गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013


जेबतराशों का जाल

करोड़ों का काला कारोबार! मुल्क के कई महानगरों में फैला है जेबतराशों का जाल! कुछ राज्यों में खूबसूरत लड़कियों का भी होता है इस्तेमाल! जितना बड़ा शहर, उतना बड़ा गिरोह! विदेशी पर्यटक भी होते हैं निशाने पर! कौन है इसका जिम्मेदार?

नई दिल्ली। मुल्क का हर बड़ा शहर उनके निशाने पर है! रेलवे स्टेशन हो या बस अड्डा। अस्पताल हो या कोर्ट-कचहरी। मंदिर हो या भीड़भ1ड़ वाली सड़क अथवा कोई बाजार, हर जगह इनका फैला है जाल! आप चूक सकते हैं, इनकी नजर नहीं चूकती। पलक झपकते आपकी जेब पर हाथ साफ कर देते हैं। जितना बड़ा शहर, उतना बड़ा गिरोह। दिल्ली में जेबतराशों के तकरीबन 50 गिरोह सक्रिय हैं, जिनके गुर्गे पूरे एनसीआर में फैले हुए हैं। पश्चिम बंगाल में 40, बिहार में 22, झारखंड में 20, उत्तर प्रदेश में 25, मध्य प्रदेश में 17, मुंबई में 10, चंडीगढ़ में 11, पंजाब में 14, चेन्नई में 9 और हरियाणा में 7 जेबतराश गिरोह काम कर रहे हैं। इन पाकेटमार गिरोहों का भले ही अलग-अलग राज्य और शहर-नगर में जाल बिछा हो, लेकिन इनके काम करने का तरीका और कूटभ•ााषा करीब-करीब एक-सी होती है। जेबतराशों की दुनिया में सौ के नोट को ‘गांधी’, पांच सौ के नोट को ‘नोटबुक’ और एक हजार के नोट को ‘किताब’ बोलते हैं। गिरोह को ‘कंपनी’ और सरगना को ‘गुरु’ कहते हैं। शिकार को ‘मुद्दा’ और मुहिम को ‘फूल’ बोलते हैं। गिरोह की सदस्य संख्या सात से कम नहीं होती। पुलिस की तरह इनके ‘गुरुओं’ (सरगना) का भी इलाका (हलका) होता है और जेबकतरों को ‘बीट’ बंटी होती है। ‘कंपनी’ अक्सर उसी नाम से जानी जाती है, जो गिरोह का सरगना होता है। जेबकतरे को ‘मशीन’ कहते हैं और उसके सहयोगी को ‘ठेकबाज’। मिशन कामयाब होते ही ‘मशीन’ नकदी या पर्स ‘ठेकबाज’ के हवाले कर देता है। इस काम को ‘मैनेजर’ कहा जाता है। महिला शिकार को ‘केटी’ कहते हैं। ‘मुद्दा’ या ‘केटी’ को अपने आसपास खड़े ‘मशीन’ या ‘ठेकबाज’ पर शक हो जाता है, तो गिरोह के लोग आपस में एक-दूसरे को होशियार करने के लिए ‘मुद्दा-विला’ कहकर अलग हो जाते हैं।
‘मशीन’ और ‘ठेकबाज’ में बंटती है रकम
मिशन को अंजाम देने से पहले गिरोह के सदस्य एक निश्चित स्थान पर एकत्रित होते हैं, जिसे ‘फूल’ कहते हैं। जेबकतरा जब बस में चढ़ता है, तो उसे ‘डंडा लेना’ और ट्रेन में सवार होने को ‘छड़ी लेना’ बोलते हैं। बस या ट्रेन से उतरना है, तो ‘कलटी करना’ शब्द का प्रयोग होता है। पुलिस को जेबतराशों का गिरोह अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम से आपस में संबोधित करता है। दिल्ली में पुलिस को गिरोह के सदस्य ‘बिल्ला’, उत्तर प्रदेश में ‘ठुल्ला’, बिहार में ‘मामा’, पश्चिम बंगाल में ‘दल्ला’, चेन्नई में ‘बुकी’ कहते हैं। पुलिस का अगर कोई बड़ा अफसर है, तो उसे ‘बोगी’ कहते हैं। शिकार को घेरकर खड़े होने को ‘जूट में चलना’ कहा जाता है। हर महीने की पांच से 10 तारीख के बीच के समय को ‘सीजन’ बोला जाता है। दिन भ•ार की कमाई का हिसाब-किताब रखने वाले को ‘मैनेजर’ और कमाई का जो हिस्सा मिलता है, उसे ‘पूड़ी’ कहते हैं। जेबतराशी की रकम का आधा ‘मशीन’ और आधे को ‘ठेकबाजों’ में बांट दिया जाता है।
एनसीआर में धन्नी गिरोह का आतंक
दिल्ली के जेबतराशों में धनराज उर्फ धन्नी का गिरोह ‘डी कंपनी’ के नाम से कुख्यात रहा है। धन्नी ने सात शादियां की थीं। मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, लखनऊ, पटना, हैदराबाद और भ•ोपाल की जिस लड़की से धन्नी ने शादी की, उसी महानगर में ‘डी कंपनी’ का अड्डा खोल दिया। कंपनी में करीब 11 सौ लोग काम करते थे। वर्ष 2002 में गाजियाबाद पुलिस की एक मुठभ•ोड़ में धन्नी मारा गया, लेकिन उसकी औरतें धन्नी के शागिर्दों के साथ मिलकर आज भी ‘डी कंपनी’ का संचालन करती हैं। खासकर इस गिरोह का एनसीआर में आतंक है।
सारा काम तर्जनी का
जेबतराश के दाएं हाथ की तरजनी अंगुली का नाखून आधा इंच लंबा होता है। ‘मशीन’ नाखून में एक छोटा ब्लेड छिपाकर रखता है। ‘मुद्दा’ की जेब पर हाथ साफ करते समय नाखून से धारदार ब्लेड निकालकर जेब पर चला देता है। जेबतराशी को तालीम देने वाले को ‘मास्टर’ कहते हैं। दिल्ली के मंगोलपुरी की एक स्लम बस्ती में बाबर, सीमापुरी में हाजी, सीलमपुर में बाबू, वेलकम इलाके में अजीज और नंदनगरी में लाला गूजर (70) पाकेटमारों की पाठशाला चलाता है। लाला का नाम एनसीआर के जेबकतरों में कुख्यात है। उसका ‘मशीन’ नंबर एक माना जाता है। हर सरगना लाला की ‘मशीनों’ को मुंहमांगा पैसा देने को तैयार रहता है, लेकिन ‘ठेकबाज’ को ‘कंपनी’ में भर्ती होने के लिए जेबतराशी की दो वारदात में कामयाब होना जरूरी होता है।
बागी को मिलती है क्रूर सजा
जेबतराशी का धंधा भले ही गैरकानूनी है, लेकिन गिरोह का जो सदस्य कंपनी का उसूल नहीं मानता, उसे कंपनी का सरगना कू्रर से क्रूर सजा देता है। कई बार बागी को सिगरेट से दागने की भी खबरें मिली हैं। मिशन पर जाने से पहले ‘शकुन’ विचार होता है। जेबतराशी के बड़े गिरोह का ‘मशीन’ जिस बस में चढ़ता है, उसका सरगना उस बस के पीछे-पीछे कार से चलता है। एक-दो लोग और उसके साथ होते हैं। अगर जेबकतरा पकड़ा गया, तो सरगना ‘शरीफ आदमी’ बनकर बस के अंदर से ‘मशीन’ को पुलिस को सौंपने के नाम पर अपने साथ ले जाता (बचा लेता) है।
हिंसा का सहारा
जेबतराशी में शिकार को खरोंच नहीं आती और उसकी जेब साफ हो जाती है। पकड़े जाने पर भी कोई जेबकतरा हिंसा का सहारा नहीं लेता, लेकिन जेबतराशी के जुर्म के इस पेशे में अब काफी बदलाव आ चुका है। कुछ जेबतराश जान-माल बचाने के लिए शिकार का खून करने से भी नहीं चूकते। दिल्ली में ऐसी कई वारदात हो चुकी हैं। कुछ आरोपियों को पुलिस गिरफ्तार कर जेल भ•ोज चुकी है।
सदस्यों को मिलती है तरक्की और सेवानिवृत्ति
पाकेटमार की जमानत ‘कंपनी’ अपने खर्च पर कराती है। जो ‘मशीन’ पुराने हो जाते हैं, स्वास्थ्य और शरीर साथ नहीं देता, उनका भी गिरोह का सरगना पूरा ख्याल रखता है। सदस्यों को तरक्की और सेवानिवृत्ति भी मिलती है। ‘ठेकबाज’ प्रमोशन पाकर ‘मशीन’ बन जाता है। इस अवसर पर पुरानी ‘मशीन’ नई ‘मशीन’ को पगड़ी बांधता है और इस खुशी में जश्न मनाया जाता है।
जेबतराशी में बच्चों का इस्तेमाल
मुल्क में कई ऐसे गिरोह सक्रिय हैं, जो देश भर से गायब हुए मासूम बच्चों को जुर्म की दुनिया में काफी समय से धकेल रहे हैं। इनमें से कुछ लड़के-लड़कियों को जरायम का पाठ पढ़ाकर बाकायदा जेबतराश बनाया जाता है। पिछले दिनों थाना प्रसाद नगर (दिल्ली) पुलिस ने ऐसे ही एक गिरोह के सात सदस्यों को पकड़ा था, जिनमें रैगरपुरा का विनोद बुची, टैंक रोड का दीपक, देवनगर का मनीष और शिखा, मुल्तानी ढांडा का कालू और राजकुमारी तथा पंजाबी बस्ती की राधा शामिल थे। आरोपी देवनगर करोलबाग के खंडहरों में खेलने वाले गरीब बच्चों को अगवा कर उन्हें बुरी तरह मार-पीटकर उनसे राजधानी के अलावा देहरादून, मसूरी और वैष्णो देवी की यात्रा में जेबतराशी कराते थे। 20 जून को गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) पुलिस द्वारा पकड़ी गई किरण ने भी खुलासा किया था कि गुनाह के ऐसे स्कूल महानगरों की झुग्गी-झोपाड़ियों, स्लम बस्तियों, खंडहरों और शहर से दूर-दराज के जंगलों में चलते हैं। आरोपी किरण के मुताबिक, गाजियाबाद में भी रेल ट्रैक के आसपास बच्चों को जेबतराशी की तालीम दी जाती है। इस संबंध में गाजियाबाद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रशांत कुमार ने मामले की जांच कराने के लिए कहा है।
जेबकतरों का कारपोरेट कारोबार
जेबतराशों के कुछ ऐसे भी गिरोह हैं, जो सिर्फ दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई यानि देश के महानगरों में शिकार तलाशते हैं। करोड़ों के इस काले कारोबार में कमउम्र और खूबसूरत लड़कियों का भी इस्तेमाल होने लगा है। कुछ ऐसी युवतियां मोटे कमीशन पर काम करती हैं। सारा धंधा मोबाइल और इंटरनेट के जरिए अंजाम दिया जाता है। कारपोरेट बिजनेस! अंतर्राज्जीय गिरोहों का गठजोड़! देश के कई पर्यटन स्थल पर इन गिरोहों के मुखबिर नियुक्त होते हैं और पर्यटक होते हैं निशाने पर। एक्सप्रेस ट्रेनों या एयरपोर्ट पर यात्री बनते हैं शिकार। गिरोह का मुखबिर शिकार की पहचान कर जेबकतरे को मोबाइल पर कूटभ•ााषा में बता देता है। किन्हीं कारणों से ‘मशीन’ मिशन को अंजाम नहीं दे पाता, तो प्रथम गिरोह अगले गिरोह के हाथों ‘मुद्दा’ बेच देता है। कामयाबी की रकम फर्जी बैंक खातों के जरिए अदा की जाती है। पुलिस को भनक तक नहीं लगती और जेबतराशों का सरगना मालामाल!
पुलिस की साठगांठ
सूत्र बताते हैं कि अधिकांश थानेदारों को अपने इलाके के जेबतराशों की पूरी जानकारी होती है। कुछ थानेदार तो जेबतराशों से मुखबिर का भी काम लेते हैं। जेबतराशी की वारदात कब और कहां अंजाम दी जानी है, पुलिस को पहले से गिरोह सरगना सूचित कर देता है। पुलिस ‘मशीन’ को बचा लेती है। रकम का बंटवारा पुलिस और सरगना के बीच बराबर का होता है। कभी संयोग से कोई शिकार पुलिस के घर का हुआ, तो स्थानीय थानेदार के दबाव में रकम वापस करनी पड़ती है। अगले रोज खबर छपती है- दुनिया में अभी ईमानदारी बची है!
कायदा-कानून
दिल्ली के क्रिमिनल लॉयर कमल चौधरी के मुताबिक जेबतराशी का जुर्म भ•ाारतीय दंड विधान की धारा 379 के तहत दंडनीय अपराध है। जुर्म साबित होने पर कम से कम तीन साल की सजा या पांच हजार रुपये का जुर्माना अथवा दोनों हो सकता है।
राजधानी में बढ़ अपराध
आईपीएस नीरज कुमार ने 30 जून को दिल्ली पुलिस आयुक्त का चार्ज संभ•ाालने के बाद कहा था कि आतंकवाद रोकना उनकी पहली प्राथमिकता है। कानून-व्यवस्था को बेहतर बनाना और आम लोगों से पुलिस के अच्छे संबंध बने, इस पर खासा जोर रहेगा। स्ट्रीट क्राइम पर लगाम कसी जाएगी, लेकिन पुलिस इनमें से किसी भी मामले में कमी नहीं ला पाई। यहां अपराध का ग्राफ और बढ़ा है। झपटमारी की घटनाओं में दोगुना बढ़ोतरी हुई है। बाइकर्स का आतंक बढ़ा है। बलात्कार के मामलों में भी कमी नहीं आई है। लूट, सेंधमारी और वाहन चोरी की वारदात को अंजाम देने में भी बदमाशों के हौसले बुलंद हुए हैं।
1 जनवरी से 30 जून के बीच बलात्कार की 327, लूट की 267, हत्या का प्रयास 201, फिरौती के लिए किडनैप 14, सेंधमारी 824, वाहन चोरी 6918, हाउस थेफ्ट 797, रंगदारी 56, हर्ट 856, हत्या 262, डकैती 16 और दंगे की 32 घटनाएं हुर्इं, जबकि 1 जुलाई से 3 सितंबर के बीच स्नौचिंग की 368, बलात्कार की 127, लूट की 125, हत्या का प्रयास 84, फिरौती के लिए किडनैप 2, सेंधमारी 323, वाहन चोरी 2690,   हाउस थेफ्ट 315, रंगदारी 28, हर्ट 344, हत्या 86, डकैती की 4 और दंगों की 12 वारदात हो चुकी हैं।

-जितेन्द्र बच्चन

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