सोमवार, 11 मार्च 2013


  यूपी के दबंग, ठेंगे पर कानून

उनके एक इशारे पर डीएसपी को गोली मार दी जाती है, प्रधान को अगवा कर लिया जाता है, औरत की इज्जत नीलम कर दी जाती है। सरकार कुछ नहीं कर पाती। क्योंकि सरकार से वे नहीं, उनसे सरकार चलती है और वो राज करते हैं! गुंडाराज! यूपी के दबंग! पूर्वांचल के बाहुबली! कानून को रखैल समझते हैं और पुलिस को नपुंसक!
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कलेंडर बदला, तारीख बदली। नहीं बदली तो यूपी की तकदीर और तस्वीर! 15 मार्च, 2012 को अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। 15 मार्च, 2013 को उनकी सरकार के एक साल पूरे हो जाएंगे। सूबे में न जुर्म कम हुआ और न ही गुनहगारों को बचाने की सियासत! जनवरी, 2012 से जून 2012 तक उत्तर प्रदेश में 1164 मर्डर, 920 लूट और 326 रेप की वारदात हो चुकी है। क्योंकि राज्य में सरकार से ज्यादा दबंगों की चलती है। सत्ता इनकी मुट्ठी में होती है! मुख्यमंत्री इनके इशारे पर चलते हैं। कानून से खेलना बाहुबलियों का पेशा है। जेल में रहें या रेल में, गुनाह का खेल खेलना कभी नहीं चूकते। जो दाउद से नहीं डरते, वो राजा भैया का नाम सुनते ही कांप उठते हैं। एफआईआर में उनका नाम है, लेकिन वो आजाद हैं। क्योंकि वो ‘राजा भैया’ हैं! इलाके में उनकी हुकूमत चलती है। रियासत चली गई, ठसक बाकी है! ताल ठोंककर कहते हैं, ‘मर्डर करने की क्या जरूरत है! सरकार अपनी है, ट्रांसफर करवा देते।’
उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है। मुल्क की सियासत भी इसी राज्य के रहमोकरम पर चलती है। यहां हमेशा कुछ न कुछ ऐसा होता रहता है, जो देश ही नहीं दुनिया की मीडिया में सुर्खियां बनता है। समय बदला, समाज बदला, लेकिन नहीं बदला उत्तर प्रदेश। कहा जाता है कि राजनीति के अपराधीकरण की शुरुआत भी यहीं से हुई। कल तक जो दबंग और बाहुबली राजनेताओं के संरक्षण में काम करते थे, आज वे बिना किसी मुखौटे के राजनीति में हैं... और तो और इनमें से कुछ मंत्री पद का सुख भ•ाोग चुके हैं, तो कुछ भ•ाोग रहे हैं। इन बाहुबलियों की दबंगई ऐसी है कि मुख्यमंत्री भी जब-तब इनके सामने नतमस्तक नजर आते हैं। इनकी ‘साजिश’ और ‘चाल’ से प्रदेश की धरती कांप उठती है और जब इन्हें गुस्सा आता है, तो सूबें की सरकारें हिल जाती हैं, लेकिन इनका जलवा न कल कम था और न ही आज।
हरिशंकर तिवारी : माफिया के पितामह
दाउद जैसे अपराधी जिस समय गुनाह का ए, बी, सी, डी सीख रहे थे, उस समय उत्तर प्रदेश में हरिशंकर तिवारी अपना साम्राज्य स्थापित कर चुके थे। हरिशंकर के बाहुबल का डंका विदेशों तक बजता था। स्व. वीरेंद्र शाही और हरिशंकर तिवारी के बीच होने वाली गैंगवार अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में छाई रहती थी। तिवारी ने उत्तर प्रदेश, बिहार और पड़ोसी देश नेपाल तक अपना साम्राज्य बढ़ा लिया था। गोरखपुर के बुजुर्ग बताते हैं कि तिवारी ने ऐसे लोगों की टीम बना रखी थी, जो उनके एक इशारे पर बिना कुछ सोचे-समझे कुछ भी करने पर उतारू रहते थे। आज भी उनका जलवा कम नहीं हुआ है। आम आदमी हो या फिर माफिया, दोनों ही इनसे बचकर रहना पसंद करते हैं।
76 साल के तिवारी छात्र जीवन में गोरखपुर शहर में किराए के एक कमरे में रहते थे, लेकिन आज जटाशंकर मुहल्ले में उनके किलेनुमा निवास को ‘हाता’ के नाम से जाना जाता है। वे 3 बार निर्दलीय विधायक रहे। 2 बार कांग्रेस के टिकट पर जीते और एक बार तिवारी कांग्रेस से भी जीते। अब पूरी तरह राजनीति को समिर्पत हैं। एक बेटा कुशल उर्फ भीष्म तिवारी खलीलाबाद से बसपा सांसद हैं। दूसरा विनय तिवारी अभी राजनीतिक पारी आरंभ होने का इंतजार कर रहा है। भ•ाांजा गणेश शंकर विधान परिषद् अध्यक्ष है, लेकिन दूसरा बेटा विनय तिवारी विधानसभ•ाा और लोकसभ•ाा चुनाव हार चुका है। वहीं तिवारी जब से राजनीति में आए, उनका रसूख हमेशा बरकरार रहा। सरकार किसी की भी बने, मंत्री पद मिलना तय रहता। एकाध बार माफिया मंत्री के नाम पर काफी हो हल्ला भी मचा, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। तिवारी मंत्री की कुर्सी पर कायम रहे। सन 1998 में कल्याण सिंह द्वारा बसपा को तोड़कर बनाई सरकार में साइंस और टेक्नोलॉजी मंत्री रहे। वर्ष 2000 में राम प्रकाश गुप्त की भ•ााजपा सरकार में स्टांप रजिस्ट्रेशन मंत्री बने। इसके बाद 2001 में राजनाथ सिंह की भजपा सरकार बनी, तब भी हरिशंकर तिवारी की मंत्री की कुर्सी कायम रही। 2002 में मायावती की बसपा सरकार में भी वे मंत्रिमंडल के सदस्य बने रहे। उसके बाद 2003-07 तक मुलायम सिंह यादव की सरकार में भी तिवारी मंत्री रहे। उनका कोई बाल नहीं बांका कर सका और आज भी यूपी में तिवारी माफिया के पितामाह कहे जाते हैं।
अतीक अहमद : अपराध में अव्वल
पढ़ाई में फिसड्डी, क्र ाइम में अव्वल! अतीक अहमद की आज यही पहचान बन चुकी है। आतंक इतना कि इलाहाबाद में दहशत का दूसरा नाम अतीक अहमद माना जाता है। जुर्म की दुनिया में अपने नाम का डंका बजाने के बाद अतीक प्रदेश की राजनीति में ढोल बजाने लगे। इलाहाबाद में बसपा विधायक राजू पाल की हत्या का आरोप लगा और वह जेल पहुंच गए। इनके खिलाफ हत्या, लूट और रंगदारी के करीब 35 मामले दर्ज हैं। इलाहाबाद की नगर पश्चिमी सीट से लगातार चार बार विधायक रहे अतीक ने आपने छोटे भ•ााई अशरफ को समाजवादी पार्टी की साइकिल पर चढ़ाकर यह सीट उसे दे दी और खुद फूलपुर संसदीय सीट से लोकसभ चुनाव लड़ा। ज्ञात रहे कि इसी सीट से देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू सांसद थे। अतीक भी सांसद बन गए।
लेकिन अतीक के आतंक से ऊबे मतदाताओं ने नवंबर 2004 में हुए प्रदेश विधानसभी चुनाव में बसपा के राजू पाल को जिता दिया। राजू पाल भी अपराधी प्रवृत्ति का था। जनता को लगा कि अतीक से अच्छा है छोटे अपराधी को जिता दिया जाए, लेकिन उन्हें क्या पता था कि अतीक क्या कर सकता है। आरोप है कि अतीक अहमद और उसके छोटे भ•ााई अशरफ ने मिलकर साजिश रची और राजू पाल की हत्या करवा दी। सपा के शासन में ही यह घटना हुई थी। ऐसे में पार्टी के ही बाहुबली सांसद और उसके छोटे भ•ााई के खिलाफ कोई कार्रवाई कैसे हो सकती थी। बसपा सरकार बनी, तो माया ने अतीक को उसकी हैसियत याद दिला दी। ़फिलहाल आज भी अतीक के रसूख में कोई कमी नहीं आई है।
ब्रजेश सिंह : अपराध सुप्रीमो
उड़ीसा में गिरफ्तार ब्रजेश सिंह को पूर्वांचल ही नहीं देश के कई राज्यों में संगठित अपराध का सुप्रीमो माना जाता है। भ•ाुवनेश्वर में पहचान छिपाकर रियल स्टेट का कारोबार चलाता था यह डॉन। वहीं के बिग बाजार के बाहर से गिरफ्तार हुए ब्रजेश सिंह पर उत्तर प्रदेश पुलिस ने पांच लाख रु पये का इनाम घोषित कर रखा था। हैरानी इस बात की है कि करीब 20 वर्षों तक किसी ने भी इसकी शक्ल नहीं देखी। इस डॉन की गिरफ़्तारी भी बड़े नाटकीय ढंग से हुई और उसमें भी सियासत की बू आती है, लेकिन गायब रहकर भी पूर्वी उत्तर प्रदेश में ब्रजेश सिंह का आतंक इतना रहा कि पूरे इलाके में रेलवे और दूसरे सरकारी ठेकों से लेकर कोयले तक की दलाली में इसका सिक्का चलता था। गायब रहते हुए भी ब्रजेश ने राजनीतिक संरक्षण के रास्ते तलाश लिए थे। भ•ााई चुलबुल सिंह को बीजेपी में लगाया। भ•ातीजा विधायक बन चुका है, लेकिन वर्तमान समय में ब्रजेश गैंग के अधिकतर बड़े अपराधियों की या तो हत्या हो चुकी है या फिर वो किसी न किसी नेता के संरक्षण में अपना काम चला रहे हैं।
ब्रजेश को सबसे बड़ा आघात तब लगा, जब उसके सबसे खास अवधेश राय का मर्डर हो गया। अवधेश के छोटे भ•ााई अजय राय ने विधायक बनने के बाद शांति धारण कर ली। बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय को ब्रजेश का मुंशी कहा जाता था और वही अघोषित तौर पर ब्रजेश गिरोह को चलाते थे। बाद में आरोप है कि पूर्वांचल के एक और माफिया मुख्तार अंसारी ने अपने शूटर मुन्ना बजरंगी से कृष्णानंद राय की हत्या करवा दी। ब्रजेश के अपराधी जीवन का आरंभ आजमगढ़ की बाजार में पिता की हत्या होने के बाद हुआ। इलाके के दबंग ठाकुरों ने ब्रजेश के पिता का शरीर चाकू और गोलियों से छलनी कर दिया था। ब्रजेश ने पहले पिता की हत्या का बदला लिया, फिर बिहार में ब्रजेश सिंह और वीरेंद्र टाटा ने अपना कॉकस बना लिया। चंदौसी से बोकारो और जमशेदपुर तक इसकी तूती बोलती थी। कोयले की उगाही के साथ ही रेलवे, पीडब्ल्यूडी और दूसरे सरकारी विभ•ाागों की ठेकेदारी इन लोगों की कमाई का मुख्य जरिया था। ब्रजेश ने जेजे अस्पताल मुंबई में दाउद इब्रहिम के बहनोई पारकर की हत्या का बदला इस तरह लिया कि देश कांप उठा था। ब्रजेश के सबसे खास साथी वीरेंद्र टाटा की हत्या बनारस से मीरजापुर के रास्ते में श्रीप्रकाश शुक्ल गैंग ने कर दी थी। उसके बाद से यह माफिया अंडरग्राउंड हो अपनी गतिविधियां चला रहा था। अब जेल में है।
धनंजय सिंह : जेल से चलता है खेल
लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र नेता रहे धनंजय सिंह वर्तमान में बसपा से जौनपुर से सांसद हैं। इनके खिलाफ हत्या, लूट और रंगदारी जैसे कई मामले दर्ज हैं। लखनऊ के इलाकाई माफिया अरुण शंकर शुक्ल उर्फअन्ना और अंबेडकर नगर के माफिया अभय सिंह के दोस्त रहे हैं धनंजय सिंह। बाद में ये तीनों अलग हो गए। धनंजय की दोनों दोस्तों से आगे निकलने की भी रोचक दास्तान है। एक पुलिस मुठभ•ोड़ के बाद पुलिस ने दावा किया कि धनंजय सिंह मारा गया, लेकिन कुछ दिन बाद धनंजय सामने आया और आरोप लगाया कि उप्र पुलिस उसे जान से मार देना चाहती है। इसके बाद धनंजय सिंह नेताओं का दुलारा बन गया। विधानसभ•ाा चुनाव में उतरा और जीत गया।
लेकिन विधायक बनने के बाद भी धनंजय सिंह का आचरण नहीं बदला। उस पर अपने परम मित्र अरुण उपाध्याय के भ•ााई की हत्या का आरोप लगा, जिसका शव मीरजापुर से बरामद हुआ था। उसी समय अरुण ने कसम खाई कि जब तक इस हत्या का बदला नहीं ले लिया जाएगा, वह अपने भ•ााई की तेरहवीं नहीं करेगा। पिछले लोकसभ•ाा चुनाव में इंडियन जस्टिस पार्टी के प्रत्याशी की लाश एक पेड़ से लटकी मिली। इस मामले का भी आरोपी रहा धनंजय। बाद में अदालत से वह इस मामले में बरी कर दिया गया। एक और दोस्त अतुल सिंह के साथ भी धनंजय का विवाद हुआ। इलाके के लोग आज भी इतना डरते हैं कि कोई धनंजय सिंह के खिलाफ बगावत करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। पुलिस भी जो कभी इनका पीछा करती थी, आज सलाम करती है। आखिर वह माननीय संसद सदस्य हैं।
मुख्तार अंसारी : सत्ता की रही सरपरस्ती
कौमी एकता दल से मऊ विधानसभ•ाा से विधायक हैं मुख्तार अंसारी। बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या का आरोप है। 1989 में मुलायम सिंह के पहले मुख्यमंत्रित्वकाल में मुख्तार को सत्ता का संरक्षण मिला। उसके बाद अंसारी के विरु द्ध सारे मामलों में सीबीसीआईडी की जांच लगवा दी गई। कल्याण सिंह के नेतृत्व में बीजेपी सरकार बनी, तो मुख्तार के खिलाफ टाडा लगा दिया गया। बसपा और बीजेपी की पहली साझा सरकार में मायावती ने मुख्तार को जेड प्लस श्रेणी सुरक्षा मुहैया कराई थी। इसके बाद मुख्तार का कद इतना बढ़ गया कि वह माफिया से पूर्वांचल के मुसलमानों का रहनुमा कहा जाने लगा। तीसरी बार मुलायम सिंह की सरकार बनी, तो मुख्तार अपने चरम पर थे। ये वो दौर था जब मुख्तार की तूती बोलती थी। उसके यहां बाहर के सूबों के अपराधियों को भी संरक्षण मिलने लगा था।
उन दिनों के एक धाकड़ डीएसपी शैलेन्द्र सिंह ने एक एलएमजी पकड़ी, जो मुख्तार के पास पहुंचनी थी। मुख्तार का तो कुछ नहीं बिगड़ा, लेकिन डीएसपी साहब को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। कहा जाता है, एक बड़े नेता ने मुख्तार को बचाने में अपनी सारी ताकत झोंक दी थी। इसी दौरान मऊ दंगों में मुख्तार का दंगाई रूप भी देखने को मिला और मुलायम की पूर्व सरकार में गाजीपुर में दो दर्जन से अधिक मुख्तार के विरोधियों की हत्या हुई, लेकिन मुख्तार का कुछ नहीं बिगड़ा। यहां तक कि 22 फरवरी 2009 को करंडा में एक सपा समर्थक ठेकेदार की हत्या का आरोप भी मुख्तार पर लगा, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। उनकी आन-बान शान कायम रही। वर्ष 2007 में विधानसभ•ाा चुनाव के बाद मायावती की सरकार बनी। मुख्तार असांरी को मायावती का पूर्ण संरक्षण मिलने लगा। लोकसभ•ाा चुनाव में मुख्तार को वाराणसी और उसके भ•ााई अफजाल को गाजीपुर का टिकट थमा दिया गया। अब मुख्तार अंसरी जेल में हैं।
धर्मंपाल उर्फ डीपी यादव : संगीन आरोप
यादव पर दर्जनों संगीन आरोप हैं। दिल्ली, उत्तराखंड और हरियाणा तक रसूख का फैला है साम्राज्य। पश्चिम उत्तर प्रदेश का इन्हें शराब माफिया कहा जाता है। बेटा विकास तिहाड़ जेल में बंद है। उसे देश के चर्चित नीतीश कटारा हत्याकांड में सजा हो चुकी है। खुद डीपी यादव पर पहला मामला सन 1989 में गाजियाबाद जिले के कविनगर थाने में दर्ज हुआ। इसके बाद कत्ल और डकैती के 2-दो और अपहरण, गैंगस्टर और टाडा जैसे मामले मुकदमों की फेहरिस्त में शामिल होते गए। इसके साथ ही जेसिका लाल हत्याकांड में भी यादव और उसके बेटे विकास का नाम आरोपियों में शामिल हुआ।
डीपी यादव ने राष्ट्रीय परिवर्तन दल बनाया। पत्नी उर्मिलेश विधायक चुनी गर्इं। बाद में पत्नी सहित यादव ने बसपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। उसके बाद डीपी तब चर्चा में आए, जब विधानसभ•ाा चुनाव में अखिलेश यादव ने इनकी छवि के चलते सपा में लेने से इंकार कर दिया। वैसे तो हमेशा ही कोई न कोई विवाद साथ जुड़ा रहता है, लेकिन बदायूं जिले की बिसौली तहसील के गांव रानेट के पास यादव की हाल ही में स्थापित यदु शुगर मिल की बात करें, तो मिल की स्थापना दबंगई और बेईमानी से ही की गई है। मिल के डायरेक्टर छोटे पुत्र कुणाल यादव को बनाया गया है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि ये मिल जबरन लिखाई गई जमीनों पर बनी है।
राजा भैया : कुंडा का गुंडा
न थाना न कचहरी, आॅन स्पाट फैसला! इलाके में राजा भैया की तत्काल न्याय दिलाने वाले युवराज की छवि है। रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया (40) को उनके विरोधी ‘कुंडा का गुंडा’ कहते हैं। इनके पिता उदय प्रताप सिंह प्रतापगढ़ जिले की तहसील कुंडा के थाना हथिगवां स्थित बेंती और भदरी स्टेट के राजा हुआ करते थे। बेंती कोठी पूरे इलाके में मशहूर है। कुंडा (प्रतापगढ़) विधानसभ•ाा क्षेत्र से ही राजा भैया विधायक हैं। वर्ष 1993 से अब तक हुए पांच बार चुनाव में उन्हें कोई हरा नहीं पाया है। लखनऊ विश्वविद्यालय से 1989 में स्नातक इस राजा पर तीन दर्जन से अधिक आपराधिक मामले दर्ज हैं। आठ आपराधिक मुकदमों में न्यायालय ने संज्ञान लिया है। पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने पोटा लगाया, बाद में बरी हो गए। वर्ष 2010 में निकाय चुनाव के दौरान एक नेता की हत्या के प्रयास का मुकदमा भी चल रहा है, जिसमें राजा भैया समेत 13 लोगों की गिरफ्तारी हुई। इसके बाद 2002 में विधायक पूरन सिंह बुंदेला ने राजा के खिलाफ अपहरण का मुकदमा दर्ज कराया, जो अब भी अदालत में विचाराधीन है, लेकिन चुनाव में उन्हें कोई शिकश्त नहीं दे सका।
राजा भैया वर्ष 1996 में पहली बार कल्याण सरकार में मंत्री बने। इसके बाद 1999 में राम प्रकाश गुप्ता की सरकार, 2000 में राजनाथ सिंह और 2003 में मुलायम सिंह यादव की सरकार में भी राजा भैया को मंत्री पद से नवाजा गया। दिसंबर, 2010 में एक इलाकाई नेता ने स्थानीय निकाय चुनावों के समय राजा भैया सहित एक सांसद, विधायक और विधान परिषद सदस्य समेत 13 लोगों के विरु द्ध जान से मारने के प्रयास का मामला दर्ज कराया था। इस मामले में राजा भैया को गिरफ्तार करके उनके खिलाफ गैंगस्टर एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया। इससे पहले साल 2002 में बीजेपी विधायक पूरन सिंह बुंदेला ने अपने अपहरण करने का आरोप लगाया था, 2004 में राजा के घर से एके-47 बरामद हुई, लेकिन वर्ष 2012 में अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा सरकार बनी, तो राजा भैया को कारागार मंत्री बनाया गया। जेल मंत्री रहे राजा भैया जेल में सजा भी काट चुके हैं। ताजा मामला डीएसपी हत्याकांड की सीबीआई जांच कर रही है। राजा भैया पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी हुई है, लेकिन उनके रुतबे में कोई कमी नहीं आई। इलाके में आज भी उनकी तूती बोलती है।

-जितेन्द्र बच्चन

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