गुरुवार, 4 सितंबर 2014

एक थी फूलन !

दिल दहला देने वाली यह वारदात 14 साल पुरानी है। अदालत ने फूलन देवी की हत्या के मुख्य अभियुक्‍त शेर सिंह राणा के गुनाहों का हिसाब कर दिया है। उसे कातिल करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है, लेकिन राणा के घरवालों का कहना है- फूलन की हत्या में राणा नहीं उम्मेद सिंह का हाथ है।



जितेन्द्र बच्चन
चंबल की रानी फूलन देवी। कभी चंबल उसके नाम से जाना जाता था। बीहड़ में उसकी दहशत थी, फिर चंबल से निकलकर वह जेल पहुंच गई और जेल से सीधे संसद। एक डाकू हसीना अब सांसद थी पर यह खुशी ईश्वर को मंजूर नहीं थी। 25 जुलाई 2001 को संसद भवन से घर लौटते हुए ठीक फूलन देवी के सरकारी घर के बाहर गोली मारकर उसकी हत्या कर दी गई। 13 साल बीत गए इस मामले को। अब 13 साल बाद दिल्ली की एक अदालत ने अपना फैसला सुनाया है। फैसला यह कि फूलन देवी का कातिल कोई और नहीं बल्कि वही शेर सिंह राणा है, जिसने कत्ल के बाद खुद ही सामने आकर एलान किया था- हां, मैंने फूलन को मारा है!
1980 के दशक में खूंखार डकैत के रूप में सुर्खियों में रही फूलन देवी के डकैत बनने की कहानी किसी के भी रोंगटे खड़ी कर सकती है। फूलन की दास्तां कानपुर जिले के गुरहा का पुरवा गांव से शुरू होती है, जहां वह अपने मां-बाप और बहनों के साथ रहती थी। उत्तर प्रदेश के इस गांव में फूलन के परिवार को मल्लाह होने के चलते ऊंची जातियों के लोग हेय दृष्टि से देखते थे। इनके साथ गुलामों जैसा बर्ताव किया जाता था। फूलन के पिता की सारी जमीन उसके भाई से झगड़े में छिन गई थी। फूलन इस तरह के दमघोंटू माहौल में अंदर ही अंदर बदले की आग में जलने लगी। उसकी इस जलन को सुलगाने में मां ने भी आग में घी का काम किया।
फूलन 11 साल की हुई तो उसके चचेरे भाई मायादीन ने उसे गांव से बाहर निकालने के लिए उसकी शादी पुट्टी लाल नाम के एक बूढ़े आदमी से करवा दी। फूलन का पति उसे शारीरिक और मानिसक रूप से प्रताड़ित करने लगा। परेशान फूलन पति का घर छोड़कर वापस मां-बाप के पास आकर रहने लगी। यहां वह मेहनत-मजदूरी करने लगी, लेकिन किस्मत में तो कुछ और ही लिखा था। 1980 में 15 साल की उम्र में गांव के दबंगों ने फूलन के साथ उसके मां-बाप के सामने ही गैंगरेप किया तो उसका खून खौल उठा। वह बागी बन गई। उसके तेवर देख गांववालों ने एक दस्यु गैंग को कहकर फूलन का अपहरण करवा दिया और यहीं से फूलन डाकू बन गई।
फूलन का जिस गैंग ने अपहरण किया, उसमें फूट पड़ गई। दूसरी गैंग की सरगना फूलन देवी बन गई। इसके बावजूद उसकी परेशानी कम नहीं हुई। गैंग का एक लीडर बाबू गुजर फूलन को पाना चाहता था। इसके लिए कुछ दिन बाबू ने फूलन को रिझाने की भी कोशिश की, लेकिन जब वह हाथ नहीं आई तो उसने एक रात फूलन के साथ बलात्कार करने की कोशिश की। उसी दिन फूलन से मन ही मन प्यार करने वाले गैंग के एक और मेंबर विक्रम मल्लाह ने बाबू की हत्या कर दी। उसके बाद गैंग का लीडर विक्र म बन गया। इस घटना ने एक बार फिर फूलन देवी के अंदर की आग •ाड़का दी। 15 साल की उम्र में दबंगों ने उसके साथ गांव में जो किया था, उसका बदला लेने को वह धधकने लगी। बलात्कारियों से प्रतिशोध लेने के लिए उसने बंदूक उठा ली।
1981 में बेहमई हत्याकांड के बाद फूलन देवी सुर्खियों में छा गई। सरकार की सांस फूलने लगी। हर हाल में अब वह फूलन को सलाखों के अंदर चाहती थी। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सरकार ने चंबल की बीहड़ों में राज करने वाली दस्यु सुंदरी फूलन देवी को पकड़ने की बहुत कोशिश की पर नाकाम रही। आखिरकार इंदिरा गांधी की सरकार ने 1983 में फूलन से यह समझौता किया कि अगर वह आत्मसमपर्ण कर दे, तो उसे मृत्युदंड नहीं दिया जाएगा और न ही उसके परिवार के किसी सदस्य को कोई नुकसान पहुंचाया जाएगा। फूलन इस शर्त पर राजी हो गई और उसने आत्मसमर्पण कर दिया। 11 साल जेल में बिताने के बाद फूलन देवी 1994 में रिहा हुई और इसी साल फिल्म बैंडिट क्वीन की शक्ल में फूलन की रॉबिनहुड छवि रुपहले पर्दे पर उतरी। 1998 में समाजवादी पार्टी ने फूलन के नाम का फायदा उठाने के लिए उसे मीरजापुर (उत्तर प्रदेश) से लोकसभा का चुनाव लड़वा दिया। चुनाव जीतकर फूलन देवी संसद बन गर्इं। बीहड़ और जेल की जिंदगी को पीछे छोड़ सांसद बनी फूलन समाज के हासिए पर जी रही महिलाओं के लिए कुछ करना चाहती थी। वह राजनीति के शिखर पर पहुंचाना चाहती थी, लेकिन चंबल की परछाई ने उसका पीछा नहीं छोड़ा।
25 जुलाई 2001 को संसद का सत्र चल रहा था। दोपहर के भोजन के लिए संसद से फूलन 44 अशोका रोड के अपने सरकारी बंगले पर लौटीं। बंगले के बाहर सीआईपी 907 नंबर की हरे रंग की एक मारु ति कार पहले से खड़ी थी। फूलन के गेट पर पहुंचते ही कार से तीन नकाबपोशों नेबाहर निकलकर अचानक उस पर गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। फूलन देवी को कुल पांच गोली लगी। साथ ही उसका एक गार्ड भी घायल हो गया। इसके बाद हत्यारे उसी कार में बैठकर फरार हो गए।
यह एक राजनीतिक हत्या थी या कुछ और? पुलिस के हाथ कोई सुराग नहीं लग पा रहा था। पुलिस फूलन के कातिल की तलाश में लगातार भटक रही थी, तभी 27 जुलाई 2001 को शेर सिंह राणा ने बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सबको सकते में डाल दिया। उसने कबूल किया कि उसी ने फूलन को गोलियों से उड़ाया है। एक सनसनीखेज वारदात को अंजाम देने के बाद राणा के इस सरेआम इकबालिया बयान ने पुलिस को भी हैरत में डाल दिया। पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। राणा करीब ढाई साल तिहाड़ जेल में रहा। इस दौरान उसने एक दिन बयान दिया कि तिहाड़ की सलाखें उसे ज्यादा दिन तक नहीं रोक पाएंगी और हुआ भी यही।
17 फरवरी 2004 की सुबह के 6.55 बजे का वाकया है। तिहाड़ की जेल नंबर एक के बाहर एक आॅटो आकर रुका। उसमें से पुलिस की वर्दी में एक आदमी उतरकर तमाम सुरक्षाकर्मियों की मौजूदगी में जेल के अंदर पहुंच गया। उसने अपना नाम अरविंद बताया और शेर सिंह राणा को हरिद्वार कोर्ट में पेशी के लिए ले जाने की इजाजत मांगी। जरूरी कागजात को ध्यान से देखे बिना ड्यूटी पर तैनात तिहाड़ के सुरक्षाकर्मियों ने राणा को नकली पुलिस के हवाले कर दिया। इस तरह 7.05 मिनट पर फूलन देवी की हत्या का मुख्य आरोपी राणा तिहाड़ की कैद से फरार हो गया।
पूरे 40 मिनट बाद जेल प्रशासन की नींद टूटी, यानी पौने आठ बजे। जेल समेत पूरे पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया। जेल प्रशासन ने आसिस्टेंट सुपारिटेंडेंट और गार्ड को सस्पेंड कर दिया। राणा की फरारी ने सुरक्षा एजेंसियों की नींद उड़ा दी। उसकी गिरफ्तारी के लिए हरिद्वार, रुढ़की और मुजफ्फरनगर इलाके में पुलिस की टीमों ने जबरदस्त छापामारी की। तब भी सफलता नहीं मिली तो राणा का सुराग देने वाले को 50 हजार रुपये इनाम देने की घोषणा कर दी गई, लेकिन पुलिस उसे पकड़ने में नाकाम रही। क्योंकि पुलिस शेर सिंह राणा को हिंदुस्तान में ढूंढ़ रही थी और वह हरेक को चकमा देकर अफगानिस्तान पहुंच चुका था। इसका पता तब चला जब अचानक एक वीडियो सामने आया।
शेर सिंह राणा ने दावा कि वह अफगानिस्तान में पृथ्वीराज चौहान की असली समाधि पर गया और अस्थियां लेकर वापस आ गया। राणा ने अफगानिस्तान में गजनी शहर तक के अपने सफर की बाकायदा वीसीडी तैयार की। तिहाड़ जेल से भागने के पूरे दो साल बाद 17 मई 2006 को शेर सिंह राणा कोलकाता में पकड़ा गया। उसके बाद उसे वापस दिल्ली के उसी तिहाड़ जेल में लाया गया। तब से अब तक यानी पिछले आठ साल से राणा तिहाड़ में ही कैद है। इस बीच उसने तिहाड़ से कंधार तक नाम की एक किताब भी लिखी और अब इस किताब पर एक फिल्म भी बन रही है।
लेकिन 8 अगस्त 2014 को दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश भारत भूषण ने फूलन देवी की हत्या के मामले में शेर सिंह राणा को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है। बाकी के इस मामले से जुड़े अन्य आरोपियों- धन प्रकाश, शेखर सिंह, राजबीर सिंह, विजय सिंह उर्फ राजू (राणा का भाई), राजेंद्र सिंह उर्फ रविंद्र सिंह, केशव चौहान, प्रवीण मित्तल, अमति राठी, सुरेंद्र सिंह नेगी उर्फ सूरी और सवर्ण कुमार को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। इसके अलावा एक अन्य आरोपी प्रदीप सिंह की नवंबर 2013 में तिहाड़ जेल के अंदर मौत हो गई थी।

कौन है शेर सिंह राणा? 
फूलन देवी हत्याकांड में आए फैसले के बाद शेर सिंह राणा एक बार फिर चर्चा में है। अदालत ने 38 वर्षीय राणा को उम्रकैद की सज़ा सुनाई है। राजपूत जाति से ताल्लुक रखने वाले उत्तराखंड के रुढ़की निवासी राणा इससे पहले भी सुर्खियों में रहा है। उसके हर कारनामे से नाटकीयता जुड़ी रही। दिल्ली के लुटियंस जोन में तत्कालीन सांसद फूलन देवी की हत्या के दो दिन बाद राणा ने देहरादून में आत्मसमर्पण करके इल्जाम अपने सिर लिया। उसका कहना था- उसने बेहमई हत्याकांड में मारे गए 22 ठाकुरों की हत्या का बदला लेने के लिए फूलन देवी की हत्या की है। हालांकि अपनी किताब जेल डायरी में उसने पुलिस पर जुर्म कुबूल करवाने के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया है।
रुढ़की उत्तराखंड में 17 मई 1976 को जन्मा शेर सिंह राणा का यह कोई पहला गुनाह नहीं है। इससे पहले भी 1997 में एक कार चोरी की वारदात में शेर सिंह राणा का नाम सामने आया था। वर्ष 2000 में राणा और उसके साथियों ने हथियार की नोक पर एक बैंक में 10 लाख की लूट को अंजाम दिया, जिसमें बैंक के गार्ड को राणा और उसके साथियों ने मार डाला था। बैंक लूट की इस सनसनीखेज वारदात के बाद राणा और उसके साथियों नें रुढ़की के एक बैंक में भी 15 लाख की लूट की। इस तरह साल दर साल राणा के गुनाहों की फेहरिस्त लंबी होती चली गई।
फूलन हत्या कांड में गिरफ्तार होने के बाद राणा 17 फरवरी 2004 को तिहाड़ जेल से फरार हो गया था। दो साल बाद 17 मई 2006 को कोलकाता में गिरफ्तार किया गया। राणा का कहना था कि 17 फरवरी 2004 को फिल्मी अंदाज में तिहाड़ जेल से फरार होने के बाद सबसे पहले उसने रांची से फर्जी पासपोर्ट बनवाया। नेपाल, बांग्लादेश और दुबई होते हुए अफगानिस्तान पहुंचा। जान जोखिम में डालते हुए वह 2005 में दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान की कब्र खोजकर उनकी अस्थियां भारत ले आया। बाद में राणा ने अपनी मां की मदद से गाजियाबाद के पिलखुआ में पृथ्वीराज चौहान का मंदिर बनवाया, जहां उनकी अस्थियां रखी हैं। वर्ष 2012 में राणा उत्तर प्रदेश के जेवर से निर्दलीय चुनाव भीलड़ा, लेकिन हार गया। और अब वह अदालत में भी हार चुका है। अदालत ने उसे कातिल करार देते हुए 14 अगस्त 2014 को उम्रकैद की सजा सुनाई है।

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