसार, डॉ. सैनी ने महेश चंद्र के मोबाइल पर फोन कर कहा, ‘हमारे पास पांच लाख रुपये की व्यवस्था हो गई है। आप शनिवार की शाम किसी भी समय आकर ले सकते हैं।’ शर्मा के होंठों पर हल्की-सी मुस्कान तैर गई- तुम्हें तो देना ही था, बेटा! नहीं दोगे तो जाओगे कहां? और 29 जून की रात वह अग्रवाल फार्म स्थित आरएजी अस्पताल पहुंच गया, जहां पांच लाख रुपये लेते समय एसीबी टीम ने उसे रंगे हाथ दबोच लिया। लेकिन अभी इस मामले के कुछ अन्य आरोपियों और तमाम बरामदगी करनी बाकी थी, इसलिए 30 जून की सुबह महेश शर्मा को एसीबी ने अदालत में पेश कर पांच दिन की रिमांड पर ले लिया। उसी रोज महानिरीक्षक स्मिता श्रीवास्तव के आदेश पर इस मामले के तहत राज्य के 10 नर्सिंग कॉलेजों में भी छापे मारे गए। उदयपुर के कांग्रेस नेता पंकज शर्मा के नर्सिंग कॉलेज को ब्यूरो ने सीज कर दिया है।
महेश शर्मा ने तीन-चार महीने पहले अग्रवाल फार्म शिप्रापथ स्थित आरएजी अस्पताल को 22 करोड़ रुपये में खरीदा था। इसके अलावा जयपुर, अजमेर, पाली, उदयपुर सहित अन्य जगहों पर 25 नर्सिंग कॉलेजो में शर्मा की हिस्सेदारी है और छह नर्सिंग कॉलेज उसके खुद के हैं। इनमें से कई कॉलेजों में शर्मा की पत्नी भी हिस्सेदार है। 2 जुलाई को शर्मा के तीन बैंक लॉकरों को एसीबी ने खंगाला, तो करीब 40 लाख रुपये की ज्वेलरी मिली। इनमें से एसबीबीजे बैंक की सी स्कीम स्थित शाखा के लॉकर से टीम को करीब 15 लाख रुपये की ज्वेलरी मिली है। बाकी दो लॉकर आईसीआईसीआई बैंक की शाखाओं के हैं। एसीबी अधिकारियों के मुताबिक, शर्मा के कुल 12 बैंक खातों की जानकारी अब तक सामने आ चुकी है। सभी की जांच की जा रही है। वहीं, जो दस्तावेज बरामद हुए हैं, उनसे करोड़ों की संपत्ति का पता चला है। इनमें कई कॉलोनियों में प्लॉट, फ्लैट और पेट्रोल पंप शामिल हैं। डीआईजी पुरोहित के अनुसार, प्रदेश के जिन नर्सिंग कॉलेजों की रिपोर्ट निगेटिव थी, उन्हें भी काउंसिल ने एनओसी जारी कर दी। कोटा के दो और दौसा के एक कॉलेज का तीन बार निरीक्षण किया गया। हर बार टीम ने यहां की रिपोर्ट निगेटिव ही बताई। इसके बावजूद कॉलेजों को एनओसी जारी हुई है। जयपुर स्थित एक कॉलेज को बिना प्रोफेसर की नियुक्ति किए ही एमएससी नर्सिंग की मान्यता प्रदान कर दी गई। जोधपुर में दो कमरे में पूरा कॉलेज चल रहा था, तब भी उसे काउंसिल ने एनओसी दे रखी है। इसके अलावा शर्मा से एक डायरी और कुछ कागजात बरामद हुए हैं, जिनमें कई नेताओं, मंत्रियों और अधिकारियों के नाम शामिल हैं।
इस गिरफ्तारी से इंडियन नर्सिंग काउंसिल के अंदर करप्शन का बड़ा रैकेट भी उजागर हुआ है। एसीबी के अधिकारी अगर दबाव में नहीं आए, तो कई सफेदपोश बेनकाब हो सकते हैं। अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक अजीत सिंह का कहना है कि महेश के भारतीय नर्सिंग परिषद के अध्यक्ष टी दिलीप कुमार से नजदीकी रिश्ते होने का पता चला है। मामले की जांच डीआइजी जीएन पुरोहित कर रहे हैं। दरअसल, महेश भारतीय नर्सिंग परिषद का अध्यक्ष बनना चाहता था। इसके लिए वह लंबे समय से प्रयासरत रहा। पिछले दिनों शिमला में हुई परिषद की बैठक में शर्मा ने एक करोड़ रुपये खर्च किए, तब भी नहीं बना। दिलीप कुमार अध्यक्ष बन गए। शर्मा अब उनकी दलाली कर रहा था। ऐसे में दिलीप भी टीम के हत्थे चढ़ सकते हैं।

कहां-कहां कर रखे हैं निवेश
मानसरोवर में आरएजी हॉस्पिटल के अलावा महेश चंद शर्मा ने अपने पैसों को कई जगह निवेश कर रखा है। टोंक रोड पर एक नामी मोटर्स में साझेदारी है। कॉलोनाइजर व बिल्डर्स के साथ करोड़ों रु पये निवेश कर रखे हैं। जयपुर में इस्कॉन रोड स्थित गणेशनगर व पटेलनगर में कई प्लाट हैं और आगरा रोड पर प्रॉपर्टी कारोबारी राजेन्द्र सैनी के साझेदारी में पेट्रोल पंप व एक टाउनशिप भी है। कई बीघा जमीन भी ले रखी है। साथ ही प्रदेश के करीब 10 कॉलेजों में महेश की 50 फीसदी से अधिक की साझेदारी है या उसके खुद के हैं। इनमें से सूर्यांश स्कूल ऑफ नर्सिंग जयपुर, साकेत कॉलेज ऑफ नर्सिंग, पद्मश्री स्कूल ऑफ नर्सिंग, पूजा स्कूल ऑफ नर्सिंग, स्टार कॉलेज ऑफ नर्सिंग, आदि कॉलेज ऑफ नर्सिंग, मेवाड़ कॉलेज ऑफ नर्सिंग, रामी देवी कॉलेज ऑफ नर्सिंग, इरशाद स्कूल ऑफ नर्सिंग, पिंकसिटी स्कूल एंड कॉलेज आफ नर्सिंग शामिल हैं। इसके अलावा प्रदेश की करीब 25 कॉलेज ऐसे हैं, जिनमें दस से लेकर 30 फीसदी तक शर्मा की साझेदारी है।

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