रविवार, 4 अगस्त 2013

आंगन में दफन लड़की

जिंदगी का उसने पहला जुर्म किया था, वह भी बेहद संगीन! उस जुर्म का राज उसने अपने सीने में दफन कर लिया, लेकिन जुर्म नहीं दफन कर सका। उसे छिपाने के लिए उसने घर के आंगन में ही उस जुर्म को हमेशा-हमेशा के लिए दफना दिया। क्या था वह जुर्म और उसका राज?


अजीत को करीब-करीब पूरा मुहल्ला जानता था। वह आईटीबीपी यानी इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस का जवान था, लेकिन उस रोज सुबह-सुबह उसके घर अजीब गहमा-गहमी देखने को मिली। इस हैरानगी की तीन वजहें थीं। पहला, उत्तर प्रदेश के इस घर में हरियाणा पुलिस क्यों आई है? दूसरा, अजीत के हाथ में हथकड़ी क्यों लगी है और तीसरा- पुलिस वाले अपने साथ कुछ मजदूर लेकर क्यों आए हैं? जितने लोग उतनी बात! हथकड़ी का सबब तो फिर भी समझ में आ रहा था कि अजीत ने जरूर कोई जुर्म किया होगा, लेकिन हरियाणा पुलिस की गिरफ्त में वह क्यों है? पुलिस उसे लेकर यहां क्यों आई है? पूरी पुलिस टीम अजीत के घर के आंगन में क्या तलाश रही है? क्या आंगन में अजीत ने कुछ छिपा रखा है? पड़ोसियों की जिज्ञासा बढ़ने लगी। महिलाओं की कानाफूसी भी तेज हो गई। हर किसी के मन में सवालों का तूफान उठ रहा था, लेकिन जवाब एक का भी नहीं मिला। क्योंकि पुलिस ने अजीत के घर के अंदर प्रवेश करने की इजाजत किसी को नहीं दी। रहस्य गहराने लगा।
वाकया अलीगढ़ के (उत्तर प्रदेश) नलकूप कॉलोनी का है। पुलिस ने आंगन में पहुंचते ही अजीत से कुछ पूछा, फिर उसके बताए स्थान पर मजदूरों ने उस जगह की खुदाई करनी शुरू कर दी। उसी के साथ अजीत के दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं। पुलिस वाले बीच-बीच में उससे कुछ पूछते भी रहते। वह जैसे याद कर-कर के बता रहा था। खुदाई लगातार चलती रही। करीब घंटे भर में एक गहरा गड्ढा बन गया, लेकिन पुलिस की वह तलाश अभी पूरी नहीं हुई थी, जिसके लिए वह हरियाणा से चलकर यहां पहुंची थी और न ही उसका इंतजार खत्म हुआ। बीच-बीच में थानेदार की बढ़ती बेचैनी उसके माथे पर चुहचुहा आए पसीने से साफ नजर आ रही थी। रह-रहकर वह अजीत से सवाल-जवाब शुरू कर देता। एक घंटे बाद अचानक थानेदार की आंखों में जैसे चमक आ गई। उसने मजदूरों को हिदायत दी, ‘थोड़ा संभालकर फावड़ा चलाओ!’ अगले पल मिट्टी हटाते ही मजदूर सहमकर ठिठक गया। सामने एक लड़की का पैर था।
सभी की आंखें फटी की फटी रह गर्इं। पहले एक पैर बाहर निकला, फिर उस लड़की की पूरी लाश सामने आ गई! कमीज-सलवार में लिपटी लाश! मजूदरों के रोंगटे खड़े हो गए। पुलिस भी दंग रह गई। शव अब तक कंकाल में तब्दील हो चुका था। शायद उसे महीनों पहले यहां दफनाया गया होगा, पर सवाल था कि अर्धसैनिक बल के इस जवान के घर का आंगन कब्र में कैसे तब्दील हो गया? कौन है यह लड़की और उसका शव इस घर के आंगन में किसने दफनाया? लड़की का इस घर से या फिर अजीत से क्या रिश्ता है? अगर महरूम अजीत की कोई जानकार है, तो फिर उसे इस तरह घर के आंगन में दफनाए जाने के पीछे क्या वजह हो सकती है? कहीं ऐसा तो नहीं कि ये अजीत ही इस लड़की का कातिल है?
सवाल कई थे और राजदार महज एक- अजीत! उसने मुंह खोला, तो लोगों के होश उड़ गए। करीब नौ महीने पहले अजीत की सुनीता से पहली बार बातचीत हुई थी। वजह थी उसके मोबाइल पर आई एक मिस्ड कॉल। सुनीता की गलती से ही वह मिस्ड कॉल आई थी और तब किसी को नहीं पता था कि उसकी यही एक छोटी-सी गलती एक दिन उसकी मौत की वजह बन जाएगी। अजीत ने कॉलबैक कर पूछा था, किससे बात करनी है? कौन बोल रही हैं, आप? फिर सुनीता की शहद घोलती बातों में उसकी दिलचस्पी बढ़ने लगी।
सुनीता (22) महेंद्रगढ़ (हरियाणा) डिग्री कॉलेज में पढ़ती थी और आईटीबीपी का जवान अजीत (30) अलीगढ़ के (उत्तर प्रदेश) नलकूप कॉलोनी का रहने वाला है। उन दिनों वह ग्रेटर नोएडा में रह रहा था। हुआ यों कि सुनीता ने उस रोज अपनी एक सहेली से बात करने के लिए उसे एक मिस्ड कॉल दी थी, लेकिन गलती से वह मिस्ड कॉल सहेली के पास न जाकर अजीत के पास पहुंच गई। अजीत ने फौरन उस नंबर पर कॉलबैक किया और दोनों की बातचीत शुरू हो गई। कल तक अजीत और सुनीता दोनों एक-दूसरे से पूरी तरह अंजान थे, लेकिन बस इस एक मिस्ड कॉल ने दोनों को एक-दूसरे के करीब ला दिया। अजीत पहले से शादीशुदा था। उसकी पत्नी अलीगढ़ में रह रही थी, लेकिन अजीत ने यह बात सुनीता से छिपा रखी थी। बता देता, तो उसकी महबूबा उसके हाथ से फिसल जाती। वहीं, सुनीता यही समझती रही कि अजीत की शादी अभी नहीं हुई है। वह मन ही मन उसे अपना हमसफर मानने लगी, फिर मौका देखकर एक रोज उसने अजीत के सामने शादी का प्रस्ताव भी रख दिया।
अजीत चौंक पड़ा। खेलना-खाना और बात थी, लेकिन शादी-विवाह के बारे में तो वह सोच भी नहीं सकता था। कैसे सोचता, शादी तो उसकी पहले ही हो चुकी थी और एक बेटी का वह बाप भी बन चुका था। उसने पहले सुनीता को टालने की कोशिश की, फिर भी सुनीता जिद पर अड़ी रही तो अजीत ने उसे अपने पास बुला लिया। दोनों ग्रेटर नोएडा में किराए के एक कमरे में रहने लगे। पास-पड़ोस वाले उन दोनों को पति-पत्नी समझते थे। वे दोनों रह भी उसी तरह रहे थे। कुछ रोज बाद सुनीता फिर अजीत पर शादी का दबाव बनाने लगी, तभी एक रोज अजीत का सबसे बड़ा राज सुनीता के सामने फाश हो गया। यह राज था अजीत के पहले से शादीशुदा होने का। सुनीता के पैरों तले से जमीन सरक गई। उसने सारा घर सिर पर उठा लिया। दोनों के बीच पहले बहसबाजी होती रही, फिर सुनीता ने अपने और अजीत के रिश्ते को जमाने के सामने आम कर देने की धमकी देने लगी, ‘तुमने मुझे धोखा दिया है। मैं तुम्हें भरी पंचाचत में नंगा कर दूंगी... तुम किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहोगे।’
अजीत के हाथ-पांव फूल आए- अब क्या करूं? यह लड़की तो गले की हड्डी बन गई! कैसे मिले इस बला से निजात? कुछ नहीं सूझा, तो अजीत ने मन ही मन एक भयानक योजना बना डाली। दिसंबर, 2012 का महीना था। कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी। अजीत की बीवी अपनी बेटी के साथ मायके गई हुई थी। घर में महज बीमार और बुजुर्ग पिता मौजूद थे। अजीत ने 9 दिसंबर को सुनीता को अलीगढ़ बुला लिया। वह जाना नहीं चाहती थी, लेकिन अजीत ने उसे धोखे से बुलाया। सुनीता को क्या पता था कि आज की रात उसकी आखिरी रात होगी। अजीत ने पहले तो सुनीता को खूब प्यार किया। उसके बाद उसका गला घोंट कर उसकी हत्या कर दी। अब महज शव ठिकाने लगा था, जिसे अजीत ने रातोंरात घर के आंगन में ही एक गड्ढा खोदकर उसमें दफन कर दिया। सोचा था उसे जुर्म करते हुए किसी ने नहीं देखा है। किसी को कुछ नहीं पता चलेगा। सारा राज उसके सीने में जिंदगी भर दफन रहेगा।
अजीत और उसकी माशूका की ये कहानी वाकई शायद कभी जमाने के सामने नहीं आती, लेकिन एक रोज पुलिसवालों को एक मोबाइल फोन से ही उसकी करतूतों की भनक लग गई। ये शायद सुनीता की तकदीर ही थी, जिसने उससे एक ऐसा मिस्ड कॉल करवाया कि वह सीधे कब्र में पहुंच गई। मिस्ड कॉल से कातिल तक पहुंचने का यह सफर उसने कुछ सेकेंड में पूरा कर लिया, लेकिन इस कब्र के राज तक पहुंचने में पुलिसवालों को पूरे नौ महीने लग गए। हुआ यूं कि सुनीता के घरवाले महेंद्रगढ़ में बेटी को ढूंढ़-ढूंढ़कर थक गए, तब भी उसका कुछ नहीं पता चला, तो उन्होंने पुलिस को सूचना दी। पुलिस ने सुनीता की गुमशुदगी दर्ज कर ली, किंतु उसे तलाशने की जहमत नहीं उठाई। धीरे-धीरे आठ महीने बीत गए। इसके बाद घरवालों ने पुलिस पर फिर दबाव बनाना शुरू कर दिया, तो पुलिस ने सुनीता के मोबाइल नंबर की कॉल डिटेल निकलवाई। इसके बाद अजीत से सुनीता की हुई बातचीत और मौत के पहले तक उसकी लोकेशन पता चल गई।
महेंद्रगढ़ (हरियाणा) पुलिस ने अलीगढ़ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक असीम अरुण और पुलिस अधीक्षक (नगर) मान सिंह चौहान के सहयोग से अजीत को हिरासत में ले लिया। पूछताछ में पहले तो अजीत पुलिस को गुमराह करने की कोशिश करता रहा, लेकिन सख्ती बरतते ही उसने सारा राज उगल दिया। सुनीता की लाश बरामद हो गई। पुलिस ने सड़े-गले शव को फॉरेंसिक जांच के लिए भेज दिया। परिजनों ने कपड़ों और कुछ ज्वेलरी से बेटी की पहचान कर दी। बाद में पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई, तो इस बात का खुलासा हो गया कि सुनीता की हत्या गला घोंटकर की गई थी। आरोपी अजीत अब जेल में है। उसकी पत्नी और बेटी अनाथ-सी हो चुकी हैं। सच है, जुर्म कभी नहीं छिपता चाहे वह सात ताले के अंदर ही क्यों न किया जाए।


15 मार्च, 2012 को अखिलेश यादव ने प्रदेश की बागडोर संभाली थी, तो पहला वादा यही किया था कि राज्य में जुर्म की तस्वीर बदल कर रख देंगे। तस्वीर सच में बदली, पर अच्छी होने के बजाए और खराब हो गई। उनके राज्य के पहले साल में ही तीन हजार से ज्यादा मर्डर, हजार के करीब रेप, हजार से ज्यादा अपहरण और चार हजार से ज्यादा लूट की घटनाएं हुर्इं। राज्य की जनता बेहाल है। लोग पूछ रहे हैं, अखिलेश साहब! आखिर प्रदेश में किसका राज है? पुलिस लाचार और दरिंदों का लगातार अत्याचार बढ़ रहा है। लखनऊ से लेकर इटावा, प्रतापगढ़ से लेकर बुलंदशहर तक लोग बेहाल हैं। वारदात इतनी खौफनाक कि रूह कांप जाए और आप हैं कि बस वादे पर वादे किए जा रहे हैं। सुनीता के ही मामले को देख लें, पहले लड़की को प्रेम-जाल में फंसाया गया, फिर उसे धोखे से प्रेमी ने कमरे में बुलाया। वहां प्रेमी ने उसके साथ पहले मनमानी की, फिर अपने ही घर के आंगन में उसे दफन कर दिया। यह जान-सुनकर और भी हैरानी बढ़ जाती है, जब पता चलता है कि कत्ल करने वाला कोई और नहीं बल्कि आईटीबीपी पुलिस का जवान है। इसके अलावा भी कई ऐसे मामले हैं, जिसे जानकर रूह कांप उठती है। मुख्यमंत्री के गृह जनपद सैफई के मेडिकल कॉलेज में बिस्तर पर पड़ी लड़की की साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया, फिर उसे जिंदा जलाने की कोशिश की गई। करीब 90 फीसदी से ज्यादा जल चुकी है। जिंदगी दोबारा मिलने की संभावना न के बराबर है। इस मामले के सभी सात आरोपी फरार हैं और कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है। राज्य के आला पुलिस अधिकारी मामले की लीपापोती में लगे हैं, जबकि जिले का पुलिस महकमा सिर्फ केस दर्ज कर मामले से पल्ला झाड़ने की जुगत में है। ताज्जुब होता है कि उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने का दावा करने वाले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के राज में अपराधी बेखौफ हो चुके हैं, जबकि पुलिस सुस्त और लाचार! पीड़ा होती है उस बयान को सुनकर भी, जब सत्ता पर काबिज समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता कहते हैं कि ऐसी घटनाएं तो देश के दूसरे राज्यों में भी होती हैं।


कानून को धता देना आसान नहीं : असीम अरुण, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, अलीगढ़
सुनीता और अजीत दोनों एक-दूसरे से प्यार करते थे, लेकिन आगे चलकर दोनों के रिश्ते बहुत खराब हो गए। दअरसल, अजीत की माशूका ने उसके शादीशुदा होने का राज जान लिया था। लेकिन अगर इस प्रेम कहानी का पता अजीत की पत्नी को चलता, तो अजीत की जिंदगी तबाह हो जाती। अपने प्रेम-संबंधों का राज अजीत हरहाल में छिपाए रखना चाहता था। जबकि इसी राज की बात कहकर सुनीता उस पर शादी करने दबाव बनाने लगी। फिर एक वक्त ऐसा आया, जब अजीत को अपनी माशूका से पीछा छुड़ाने के लिए उसे मौत के घाट उतारना ही मुनासिब लगा और बस उसी इरादे से पहले तो उसने सुनीता का गला घोंट कर कत्ल किया, फिर दुनियावालों की निगाहों से बचने के लिए उसने अपने ही घर के आंगन में उसे दफन कर दिया। पर यह भूल गया कि पुलिस और कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं। कभी कोई अपराधी कानून को धता देने में कामयाब नहीं हो सकता। उसे उसके असली मुकाम तक पहुंचाना हमारी पुलिस का पहला काम है।
-जितेन्द्र बच्चन

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